ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵਹਿ ਤਾ ਕਰਹਿ ਬਿਭੂਤਾ ਸਿੰਙੀ ਨਾਦੁ ਵਜਾਵਹਿ ॥
जा तुधु भावहि ता करहि बिभूता सिंङी नादु वजावहि ॥
जब तुझे अच्छा लगता है तो प्राणी अपने शरीर पर विभूति मलता है और सिंगी नाद बजाता है।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਪੜਹਿ ਕਤੇਬਾ ਮੁਲਾ ਸੇਖ ਕਹਾਵਹਿ ॥
जा तुधु भावै ता पड़हि कतेबा मुला सेख कहावहि ॥
जब तुझे अच्छा लगता है तो मनुष्य कुरान पढ़ता है और मुल्लां और शेख कहलाया जाता है।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਹੋਵਹਿ ਰਾਜੇ ਰਸ ਕਸ ਬਹੁਤੁ ਕਮਾਵਹਿ ॥
जा तुधु भावै ता होवहि राजे रस कस बहुतु कमावहि ॥
हे नाथ ! जब तेरी इच्छा होती है, तो कई राजा बन जाते हैं और अधिकतर स्वादों का आनंद लेते हैं।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤੇਗ ਵਗਾਵਹਿ ਸਿਰ ਮੁੰਡੀ ਕਟਿ ਜਾਵਹਿ ॥
जा तुधु भावै तेग वगावहि सिर मुंडी कटि जावहि ॥
हे ठाकुर ! जब तुझे उपयुक्त लगता है तो मनुष्य तलवार चलाते हैं और शीश को धड़ से काट फेंकते हैं।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਜਾਹਿ ਦਿਸੰਤਰਿ ਸੁਣਿ ਗਲਾ ਘਰਿ ਆਵਹਿ ॥
जा तुधु भावै जाहि दिसंतरि सुणि गला घरि आवहि ॥
हे स्वामी ! जब तेरी इच्छा होती है तो लोग देश-देशांतरों में जाते हैं और अनेकों सूचनाएँ श्रवण करके घर लौट आते हैं।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਨਾਇ ਰਚਾਵਹਿ ਤੁਧੁ ਭਾਣੇ ਤੂੰ ਭਾਵਹਿ ॥
जा तुधु भावै नाइ रचावहि तुधु भाणे तूं भावहि ॥
हे प्राणपति ! जब तुझे उपयुक्त लगता है, तो मनुष्य तेरे नाम में लीन हो जाता है और जब तेरी इच्छा होती है, वह तुझे अच्छा लगने लग जाता है।
ਨਾਨਕੁ ਏਕ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਹੋਰਿ ਸਗਲੇ ਕੂੜੁ ਕਮਾਵਹਿ ॥੧॥
नानकु एक कहै बेनंती होरि सगले कूड़ु कमावहि ॥१॥
नानक एक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! तेरी इच्छा में चलने वालों के अलावा शेष सभी जीव झूठ ही कमाते हैं।॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਜਾ ਤੂੰ ਵਡਾ ਸਭਿ ਵਡਿਆਂਈਆ ਚੰਗੈ ਚੰਗਾ ਹੋਈ ॥
जा तूं वडा सभि वडिआंईआ चंगै चंगा होई ॥
हे ईश्वर ! जब तू महान है, तो सारी महानता तुझ से ही प्रकट होती है। तुम स्वयं भले हो और तुझसे भला ही होना है।
ਜਾ ਤੂੰ ਸਚਾ ਤਾ ਸਭੁ ਕੋ ਸਚਾ ਕੂੜਾ ਕੋਇ ਨ ਕੋਈ ॥
जा तूं सचा ता सभु को सचा कूड़ा कोइ न कोई ॥
जब तू स्वयं सत्य है तो जो तेरी पूजा करते हैं वह सभी सत्यवादी बन जाते हैं। तेरे सच्चे भक्त को कोई भी मनुष्य झूठा दिखाई नहीं देता।
ਆਖਣੁ ਵੇਖਣੁ ਬੋਲਣੁ ਚਲਣੁ ਜੀਵਣੁ ਮਰਣਾ ਧਾਤੁ ॥
आखणु वेखणु बोलणु चलणु जीवणु मरणा धातु ॥
जीवों का कहना, देखना, बोलना, चलना, जीना एवं मरना इत्यादि यह तेरी माया खेल ही है।
ਹੁਕਮੁ ਸਾਜਿ ਹੁਕਮੈ ਵਿਚਿ ਰਖੈ ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਆਪਿ ॥੨॥
हुकमु साजि हुकमै विचि रखै नानक सचा आपि ॥२॥
हे नानक ! सत्यस्वरूप परमात्मा स्वयं ही अपने हुक्म द्वारा सृष्टि रचना करता है और अपने हुक्म में ही समस्त प्राणियों को रखता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਨਿਸੰਗੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਈਐ ॥
सतिगुरु सेवि निसंगु भरमु चुकाईऐ ॥
यदि हम सतिगुरु की निष्काम सेवा करें तो भ्रम दूर हो जाते है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਆਖੈ ਕਾਰ ਸੁ ਕਾਰ ਕਮਾਈਐ ॥
सतिगुरु आखै कार सु कार कमाईऐ ॥
हमें वहीं कार्य करना चाहिए जो सतिगुरु करने के लिए कहते हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਹੋਇ ਦਇਆਲੁ ਤ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥
सतिगुरु होइ दइआलु त नामु धिआईऐ ॥
यदि सतिगुरु जी दयालु हो जाएँ, तो ही हम नाम सिमरन कर सकते हैं।
ਲਾਹਾ ਭਗਤਿ ਸੁ ਸਾਰੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ॥
लाहा भगति सु सारु गुरमुखि पाईऐ ॥
भक्ति पूजा का लाभ उत्कृष्ट है। यह गुरुमुख द्वारा प्राप्त किया जाता है।
ਮਨਮੁਖਿ ਕੂੜੁ ਗੁਬਾਰੁ ਕੂੜੁ ਕਮਾਈਐ ॥
मनमुखि कूड़ु गुबारु कूड़ु कमाईऐ ॥
मनमुख व्यक्ति के लिए अज्ञानता का अँधेरा बना रहता और वे झूठे धन की ही कमाई करते रहते हैं।
ਸਚੇ ਦੈ ਦਰਿ ਜਾਇ ਸਚੁ ਚਵਾਂਈਐ ॥
सचे दै दरि जाइ सचु चवांईऐ ॥
जो व्यक्ति सत्य के दर सत्य प्रभु का नाम-सिमरन करता है,”
ਸਚੈ ਅੰਦਰਿ ਮਹਲਿ ਸਚਿ ਬੁਲਾਈਐ ॥
सचै अंदरि महलि सचि बुलाईऐ ॥
ऐसे सत्यवादी को सत्य प्रभु के आत्मस्वरूप में बुला लिया जाता है।
ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਸਦਾ ਸਚਿਆਰੁ ਸਚਿ ਸਮਾਈਐ ॥੧੫॥
नानक सचु सदा सचिआरु सचि समाईऐ ॥१५॥
हे नानक ! जो व्यक्ति हमेशा ही सत्य-नाम का सिमरन करता रहता है, वहीं सत्यवादी है और वह सत्य में ही समा जाता है॥ १५ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਕਲਿ ਕਾਤੀ ਰਾਜੇ ਕਾਸਾਈ ਧਰਮੁ ਪੰਖ ਕਰਿ ਉਡਰਿਆ ॥
कलि काती राजे कासाई धरमु पंख करि उडरिआ ॥
कलियुग छुरी है और बादशाह कसाई है। धर्म पंख लगाकर दुनिया में से उड़ गया है अर्थात् कलियुग में धर्म का नाश हो गया है।
ਕੂੜੁ ਅਮਾਵਸ ਸਚੁ ਚੰਦ੍ਰਮਾ ਦੀਸੈ ਨਾਹੀ ਕਹ ਚੜਿਆ ॥
कूड़ु अमावस सचु चंद्रमा दीसै नाही कह चड़िआ ॥
झूठ की इस अमावस्या की रात्रि में सत्य का चाँद कहीं उदय हुआ दिखाई नहीं देता अर्थात हर तरफ झूठ ही विद्यमान है और सत्य का नाश हो गया है।
ਹਉ ਭਾਲਿ ਵਿਕੁੰਨੀ ਹੋਈ ॥
हउ भालि विकुंनी होई ॥
मैं सत्य की खोज-तलाश करती हुई पागल हो गई हूँ,
ਆਧੇਰੈ ਰਾਹੁ ਨ ਕੋਈ ॥
आधेरै राहु न कोई ॥
इस अंधेरे में, मुझे रास्ता नहीं मिल रहा है।
ਵਿਚਿ ਹਉਮੈ ਕਰਿ ਦੁਖੁ ਰੋਈ ॥
विचि हउमै करि दुखु रोई ॥
सारी दुनिया ही झूठ के अंधेरे में अहंकारवश दुखी होकर विलाप कर रही है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਿਨਿ ਬਿਧਿ ਗਤਿ ਹੋਈ ॥੧॥
कहु नानक किनि बिधि गति होई ॥१॥
हे नानक ! इस झूठ से किस विधि द्वारा जीवों की मुक्ति होगी ? ॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਕਲਿ ਕੀਰਤਿ ਪਰਗਟੁ ਚਾਨਣੁ ਸੰਸਾਰਿ ॥
कलि कीरति परगटु चानणु संसारि ॥
कलियुग में भगवान की महिमा दुनिया में ज्ञान रूपी प्रकाश प्रगट कर देती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੋਈ ਉਤਰੈ ਪਾਰਿ ॥
गुरमुखि कोई उतरै पारि ॥
कोई विरला गुरमुख ही भवसागर को तर कर पार होता है।
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਿਸੁ ਦੇਵੈ ॥
जिस नो नदरि करे तिसु देवै ॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति पर भगवान अपनी कृपा-दृष्टि करता है, उसे ही अपनी महिमा की देन प्रदान करता है
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਤਨੁ ਸੋ ਲੇਵੈ ॥੨॥
नानक गुरमुखि रतनु सो लेवै ॥२॥
किन्तु गुरमुख ही नाम रूपी रत्न प्राप्त करता है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਭਗਤਾ ਤੈ ਸੈਸਾਰੀਆ ਜੋੜੁ ਕਦੇ ਨ ਆਇਆ ॥
भगता तै सैसारीआ जोड़ु कदे न आइआ ॥
भगवान के भक्तों एवं दुनिया के जीवों में मिलाप कभी भी योग्य नहीं बना।
ਕਰਤਾ ਆਪਿ ਅਭੁਲੁ ਹੈ ਨ ਭੁਲੈ ਕਿਸੈ ਦਾ ਭੁਲਾਇਆ ॥
करता आपि अभुलु है न भुलै किसै दा भुलाइआ ॥
भगवान स्वयं अचूक है। वह किसी दूसरे के भुलाने से भी भूल नहीं करता।
ਭਗਤ ਆਪੇ ਮੇਲਿਅਨੁ ਜਿਨੀ ਸਚੋ ਸਚੁ ਕਮਾਇਆ ॥
भगत आपे मेलिअनु जिनी सचो सचु कमाइआ ॥
जिन्होंने सत्यवादी बनकर सत्य की ही साधना की है ऐसे भक्तों को भगवान ने स्वयं ही अपने साथ मिलाया हुआ है।
ਸੈਸਾਰੀ ਆਪਿ ਖੁਆਇਅਨੁ ਜਿਨੀ ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਬੋਲਿ ਬਿਖੁ ਖਾਇਆ ॥
सैसारी आपि खुआइअनु जिनी कूड़ु बोलि बोलि बिखु खाइआ ॥
जिन लोगों ने झूठ बोल-बोलकर माया रूपी विष खाया है, ऐसे लोगों को भगवान ने स्वयं ही कुमार्गगामी कर दिया हैं।
ਚਲਣ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਨੀ ਕਾਮੁ ਕਰੋਧੁ ਵਿਸੁ ਵਧਾਇਆ ॥
चलण सार न जाणनी कामु करोधु विसु वधाइआ ॥
वे परम वास्तविकता को नहीं पहचानते हैं, कि हम सभी एक दिन इस दुनिया से जाएंगे; वे काम और क्रोध के जहर पैदा करना जारी रखते हैं।
ਭਗਤ ਕਰਨਿ ਹਰਿ ਚਾਕਰੀ ਜਿਨੀ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥
भगत करनि हरि चाकरी जिनी अनदिनु नामु धिआइआ ॥
जिन्होंने दिन-रात नाम का ही ध्यान किया है, ऐसे भक्तजन ही भगवान की भक्ति एवं सेवा करते रहते हैं।
ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ਹੋਇ ਕੈ ਜਿਨੀ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ॥
दासनि दास होइ कै जिनी विचहु आपु गवाइआ ॥
जिन्होंने प्रभु के दासों के दास बनकर अपने अन्तर्मन से अहंकार को मिटा दिया है,
ਓਨਾ ਖਸਮੈ ਕੈ ਦਰਿ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਇਆ ॥੧੬॥
ओना खसमै कै दरि मुख उजले सचै सबदि सुहाइआ ॥१६॥
मालिक-प्रभु के दरबार में उनके ही मुख उज्ज्वल होते हैं और वे सत्य नाम द्वारा सत्य के दरबार में बड़ी शोभा प्राप्त करते हैं॥ १६ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १ ॥
ਸਬਾਹੀ ਸਾਲਾਹ ਜਿਨੀ ਧਿਆਇਆ ਇਕ ਮਨਿ ॥
सबाही सालाह जिनी धिआइआ इक मनि ॥
जो व्यक्ति प्रातः काल एकाग्रचित होकर ईश्वर का यश करते और उसे स्मरण करते हैं,
ਸੇਈ ਪੂਰੇ ਸਾਹ ਵਖਤੈ ਉਪਰਿ ਲੜਿ ਮੁਏ ॥
सेई पूरे साह वखतै उपरि लड़ि मुए ॥
वही पूर्ण सम्राट हैं और सही वक्त पर लड़कर मृत्यु को प्राप्त हुए हैं।
ਦੂਜੈ ਬਹੁਤੇ ਰਾਹ ਮਨ ਕੀਆ ਮਤੀ ਖਿੰਡੀਆ ॥
दूजै बहुते राह मन कीआ मती खिंडीआ ॥
दूसरे प्रहर में मन की वृति विखर जाती है और मन अनेक मागों पर दौड़ता है।
ਬਹੁਤੁ ਪਏ ਅਸਗਾਹ ਗੋਤੇ ਖਾਹਿ ਨ ਨਿਕਲਹਿ ॥
बहुतु पए असगाह गोते खाहि न निकलहि ॥
मनुष्य बहुत सारे धंधों के झंझटों रूपी अथाह सागर में गिर जाता है और ऐसे गोते खाता है कि उसमें से बाहर निकल ही नहीं सकता।