ਜੈਸੀ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਪਿਆਸ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਬੂੰਦ ਚਵੈ ਬਰਸੁ ਸੁਹਾਵੇ ਮੇਹੁ ॥
जैसी चात्रिक पिआस खिनु खिनु बूंद चवै बरसु सुहावे मेहु ॥
जैसे चातक को स्याति बून्द की प्यास रहती है और प्रत्येक क्षण कहता है हे सुन्दर मेघ ! वर्षा कर।
ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰੀਜੈ ਇਹੁ ਮਨੁ ਦੀਜੈ ਅਤਿ ਲਾਈਐ ਚਿਤੁ ਮੁਰਾਰੀ ॥
हरि प्रीति करीजै इहु मनु दीजै अति लाईऐ चितु मुरारी ॥
वैसे ही तू अपने हरि से प्रीति कर। अपना यह मन उसको अर्पित कर देना चाहिए और अपना चित्त मुरारी लगाना चाहिए।
ਮਾਨੁ ਨ ਕੀਜੈ ਸਰਣਿ ਪਰੀਜੈ ਦਰਸਨ ਕਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥
मानु न कीजै सरणि परीजै दरसन कउ बलिहारी ॥
हे मन अहंकार नहीं करना चाहिए, प्रभु के शरण में आकर उस पर कुर्बान हो जाना चाहिए
ਗੁਰ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨੇ ਮਿਲੁ ਨਾਹ ਵਿਛੁੰਨੇ ਧਨ ਦੇਦੀ ਸਾਚੁ ਸਨੇਹਾ ॥
गुर सुप्रसंने मिलु नाह विछुंने धन देदी साचु सनेहा ॥
जब गुरु सुप्रसन्न होता है तो जीव -स्त्री अपने सच्चे प्रेम का सन्देश भेजती है और उसका बिछड़ा हुआ प्रभु पति आकर उसे मिल जाता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਛੰਤ ਅਨੰਤ ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਹਰਿ ਸਿਉ ਕੀਜੈ ਨੇਹਾ ਮਨ ਐਸਾ ਨੇਹੁ ਕਰੇਹੁ ॥੨॥
कहु नानक छंत अनंत ठाकुर के हरि सिउ कीजै नेहा मन ऐसा नेहु करेहु ॥२॥
नानक का कथन है की हे मेरे मन ! तू अनंत ठाकुर की महिमा के गीत गायन कर, तू हरी से प्रेम कर तथा उससे तू ऐसा स्नेह कर ॥ २ ॥
ਚਕਵੀ ਸੂਰ ਸਨੇਹੁ ਚਿਤਵੈ ਆਸ ਘਣੀ ਕਦਿ ਦਿਨੀਅਰੁ ਦੇਖੀਐ ॥
चकवी सूर सनेहु चितवै आस घणी कदि दिनीअरु देखीऐ ॥
चकवी का सूर्य से इतना स्नेह है कि वह रात को उसे याद करती रही है और उसे अत्यंत आशा बनी रहती है की कब दिन निकलेगा और कब सूर्य के दर्शन करेगी।
ਕੋਕਿਲ ਅੰਬ ਪਰੀਤਿ ਚਵੈ ਸੁਹਾਵੀਆ ਮਨ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਕੀਜੀਐ ॥
कोकिल अंब परीति चवै सुहावीआ मन हरि रंगु कीजीऐ ॥
कोयल का आम से प्रेम है और वो मीठा गीत गाती है।
ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰੀਜੈ ਮਾਨੁ ਨ ਕੀਜੈ ਇਕ ਰਾਤੀ ਕੇ ਹਭਿ ਪਾਹੁਣਿਆ ॥
हरि प्रीति करीजै मानु न कीजै इक राती के हभि पाहुणिआ ॥
है मेरे मन ! इस तरह तू भी हरि से प्रेम कर और प्रेम का अहंकार मत कर क्योंकि हम सभी एक रात्रि के अतिथि है।
ਅਬ ਕਿਆ ਰੰਗੁ ਲਾਇਓ ਮੋਹੁ ਰਚਾਇਓ ਨਾਗੇ ਆਵਣ ਜਾਵਣਿਆ ॥
अब किआ रंगु लाइओ मोहु रचाइओ नागे आवण जावणिआ ॥
अब तुम कोन से रंगरलियों में फँस कर मोह में लीन हो गए हो ? क्यों की जीव नंग्न ही दुनिया में आता और जाता है।
ਥਿਰੁ ਸਾਧੂ ਸਰਣੀ ਪੜੀਐ ਚਰਣੀ ਅਬ ਟੂਟਸਿ ਮੋਹੁ ਜੁ ਕਿਤੀਐ ॥
थिरु साधू सरणी पड़ीऐ चरणी अब टूटसि मोहु जु कितीऐ ॥
साधु की शरण लेने एवं उसके चरणों पर नतमस्तक होने से सांसारिक मोह जो तुम अब अनुभव करते हो, वह मिट जाएगा और तुम स्थिर अनुभव करोगे।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਛੰਤ ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਕੇ ਮਨ ਹਰਿ ਲਾਇ ਪਰੀਤਿ ਕਬ ਦਿਨੀਅਰੁ ਦੇਖੀਐ ॥੩॥
कहु नानक छंत दइआल पुरख के मन हरि लाइ परीति कब दिनीअरु देखीऐ ॥३॥
नानक का कथन है कि हे मन ! दयालु परमात्मा की महिमा के गीत गायन कर और हरि से प्रीति लगा, अन्यथा तुम हरि रूपी सूर्य को कैसे देखोगे ? ॥ ३ ॥
ਨਿਸਿ ਕੁਰੰਕ ਜੈਸੇ ਨਾਦ ਸੁਣਿ ਸ੍ਰਵਣੀ ਹੀਉ ਡਿਵੈ ਮਨ ਐਸੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕੀਜੈ ॥
निसि कुरंक जैसे नाद सुणि स्रवणी हीउ डिवै मन ऐसी प्रीति कीजै ॥
हे मन ! तू प्रभु से ऐसी प्रीति कर जैसे रात को हिरण नाद सुनकर अपना हदय नाद को अर्पित कर देता है।
ਜੈਸੀ ਤਰੁਣਿ ਭਤਾਰ ਉਰਝੀ ਪਿਰਹਿ ਸਿਵੈ ਇਹੁ ਮਨੁ ਲਾਲ ਦੀਜੈ ॥
जैसी तरुणि भतार उरझी पिरहि सिवै इहु मनु लाल दीजै ॥
जैसे अपने पति के प्रेम में लीन हुई पत्नी अपने प्रियतम की सेवा करती है, वैसे ही तू यह मन अपने प्रिय-प्रभु को अर्पण कर दे।
ਮਨੁ ਲਾਲਹਿ ਦੀਜੈ ਭੋਗ ਕਰੀਜੈ ਹਭਿ ਖੁਸੀਆ ਰੰਗ ਮਾਣੇ ॥
मनु लालहि दीजै भोग करीजै हभि खुसीआ रंग माणे ॥
अपना मन अपने प्रियतम को दे दे और उसके साथ रमण कर। इस तरह तुझे समस्त खुशियाँ एवं आनंद प्राप्त हो जाएगा।
ਪਿਰੁ ਅਪਨਾ ਪਾਇਆ ਰੰਗੁ ਲਾਲੁ ਬਣਾਇਆ ਅਤਿ ਮਿਲਿਓ ਮਿਤ੍ਰ ਚਿਰਾਣੇ ॥
पिरु अपना पाइआ रंगु लालु बणाइआ अति मिलिओ मित्र चिराणे ॥
मैंने अपने प्रियतम प्रभु को पा किया है और प्रेम का लाल रंग बना लिया है तथा चिरकाल से अपने मित्र हरि को मिला हूँ।
ਗੁਰੁ ਥੀਆ ਸਾਖੀ ਤਾ ਡਿਠਮੁ ਆਖੀ ਪਿਰ ਜੇਹਾ ਅਵਰੁ ਨ ਦੀਸੈ ॥
गुरु थीआ साखी ता डिठमु आखी पिर जेहा अवरु न दीसै ॥
जब गुरुदेव मध्यस्थ बने तो मैंने अपने नेत्रों से प्रियतम-प्रभु के दर्शन कर लिए तथा दूसरा कोई भी मुझे मेरे प्रियतम जैसा दिखाई नहीं देता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਛੰਤ ਦਇਆਲ ਮੋਹਨ ਕੇ ਮਨ ਹਰਿ ਚਰਣ ਗਹੀਜੈ ਐਸੀ ਮਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕੀਜੈ ॥੪॥੧॥੪॥
कहु नानक छंत दइआल मोहन के मन हरि चरण गहीजै ऐसी मन प्रीति कीजै ॥४॥१॥४॥
नानक का कथन है कि हे मन ! तू दयालु एवं मोहन प्रभु की महिमा के गीत गाता रह, हरि के चरण पकड़ तथा अपने हृदय में ऐसा प्रेम बनाकर रख ॥ ४॥ १ ॥४ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਬਨੁ ਬਨੁ ਫਿਰਤੀ ਖੋਜਤੀ ਹਾਰੀ ਬਹੁ ਅਵਗਾਹਿ ॥
बनु बनु फिरती खोजती हारी बहु अवगाहि ॥
मैं ईश्वर को पाने के लिए वन-वन में भटकती और खोजती हुई बहुत थक गई हूँ।
ਨਾਨਕ ਭੇਟੇ ਸਾਧ ਜਬ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥੧॥
नानक भेटे साध जब हरि पाइआ मन माहि ॥१॥
हे नानक ! जब साधु से भेंट हुई तो मैंने अपने मन में ही भगवान को पा लिया ॥ १॥
ਛੰਤ ॥
छंत ॥
छंद॥
ਜਾ ਕਉ ਖੋਜਹਿ ਅਸੰਖ ਮੁਨੀ ਅਨੇਕ ਤਪੇ ॥
जा कउ खोजहि असंख मुनी अनेक तपे ॥
जिस प्रभु को असंख्य मुनि एवं अनेक तपस्वी खोजते हैं।
ਬ੍ਰਹਮੇ ਕੋਟਿ ਅਰਾਧਹਿ ਗਿਆਨੀ ਜਾਪ ਜਪੇ ॥
ब्रहमे कोटि अराधहि गिआनी जाप जपे ॥
जिसकी करोड़ों ही ब्रह्मा आराधना करते और ज्ञानी जिसके नाम का जाप जपते हैं।
ਜਪ ਤਾਪ ਸੰਜਮ ਕਿਰਿਆ ਪੂਜਾ ਅਨਿਕ ਸੋਧਨ ਬੰਦਨਾ ॥
जप ताप संजम किरिआ पूजा अनिक सोधन बंदना ॥
जिसकी प्राप्ति हेतु अनेक जप, तपस्या, संयम, क्रियाएं, पूजा-अर्चना, शुद्धिकरण एवं वन्दना होती रहती है।
ਕਰਿ ਗਵਨੁ ਬਸੁਧਾ ਤੀਰਥਹ ਮਜਨੁ ਮਿਲਨ ਕਉ ਨਿਰੰਜਨਾ ॥
करि गवनु बसुधा तीरथह मजनु मिलन कउ निरंजना ॥
जिस निरंजन प्रभु को मिलने हेतु लोग पृथ्वी पर रटन करते और तीर्थों पर स्नान करते हैं।
ਮਾਨੁਖ ਬਨੁ ਤਿਨੁ ਪਸੂ ਪੰਖੀ ਸਗਲ ਤੁਝਹਿ ਅਰਾਧਤੇ ॥
मानुख बनु तिनु पसू पंखी सगल तुझहि अराधते ॥
हे भगवान ! मनुष्य, वन, तृण, पशु-पक्षी सभी तेरी ही आराधना करते हैं।
ਦਇਆਲ ਲਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ਨਾਨਕ ਮਿਲੁ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਹੋਇ ਗਤੇ ॥੧॥
दइआल लाल गोबिंद नानक मिलु साधसंगति होइ गते ॥१॥
हे नानक ! साधसंगति में सम्मिलित होने से वह दयालु, प्यारा गोविन्द मिल जाता है और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है॥ १॥
ਕੋਟਿ ਬਿਸਨ ਅਵਤਾਰ ਸੰਕਰ ਜਟਾਧਾਰ ॥
कोटि बिसन अवतार संकर जटाधार ॥
हे दयालु प्रभु ! करोड़ों ही विष्णु अवतार एवं जटाधारी शंकर
ਚਾਹਹਿ ਤੁਝਹਿ ਦਇਆਰ ਮਨਿ ਤਨਿ ਰੁਚ ਅਪਾਰ ॥
चाहहि तुझहि दइआर मनि तनि रुच अपार ॥
अपने मन एवं तन की अपार रुचि से तुझसे मिलने की तीव्र अभिलाषा करते हैं।
ਅਪਾਰ ਅਗਮ ਗੋਬਿੰਦ ਠਾਕੁਰ ਸਗਲ ਪੂਰਕ ਪ੍ਰਭ ਧਨੀ ॥
अपार अगम गोबिंद ठाकुर सगल पूरक प्रभ धनी ॥
हे गोविंद ! तू अपरंपार, अगम्य एवं सबका ठाकुर है। तू सबमें समाया हुआ है और सबका मालिक है।
ਸੁਰ ਸਿਧ ਗਣ ਗੰਧਰਬ ਧਿਆਵਹਿ ਜਖ ਕਿੰਨਰ ਗੁਣ ਭਨੀ ॥
सुर सिध गण गंधरब धिआवहि जख किंनर गुण भनी ॥
देवता, सिद्धगण एवं गंधर्व सब तेरी ही आराधना करते हैं और यक्ष एवं किन्नर तेरा ही गुणगान करते रहते हैं।
ਕੋਟਿ ਇੰਦ੍ਰ ਅਨੇਕ ਦੇਵਾ ਜਪਤ ਸੁਆਮੀ ਜੈ ਜੈ ਕਾਰ ॥
कोटि इंद्र अनेक देवा जपत सुआमी जै जै कार ॥
करोड़ों ही इन्द्र एवं अनेकों ही देवगण स्वामी का जाप एवं जय-जयकार करते हैं।
ਅਨਾਥ ਨਾਥ ਦਇਆਲ ਨਾਨਕ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਉਧਾਰ ॥੨॥
अनाथ नाथ दइआल नानक साधसंगति मिलि उधार ॥२॥
हे नानक ! दयालु प्रभु अनाथों का नाथ है और साधसंगति में सम्मिलित होकर ही मनुष्य का उद्धार हो सकता है ॥२॥
ਕੋਟਿ ਦੇਵੀ ਜਾ ਕਉ ਸੇਵਹਿ ਲਖਿਮੀ ਅਨਿਕ ਭਾਤਿ ॥
कोटि देवी जा कउ सेवहि लखिमी अनिक भाति ॥
करोड़ों ही देवियाँ एवं धन की देवी लक्ष्मी विभिन्न प्रकार से उसकी सेवा करती हैं।