ੴ ਸਤਿਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
१ ऑ- निरंकार वही एक है। सति नामु – उसका नाम सत्य है। करता – वह सृष्टि व उसके जीवों की रचने वाला है। पुरखु – वह यह सब कुछ करने में परिपूर्ण (शक्तिमान ) है। निरभउ – उसमें किसी तरह का भय व्याप्त नहीं। अर्थात् – अन्य देव-दैत्यों तथा सांसारिक जीवों की भाँति उसमें द्वेष अथवा जन्म-मरण का भय नहीं है ; वह इन सबसे परे हैं। निरवैरु- वह वैर से रहित है। अकाल- वह काल (मृत्यु) से परे है; अर्थात्-वह अविनाशी है। मूरति – वह अविनाशी होने के कारण उसका अस्तित्व सदैव रहता है। अजूनी – वह कोई योनि धारण नहीं करता, क्योंकि वह आवागमन के चक्कर से रहित है। सैभं – वह स्वयं से प्रकाशमान हुआ है। गुर – अंधकार (अज्ञान) में प्रकाश (ज्ञान) करने वाला (गुरु)। प्रसादि- कृपा की बख्शिश। अर्थात्-गुरु की कृपा से यह सब उपलब्ध हो सकता है।
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ਸੋ ਦਰੁ ॥
रागु आसा महला १ घरु १ सो दरु ॥
रागु आसा महला १ घरु १ सो दरु ॥
ਸੋ ਦਰੁ ਤੇਰਾ ਕੇਹਾ ਸੋ ਘਰੁ ਕੇਹਾ ਜਿਤੁ ਬਹਿ ਸਰਬ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੇ ॥
सो दरु तेरा केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब सम्हाले ॥
हे जगतपालक ! तेरा वह दर-घर कैसा है? जहाँ बैठकर तू सारी दुनिया की देखभाल व पोषण कर रहा है।
ਵਾਜੇ ਤੇਰੇ ਨਾਦ ਅਨੇਕ ਅਸੰਖਾ ਕੇਤੇ ਤੇਰੇ ਵਾਵਣਹਾਰੇ ॥
वाजे तेरे नाद अनेक असंखा केते तेरे वावणहारे ॥
तेरे द्वार पर नाना प्रकार के असंख्य नाद गूंज रहे हैं और केितने ही उनको वजाने वाले विद्यमान हैं।
ਕੇਤੇ ਤੇਰੇ ਰਾਗ ਪਰੀ ਸਿਉ ਕਹੀਅਹਿ ਕੇਤੇ ਤੇਰੇ ਗਾਵਣਹਾਰੇ ॥
केते तेरे राग परी सिउ कहीअहि केते तेरे गावणहारे ॥
कितने ही तेरे राग हैं, जो रागिनियों के संग वहाँ गान किए जा रहे हैं और उन रागों को गाने वाले गंधपििद रार्गी भी कितने ही हैं जो तेरा यश गा रहे हैं।
ਗਾਵਨੑਿ ਤੁਧਨੋ ਪਉਣੁ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰੁ ਗਾਵੈ ਰਾਜਾ ਧਰਮ ਦੁਆਰੇ ॥
गावन्हि तुधनो पउणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरम दुआरे ॥
हे जग के रचयिता ! पवन, जल एवं अग्नि देव भी तेरा ही गुणानुवाद कर रहे हैं तथा जीवों के कर्मों का विश्लेपक धर्मराज भी तेरे द्वार पर तेरी ही महिमा गा रहा है।
ਗਾਵਨੑਿ ਤੁਧਨੋ ਚਿਤੁ ਗੁਪਤੁ ਲਿਖਿ ਜਾਣਨਿ ਲਿਖਿ ਲਿਖਿ ਧਰਮੁ ਵੀਚਾਰੇ ॥
गावन्हि तुधनो चितु गुपतु लिखि जाणनि लिखि लिखि धरमु वीचारे ॥
जीवों द्वारा किए जाने वाले कर्मों को लिखने वाले चित्र-गुप्त भी तेरा ही गुणानुवाद कर रहे हैं तथा धर्मराज चित्र-गुप्त द्वारा लिखे जाने वाले शुभाशुभ कर्मों का विचार करता है।
ਗਾਵਨੑਿ ਤੁਧਨੋ ਈਸਰੁ ਬ੍ਰਹਮਾ ਦੇਵੀ ਸੋਹਨਿ ਤੇਰੇ ਸਦਾ ਸਵਾਰੇ ॥
गावन्हि तुधनो ईसरु ब्रहमा देवी सोहनि तेरे सदा सवारे ॥
हे परमेश्वर ! तेरे द्वारा प्रतिपादित शिव, ब्रह्मा व अनेकों देवियों जो शोभायमान हैं, तेरी ही महिमा गा रहे हैं।
ਗਾਵਨੑਿ ਤੁਧਨੋ ਇੰਦ੍ਰ ਇੰਦ੍ਰਾਸਣਿ ਬੈਠੇ ਦੇਵਤਿਆ ਦਰਿ ਨਾਲੇ ॥
गावन्हि तुधनो इंद्र इंद्रासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥
समस्त देवताओं व स्वर्ग का अधिपति इन्द्र अपने सिंहासन पर बैठा अन्य देवताओं के साथ मिलकर तेरे द्वार पर खड़ा तेरा ही यश गा रहा है।
ਗਾਵਨੑਿ ਤੁਧਨੋ ਸਿਧ ਸਮਾਧੀ ਅੰਦਰਿ ਗਾਵਨੑਿ ਤੁਧਨੋ ਸਾਧ ਬੀਚਾਰੇ ॥
गावन्हि तुधनो सिध समाधी अंदरि गावन्हि तुधनो साध बीचारे ॥
अनेक सिद्ध लोग समाधियों में स्थित हुए तेरी ही महिमा गा रहे हैं और विचारवान साधु भी विवेक से तेरा ही यशोगान कर रहे हैं।
ਗਾਵਨੑਿ ਤੁਧਨੋ ਜਤੀ ਸਤੀ ਸੰਤੋਖੀ ਗਾਵਨਿ ਤੁਧਨੋ ਵੀਰ ਕਰਾਰੇ ॥
गावन्हि तुधनो जती सती संतोखी गावनि तुधनो वीर करारे ॥
अनेक यति, सती एवं संतोषी भी तेरी ही महिमा-स्तुति गा रहे हैं और पराक्रमी योद्धा भी तेरी प्रशंसा के गीत गा रहे हैं।
ਗਾਵਨਿ ਤੁਧਨੋ ਪੰਡਿਤ ਪੜੇ ਰਖੀਸੁਰ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਬੇਦਾ ਨਾਲੇ ॥
गावनि तुधनो पंडित पड़े रखीसुर जुगु जुगु बेदा नाले ॥
हे प्रभु ! दुनिया के समस्त विद्वान व महान जितेन्द्रिय ऋषि-मुनि युगों-युगों से वेदों को पढ़-पढ़ कर तेरा ही यशोगान कर रहे हैं।
ਗਾਵਨਿ ਤੁਧਨੋ ਮੋਹਣੀਆ ਮਨੁ ਮੋਹਨਿ ਸੁਰਗੁ ਮਛੁ ਪਇਆਲੇ ॥
गावनि तुधनो मोहणीआ मनु मोहनि सुरगु मछु पइआले ॥
मन को मुग्ध करने वाली सुन्दर अप्सराएँ स्वर्ग लोक, मृत्युलोक एवं पाताल लोक में तेरा ही गुणगान कर रही हैं।
ਗਾਵਨੑਿ ਤੁਧਨੋ ਰਤਨ ਉਪਾਏ ਤੇਰੇ ਜੇਤੇ ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਨਾਲੇ ॥
गावन्हि तुधनो रतन उपाए तेरे जेते अठसठि तीरथ नाले ॥
तेरे उत्पन्न किए हुए चौदह रत्न, जगत के अड़सठ (६८) तीर्थ तथा उनमें विद्यमान संतजन भी तेरा यशोगान कर रहे हैं।
ਗਾਵਨੑਿ ਤੁਧਨੋ ਜੋਧ ਮਹਾਬਲ ਸੂਰਾ ਗਾਵਨੑਿ ਤੁਧਨੋ ਖਾਣੀ ਚਾਰੇ ॥
गावन्हि तुधनो जोध महाबल सूरा गावन्हि तुधनो खाणी चारे ॥
बड़े-बड़े पराक्रमी योद्धा, महाबली एवं शूरवीर भी तेरा ही गुणानुवाद कर रहे हैं, तथा उत्पत्ति के चारों स्रोत (अण्डज, जरायुज, स्वेदज व उदभिज्ज) भी तेरी ही उपमा गा रहे हैं।
ਗਾਵਨੑਿ ਤੁਧਨੋ ਖੰਡ ਮੰਡਲ ਬ੍ਰਹਮੰਡਾ ਕਰਿ ਕਰਿ ਰਖੇ ਤੇਰੇ ਧਾਰੇ ॥
गावन्हि तुधनो खंड मंडल ब्रहमंडा करि करि रखे तेरे धारे ॥
हे विधाता ! नवखण्ड, मण्डल एवं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जो तूने बना-बना कर धारण कर रखे हैं, वे भी तेरी ही महिमा-स्तुति गा रहे हैं।
ਸੇਈ ਤੁਧਨੋ ਗਾਵਨੑਿ ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵਨੑਿ ਰਤੇ ਤੇਰੇ ਭਗਤ ਰਸਾਲੇ ॥
सेई तुधनो गावन्हि जो तुधु भावन्हि रते तेरे भगत रसाले ॥
वास्तव में वे ही तेरी कीर्ति को गा सकते हैं, जो तेरी भक्ति में लीन हैं, तेरे नाम के रसिया हैं और जो तुझे अच्छे लगते हैं।
ਹੋਰਿ ਕੇਤੇ ਤੁਧਨੋ ਗਾਵਨਿ ਸੇ ਮੈ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਨਿ ਨਾਨਕੁ ਕਿਆ ਬੀਚਾਰੇ ॥
होरि केते तुधनो गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ बीचारे ॥
गुरु नानक देव जी कहते हैं कि अनेकानेक और भी कई ऐसे जीव हैं जो मुझे स्मरण नहीं हो रहे, जो तेरा ही यशोगान करते हैं, मैं कहाँ तक उनका विचार करूँ, अर्थात् यशोगान करने वाले जीवों की गणना मैं कहाँ तक करूँ।
ਸੋਈ ਸੋਈ ਸਦਾ ਸਚੁ ਸਾਹਿਬੁ ਸਾਚਾ ਸਾਚੀ ਨਾਈ ॥
सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥
वह साहिब सच है, हमेशा के लिए सच है; वह सच है, और सत्य उसका नाम है।
ਹੈ ਭੀ ਹੋਸੀ ਜਾਇ ਨ ਜਾਸੀ ਰਚਨਾ ਜਿਨਿ ਰਚਾਈ ॥
है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥
वह सत्यस्वरूप परमात्मा भूतकाल में था, वही सद्गुणी परमेश्वर वर्तमान में भी है। वह जगत का रचयिता भविष्य में सदैव रहेगा, वह परमात्मा न जन्म लेता है और न ही उसका नाश होता है।
ਰੰਗੀ ਰੰਗੀ ਭਾਤੀ ਜਿਨਸੀ ਮਾਇਆ ਜਿਨਿ ਉਪਾਈ ॥
रंगी रंगी भाती जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥
जिस सृष्टि रचयिता ईश्वर ने रंग-बिरंगी, तरह-तरह के आकार वाली एवं अनेकानेक जीवों की उत्पत्ति अपनी माया द्वारा की है,”
ਕਰਿ ਕਰਿ ਦੇਖੈ ਕੀਤਾ ਅਪਣਾ ਜਿਉ ਤਿਸ ਦੀ ਵਡਿਆਈ ॥
करि करि देखै कीता अपणा जिउ तिस दी वडिआई ॥
अपनी इस सृष्टि-रचना को कर-करके वह अपनी रुचि अनुसार ही देखता है अर्थात् उनकी देखभाल अपनी इच्छानुसार ही करता है।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ਕਰਸੀ ਫਿਰਿ ਹੁਕਮੁ ਨ ਕਰਣਾ ਜਾਈ ॥
जो तिसु भावै सोई करसी फिरि हुकमु न करणा जाई ॥
जगत के रचयिता को जो कुछ भी भला लगता है, वही कार्य वह करता है और भविष्य में भी करेगा, इसके प्रति उसको आदेश करने वाला उसके समान कोई नहीं है।
ਸੋ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਸਾਹਾ ਪਤਿ ਸਾਹਿਬੁ ਨਾਨਕ ਰਹਣੁ ਰਜਾਈ ॥੧॥੧॥
सो पातिसाहु साहा पति साहिबु नानक रहणु रजाई ॥१॥१॥
गुरु नानक जी का फुरमान है कि हे मानव ! वह परमात्मा शाहों का शाह अर्थात् सारे विश्व का शहंशाह है, इसलिए उसकी रजा में रहना ही उचित है॥१॥१॥