ਤਿਸੁ ਪਾਖੰਡੀ ਜਰਾ ਨ ਮਰਣਾ ॥
तिसु पाखंडी जरा न मरणा ॥
उस जैनी को बुढ़ापा एवं मृत्यु प्रभावित नहीं करता।
ਬੋਲੈ ਚਰਪਟੁ ਸਤਿ ਸਰੂਪੁ ॥
बोलै चरपटु सति सरूपु ॥
चरपट कहता है कि परमेश्वर सत्यस्वरूप है,
ਪਰਮ ਤੰਤ ਮਹਿ ਰੇਖ ਨ ਰੂਪੁ ॥੫॥
परम तंत महि रेख न रूपु ॥५॥
वह परमतत्व निराकार है॥ ५॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਸੋ ਬੈਰਾਗੀ ਜਿ ਉਲਟੇ ਬ੍ਰਹਮੁ ॥
सो बैरागी जि उलटे ब्रहमु ॥
वही वैरागी है, जो ब्रह्म को मन में प्रगट करता है।
ਗਗਨ ਮੰਡਲ ਮਹਿ ਰੋਪੈ ਥੰਮੁ ॥
गगन मंडल महि रोपै थमु ॥
वह अपने मन को ध्यान रूपी स्तम्भ द्वारा अपने दसम द्वार में स्थिर करके रखता है।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਅੰਤਰਿ ਰਹੈ ਧਿਆਨਿ ॥
अहिनिसि अंतरि रहै धिआनि ॥
वह निशदिन परमात्मा में ही अंर्तंध्यान रहता है।
ਤੇ ਬੈਰਾਗੀ ਸਤ ਸਮਾਨਿ ॥
ते बैरागी सत समानि ॥
ऐसा वैरागी ही सत्य के समान हो जाता है।
ਬੋਲੈ ਭਰਥਰਿ ਸਤਿ ਸਰੂਪੁ ॥
बोलै भरथरि सति सरूपु ॥
भरथरी कहता है कि ईश्वर सत्यस्वरूप है,
ਪਰਮ ਤੰਤ ਮਹਿ ਰੇਖ ਨ ਰੂਪੁ ॥੬॥
परम तंत महि रेख न रूपु ॥६॥
वह परमतत्व निराकार है॥ ६॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਕਿਉ ਮਰੈ ਮੰਦਾ ਕਿਉ ਜੀਵੈ ਜੁਗਤਿ ॥
किउ मरै मंदा किउ जीवै जुगति ॥
कैसे बुराई का अंत हो सकता है और किस युक्ति द्वारा जीव सही जीवन बिता सकता है?
ਕੰਨ ਪੜਾਇ ਕਿਆ ਖਾਜੈ ਭੁਗਤਿ ॥
कंन पड़ाइ किआ खाजै भुगति ॥
कान छिदवा कर चूरमा खाने का क्या अभिप्राय है ?
ਆਸਤਿ ਨਾਸਤਿ ਏਕੋ ਨਾਉ ॥
आसति नासति एको नाउ ॥
चाहे कोई आस्तिक है चाहे कोई नास्तिक है, परमात्मा का एक नाम ही सबका जीवनाधार है।
ਕਉਣੁ ਸੁ ਅਖਰੁ ਜਿਤੁ ਰਹੈ ਹਿਆਉ ॥
कउणु सु अखरु जितु रहै हिआउ ॥
वह कौन-सा अक्षर है, जिस द्वारा हृदय टिका रहता है ?”
ਧੂਪ ਛਾਵ ਜੇ ਸਮ ਕਰਿ ਸਹੈ ॥
धूप छाव जे सम करि सहै ॥
यदि कोई व्यक्ति वह सुख-दुख को एक समान समझकर सहन करता है
ਤਾ ਨਾਨਕੁ ਆਖੈ ਗੁਰੁ ਕੋ ਕਹੈ ॥
ता नानकु आखै गुरु को कहै ॥
नानक कहते हैं कि ऐसा ही मनुष्य गुरु का नाम जप सकता है, ।
ਛਿਅ ਵਰਤਾਰੇ ਵਰਤਹਿ ਪੂਤ ॥
छिअ वरतारे वरतहि पूत ॥
योगियों के जो शिष्य उनके छः सम्प्रदायों में आचरण करते हैं,
ਨਾ ਸੰਸਾਰੀ ਨਾ ਅਉਧੂਤ ॥
ना संसारी ना अउधूत ॥
न वे गृहस्थी हैं और न ही अवधूत हैं।
ਨਿਰੰਕਾਰਿ ਜੋ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥
निरंकारि जो रहै समाइ ॥
जो प्राणी निरंकार के ध्यान में लीन रहता है,
ਕਾਹੇ ਭੀਖਿਆ ਮੰਗਣਿ ਜਾਇ ॥੭॥
काहे भीखिआ मंगणि जाइ ॥७॥
उसे घर-घर से भिक्षा माँगने नहीं जाना पड़ता॥ ७॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਹਰਿ ਮੰਦਰੁ ਸੋਈ ਆਖੀਐ ਜਿਥਹੁ ਹਰਿ ਜਾਤਾ ॥
हरि मंदरु सोई आखीऐ जिथहु हरि जाता ॥
जहाँ हरि की पहचान हो जाती है, उसे ही हरि का मन्दिर कहा जाता है।
ਮਾਨਸ ਦੇਹ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਪਾਇਆ ਸਭੁ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪਛਾਤਾ ॥
मानस देह गुर बचनी पाइआ सभु आतम रामु पछाता ॥
मानव-शरीर में ही गुरु के वचनों द्वार सत्य की प्राप्ति होती है और सबमें राम की पहचान हो जाती है।
ਬਾਹਰਿ ਮੂਲਿ ਨ ਖੋਜੀਐ ਘਰ ਮਾਹਿ ਬਿਧਾਤਾ ॥
बाहरि मूलि न खोजीऐ घर माहि बिधाता ॥
विधाता तो हृदय-घर में ही मौजूद है, इसलिए बाहर बिल्कुल नहीं खोजना चाहिए।
ਮਨਮੁਖ ਹਰਿ ਮੰਦਰ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਨੀ ਤਿਨੀ ਜਨਮੁ ਗਵਾਤਾ ॥
मनमुख हरि मंदर की सार न जाणनी तिनी जनमु गवाता ॥
स्वेच्छाचारी जीव हरि-मन्दिर की कद्र को नहीं जानते, उन्होंने अपना जन्म व्यर्थ ही गंवा लिया है।
ਸਭ ਮਹਿ ਇਕੁ ਵਰਤਦਾ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਪਾਇਆ ਜਾਈ ॥੧੨॥
सभ महि इकु वरतदा गुर सबदी पाइआ जाई ॥१२॥
सब जीवों में एक परमेश्वर ही मौजूद है, पर उसे गुरु के शब्द द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है॥ १२॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३।
ਮੂਰਖੁ ਹੋਵੈ ਸੋ ਸੁਣੈ ਮੂਰਖ ਕਾ ਕਹਣਾ ॥
मूरखु होवै सो सुणै मूरख का कहणा ॥
मूर्ख आदमी हमेशा मूर्ख की बात ही सुनता है।
ਮੂਰਖ ਕੇ ਕਿਆ ਲਖਣ ਹੈ ਕਿਆ ਮੂਰਖ ਕਾ ਕਰਣਾ ॥
मूरख के किआ लखण है किआ मूरख का करणा ॥
मूर्ख के क्या लक्षण हैं और मूर्ख की क्या करतूत है ?
ਮੂਰਖੁ ਓਹੁ ਜਿ ਮੁਗਧੁ ਹੈ ਅਹੰਕਾਰੇ ਮਰਣਾ ॥
मूरखु ओहु जि मुगधु है अहंकारे मरणा ॥
मूर्ख वही होता है, जो विमूढ अहंकार में ही ग्रस्त रहता है।
ਏਤੁ ਕਮਾਣੈ ਸਦਾ ਦੁਖੁ ਦੁਖ ਹੀ ਮਹਿ ਰਹਣਾ ॥
एतु कमाणै सदा दुखु दुख ही महि रहणा ॥
इस अहंकार के कारण वह सदा दुख ही भोगता है और दुखी ही रहता है।
ਅਤਿ ਪਿਆਰਾ ਪਵੈ ਖੂਹਿ ਕਿਹੁ ਸੰਜਮੁ ਕਰਣਾ ॥
अति पिआरा पवै खूहि किहु संजमु करणा ॥
यदि किसी का प्रियजन पापों में गिर जाए तो उसे बाहर निकालने के लिए क्या प्रयास करना चाहिए?
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਸੁ ਕਰੇ ਵੀਚਾਰੁ ਓਸੁ ਅਲਿਪਤੋ ਰਹਣਾ ॥
गुरमुखि होइ सु करे वीचारु ओसु अलिपतो रहणा ॥
जो गुरुमुख होता है, वही सोच-विचार करता है और वह निर्लिप्त रहता है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਆਪਿ ਉਧਰੈ ਓਸੁ ਪਿਛੈ ਡੁਬਦੇ ਭੀ ਤਰਣਾ ॥
हरि नामु जपै आपि उधरै ओसु पिछै डुबदे भी तरणा ॥
वह हरि नाम जपता रहता है, वह स्वयं तो पार होता ही है, जो डूब रहे होते हैं, उसके पीछे लगकर वे भी तैर जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਕਰੇ ਜੋ ਦੇਇ ਸੁ ਸਹਣਾ ॥੧॥
नानक जो तिसु भावै सो करे जो देइ सु सहणा ॥१॥
हे नानक ! जो परमात्मा को मंजूर होता है, वह वही करता है। वह जो दुख अथवा सुख किसी जीव को देता है, वह उसे सहन करना पड़ता है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਨਾਨਕੁ ਆਖੈ ਰੇ ਮਨਾ ਸੁਣੀਐ ਸਿਖ ਸਹੀ ॥
नानकु आखै रे मना सुणीऐ सिख सही ॥
गुरु नानक कहते हैं कि हे मन ! हमें सही सीख सुननी चाहिए।
ਲੇਖਾ ਰਬੁ ਮੰਗੇਸੀਆ ਬੈਠਾ ਕਢਿ ਵਹੀ ॥
लेखा रबु मंगेसीआ बैठा कढि वही ॥
रब तुझसे तेरे किए शुभाशुभ कर्मों का हिसाब-किताब माँगेगा और वह अपनी आलेख पुस्तक निकाल कर बैठा होगा।
ਤਲਬਾ ਪਉਸਨਿ ਆਕੀਆ ਬਾਕੀ ਜਿਨਾ ਰਹੀ ॥
तलबा पउसनि आकीआ बाकी जिना रही ॥
वहाँ उन बाकी स्वेच्छाचारी जीवों को बुलावे आएँगे जिनके कर्मो का हिसाब-किताब शेष होगा।
ਅਜਰਾਈਲੁ ਫਰੇਸਤਾ ਹੋਸੀ ਆਇ ਤਈ ॥
अजराईलु फरेसता होसी आइ तई ॥
इजरायल फरिश्ता उन्हें उनके पाप कमों का दण्ड देने के लिए खड़ा होगा।
ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ਨ ਸੁਝਈ ਭੀੜੀ ਗਲੀ ਫਹੀ ॥
आवणु जाणु न सुझई भीड़ी गली फही ॥
यम मार्ग की संकुचित गली में फँसी हुई आत्मा को उस वक्त कुछ नहीं सूझता कि वह कहाँ से आई है और उसने कहाँ जाना है।
ਕੂੜ ਨਿਖੁਟੇ ਨਾਨਕਾ ਓੜਕਿ ਸਚਿ ਰਹੀ ॥੨॥
कूड़ निखुटे नानका ओड़कि सचि रही ॥२॥
हे नानक ! अंत में सत्य रह जाता है और झूठ का नाश हो जाता है।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਹਰਿ ਕਾ ਸਭੁ ਸਰੀਰੁ ਹੈ ਹਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਭੁ ਆਪੈ ॥
हरि का सभु सरीरु है हरि रवि रहिआ सभु आपै ॥
समूचा शरीर भगवान का ही है और वह स्वयं ही सबमें समा रहा है।
ਹਰਿ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਨਾ ਪਵੈ ਕਿਛੁ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਪੈ ॥
हरि की कीमति ना पवै किछु कहणु न जापै ॥
भगवान का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता और इस संदर्भ में कुछ कहना भी उचित नहीं लगता।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸਾਲਾਹੀਐ ਹਰਿ ਭਗਤੀ ਰਾਪੈ ॥
गुर परसादी सालाहीऐ हरि भगती रापै ॥
जो जीव गुरु की कृपा से स्तुतिगान करता है, वह भगवान की भक्ति में ही तल्लीन रहता है।
ਸਭੁ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰਿਆ ਹੋਇਆ ਅਹੰਕਾਰੁ ਗਵਾਪੈ ॥
सभु मनु तनु हरिआ होइआ अहंकारु गवापै ॥
वह अहंकार को दूर कर देता है, जिससे उसका तन-मन सब प्रफुल्लित हो जाता है।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹਰਿ ਕਾ ਖੇਲੁ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਿਸੈ ਬੁਝਾਈ ॥੧੩॥
सभु किछु हरि का खेलु है गुरमुखि किसै बुझाई ॥१३॥
यह सबकुछ भगवान की लीला है, पर गुरु के माध्यम से ही इस तथ्य की सूझ किसी विरले की होती है॥ १३॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला ३॥
ਸਹੰਸਰ ਦਾਨ ਦੇ ਇੰਦ੍ਰੁ ਰੋਆਇਆ ॥
सहंसर दान दे इंद्रु रोआइआ ॥
देवराज इन्द्र ने गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या से धोखे से संभोग किया था, जिससे कुद्ध होकर गौतम ऋषि ने सहस्र-भगा होने का अभिशाप दिया था। इस प्रकार ईश्वर ने ही सहस्र-भगा का दण्ड देकर इन्द्र को रुलाया।
ਪਰਸ ਰਾਮੁ ਰੋਵੈ ਘਰਿ ਆਇਆ ॥
परस रामु रोवै घरि आइआ ॥
परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि का सहस्र बाहु ने वध कर दिया था। चूंकि उसने अपनी कामधेनु गाय देने से इन्कार कर दिया था। इस प्रकार परशुराम पिता की मृत्यु पर रोता हुआ घर आया।
ਅਜੈ ਸੁ ਰੋਵੈ ਭੀਖਿਆ ਖਾਇ ॥
अजै सु रोवै भीखिआ खाइ ॥
श्री रामचन्द्र जी का दादा अज अपनी दान दी लीद खाकर बड़ा दुखी हुआ।
ਐਸੀ ਦਰਗਹ ਮਿਲੈ ਸਜਾਇ ॥
ऐसी दरगह मिलै सजाइ ॥
भगवान की दरगाह में हर किसी को अपने किए कर्मों के अनुसार दण्ड मिलता है।
ਰੋਵੈ ਰਾਮੁ ਨਿਕਾਲਾ ਭਇਆ ॥ ਸੀਤਾ ਲਖਮਣੁ ਵਿਛੁੜਿ ਗਇਆ ॥
रोवै रामु निकाला भइआ ॥ सीता लखमणु विछुड़ि गइआ ॥
जब श्री रामचन्द्र जी को अयोध्या से देश-निकाला मिला था तदन्तर वन में सीता एवं लक्ष्मण से बिछुड़ गया था।