ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਹੈ ਦੁਖਦਾਈ ਮੋਹ ਮਾਇ ॥
बिनु नावै सभु दुखु है दुखदाई मोह माइ ॥
हरिनाम के बिना सब दुख ही हैं और माया-मोह अति दुखदायक है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ਮੋਹ ਮਾਇਆ ਵਿਛੁੜਿ ਸਭ ਜਾਇ ॥੧੭॥
नानक गुरमुखि नदरी आइआ मोह माइआ विछुड़ि सभ जाइ ॥१७॥
हे नानक ! जब गुरु की कृपा-दृष्टि होती है तो मोह-माया सब दूर हो जाते हैं ॥ १७ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੁਕਮੁ ਮੰਨੇ ਸਹ ਕੇਰਾ ਹੁਕਮੇ ਹੀ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥
गुरमुखि हुकमु मंने सह केरा हुकमे ही सुखु पाए ॥
गुरुमुख हर समय अपने प्रभु के हुक्म को मानता है और उसके हुक्म से ही सुख प्राप्त करता है।
ਹੁਕਮੋ ਸੇਵੇ ਹੁਕਮੁ ਅਰਾਧੇ ਹੁਕਮੇ ਸਮੈ ਸਮਾਏ ॥
हुकमो सेवे हुकमु अराधे हुकमे समै समाए ॥
वह उसके हुक्म का पालन करते हुए सेवा करता है, हुक्म में ही आराधना करता है, वह स्वयं तो हुक्म का पालन करता ही है, अपने संगियों को भी हुक्मानुसार चलने के लिए लगा देता है।
ਹੁਕਮੁ ਵਰਤੁ ਨੇਮੁ ਸੁਚ ਸੰਜਮੁ ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਫਲੁ ਪਾਏ ॥
हुकमु वरतु नेमु सुच संजमु मन चिंदिआ फलु पाए ॥
परमेश्वर का हुक्म मानना ही उसके लिए व्रत-उपवास, नियम, शुद्धता एवं संयम हैं और हुक्मानुसार चलते हुए मनवांछित फल प्राप्त करता है।
ਸਦਾ ਸੁਹਾਗਣਿ ਜਿ ਹੁਕਮੈ ਬੁਝੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੈ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
सदा सुहागणि जि हुकमै बुझै सतिगुरु सेवै लिव लाए ॥
जो जीव-स्त्री प्रभु के हुक्म को समझती है, लगन लाकर सतिगुरु की सेवा करती है, वह सदैव सुहागिन है।
ਨਾਨਕ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਜਿਨ ਊਪਰਿ ਤਿਨਾ ਹੁਕਮੇ ਲਏ ਮਿਲਾਏ ॥੧੮॥
नानक क्रिपा करे जिन ऊपरि तिना हुकमे लए मिलाए ॥१८॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि जिन पर ईश्वर अपनी कृपा करता है, उनको अपने हुक्म में मिला लेता है ॥१८॥
ਮਨਮੁਖਿ ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੁਝੇ ਬਪੁੜੀ ਨਿਤ ਹਉਮੈ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥
मनमुखि हुकमु न बुझे बपुड़ी नित हउमै करम कमाइ ॥
मनमुख पुरुष ईश्वर के हुक्म को नहीं समझता और बेचारा नित्य ही अहंकार में कर्म करता है।
ਵਰਤ ਨੇਮੁ ਸੁਚ ਸੰਜਮੁ ਪੂਜਾ ਪਾਖੰਡਿ ਭਰਮੁ ਨ ਜਾਇ ॥
वरत नेमु सुच संजमु पूजा पाखंडि भरमु न जाइ ॥
उसका व्रत-उपवास, नियम, शुद्धता, संयम, पूजा-पाठ इत्यादि पाखण्ड ही साबित होता है, उसका भ्रम बिल्कुल दूर नहीं होता।
ਅੰਤਰਹੁ ਕੁਸੁਧੁ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਬੇਧੇ ਜਿਉ ਹਸਤੀ ਛਾਰੁ ਉਡਾਏ ॥
अंतरहु कुसुधु माइआ मोहि बेधे जिउ हसती छारु उडाए ॥
अन्तर्मन उसका माया-मोह ने ऐसे बिंधा होता है, जैसे हाथी अपने ऊपर ही धूल-मिट्टी उड़ाता है।
ਜਿਨਿ ਉਪਾਏ ਤਿਸੈ ਨ ਚੇਤਹਿ ਬਿਨੁ ਚੇਤੇ ਕਿਉ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥
जिनि उपाए तिसै न चेतहि बिनु चेते किउ सुखु पाए ॥
जिस परमात्मा ने उत्पन्न किया, उसे याद नहीं करता, फिर उसे याद किए बिना सुख कैसे मिल सकता है।
ਨਾਨਕ ਪਰਪੰਚੁ ਕੀਆ ਧੁਰਿ ਕਰਤੈ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਕਮਾਏ ॥੧੯॥
नानक परपंचु कीआ धुरि करतै पूरबि लिखिआ कमाए ॥१९॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि दरअसल यह प्रपंच ईश्वर ने ही किया है और पूर्व-कर्मानुसार मनमुख फल पाता है ॥ १६ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਤੀਤਿ ਭਈ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਅਨਦਿਨੁ ਸੇਵਾ ਕਰਤ ਸਮਾਇ ॥
गुरमुखि परतीति भई मनु मानिआ अनदिनु सेवा करत समाइ ॥
गुरु पर भरोसा हुआ तो मन प्रसन्न हो गया और दिन-रात सेवा में बीत रही है।
ਅੰਤਰਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਗੁਰੂ ਸਭ ਪੂਜੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਦਰਸੁ ਦੇਖੈ ਸਭ ਆਇ ॥
अंतरि सतिगुरु गुरू सभ पूजे सतिगुर का दरसु देखै सभ आइ ॥
हर कोई मन में गुरु की पूजा करता है और गुरु के दर्शनों के लिए सब आते हैं।
ਮੰਨੀਐ ਸਤਿਗੁਰ ਪਰਮ ਬੀਚਾਰੀ ਜਿਤੁ ਮਿਲਿਐ ਤਿਸਨਾ ਭੁਖ ਸਭ ਜਾਇ ॥
मंनीऐ सतिगुर परम बीचारी जितु मिलिऐ तिसना भुख सभ जाइ ॥
मैं परम चिंतनशील सतिगुरु को ही मानता हैं, जिसे मिलकर तृष्णा भूख सब दूर हो जाते हैं।
ਹਉ ਸਦਾ ਸਦਾ ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਜੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਚਾ ਦੇਇ ਮਿਲਾਇ ॥
हउ सदा सदा बलिहारी गुर अपुने जो प्रभु सचा देइ मिलाइ ॥
मैं अपने गुरु पर सदैव कुर्बान जाता हैं, जो सच्चे प्रभु से मिला देता है।
ਨਾਨਕ ਕਰਮੁ ਪਾਇਆ ਤਿਨ ਸਚਾ ਜੋ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਲਗੇ ਆਇ ॥੨੦॥
नानक करमु पाइआ तिन सचा जो गुर चरणी लगे आइ ॥२०॥
नानक का कथन है कि बड़े भाग्य से जो गुरु के चरणों में लगे हैं, उन्होंने प्रभु को पा लिया है ॥२०॥
ਜਿਨ ਪਿਰੀਆ ਸਉ ਨੇਹੁ ਸੇ ਸਜਣ ਮੈ ਨਾਲਿ ॥
जिन पिरीआ सउ नेहु से सजण मै नालि ॥
जिस प्रभु से प्रेम लगा हुआ है, वह सज्जन हरदम मेरे साथ है।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਹਉ ਫਿਰਾਂ ਭੀ ਹਿਰਦੈ ਰਖਾ ਸਮਾਲਿ ॥੨੧॥
अंतरि बाहरि हउ फिरां भी हिरदै रखा समालि ॥२१॥
यद्यपि अंदर-बाहर जाता भी हूँ तो दिल में प्रभु को ही याद करता हूँ ॥२१॥
ਜਿਨਾ ਇਕ ਮਨਿ ਇਕ ਚਿਤਿ ਧਿਆਇਆ ਸਤਿਗੁਰ ਸਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥
जिना इक मनि इक चिति धिआइआ सतिगुर सउ चितु लाइ ॥
जिन्होंने एकाग्रचित होकर परमात्मा का ध्यान किया है, सतिगुरु से दिल लगाया है।
ਤਿਨ ਕੀ ਦੁਖ ਭੁਖ ਹਉਮੈ ਵਡਾ ਰੋਗੁ ਗਇਆ ਨਿਰਦੋਖ ਭਏ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
तिन की दुख भुख हउमै वडा रोगु गइआ निरदोख भए लिव लाइ ॥
उनका दुख, भूख, अहंकार इत्यादि बड़ा रोग दूर हो गया है और वे ईश्वर की स्मृति में सब दोषों से रहित हो गए हैं।
ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਗੁਣ ਉਚਰਹਿ ਗੁਣ ਮਹਿ ਸਵੈ ਸਮਾਇ ॥
गुण गावहि गुण उचरहि गुण महि सवै समाइ ॥
वे ईश्वर का गुणगान करते हैं, उसकी महिमा का उच्चारण करते हैं और महिमा में ही लीन रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਪਾਇਆ ਸਹਜਿ ਮਿਲਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਆਇ ॥੨੨॥
नानक गुर पूरे ते पाइआ सहजि मिलिआ प्रभु आइ ॥२२॥
नानक का मत है कि जिसने पूर्ण गुरु को पाया है, उसे सहज स्वाभाविक प्रभु आ मिला है ॥२२ ॥
ਮਨਮੁਖਿ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਹੈ ਨਾਮਿ ਨ ਲਗੈ ਪਿਆਰੁ ॥
मनमुखि माइआ मोहु है नामि न लगै पिआरु ॥
मनमुखी जीव माया के मोह में पड़ा रहता है, अतः ईश्वर के नाम से प्रेम नहीं लगाता।
ਕੂੜੁ ਕਮਾਵੈ ਕੂੜੁ ਸੰਘਰੈ ਕੂੜਿ ਕਰੈ ਆਹਾਰੁ ॥
कूड़ु कमावै कूड़ु संघरै कूड़ि करै आहारु ॥
वह झूठ ही कमाता है, झूठ जोड़ता है और झूठा आचरण ही करता है।
ਬਿਖੁ ਮਾਇਆ ਧਨੁ ਸੰਚਿ ਮਰਹਿ ਅੰਤਿ ਹੋਇ ਸਭੁ ਛਾਰੁ ॥
बिखु माइआ धनु संचि मरहि अंति होइ सभु छारु ॥
वह विषय-विकारों के धन को इकट्ठा करता मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, अंततः सब मिट्टी हो जाता है।
ਕਰਮ ਧਰਮ ਸੁਚਿ ਸੰਜਮੁ ਕਰਹਿ ਅੰਤਰਿ ਲੋਭੁ ਵਿਕਾਰ ॥
करम धरम सुचि संजमु करहि अंतरि लोभु विकार ॥
वह कर्म-धर्म, शुद्धता एवं संयम इत्यादि करता है, परन्तु मन में लोभ विकारों में ग्रस्त रहता है।
ਨਾਨਕ ਮਨਮੁਖਿ ਜਿ ਕਮਾਵੈ ਸੁ ਥਾਇ ਨ ਪਵੈ ਦਰਗਹ ਹੋਇ ਖੁਆਰੁ ॥੨੩॥
नानक मनमुखि जि कमावै सु थाइ न पवै दरगह होइ खुआरु ॥२३॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि मनमुखी का कोई भी कार्य सफल नहीं होता और प्रभु-दरबार में ख्यार होता है ॥२३॥
ਸਭਨਾ ਰਾਗਾਂ ਵਿਚਿ ਸੋ ਭਲਾ ਭਾਈ ਜਿਤੁ ਵਸਿਆ ਮਨਿ ਆਇ ॥
सभना रागां विचि सो भला भाई जितु वसिआ मनि आइ ॥
सब रागों में वहीं राग भला है, जिस द्वारा ईश्वर मन में बसता है।
ਰਾਗੁ ਨਾਦੁ ਸਭੁ ਸਚੁ ਹੈ ਕੀਮਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥
रागु नादु सभु सचु है कीमति कही न जाइ ॥
राग-संगीत सब सच्चे हैं, इनकी महत्ता अव्यक्त है।
ਰਾਗੈ ਨਾਦੈ ਬਾਹਰਾ ਇਨੀ ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝਿਆ ਜਾਇ ॥
रागै नादै बाहरा इनी हुकमु न बूझिआ जाइ ॥
ईश्वर तो रागों-संगीत से भी बड़ा हैं, इन द्वारा उसके हुक्म को समझा नहीं जा सकता।
ਨਾਨਕ ਹੁਕਮੈ ਬੂਝੈ ਤਿਨਾ ਰਾਸਿ ਹੋਇ ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥
नानक हुकमै बूझै तिना रासि होइ सतिगुर ते सोझी पाइ ॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं जो लोग सतगुरु से सूझ प्राप्त करते हैं, वहीं उसके हुक्म को समझ पाते हैं और उनका ही राग गान सफल होता है।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸ ਤੇ ਹੋਇਆ ਜਿਉ ਤਿਸੈ ਦੀ ਰਜਾਇ ॥੨੪॥
सभु किछु तिस ते होइआ जिउ तिसै दी रजाइ ॥२४॥
सब कुछ उससे ही पैदा हुआ है, जैसे उस मालिक की मर्जी है, वैसा ही होता है ॥२४ ॥