ਆਪੇ ਕਿਸ ਹੀ ਕਸਿ ਬਖਸੇ ਆਪੇ ਦੇ ਲੈ ਭਾਈ ਹੇ ॥੮॥
आपे किस ही कसि बखसे आपे दे लै भाई हे ॥८॥
वह स्वयं ही किसी के कर्म पर क्षमा-दान करता है और किसी को दण्ड देता है ॥८॥
ਆਪੇ ਧਨਖੁ ਆਪੇ ਸਰਬਾਣਾ ॥
आपे धनखु आपे सरबाणा ॥
वह स्वयं ही धनुष एवं बाण चलाने वाला है,
ਆਪੇ ਸੁਘੜੁ ਸਰੂਪੁ ਸਿਆਣਾ ॥
आपे सुघड़ु सरूपु सिआणा ॥
वह बड़ा बुद्धिमान, सुन्दर रूप एवं चतुर है।
ਕਹਤਾ ਬਕਤਾ ਸੁਣਤਾ ਸੋਈ ਆਪੇ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ਹੇ ॥੯॥
कहता बकता सुणता सोई आपे बणत बणाई हे ॥९॥
वह स्वयं ही कहने वाला, वक्ता एवं श्रोता है और सब उसकी ही रचना है॥ ९॥
ਪਉਣੁ ਗੁਰੂ ਪਾਣੀ ਪਿਤ ਜਾਤਾ ॥
पउणु गुरू पाणी पित जाता ॥
पवन जगत् का गुरु है, पानी पिता है और
ਉਦਰ ਸੰਜੋਗੀ ਧਰਤੀ ਮਾਤਾ ॥
उदर संजोगी धरती माता ॥
उदर के संयोग से धरती जगत् की माता है।
ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਦੁਇ ਦਾਈ ਦਾਇਆ ਜਗੁ ਖੇਲੈ ਖੇਲਾਈ ਹੇ ॥੧੦॥
रैणि दिनसु दुइ दाई दाइआ जगु खेलै खेलाई हे ॥१०॥
रात और दिन दोनों दाई-दाया हैं और समूचा जगत् इनके खेलाने से खेल रहा है॥ १०॥
ਆਪੇ ਮਛੁਲੀ ਆਪੇ ਜਾਲਾ ॥
आपे मछुली आपे जाला ॥
मछली एवं फांसने वाला जाल परमात्मा ही है।
ਆਪੇ ਗਊ ਆਪੇ ਰਖਵਾਲਾ ॥
आपे गऊ आपे रखवाला ॥
वह स्वयं ही गाय और स्वयं ही रखवाला है।
ਸਰਬ ਜੀਆ ਜਗਿ ਜੋਤਿ ਤੁਮਾਰੀ ਜੈਸੀ ਪ੍ਰਭਿ ਫੁਰਮਾਈ ਹੇ ॥੧੧॥
सरब जीआ जगि जोति तुमारी जैसी प्रभि फुरमाई हे ॥११॥
हे ईश्वर ! सब जीवों में तेरी ही ज्योति है, जैसी तेरी आज्ञा है, दुनिया वैसे ही चल रही है॥ ११॥
ਆਪੇ ਜੋਗੀ ਆਪੇ ਭੋਗੀ ॥
आपे जोगी आपे भोगी ॥
योगी, भोगी,
ਆਪੇ ਰਸੀਆ ਪਰਮ ਸੰਜੋਗੀ ॥
आपे रसीआ परम संजोगी ॥
रसिया एवं परम संयोगी भी वही है और
ਆਪੇ ਵੇਬਾਣੀ ਨਿਰੰਕਾਰੀ ਨਿਰਭਉ ਤਾੜੀ ਲਾਈ ਹੇ ॥੧੨॥
आपे वेबाणी निरंकारी निरभउ ताड़ी लाई हे ॥१२॥
निराकार निर्भय परमात्मा ने स्वयं ही समाधि लगाई हुई है ॥१२॥
ਖਾਣੀ ਬਾਣੀ ਤੁਝਹਿ ਸਮਾਣੀ ॥
खाणी बाणी तुझहि समाणी ॥
हे सर्वेश्वर ! अण्डज, जेरज, स्वेदज, उद्भज्ज चारों स्रोत एवं चारों वाणियां तुझ में ही समाई हुई है।
ਜੋ ਦੀਸੈ ਸਭ ਆਵਣ ਜਾਣੀ ॥
जो दीसै सभ आवण जाणी ॥
जो भी दृष्टिमान है, सब नाशवान् है।
ਸੇਈ ਸਾਹ ਸਚੇ ਵਾਪਾਰੀ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ਹੇ ॥੧੩॥
सेई साह सचे वापारी सतिगुरि बूझ बुझाई हे ॥१३॥
जिन्हें सतगुरु ने ज्ञान प्रदान किया है, वही सत्य के व्यापारी एवं साहूकार हैं॥ १३॥
ਸਬਦੁ ਬੁਝਾਏ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ॥
सबदु बुझाए सतिगुरु पूरा ॥
पूर्ण सतगुरु ही शब्द का रहस्य बतलाता है कि
ਸਰਬ ਕਲਾ ਸਾਚੇ ਭਰਪੂਰਾ ॥
सरब कला साचे भरपूरा ॥
ईश्वर सर्वकला सम्पूर्ण है।
ਅਫਰਿਓ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ਸਦਾ ਤੂ ਨਾ ਤਿਸੁ ਤਿਲੁ ਨ ਤਮਾਈ ਹੇ ॥੧੪॥
अफरिओ वेपरवाहु सदा तू ना तिसु तिलु न तमाई हे ॥१४॥
हे ईश्वर ! तू बेपरवाह एवं मन-वाणी से परे है और तुझे तिल मात्र भी कोई लालच नहीं॥ १४॥
ਕਾਲੁ ਬਿਕਾਲੁ ਭਏ ਦੇਵਾਨੇ ॥
कालु बिकालु भए देवाने ॥
उसे देखकर भयानक काल भी भाग जाता है
ਸਬਦੁ ਸਹਜ ਰਸੁ ਅੰਤਰਿ ਮਾਨੇ ॥
सबदु सहज रसु अंतरि माने ॥
जो व्यक्ति मन में सहज ही शब्द का रस प्राप्त करता है।
ਆਪੇ ਮੁਕਤਿ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਵਰਦਾਤਾ ਭਗਤਿ ਭਾਇ ਮਨਿ ਭਾਈ ਹੇ ॥੧੫॥
आपे मुकति त्रिपति वरदाता भगति भाइ मनि भाई हे ॥१५॥
जिसके मन को भगवान की भक्ति भा गई है, वरदाता परमेश्वर ने प्रसन्न होकर मुक्ति-तृप्ति प्रदान की है॥ १५॥
ਆਪਿ ਨਿਰਾਲਮੁ ਗੁਰ ਗਮ ਗਿਆਨਾ ॥
आपि निरालमु गुर गम गिआना ॥
हे परमात्मा ! तू स्वयं ही निर्लिप्त रहता है, पर तेरा ज्ञान गुरु की संगत करने से ही होता है।
ਜੋ ਦੀਸੈ ਤੁਝ ਮਾਹਿ ਸਮਾਨਾ ॥
जो दीसै तुझ माहि समाना ॥
जो कुछ भी दिखाई देता है, वह तुझ में ही विलीन हो जाता है।
ਨਾਨਕੁ ਨੀਚੁ ਭਿਖਿਆ ਦਰਿ ਜਾਚੈ ਮੈ ਦੀਜੈ ਨਾਮੁ ਵਡਾਈ ਹੇ ॥੧੬॥੧॥
नानकु नीचु भिखिआ दरि जाचै मै दीजै नामु वडाई हे ॥१६॥१॥
नानक स्वयं को निम्न मानते हुए सत्य के द्वार पर भिक्षा मॉगते हैं कि उसे नाम-दान की बड़ाई दीजिए॥ १६॥ १॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥
ਆਪੇ ਧਰਤੀ ਧਉਲੁ ਅਕਾਸੰ ॥
आपे धरती धउलु अकासं ॥
धरती, धर्म रूपी बैल एवं आकाश स्वयं ईश्वर ही है,
ਆਪੇ ਸਾਚੇ ਗੁਣ ਪਰਗਾਸੰ ॥
आपे साचे गुण परगासं ॥
उस परम-सत्य ने स्वयं ही अपने गुणों का प्रकाश किया है।
ਜਤੀ ਸਤੀ ਸੰਤੋਖੀ ਆਪੇ ਆਪੇ ਕਾਰ ਕਮਾਈ ਹੇ ॥੧॥
जती सती संतोखी आपे आपे कार कमाई हे ॥१॥
ब्रहाचारी, सदाचारी, संतोषी भी वही है एवं स्वयं ही कार्य कर रहा है॥ १॥
ਜਿਸੁ ਕਰਣਾ ਸੋ ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ॥
जिसु करणा सो करि करि वेखै ॥
जिसने यह जगत् बनाया है, वही उसकी देखभाल करता है।
ਕੋਇ ਨ ਮੇਟੈ ਸਾਚੇ ਲੇਖੈ ॥
कोइ न मेटै साचे लेखै ॥
उस परम-सत्य द्वारा लिखे कर्मालेख को कोई नहीं मिटा सकता,
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਆਪੇ ਆਪੇ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ਹੇ ॥੨॥
आपे करे कराए आपे आपे दे वडिआई हे ॥२॥
वही करता एवं जीवों से करवाता है और स्वयं ही भक्तजनों को बड़ाई देता है॥ २॥
ਪੰਚ ਚੋਰ ਚੰਚਲ ਚਿਤੁ ਚਾਲਹਿ ॥
पंच चोर चंचल चितु चालहि ॥
काम-क्रोध रूपी पाँच चोर आदमी के चंचल मन को चलायमान कर देते हैं।
ਪਰ ਘਰ ਜੋਹਹਿ ਘਰੁ ਨਹੀ ਭਾਲਹਿ ॥
पर घर जोहहि घरु नही भालहि ॥
वह पराई नारी की ओर देखता रहता है किन्तु अपने घर की तलाश नहीं करता।
ਕਾਇਆ ਨਗਰੁ ਢਹੈ ਢਹਿ ਢੇਰੀ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਪਤਿ ਜਾਈ ਹੇ ॥੩॥
काइआ नगरु ढहै ढहि ढेरी बिनु सबदै पति जाई हे ॥३॥
मानव-शरीर रूपी नगरी का अन्त हो जाता है और शब्द-गुरु के बिना जीव अपनी प्रतिष्ठा गंवा देता है॥ ३॥
ਗੁਰ ਤੇ ਬੂਝੈ ਤ੍ਰਿਭਵਣੁ ਸੂਝੈ ॥
गुर ते बूझै त्रिभवणु सूझै ॥
जो गुरु द्वारा सत्य का रहस्य बूझ लेता है, उसे तीनों लोकों का ज्ञान हो जाता है।
ਮਨਸਾ ਮਾਰਿ ਮਨੈ ਸਿਉ ਲੂਝੈ ॥
मनसा मारि मनै सिउ लूझै ॥
वह अपनी अभिलाषा को मार कर मन में जूझता रहता है।
ਜੋ ਤੁਧੁ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਤੁਧ ਹੀ ਜੇਹੇ ਨਿਰਭਉ ਬਾਲ ਸਖਾਈ ਹੇ ॥੪॥
जो तुधु सेवहि से तुध ही जेहे निरभउ बाल सखाई हे ॥४॥
हे ईश्वर ! जो तेरी भक्ति करते हैं, वे तेरा ही रूप बन जाते हैं तू निर्भय एवं बचपन का साथी है॥ ४॥
ਆਪੇ ਸੁਰਗੁ ਮਛੁ ਪਇਆਲਾ ॥
आपे सुरगु मछु पइआला ॥
स्वर्गलोक, मृत्युलोक एवं पाताल लोक परमसत्य का ही रूप हैं।
ਆਪੇ ਜੋਤਿ ਸਰੂਪੀ ਬਾਲਾ ॥
आपे जोति सरूपी बाला ॥
वह स्वयं ही ज्योति स्वरूप एवं तरुण है।
ਜਟਾ ਬਿਕਟ ਬਿਕਰਾਲ ਸਰੂਪੀ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖਿਆ ਕਾਈ ਹੇ ॥੫॥
जटा बिकट बिकराल सरूपी रूपु न रेखिआ काई हे ॥५॥
वह स्वयं ही विकट जटाधारी एवं विकराल स्वरूप वाला है और उसकी कोई रूप-रेखा नहीं है॥ ५॥
ਬੇਦ ਕਤੇਬੀ ਭੇਦੁ ਨ ਜਾਤਾ ॥
बेद कतेबी भेदु न जाता ॥
वेदों एवं कुरान ने भी परमात्मा का भेद नहीं समझा और
ਨਾ ਤਿਸੁ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਭ੍ਰਾਤਾ ॥
ना तिसु मात पिता सुत भ्राता ॥
उसका कोई माता-पिता, पुत्र एवं भाई नहीं है।
ਸਗਲੇ ਸੈਲ ਉਪਾਇ ਸਮਾਏ ਅਲਖੁ ਨ ਲਖਣਾ ਜਾਈ ਹੇ ॥੬॥
सगले सैल उपाइ समाए अलखु न लखणा जाई हे ॥६॥
वह सब पर्वतों को बनाकर खुद में ही विलीन कर लेता है और उस अलख को देखा नहीं जा सकता॥ ६॥
ਕਰਿ ਕਰਿ ਥਾਕੀ ਮੀਤ ਘਨੇਰੇ ॥
करि करि थाकी मीत घनेरे ॥
मैं अनेक मित्र बनाकर थक गया हूँ मगर
ਕੋਇ ਨ ਕਾਟੈ ਅਵਗੁਣ ਮੇਰੇ ॥
कोइ न काटै अवगुण मेरे ॥
कोई भी मेरे अवगुण काटने वाला नहीं।
ਸੁਰਿ ਨਰ ਨਾਥੁ ਸਾਹਿਬੁ ਸਭਨਾ ਸਿਰਿ ਭਾਇ ਮਿਲੈ ਭਉ ਜਾਈ ਹੇ ॥੭॥
सुरि नर नाथु साहिबु सभना सिरि भाइ मिलै भउ जाई हे ॥७॥
देवताओं, मनुष्यों एवं योगियों सबका मालिक केवल ईश्वर है, वह भक्ति भाव से ही मिलता है और फिर भय दूर हो जाता है।॥ ७॥
ਭੂਲੇ ਚੂਕੇ ਮਾਰਗਿ ਪਾਵਹਿ ॥
भूले चूके मारगि पावहि ॥
पथभ्रष्ट जीव को स्वयं ही सही रास्ता बताता है।
ਆਪਿ ਭੁਲਾਇ ਤੂਹੈ ਸਮਝਾਵਹਿ ॥
आपि भुलाइ तूहै समझावहि ॥
वह स्वयं ही भुला देता है और स्वयं ही सत्य का ज्ञान देता है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਦੀਸੈ ਨਾਵਹੁ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਪਾਈ ਹੇ ॥੮॥
बिनु नावै मै अवरु न दीसै नावहु गति मिति पाई हे ॥८॥
तेरे नाम के बिना मुझे कोई सहारा नजर नहीं आता और तेरी गति एवं मर्यादा नाम द्वारा ही प्राप्त होती है ॥८॥