ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਦੁਪਦੇ
सोरठि महला ५ घरु २ दुपदे
सोरठि महला ५ घरु २ दुपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਗਲ ਬਨਸਪਤਿ ਮਹਿ ਬੈਸੰਤਰੁ ਸਗਲ ਦੂਧ ਮਹਿ ਘੀਆ ॥
सगल बनसपति महि बैसंतरु सगल दूध महि घीआ ॥
जैसे समस्त वनस्पति में अग्नि विद्यमान है और समूचे दूध में घी होता है,
ਊਚ ਨੀਚ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ਘਟਿ ਘਟਿ ਮਾਧਉ ਜੀਆ ॥੧॥
ऊच नीच महि जोति समाणी घटि घटि माधउ जीआ ॥१॥
वैसे ही उच्च एवं निम्न अच्छे-बुरे सब जीवों में परमात्मा की ज्योति समाई हुई है॥ १॥
ਸੰਤਹੁ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਹਿਓ ॥
संतहु घटि घटि रहिआ समाहिओ ॥
हे संतो ! घट-घट में परमात्मा सबमें समा रहा है।
ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸਰਬ ਮਹਿ ਜਲਿ ਥਲਿ ਰਮਈਆ ਆਹਿਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूरन पूरि रहिओ सरब महि जलि थलि रमईआ आहिओ ॥१॥ रहाउ ॥
वह जल एवं धरती में सर्वव्यापी है॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਨਾਨਕੁ ਜਸੁ ਗਾਵੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਓ ॥
गुण निधान नानकु जसु गावै सतिगुरि भरमु चुकाइओ ॥
नानक तो गुणों के भण्डार भगवान का ही यशगान करता है, सतगुरु ने उसका भ्रम मिटा दिया है।
ਸਰਬ ਨਿਵਾਸੀ ਸਦਾ ਅਲੇਪਾ ਸਭ ਮਹਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇਓ ॥੨॥੧॥੨੯॥
सरब निवासी सदा अलेपा सभ महि रहिआ समाइओ ॥२॥१॥२९॥
सर्वव्यापक ईश्वर सबमें समाया हुआ है लेकिन वे समस्त प्राणियों से सदा निर्लिप्त रहता है ॥२॥१॥२९॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਣਿ ਹੋਇ ਅਨੰਦਾ ਬਿਨਸੈ ਜਨਮ ਮਰਣ ਭੈ ਦੁਖੀ ॥
जा कै सिमरणि होइ अनंदा बिनसै जनम मरण भै दुखी ॥
जिस (भगवान) का सिमरन करने से आनंद प्राप्त होता है और जन्म-मरण के भय का दु:ख नाश हो जाता है।
ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਨਵ ਨਿਧਿ ਪਾਵਹਿ ਬਹੁਰਿ ਨ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭੁਖੀ ॥੧॥
चारि पदारथ नव निधि पावहि बहुरि न त्रिसना भुखी ॥१॥
चार उत्तम पदार्थ-धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष एवं नवनिधियों की उपलब्धि होती है और फिर दुबारा तुझे तृष्णा की भूख नहीं लगती ॥ १॥
ਜਾ ਕੋ ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਤੂ ਸੁਖੀ ॥
जा को नामु लैत तू सुखी ॥
जिसका नाम जपने से तू सुखी रहता है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਧਿਆਵਹੁ ਠਾਕੁਰ ਕਉ ਮਨ ਤਨ ਜੀਅਰੇ ਮੁਖੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सासि सासि धिआवहु ठाकुर कउ मन तन जीअरे मुखी ॥१॥ रहाउ ॥
हे जीव ! अपने मन, तन एवं मुँह से, अपने श्वास-श्वास से, ठाकुर जी का ही ध्यान-मनन करते रहो ॥१॥ रहाउ ॥
ਸਾਂਤਿ ਪਾਵਹਿ ਹੋਵਹਿ ਮਨ ਸੀਤਲ ਅਗਨਿ ਨ ਅੰਤਰਿ ਧੁਖੀ ॥
सांति पावहि होवहि मन सीतल अगनि न अंतरि धुखी ॥
ध्यान-मनन से तुझे शांति प्राप्त होगी, तेरा मन शीतल हो जाएगा और तेरे अन्तर्मन में तृष्णा की अग्नि प्रज्वलित नहीं होगी।
ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭੂ ਦਿਖਾਇਆ ਜਲਿ ਥਲਿ ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਰੁਖੀ ॥੨॥੨॥੩੦॥
गुर नानक कउ प्रभू दिखाइआ जलि थलि त्रिभवणि रुखी ॥२॥२॥३०॥
गुरु ने नानक को प्रभु के दर्शन समुद्र, धरती, पेड़ों एवं तीनों लोकों में करवा दिए हैं।॥२॥२॥३०॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਝੂਠ ਨਿੰਦਾ ਇਨ ਤੇ ਆਪਿ ਛਡਾਵਹੁ ॥
काम क्रोध लोभ झूठ निंदा इन ते आपि छडावहु ॥
हे ईश्वर ! काम, क्रोध, लोभ, झूठ एवं निन्दा इत्यादि से स्वयं ही मेरी मुक्ति करवा दो ।
ਇਹ ਭੀਤਰ ਤੇ ਇਨ ਕਉ ਡਾਰਹੁ ਆਪਨ ਨਿਕਟਿ ਬੁਲਾਵਹੁ ॥੧॥
इह भीतर ते इन कउ डारहु आपन निकटि बुलावहु ॥१॥
इस मन के भीतर से इन बुराइयों को निकाल कर मुझे अपने निकट आमंत्रित कर लो ॥ १॥
ਅਪੁਨੀ ਬਿਧਿ ਆਪਿ ਜਨਾਵਹੁ ॥
अपुनी बिधि आपि जनावहु ॥
अपनी विधि तू स्वयं ही मुझे बोध करवा दे।
ਹਰਿ ਜਨ ਮੰਗਲ ਗਾਵਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि जन मंगल गावहु ॥१॥ रहाउ ॥
हे भक्तजनो ! हरि के मंगल गीत गायन करो ॥ १॥ रहाउ ॥
ਬਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ਕਬਹੂ ਹੀਏ ਤੇ ਇਹ ਬਿਧਿ ਮਨ ਮਹਿ ਪਾਵਹੁ ॥
बिसरु नाही कबहू हीए ते इह बिधि मन महि पावहु ॥
हे ईश्वर ! मेरे मन में यह विधि डाल दीजिए कि मैं अपने मन से तुझे कभी विस्मृत न करूँ।
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਿਓ ਵਡਭਾਗੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਤਹਿ ਨ ਧਾਵਹੁ ॥੨॥੩॥੩੧॥
गुरु पूरा भेटिओ वडभागी जन नानक कतहि न धावहु ॥२॥३॥३१॥
हे नानक ! बड़े भाग्य से पूर्ण गुरु से भेंट हो गई है, इसलिए अब मैं इधर-उधर नही दौड़ता ॥२॥३॥३१॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਣਿ ਸਭੁ ਕਛੁ ਪਾਈਐ ਬਿਰਥੀ ਘਾਲ ਨ ਜਾਈ ॥
जा कै सिमरणि सभु कछु पाईऐ बिरथी घाल न जाई ॥
जिसका सिमरन करने से सब कुछ प्राप्त हो जाता है और मनुष्य की साधना व्यर्थ नहीं जाती;
ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਭ ਤਿਆਗਿ ਅਵਰ ਕਤ ਰਾਚਹੁ ਜੋ ਸਭ ਮਹਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥੧॥
तिसु प्रभ तिआगि अवर कत राचहु जो सभ महि रहिआ समाई ॥१॥
जो सबमें समा रहा है, उस प्रभु को छोड़कर किसी दूसरे में क्यों मग्न हो रहे हो ?॥ १॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਿਮਰਹੁ ਸੰਤ ਗੋਪਾਲਾ ॥
हरि हरि सिमरहु संत गोपाला ॥
हे गोपाल के संतो ! हरि की आराधना करो,
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹੁ ਪੂਰਨ ਹੋਵੈ ਘਾਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साधसंगि मिलि नामु धिआवहु पूरन होवै घाला ॥१॥ रहाउ ॥
सत्संगति में मिलकर हरि-नाम का भजन करो, तुम्हारी साधना साकार हो जाएगी।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਰਿ ਸਮਾਲੈ ਨਿਤਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੈ ਪ੍ਰੇਮ ਸਹਿਤ ਗਲਿ ਲਾਵੈ ॥
सारि समालै निति प्रतिपालै प्रेम सहित गलि लावै ॥
वह परमेश्वर अपने सेवकों की नित्य देखभाल एवं पालन-पोषण करता है और प्रेमपूर्वक अपने गले से लगा लेता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਰੇ ਬਿਸਰਤ ਜਗਤ ਜੀਵਨੁ ਕੈਸੇ ਪਾਵੈ ॥੨॥੪॥੩੨॥
कहु नानक प्रभ तुमरे बिसरत जगत जीवनु कैसे पावै ॥२॥४॥३२॥
नानक का कथन है कि हे प्रभु ! तुझे विस्मृत करके यह जगत कैसे जीवन प्राप्त कर सकता है॥ २ ॥ ४॥ ३२ ॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥
ਅਬਿਨਾਸੀ ਜੀਅਨ ਕੋ ਦਾਤਾ ਸਿਮਰਤ ਸਭ ਮਲੁ ਖੋਈ ॥
अबिनासी जीअन को दाता सिमरत सभ मलु खोई ॥
अविनाशी परमात्मा सब जीवों का दाता है, उसका सिमरन करने से विकारों की सारी मैल दूर हो गई है।
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਭਗਤਨ ਕਉ ਬਰਤਨਿ ਬਿਰਲਾ ਪਾਵੈ ਕੋਈ ॥੧॥
गुण निधान भगतन कउ बरतनि बिरला पावै कोई ॥१॥
वह गुणों का भण्डार अपने भक्तों की पूंजी है किन्तु कोई विरला ही उसे प्राप्त करता है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਜਪਿ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥
मेरे मन जपि गुर गोपाल प्रभु सोई ॥
हे मेरे मन ! उस गोपाल-गुरु प्रभु का जाप करो;
ਜਾ ਕੀ ਸਰਣਿ ਪਇਆਂ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਬਾਹੁੜਿ ਦੂਖੁ ਨ ਹੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा की सरणि पइआं सुखु पाईऐ बाहुड़ि दूखु न होई ॥१॥ रहाउ ॥
जिसकी शरण लेने से सुख की प्राप्ति होती है और दोबारा कदापि कोई दुःख नहीं होता।॥ १॥ रहाउ॥
ਵਡਭਾਗੀ ਸਾਧਸੰਗੁ ਪਰਾਪਤਿ ਤਿਨ ਭੇਟਤ ਦੁਰਮਤਿ ਖੋਈ ॥
वडभागी साधसंगु परापति तिन भेटत दुरमति खोई ॥
बड़ी किस्मत से संतों की संगति प्राप्त होती है, उनके साथ भेंट करने से दुर्बुद्धि नष्ट हो जाती है।