Hindi Page 446

ਕਲਿਜੁਗੁ ਹਰਿ ਕੀਆ ਪਗ ਤ੍ਰੈ ਖਿਸਕੀਆ ਪਗੁ ਚਉਥਾ ਟਿਕੈ ਟਿਕਾਇ ਜੀਉ ॥
कलिजुगु हरि कीआ पग त्रै खिसकीआ पगु चउथा टिकै टिकाइ जीउ ॥
तदनन्तर परमात्मा ने कलियुग बनाया, जिसमें धर्म के तीन पैर खिसक गए और धर्म एक पैर पर ही कायम रहा।

ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਕਮਾਇਆ ਅਉਖਧੁ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਹਰਿ ਸਾਂਤਿ ਪਾਇ ਜੀਉ ॥
गुर सबदु कमाइआ अउखधु हरि पाइआ हरि कीरति हरि सांति पाइ जीउ ॥
इस युग के जीवों ने गुरु-शब्द की कमाई की और दुखों की औषधि हरि नाम पा लिया, हरि ने उसका कीर्तिगान करने वाले भक्तजनों के हृदय में शांति प्रदान की।

ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਰੁਤਿ ਆਈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਡਾਈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਖੇਤੁ ਜਮਾਇਆ ॥
हरि कीरति रुति आई हरि नामु वडाई हरि हरि नामु खेतु जमाइआ ॥
कलियुग में हरि के भजन-कीर्तन की ऋतु आई और हरि-नाम की शोभा होने लगी, शरीर रूपी खेत में परमेश्वर के नाम को लोग बोने लगे।

ਕਲਿਜੁਗਿ ਬੀਜੁ ਬੀਜੇ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭੁ ਲਾਹਾ ਮੂਲੁ ਗਵਾਇਆ ॥
कलिजुगि बीजु बीजे बिनु नावै सभु लाहा मूलु गवाइआ ॥
में यदि मनुष्य नाम के बिना कोई दूसरा बीज बोता है तो वह अपना सारा लाभ एवं मूल पूँजी गंवा लेता है।

ਜਨ ਨਾਨਕਿ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਮਨਿ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਲਖਾਇ ਜੀਉ ॥
जन नानकि गुरु पूरा पाइआ मनि हिरदै नामु लखाइ जीउ ॥
नानक ने पूर्ण गुरु को पा लिया है, जिसने उसके मन एवं हृदय में ही नाम प्रगट कर दिया है।

ਕਲਜੁਗੁ ਹਰਿ ਕੀਆ ਪਗ ਤ੍ਰੈ ਖਿਸਕੀਆ ਪਗੁ ਚਉਥਾ ਟਿਕੈ ਟਿਕਾਇ ਜੀਉ ॥੪॥੪॥੧੧॥
कलजुगु हरि कीआ पग त्रै खिसकीआ पगु चउथा टिकै टिकाइ जीउ ॥४॥४॥११॥
परमात्मा ने कलियुग की रचना की, जिसमें धर्म के तीन पैर खिसक गए और धर्म (रूपी वैल) का चौथा पैर ही कायम रहा ॥ ४॥ ४॥ ११॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
आसा महला ४ ॥
आसा महला ४ ॥

ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਮਨਿ ਭਾਈ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਈ ਹਰਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਮੀਠ ਲਗਾਨ ਜੀਉ ॥
हरि कीरति मनि भाई परम गति पाई हरि मनि तनि मीठ लगान जीउ ॥
जिस व्यक्ति के मन में हरि की कीर्ति अच्छी लग गई है, उसने परमगति पा ली है, उसके मन-तन को परमात्मा मीठा लगने लग गया है।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗ ਪੁਰਾਨ ਜੀਉ ॥
हरि हरि रसु पाइआ गुरमति हरि धिआइआ धुरि मसतकि भाग पुरान जीउ ॥
जिसने गुरु की मति द्वारा भगवान का ध्यान किया है, उसने हरि रस पा लिया है, आदि से ही उसके मस्तक पर पूर्व लिखित भाग्य जाग गए हैं।

ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸੁਹਾਗੁ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥
धुरि मसतकि भागु हरि नामि सुहागु हरि नामै हरि गुण गाइआ ॥
आदि से मस्तक पर लिखा उसका भाग्य उदय हो गया है और जब उसने हरि-नाम द्वारा भगवान का गुणगान किया तो हरि नाम द्वारा उसे सुहाग मिल गया।

ਮਸਤਕਿ ਮਣੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਹੁ ਪ੍ਰਗਟੀ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਹਰਿ ਸੋਹਾਇਆ ॥
मसतकि मणी प्रीति बहु प्रगटी हरि नामै हरि सोहाइआ ॥
अब उसके मस्तक पर प्रभु के प्रेम की मणि चमक उठी है और भगवान ने अपने हरि-नाम द्वारा उसे सुन्दर बना दिया है।

ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲੀ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਮਨੂਆ ਮਾਨ ਜੀਉ ॥
जोती जोति मिली प्रभु पाइआ मिलि सतिगुर मनूआ मान जीउ ॥
उसकी ज्योति परम ज्योति से मिल गई है और उसने अपने प्रभु को पा लिया है, सच्चे गुरु को मिलने से उसका मन तृप्त हो गया है।

ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਮਨਿ ਭਾਈ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਈ ਹਰਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਮੀਠ ਲਗਾਨ ਜੀਉ ॥੧॥
हरि कीरति मनि भाई परम गति पाई हरि मनि तनि मीठ लगान जीउ ॥१॥
हरि की कीर्ति-महिमा जिसके मन में भा गई है उसने परमगति पा ली है और उसके मन एवं तन को प्रभु मीठा लगने लग गया है॥ १॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਇਆ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਤੇ ਊਤਮ ਜਨ ਪਰਧਾਨ ਜੀਉ ॥
हरि हरि जसु गाइआ परम पदु पाइआ ते ऊतम जन परधान जीउ ॥
जिस व्यक्ति ने परमेश्वर का यशगान किया है, उसे परम पद प्राप्त हो गया है, वे लोग उत्तम एवं प्रधान हैं।

ਤਿਨੑ ਹਮ ਚਰਣ ਸਰੇਵਹ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਪਗ ਧੋਵਹ ਜਿਨ ਹਰਿ ਮੀਠ ਲਗਾਨ ਜੀਉ ॥
तिन्ह हम चरण सरेवह खिनु खिनु पग धोवह जिन हरि मीठ लगान जीउ ॥
जिन्हें हरि मीठा लगने लग गया है, हम उनके चरणों की सेवा करते हैं और क्षण-क्षण उनके चरण धोते हैं।

ਹਰਿ ਮੀਠਾ ਲਾਇਆ ਪਰਮ ਸੁਖ ਪਾਇਆ ਮੁਖਿ ਭਾਗਾ ਰਤੀ ਚਾਰੇ ॥
हरि मीठा लाइआ परम सुख पाइआ मुखि भागा रती चारे ॥
जिसे हरि मीठा लग गया है, उसे परम सुख प्राप्त हो गया है और उसका मुख भाग्यशाली एवं सुन्दर हो गया है।

ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਗਾਇਆ ਹਰਿ ਹਾਰੁ ਉਰਿ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਕੰਠਿ ਧਾਰੇ ॥
गुरमति हरि गाइआ हरि हारु उरि पाइआ हरि नामा कंठि धारे ॥
गुरु के उपदेश द्वारा उसने प्रभु का गुणगान किया है, प्रभु को हार के रूप में हृदय में पहना है और हरि के नाम को अपनी जिव्हा एवं कण्ठ में धारण किया है।

ਸਭ ਏਕ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਸਮਤੁ ਕਰਿ ਦੇਖੈ ਸਭੁ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪਛਾਨ ਜੀਉ ॥
सभ एक द्रिसटि समतु करि देखै सभु आतम रामु पछान जीउ ॥
वे सभी को एक द्रष्टि से समान देखते है और सभी की अंतरात्मा में प्रभु का वास जानते है।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਇਆ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਤੇ ਊਤਮ ਜਨ ਪਰਧਾਨ ਜੀਉ ॥੨॥
हरि हरि जसु गाइआ परम पदु पाइआ ते ऊतम जन परधान जीउ ॥२॥
जिस व्यक्ति ने परमेश्वर का यशगान किया है, उसे परम पद मिल गया है, वे लोग उत्तम एवं प्रधान हैं॥ २ ॥

ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਨਿ ਭਾਈ ਹਰਿ ਰਸਨ ਰਸਾਈ ਵਿਚਿ ਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਹੋਇ ਜੀਉ ॥
सतसंगति मनि भाई हरि रसन रसाई विचि संगति हरि रसु होइ जीउ ॥
जिसके मन में सत्संगति अच्छी लगती है, वे हरि रस का आस्वादन करते हैं, सत्संगति में हरि का रस बसता है।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਰਾਧਿਆ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵਿਗਾਸਿਆ ਬੀਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਜੀਉ ॥
हरि हरि आराधिआ गुर सबदि विगासिआ बीजा अवरु न कोइ जीउ ॥
वह हरि-परमेश्वर की आराधना करता है और गुरु के शब्द द्वारा प्रसन्न रहता है, प्रभु के अलावा वह किसी दूसरे को नहीं जानता।

ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸੋਇ ਜਿਨਿ ਪੀਆ ਸੋ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ॥
अवरु न कोइ हरि अम्रितु सोइ जिनि पीआ सो बिधि जाणै ॥
उस हरि अमृत के अतिरिक्त दूसरा कोई अमृत नहीं, जो इसका पान करते हैं, वही इसकी विधि को जानते हैं।

ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਪੂਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਲਗਿ ਸੰਗਤਿ ਨਾਮੁ ਪਛਾਣੈ ॥
धनु धंनु गुरू पूरा प्रभु पाइआ लगि संगति नामु पछाणै ॥
पूर्ण गुरु धन्य-धन्य है, जिसके माध्यम से प्रभु प्राप्त होता है, सुसंगति में सम्मिलित होकर प्रभु-नाम को पहचाना जाता है।

ਨਾਮੋ ਸੇਵਿ ਨਾਮੋ ਆਰਾਧੈ ਬਿਨੁ ਨਾਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਜੀਉ ॥
नामो सेवि नामो आराधै बिनु नामै अवरु न कोइ जीउ ॥
मैं नाम की पूजा करता हूँ, मैं नाम की ही आराधना करता हूँ एवं नाम के अलावा दूसरा कुछ भी नहीं।

ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਨਿ ਭਾਈ ਹਰਿ ਰਸਨ ਰਸਾਈ ਵਿਚਿ ਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਹੋਇ ਜੀਉ ॥੩॥
सतसंगति मनि भाई हरि रसन रसाई विचि संगति हरि रसु होइ जीउ ॥३॥
जिसके मन को सत्संगति प्यारी लगती है, वह हरि अमृत का स्वाद प्राप्त करता है, सत्संगति में ही प्रभु का नामामृत बसता है॥ ३॥

ਹਰਿ ਦਇਆ ਪ੍ਰਭ ਧਾਰਹੁ ਪਾਖਣ ਹਮ ਤਾਰਹੁ ਕਢਿ ਲੇਵਹੁ ਸਬਦਿ ਸੁਭਾਇ ਜੀਉ ॥
हरि दइआ प्रभ धारहु पाखण हम तारहु कढि लेवहु सबदि सुभाइ जीउ ॥
हे हरि-प्रभु ! दया करो एवं हम पत्थरों को पार लगा दो, अपने शब्द द्वारा सहजता से हमें संसार के मोह से निकाल लो।

ਮੋਹ ਚੀਕੜਿ ਫਾਥੇ ਨਿਘਰਤ ਹਮ ਜਾਤੇ ਹਰਿ ਬਾਂਹ ਪ੍ਰਭੂ ਪਕਰਾਇ ਜੀਉ ॥
मोह चीकड़ि फाथे निघरत हम जाते हरि बांह प्रभू पकराइ जीउ ॥
हम नश्वर प्राणी मोह के कीचड़ में फँसे हुए डूबते जा रहे हैं, हे हरि प्रभु ! हमें अपनी बांह पकड़ा दीजिए।

ਪ੍ਰਭਿ ਬਾਂਹ ਪਕਰਾਈ ਊਤਮ ਮਤਿ ਪਾਈ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਜਨੁ ਲਾਗਾ ॥
प्रभि बांह पकराई ऊतम मति पाई गुर चरणी जनु लागा ॥
प्रभु ने जब बांह पकड़ा दी तो उत्तम बुद्धि प्राप्त हो गई और सेवक गुरु के चरणों में लग गया।

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