ਓਹੁ ਬਿਧਾਤਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਦੇਇ ॥
ओहु बिधाता मनु तनु देइ ॥
वही विधाता है और वही मन-तन प्रदान करता है।
ਓਹੁ ਬਿਧਾਤਾ ਮਨਿ ਮੁਖਿ ਸੋਇ ॥
ओहु बिधाता मनि मुखि सोइ ॥
मन एवं मुख में वह विधाता ही विद्यमान है।
ਪ੍ਰਭੁ ਜਗਜੀਵਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥
प्रभु जगजीवनु अवरु न कोइ ॥
प्रभु ही जगत् का जीवन है और उसके अलावा अन्य कोई नहीं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਪਤਿ ਹੋਇ ॥੯॥
नानक नामि रते पति होइ ॥९॥
हे नानक ! जो प्रभु-नाम में लीन रहता है, उसकी ही कीर्ति होती है ॥६॥
ਰਾਜਨ ਰਾਮ ਰਵੈ ਹਿਤਕਾਰਿ ॥
राजन राम रवै हितकारि ॥
जो हितकारी राम का नाम जपता रहता है,
ਰਣ ਮਹਿ ਲੂਝੈ ਮਨੂਆ ਮਾਰਿ ॥
रण महि लूझै मनूआ मारि ॥
वह मन को मारकर जगत् रूपी रणभूमि में डटकर जूझता है और
ਰਾਤਿ ਦਿਨੰਤਿ ਰਹੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥
राति दिनंति रहै रंगि राता ॥
दिन-रात परमात्मा के रंग में लीन रहता है।
ਤੀਨਿ ਭਵਨ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਜਾਤਾ ॥
तीनि भवन जुग चारे जाता ॥
ऐसा व्यक्ति तीनों लोकों एवं चारों युगों में लोकप्रिय हो जाता है।
ਜਿਨਿ ਜਾਤਾ ਸੋ ਤਿਸ ਹੀ ਜੇਹਾ ॥
जिनि जाता सो तिस ही जेहा ॥
जिसने भगवान को समझ लिया है, वह उस जैसा ही हो जाता है।
ਅਤਿ ਨਿਰਮਾਇਲੁ ਸੀਝਸਿ ਦੇਹਾ ॥
अति निरमाइलु सीझसि देहा ॥
उसका मन निर्मल एवं शरीर सफल हो जाता है और
ਰਹਸੀ ਰਾਮੁ ਰਿਦੈ ਇਕ ਭਾਇ ॥
रहसी रामु रिदै इक भाइ ॥
एक श्रद्धा भावना से राम उसके हृदय में बसा रहता है।
ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਸਾਚਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੧੦॥
अंतरि सबदु साचि लिव लाइ ॥१०॥
उसके अन्तर में शब्द स्थित हो जाता है और सत्य में ही लगन लगी रहती है ॥१०॥
ਰੋਸੁ ਨ ਕੀਜੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਜੈ ਰਹਣੁ ਨਹੀ ਸੰਸਾਰੇ ॥
रोसु न कीजै अम्रितु पीजै रहणु नही संसारे ॥
मन में रोष नहीं करना चाहिए, नामामृत का पान करना चाहिए, चूंकि किसी ने भी इस संसार में नहीं रहना।
ਰਾਜੇ ਰਾਇ ਰੰਕ ਨਹੀ ਰਹਣਾ ਆਇ ਜਾਇ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ॥
राजे राइ रंक नही रहणा आइ जाइ जुग चारे ॥
राजा, महाराजा एवं भिखारी किसी ने भी दुनिया में नहीं रहना और चारों युगों में जन्म-मरण का चक्र पड़ा रहता है।
ਰਹਣ ਕਹਣ ਤੇ ਰਹੈ ਨ ਕੋਈ ਕਿਸੁ ਪਹਿ ਕਰਉ ਬਿਨੰਤੀ ॥
रहण कहण ते रहै न कोई किसु पहि करउ बिनंती ॥
यह कहने पर भी कि मैं सदा यहाँ ही रहूँगा, कोई यहाँ नहीं रहता। फिर मैं किसके पास विनती करूँ ?”
ਏਕੁ ਸਬਦੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਨਿਰੋਧਰੁ ਗੁਰੁ ਦੇਵੈ ਪਤਿ ਮਤੀ ॥੧੧॥
एकु सबदु राम नाम निरोधरु गुरु देवै पति मती ॥११॥
राम नाम एक शब्द ही जीव का उद्धारक है और गुरु ही बुद्धि एवं प्रतिष्ठा देता है ॥११॥
ਲਾਜ ਮਰੰਤੀ ਮਰਿ ਗਈ ਘੂਘਟੁ ਖੋਲਿ ਚਲੀ ॥
लाज मरंती मरि गई घूघटु खोलि चली ॥
लोक लाज में मरने वाली जीव-स्त्री की लाज ही मर गई है और अब वह घूंघट खोल कर चलती है।
ਸਾਸੁ ਦਿਵਾਨੀ ਬਾਵਰੀ ਸਿਰ ਤੇ ਸੰਕ ਟਲੀ ॥
सासु दिवानी बावरी सिर ते संक टली ॥
उसकी अविद्या रूपी सास माया बावली हो गई है और सिर से माया रूपी सास का डर दूर हो गया है।
ਪ੍ਰੇਮਿ ਬੁਲਾਈ ਰਲੀ ਸਿਉ ਮਨ ਮਹਿ ਸਬਦੁ ਅਨੰਦੁ ॥
प्रेमि बुलाई रली सिउ मन महि सबदु अनंदु ॥
उसके प्रभु ने प्रेम एवं चाव से उसे अपने पास बुला लिया है, उसके मन में शब्द द्वारा आनंद हो गया है।
ਲਾਲਿ ਰਤੀ ਲਾਲੀ ਭਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਈ ਨਿਚਿੰਦੁ ॥੧੨॥
लालि रती लाली भई गुरमुखि भई निचिंदु ॥१२॥
वह अपने लाल प्रभु के प्रेम में रंग गई है, जिससे उसके चेहरे पर लाली आ गई है। वह गुरु द्वारा निश्चिन्त हो गई है ॥१२॥
ਲਾਹਾ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਜਪਿ ਸਾਰੁ ॥
लाहा नामु रतनु जपि सारु ॥
नाम रूपी रत्न का जाप ही सच्चा लाभ है।
ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਬੁਰਾ ਅਹੰਕਾਰੁ ॥
लबु लोभु बुरा अहंकारु ॥
लालच, लोभ एवं अहंकार्.
ਲਾੜੀ ਚਾੜੀ ਲਾਇਤਬਾਰੁ ॥
लाड़ी चाड़ी लाइतबारु ॥
निंदा, खुशामद, छेड़छाड़ एवं चुगली सब बुरे कार्य हैं।
ਮਨਮੁਖੁ ਅੰਧਾ ਮੁਗਧੁ ਗਵਾਰੁ ॥
मनमुखु अंधा मुगधु गवारु ॥
इन बुरी आदतों के कारण मनमुख जीव अंधा, मूर्ख एवं गंवार हो गया है।
ਲਾਹੇ ਕਾਰਣਿ ਆਇਆ ਜਗਿ ॥
लाहे कारणि आइआ जगि ॥
जीव तो जग में नाम रूपी पाने लाभ के लिए आया था
ਹੋਇ ਮਜੂਰੁ ਗਇਆ ਠਗਾਇ ਠਗਿ ॥
होइ मजूरु गइआ ठगाइ ठगि ॥
परन्तु माया का मजदूर बनकर माया द्वारा ठग कर जगत् से खाली हाथ लौट जाता है।
ਲਾਹਾ ਨਾਮੁ ਪੂੰਜੀ ਵੇਸਾਹੁ ॥
लाहा नामु पूंजी वेसाहु ॥
हे नानक ! सच्चा लाभ केवल प्रभु नाम रूपी पूंजी प्राप्त करने से ही होता है।
ਨਾਨਕ ਸਚੀ ਪਤਿ ਸਚਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ॥੧੩॥
नानक सची पति सचा पातिसाहु ॥१३॥
सच्चा पातशाह प्रभु उसे सच्ची प्रतिष्ठा प्रदान करता है ॥१३॥
ਆਇ ਵਿਗੂਤਾ ਜਗੁ ਜਮ ਪੰਥੁ ॥
आइ विगूता जगु जम पंथु ॥
जगत् में जन्म लेकर जीव यम के मार्ग में पड़कर बर्बाद हो रहा है और
ਆਈ ਨ ਮੇਟਣ ਕੋ ਸਮਰਥੁ ॥
आई न मेटण को समरथु ॥
मोह-माया को नाश करने के लिए उसमें समर्था नहीं।
ਆਥਿ ਸੈਲ ਨੀਚ ਘਰਿ ਹੋਇ ॥
आथि सैल नीच घरि होइ ॥
जिस नीच व्यक्ति के घर में बहुत सारा धन होता है तो
ਆਥਿ ਦੇਖਿ ਨਿਵੈ ਜਿਸੁ ਦੋਇ ॥
आथि देखि निवै जिसु दोइ ॥
अमीर-गरीब दोनों ही उसके धन को देखकर झुककर उसे प्रणाम करते हैं।
ਆਥਿ ਹੋਇ ਤਾ ਮੁਗਧੁ ਸਿਆਨਾ ॥
आथि होइ ता मुगधु सिआना ॥
जिसके पास बेशुमार धन होता है, वह मूर्ख भी चतुर माना जाता है।
ਭਗਤਿ ਬਿਹੂਨਾ ਜਗੁ ਬਉਰਾਨਾ ॥
भगति बिहूना जगु बउराना ॥
भक्तिविहीन होकर समूचा जगत् बावला बनकर इधर-उधर भटक रहा है।
ਸਭ ਮਹਿ ਵਰਤੈ ਏਕੋ ਸੋਇ ॥
सभ महि वरतै एको सोइ ॥
परन्तु एक ईश्वर ही सब जीवों में विद्यमान है,
ਜਿਸ ਨੋ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਤਿਸੁ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥੧੪॥
जिस नो किरपा करे तिसु परगटु होइ ॥१४॥
वह जिस पर अपनी कृपा करता है, उसके मन में प्रगट हो जाता है॥ १४॥
ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਥਾਪਿ ਸਦਾ ਨਿਰਵੈਰੁ ॥
जुगि जुगि थापि सदा निरवैरु ॥
युग-युगांतरों से संसार को बनाने वाला ईश्वर सदैव स्थिर है, वैर से रहित है
ਜਨਮਿ ਮਰਣਿ ਨਹੀ ਧੰਧਾ ਧੈਰੁ ॥
जनमि मरणि नही धंधा धैरु ॥
प्रेमस्वरूप वह जन्म-मरण के चक्र से रहित है और दुनिया के धंधों से मुक्त है।
ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਆਪੇ ਆਪਿ ॥
जो दीसै सो आपे आपि ॥
जो कुछ भी दिखाई देता है, वह उसका ही रूप है।
ਆਪਿ ਉਪਾਇ ਆਪੇ ਘਟ ਥਾਪਿ ॥
आपि उपाइ आपे घट थापि ॥
वह स्वयं ही पैदा करता है और स्वयं ही प्रत्येक हदय में स्थित है।
ਆਪਿ ਅਗੋਚਰੁ ਧੰਧੈ ਲੋਈ ॥
आपि अगोचरु धंधै लोई ॥
वह स्वयं ही अगोचर है और उसने सारी दुनिया को विभिन्न कायों में लगाया हुआ है।
ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਜਗਜੀਵਨੁ ਸੋਈ ॥
जोग जुगति जगजीवनु सोई ॥
योग की युक्ति में भी जग का जीवन वह परमेश्वर ही है।
ਕਰਿ ਆਚਾਰੁ ਸਚੁ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
करि आचारु सचु सुखु होई ॥
भक्ति का उत्तम कार्य करने से सच्चा सुख उपलब्ध होता है,
ਨਾਮ ਵਿਹੂਣਾ ਮੁਕਤਿ ਕਿਵ ਹੋਈ ॥੧੫॥
नाम विहूणा मुकति किव होई ॥१५॥
परन्तु नामविहीन जीव की मुक्ति नहीं हो सकती ॥ १५ ॥
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਵੇਰੋਧੁ ਸਰੀਰ ॥
विणु नावै वेरोधु सरीर ॥
नाम के बिना जीना अपने शरीर से विरोध करने की तरह है।
ਕਿਉ ਨ ਮਿਲਹਿ ਕਾਟਹਿ ਮਨ ਪੀਰ ॥
किउ न मिलहि काटहि मन पीर ॥
तू प्रभु से क्यों नहीं मिलता ? वह तेरे मन की पीड़ा को दूर कर देगा।
ਵਾਟ ਵਟਾਊ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥
वाट वटाऊ आवै जाइ ॥
जीव रूपी पथिक बार-बार जग रूपी पथ पर आता जाता रहता है।
ਕਿਆ ਲੇ ਆਇਆ ਕਿਆ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥
किआ ले आइआ किआ पलै पाइ ॥
यह क्या लेकर जगत् में आया है और क्या लाभ प्राप्त करके जा रहा है।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਤੋਟਾ ਸਭ ਥਾਇ ॥
विणु नावै तोटा सभ थाइ ॥
नाम के बिना हर स्थान में नुक्सान ही होता है।
ਲਾਹਾ ਮਿਲੈ ਜਾ ਦੇਇ ਬੁਝਾਇ ॥
लाहा मिलै जा देइ बुझाइ ॥
उसे नाम रूपी लाभ तभी हासिल होता है, जब परमात्मा उसे सूझ प्रदान करता है।
ਵਣਜੁ ਵਾਪਾਰੁ ਵਣਜੈ ਵਾਪਾਰੀ ॥
वणजु वापारु वणजै वापारी ॥
सच्चा व्यापारी तो प्रभु-नाम का ही वाणिज्य एवं व्यापार करता है,
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਕੈਸੀ ਪਤਿ ਸਾਰੀ ॥੧੬॥
विणु नावै कैसी पति सारी ॥१६॥
फिर नाम के बिना जीव कैसे शोभा प्राप्त कर सकता है?॥ १६॥
ਗੁਣ ਵੀਚਾਰੇ ਗਿਆਨੀ ਸੋਇ ॥
गुण वीचारे गिआनी सोइ ॥
वही सच्चा ज्ञानी है, जो परम-सत्य के गुणों का विचार करता है।
ਗੁਣ ਮਹਿ ਗਿਆਨੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥
गुण महि गिआनु परापति होइ ॥
गुणों में ही उसे ज्ञान प्राप्त होता है।
ਗੁਣਦਾਤਾ ਵਿਰਲਾ ਸੰਸਾਰਿ ॥
गुणदाता विरला संसारि ॥
संसार में कोई विरला मनुष्य ही है जो गुणों के दाता परमेश्वर का ध्यान करता है।
ਸਾਚੀ ਕਰਣੀ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰਿ ॥
साची करणी गुर वीचारि ॥
गुरु के उपदेश द्वारा ही नाम-स्मरण की सच्ची करनी हो सकती है।
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਇ ॥
अगम अगोचरु कीमति नही पाइ ॥
अगम्य, मन-वाणी से परे परमेश्वर का सही मूल्य नहीं आंका जा सकता।