Hindi Page 1085

ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਮਧਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥
आदि अंति मधि प्रभु सोई ॥
वह प्रभु ही जगत के आदि, मध्य एवं अंत में हैं।

ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਈ ॥
आपे करता करे सु होई ॥
जो वह करता है, वहीं होता है।

ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਮਿਟਿਆ ਸਾਧਸੰਗ ਤੇ ਦਾਲਿਦ ਨ ਕੋਈ ਘਾਲਕਾ ॥੬॥
भ्रमु भउ मिटिआ साधसंग ते दालिद न कोई घालका ॥६॥
संतों की संगत करने से भ्र्म -भय सब मिट गया है और कोई दरिद्रता भी अब प्रभावित नहीं करती॥६॥

ਊਤਮ ਬਾਣੀ ਗਾਉ ਗੋੁਪਾਲਾ ॥
ऊतम बाणी गाउ गोपाला ॥
प्रभु की उत्तम वाणी गाते रहो,”

ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੀ ਮੰਗਹੁ ਰਵਾਲਾ ॥
साधसंगति की मंगहु रवाला ॥
साधु-महापुरुषों की चरणधूलि की कामना करो;

ਬਾਸਨ ਮੇਟਿ ਨਿਬਾਸਨ ਹੋਈਐ ਕਲਮਲ ਸਗਲੇ ਜਾਲਕਾ ॥੭॥
बासन मेटि निबासन होईऐ कलमल सगले जालका ॥७॥
यदि वासनाओं को मिटाकर वासना-रहित हुआ जाए तो सब पाप जल जाते हैं॥७॥

ਸੰਤਾ ਕੀ ਇਹ ਰੀਤਿ ਨਿਰਾਲੀ ॥
संता की इह रीति निराली ॥
संतों की यह निराली ही रीति है कि

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਕਰਿ ਦੇਖਹਿ ਨਾਲੀ ॥
पारब्रहमु करि देखहि नाली ॥
परब्रह्म को सदा अपने आसपास ही देखते हैं।

ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਆਰਾਧਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਿਉ ਸਿਮਰਤ ਕੀਜੈ ਆਲਕਾ ॥੮॥
सासि सासि आराधनि हरि हरि किउ सिमरत कीजै आलका ॥८॥
प्रत्येक धड़कन से भगवान की आराधना करो और उसका नाम-स्मरण करने में कदापि आलस्य नहीं करना चाहिए॥ ८॥

ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
जह देखा तह अंतरजामी ॥
जहाँ भी दृष्टि जाती हैं, वहाँ अन्तर्यामी हैं।

ਨਿਮਖ ਨ ਵਿਸਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ॥
निमख न विसरहु प्रभ मेरे सुआमी ॥
हे मेरे स्वामी प्रभु ! मुझे थोड़े समय के लिए भी विस्मृत न होना।

ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਜੀਵਹਿ ਤੇਰੇ ਦਾਸਾ ਬਨਿ ਜਲਿ ਪੂਰਨ ਥਾਲਕਾ ॥੯॥
सिमरि सिमरि जीवहि तेरे दासा बनि जलि पूरन थालका ॥९॥
तेरे भक्तजन तुझे स्मरण कर-करके ही जीवन पा रहे हैं, तू वन, जल, धरती इत्यादि सबमें व्याप्त है।॥९॥

ਤਤੀ ਵਾਉ ਨ ਤਾ ਕਉ ਲਾਗੈ ॥
तती वाउ न ता कउ लागै ॥
उसे किसी प्रकार की कष्टदायक गर्म वायु भी प्रभावित नहीं करती।

ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗੈ ॥
सिमरत नामु अनदिनु जागै ॥
जो परमात्मा का नाम-स्मरण करते हुए प्रतिदिन जाग्नत रहता है,”

ਅਨਦ ਬਿਨੋਦ ਕਰੇ ਹਰਿ ਸਿਮਰਨੁ ਤਿਸੁ ਮਾਇਆ ਸੰਗਿ ਨ ਤਾਲਕਾ ॥੧੦॥
अनद बिनोद करे हरि सिमरनु तिसु माइआ संगि न तालका ॥१०॥
वह प्रभु का सिमरन करके आनंद-खुशियाँ भोगता रहता है और माया के संग उसका कोई नाता नहीं रहता॥ १०॥

ਰੋਗ ਸੋਗ ਦੂਖ ਤਿਸੁ ਨਾਹੀ ॥
रोग सोग दूख तिसु नाही ॥
उसे कोई रोग, शोक एवं दुख नहीं लगता।

ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਹੀ ॥
साधसंगि हरि कीरतनु गाही ॥
जो साधु पुरुषों की संगत में ईश्वर का कीर्ति-गान करता है,”

ਆਪਣਾ ਨਾਮੁ ਦੇਹਿ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸੁਣਿ ਬੇਨੰਤੀ ਖਾਲਕਾ ॥੧੧॥
आपणा नामु देहि प्रभ प्रीतम सुणि बेनंती खालका ॥११॥
हे प्रियतम प्रभु ! मेरी एक विनती सुनो; मुझे अपना नाम प्रदान करो॥ ११॥

ਨਾਮ ਰਤਨੁ ਤੇਰਾ ਹੈ ਪਿਆਰੇ ॥
नाम रतनु तेरा है पिआरे ॥
हे प्यारे प्रभु ! तेरा नाम अमूल्य रत्न है,”

ਰੰਗਿ ਰਤੇ ਤੇਰੈ ਦਾਸ ਅਪਾਰੇ ॥
रंगि रते तेरै दास अपारे ॥
दास तेरे प्रेम-रंग में हीं लीन रहते हैं,”

ਤੇਰੈ ਰੰਗਿ ਰਤੇ ਤੁਧੁ ਜੇਹੇ ਵਿਰਲੇ ਕੇਈ ਭਾਲਕਾ ॥੧੨॥
तेरै रंगि रते तुधु जेहे विरले केई भालका ॥१२॥
तेरे रंग में लीन रहने वाले तेरे जैसे ही बन जाते हैं परन्तु ऐसे कोई विरले ही मिलते हैं॥ १२॥

ਤਿਨ ਕੀ ਧੂੜਿ ਮਾਂਗੈ ਮਨੁ ਮੇਰਾ ॥
तिन की धूड़ि मांगै मनु मेरा ॥
मेरा मन उन भक्तजनों की चरणधूलि ही माँगता है,”

ਜਿਨ ਵਿਸਰਹਿ ਨਾਹੀ ਕਾਹੂ ਬੇਰਾ ॥
जिन विसरहि नाही काहू बेरा ॥
जिन्हें परमात्मा कभी विस्मृत नहींहोता।

ਤਿਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਈ ਸਦਾ ਸੰਗੀ ਹਰਿ ਨਾਲਕਾ ॥੧੩॥
तिन कै संगि परम पदु पाई सदा संगी हरि नालका ॥१३॥
उनकी संगति में परम-पद पाया जाता है और प्रभु सदैव उनके साथ रहता है॥ १३॥

ਸਾਜਨੁ ਮੀਤੁ ਪਿਆਰਾ ਸੋਈ ॥
साजनु मीतु पिआरा सोई ॥
वही प्यारा मित्र एवं सज्जन है,”

ਏਕੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਦੁਰਮਤਿ ਖੋਈ ॥
एकु द्रिड़ाए दुरमति खोई ॥
जो दुर्मति दूर करके प्रभु का नाम मन में दृढ़ कर दे।

ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ਤਜਾਏ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕਉ ਉਪਦੇਸੁ ਨਿਰਮਾਲਕਾ ॥੧੪॥
कामु क्रोधु अहंकारु तजाए तिसु जन कउ उपदेसु निरमालका ॥१४॥
उस उपासक का उपदेश भी निर्मल है, जो काम, क्रोध एवं अहंकार का त्याग करवा दे॥ १४॥

ਤੁਧੁ ਵਿਣੁ ਨਾਹੀ ਕੋਈ ਮੇਰਾ ॥
तुधु विणु नाही कोई मेरा ॥
हे प्रभु ! तेरे बिना मेरा कोई नहीं है।

ਗੁਰਿ ਪਕੜਾਏ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਪੈਰਾ ॥
गुरि पकड़ाए प्रभ के पैरा ॥
गुरु ने मुझे प्रभु के चरण पकड़ा दिए हैं।

ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਰੇ ਜਿਨਿ ਖੰਡਿਆ ਭਰਮੁ ਅਨਾਲਕਾ ॥੧੫॥
हउ बलिहारी सतिगुर पूरे जिनि खंडिआ भरमु अनालका ॥१५॥
मैं पूरे सतिगुरु पर कुर्बान जाता हूँ, जिसने मेरा मोह-माया का भ्रम मिटा दिया है॥ १५॥

ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਪ੍ਰਭੁ ਬਿਸਰੈ ਨਾਹੀ ॥
सासि सासि प्रभु बिसरै नाही ॥
श्वास-श्वास से प्रभु को याद करो और उसे कदापि न भुलाओ।

ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਉ ਧਿਆਈ ॥
आठ पहर हरि हरि कउ धिआई ॥
आठ प्रहर भगवान् का भजन करो।

ਨਾਨਕ ਸੰਤ ਤੇਰੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਤੂ ਸਮਰਥੁ ਵਡਾਲਕਾ ॥੧੬॥੪॥੧੩॥
नानक संत तेरै रंगि राते तू समरथु वडालका ॥१६॥४॥१३॥
नानक विनय करता है कि हे ईश्वर ! तू सर्वकला समर्थ एवं सर्वोपरि है, संतजन तेरे रंग में ही लीन रहते हैं॥ १६॥ ४॥ १३॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫
मारू महला ५
मारू महला ५

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਚਰਨ ਕਮਲ ਹਿਰਦੈ ਨਿਤ ਧਾਰੀ ॥
चरन कमल हिरदै नित धारी ॥
मैं नित्य परमात्मा के चरण हृदय में धारण करता हूँ,”

ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਨਮਸਕਾਰੀ ॥
गुरु पूरा खिनु खिनु नमसकारी ॥
पूर्ण गुरु को क्षण-क्षण नमन है,”

ਤਨੁ ਮਨੁ ਅਰਪਿ ਧਰੀ ਸਭੁ ਆਗੈ ਜਗ ਮਹਿ ਨਾਮੁ ਸੁਹਾਵਣਾ ॥੧॥
तनु मनु अरपि धरी सभु आगै जग महि नामु सुहावणा ॥१॥
मन-तन इत्यादि अर्पण करके सब उसके समक्ष भेंट कर दिया है, जगत् में प्रभु का नाम ही सुहावना है॥ १॥

ਸੋ ਠਾਕੁਰੁ ਕਿਉ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੇ ॥
सो ठाकुरु किउ मनहु विसारे ॥
उस ठाकुर जी को मन से क्योंकर भुलाया जाए,”

ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਦੇ ਸਾਜਿ ਸਵਾਰੇ ॥
जीउ पिंडु दे साजि सवारे ॥
जिसने प्राण-शरीर देकर बनाकर संवार दिया है,”

ਸਾਸਿ ਗਰਾਸਿ ਸਮਾਲੇ ਕਰਤਾ ਕੀਤਾ ਅਪਣਾ ਪਾਵਣਾ ॥੨॥
सासि गरासि समाले करता कीता अपणा पावणा ॥२॥
खाते-पीते हर वक्त ईश्वर ही रक्षा करता रहता है, किन्तु फिर भी प्रत्येक जीव अपने किए कमाँ का ही फल पाता है॥ २॥

ਜਾ ਤੇ ਬਿਰਥਾ ਕੋਊ ਨਾਹੀ ॥
जा ते बिरथा कोऊ नाही ॥
जिसके द्वार से छोटा-बड़ा कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता,”

ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਰਖੁ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥
आठ पहर हरि रखु मन माही ॥
अतः आठ प्रहर उस ईश्वर की स्मृति को मन में बसाकर रखो।

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