Hindi Page 1016

ਕਲਰ ਖੇਤੀ ਤਰਵਰ ਕੰਠੇ ਬਾਗਾ ਪਹਿਰਹਿ ਕਜਲੁ ਝਰੈ ॥
कलर खेती तरवर कंठे बागा पहिरहि कजलु झरै ॥
नाम के बिना मनुष्य का जीवन यू व्यर्थ है, जैसे बंजर भूमि में बोई फसल है, दरिया के तट पर पेड़ हैं और वहाँ सफेद वस्त्र धारण किए हुए हैं जहाँ कालिमा उड़-उड़कर वस्त्रों पर पड़ती हो।

ਏਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ਤਿਸੈ ਕੀ ਕੋਠੀ ਜੋ ਪੈਸੈ ਸੋ ਗਰਬਿ ਜਰੈ ॥੬॥
एहु संसारु तिसै की कोठी जो पैसै सो गरबि जरै ॥६॥
यह संसार तृष्णा का घर है, जो इसके भीतर प्रवेश करता है, वह गर्व में जल जाता है।॥६॥

ਰਯਤਿ ਰਾਜੇ ਕਹਾ ਸਬਾਏ ਦੁਹੁ ਅੰਤਰਿ ਸੋ ਜਾਸੀ ॥
रयति राजे कहा सबाए दुहु अंतरि सो जासी ॥
राजा और प्रजा सभी कहाँ हैं ? जो भी राजा-प्रजा इन दोनों की श्रेणी में हैं, वे नाशवान हैं।

ਕਹਤ ਨਾਨਕੁ ਗੁਰ ਸਚੇ ਕੀ ਪਉੜੀ ਰਹਸੀ ਅਲਖੁ ਨਿਵਾਸੀ ॥੭॥੩॥੧੧॥
कहत नानकु गुर सचे की पउड़ी रहसी अलखु निवासी ॥७॥३॥११॥
नानक कहते हैं कि जो सच्चे गुरु की नाम रूपी सीढ़ी पा लेता है, वह प्रभु-चरणों में ही रहता है।॥ ७॥ ३॥ ११॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੫ ਅਸਟਪਦੀ
मारू महला ३ घरु ५ असटपदी
मारू महला ३ घरु ५ असटपदी

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਜਿਸ ਨੋ ਪ੍ਰੇਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥
जिस नो प्रेमु मंनि वसाए ॥
जिसके मन में प्रेम बसा देता है,

ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥
साचै सबदि सहजि सुभाए ॥
वह सहज ही सच्चे शब्द में समाया रहता है।

ਏਹਾ ਵੇਦਨ ਸੋਈ ਜਾਣੈ ਅਵਰੁ ਕਿ ਜਾਣੈ ਕਾਰੀ ਜੀਉ ॥੧॥
एहा वेदन सोई जाणै अवरु कि जाणै कारी जीउ ॥१॥
यह प्रेम-वेदना वही (ईश्वर) जानता है, अन्य कोई इसका उपचार नहीं जानता॥ १॥

ਆਪੇ ਮੇਲੇ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ॥
आपे मेले आपि मिलाए ॥
ईश्वंर स्वयं ही संगति में मिलाकर साथ मिला लेता है और

ਆਪਣਾ ਪਿਆਰੁ ਆਪੇ ਲਾਏ ॥
आपणा पिआरु आपे लाए ॥
स्वयं ही अपना प्रेम लगाता है।

ਪ੍ਰੇਮ ਕੀ ਸਾਰ ਸੋਈ ਜਾਣੈ ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਤੁਮਾਰੀ ਜੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रेम की सार सोई जाणै जिस नो नदरि तुमारी जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
हे परमेश्वर ! प्रेम की कद्र वही जानता है, जिस पर तुम्हारी कृपा-दृष्टि हो जाती है॥ १॥ रहाउ॥

ਦਿਬ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਜਾਗੈ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ॥
दिब द्रिसटि जागै भरमु चुकाए ॥
उसके भीतर दिव्य-दृष्टि उदित होने से सब भ्रम निवृत्त हो जाते हैं और

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਏ ॥
गुर परसादि परम पदु पाए ॥
गुरु की कृपा से मोक्ष प्राप्त होता है।

ਸੋ ਜੋਗੀ ਇਹ ਜੁਗਤਿ ਪਛਾਣੈ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਬੀਚਾਰੀ ਜੀਉ ॥੨॥
सो जोगी इह जुगति पछाणै गुर कै सबदि बीचारी जीउ ॥२॥
जो गुरु के शब्द का चिंतन करता है, वही योगी इस युक्ति को पहचान लेता है॥ २॥

ਸੰਜੋਗੀ ਧਨ ਪਿਰ ਮੇਲਾ ਹੋਵੈ ॥
संजोगी धन पिर मेला होवै ॥
संयोग से ही जीव-स्त्री एवं पति-परमेश्वर का मिलन होता है।

ਗੁਰਮਤਿ ਵਿਚਹੁ ਦੁਰਮਤਿ ਖੋਵੈ ॥
गुरमति विचहु दुरमति खोवै ॥
गुरु-मतानुसार जीव-स्त्री अन्तर्मन में से दुर्मति को दूर कर देती है और

ਰੰਗ ਸਿਉ ਨਿਤ ਰਲੀਆ ਮਾਣੈ ਅਪਣੇ ਕੰਤ ਪਿਆਰੀ ਜੀਉ ॥੩॥
रंग सिउ नित रलीआ माणै अपणे कंत पिआरी जीउ ॥३॥
बड़े प्रेम से पति-प्रभु के संग रंगरलियाँ मनाती रहती है॥ ३॥

ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝਹੁ ਵੈਦੁ ਨ ਕੋਈ ॥
सतिगुर बाझहु वैदु न कोई ॥
सतगुरु के बिना कोई वैद्य नहीं है और

ਆਪੇ ਆਪਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਸੋਈ ॥
आपे आपि निरंजनु सोई ॥
वह स्वयं पावन स्वरुप है।

ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਮਰੈ ਮੰਦਾ ਹੋਵੈ ਗਿਆਨ ਬੀਚਾਰੀ ਜੀਉ ॥੪॥
सतिगुर मिलिऐ मरै मंदा होवै गिआन बीचारी जीउ ॥४॥
यदि सतगुरु मिल जाए तो मन में से बुरा आचरण मिट जाता है और जीव ज्ञान का विचारवान् बन जाता है।॥ ४॥

ਏਹੁ ਸਬਦੁ ਸਾਰੁ ਜਿਸ ਨੋ ਲਾਏ ॥
एहु सबदु सारु जिस नो लाए ॥
जिसे शब्द गुरु में प्रवृत्त कर देता है,

ਗੁਰਮੁਖਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭੁਖ ਗਵਾਏ ॥
गुरमुखि त्रिसना भुख गवाए ॥
वह गुरुमुख बनकर तृष्णा की भूख को दूर कर देता है।

ਆਪਣ ਲੀਆ ਕਿਛੂ ਨ ਪਾਈਐ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਲ ਧਾਰੀ ਜੀਉ ॥੫॥
आपण लीआ किछू न पाईऐ करि किरपा कल धारी जीउ ॥५॥
भगवान की कृपा से ही कल्याण होता है, अन्यथा अपने आप करने से कुछ भी हासिल नहीं होता॥ ५॥

ਅਗਮ ਨਿਗਮੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦਿਖਾਇਆ ॥
अगम निगमु सतिगुरू दिखाइआ ॥
जब सतगुरु ने वेदों शास्त्रों का रहस्य बतलाया तो

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪਨੈ ਘਰਿ ਆਇਆ ॥
करि किरपा अपनै घरि आइआ ॥
जीव प्रभु की कृपा से अपने सच्चे घर में आ गया।

ਅੰਜਨ ਮਾਹਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਜਾਤਾ ਜਿਨ ਕਉ ਨਦਰਿ ਤੁਮਾਰੀ ਜੀਉ ॥੬॥
अंजन माहि निरंजनु जाता जिन कउ नदरि तुमारी जीउ ॥६॥
हे ईश्वर ! जिन पर तुम्हारी कृपा-दृष्टि हो गई है, उसने कालिमायुक्त जगत् में रहते हुए परम-सत्य को पहचान लिया है॥ ६॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੋ ਤਤੁ ਪਾਏ ॥
गुरमुखि होवै सो ततु पाए ॥
जो गुरुमुख बन जाता है, वह तत्व-ज्ञान को प्राप्त कर लेता है और

ਆਪਣਾ ਆਪੁ ਵਿਚਹੁ ਗਵਾਏ ॥
आपणा आपु विचहु गवाए ॥
अपने मन में से आत्माभिमान को मिटा देता है।

ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝਹੁ ਸਭੁ ਧੰਧੁ ਕਮਾਵੈ ਵੇਖਹੁ ਮਨਿ ਵੀਚਾਰੀ ਜੀਉ ॥੭॥
सतिगुर बाझहु सभु धंधु कमावै वेखहु मनि वीचारी जीउ ॥७॥
अपने मन में विचार कर देख लो, सतगुरु की शरण बिना सभी लोग दुनिया के धंधों में ही ग्रस्त हैं॥ ७॥

ਇਕਿ ਭ੍ਰਮਿ ਭੂਲੇ ਫਿਰਹਿ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥
इकि भ्रमि भूले फिरहि अहंकारी ॥
कुछ अहंकारी व्यक्ति भ्रम में भटकते रहते हैं और

ਇਕਨਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀ ॥
इकना गुरमुखि हउमै मारी ॥
किसी ने गुरुमुख बनकर अहम् को मिटा दिया है।

ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਬੈਰਾਗੀ ਹੋਰਿ ਭਰਮਿ ਭੁਲੇ ਗਾਵਾਰੀ ਜੀਉ ॥੮॥
सचै सबदि रते बैरागी होरि भरमि भुले गावारी जीउ ॥८॥
वैरागी सच्चे शब्द में ही प्रवृत्त रहते हैं लेकिन अन्य मूर्ख लोग भ्रम में ही भटकते रहते हैं।॥ ८॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਨੀ ਨਾਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥ ਮਨਮੁਖਿ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
गुरमुखि जिनी नामु न पाइआ ॥ मनमुखि बिरथा जनमु गवाइआ ॥
जिसने गुरु के सान्निध्य में नाम प्राप्त नहीं किया, उस मनमुख ने जीवन व्यर्थ ही गंवा दिया है।

ਅਗੈ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਕੋ ਬੇਲੀ ਨਾਹੀ ਬੂਝੈ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰੀ ਜੀਉ ॥੯॥
अगै विणु नावै को बेली नाही बूझै गुर बीचारी जीउ ॥९॥
आगे परलोक में नाम के बिना कोई भी साथी नहीं होता लेकिन इसकी सूझ गुरु-उपदेश से ही होती है।॥ ९॥

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥
अम्रित नामु सदा सुखदाता ॥
हरि का नामामृत सदैव सुख देने वाला है और चारों

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਜਾਤਾ ॥
गुरि पूरै जुग चारे जाता ॥
युगों में पूर्ण गुरु द्वारा इस तथ्य की सूझ हो सकती है।

ਜਿਸੁ ਤੂ ਦੇਵਹਿ ਸੋਈ ਪਾਏ ਨਾਨਕ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰੀ ਜੀਉ ॥੧੦॥੧॥
जिसु तू देवहि सोई पाए नानक ततु बीचारी जीउ ॥१०॥१॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! जिसे तू देता है, वही तेरा नाम प्राप्त करता है, मैंने तो यही ज्ञान चिंतन किया है ॥१०॥१॥

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