Hindi Page 844

ਮੈ ਅਵਰੁ ਗਿਆਨੁ ਨ ਧਿਆਨੁ ਪੂਜਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅੰਤਰਿ ਵਸਿ ਰਹੇ ॥
मै अवरु गिआनु न धिआनु पूजा हरि नामु अंतरि वसि रहे ॥
में किसी ज्ञान, ध्यान एवं पूजा को नहीं मानती, हरि-नाम मेरे मन में बस रहा है।

ਭੇਖੁ ਭਵਨੀ ਹਠੁ ਨ ਜਾਨਾ ਨਾਨਕਾ ਸਚੁ ਗਹਿ ਰਹੇ ॥੧॥
भेखु भवनी हठु न जाना नानका सचु गहि रहे ॥१॥
हे नानक ! मैं किसी भेष, तीर्थ एवं हठयोग को नहीं मानती, क्योंकि मैंने सत्य को ग्रहण कर लिया है॥ १॥

ਭਿੰਨੜੀ ਰੈਣਿ ਭਲੀ ਦਿਨਸ ਸੁਹਾਏ ਰਾਮ ॥
भिंनड़ी रैणि भली दिनस सुहाए राम ॥
प्रभु के प्रेम में भीगी हुई जीव-स्त्री को अपने जीवन की रातें बहुत अच्छी लगती हैं और दिन भी सुन्दर लगते हैं।

ਨਿਜ ਘਰਿ ਸੂਤੜੀਏ ਪਿਰਮੁ ਜਗਾਏ ਰਾਮ ॥
निज घरि सूतड़ीए पिरमु जगाए राम ॥
अपनी अन्तरात्मा में अज्ञान की निद्रा में सोई हुई जीव-स्त्री को प्रभु प्रेम जगा देता है।

ਨਵ ਹਾਣਿ ਨਵ ਧਨ ਸਬਦਿ ਜਾਗੀ ਆਪਣੇ ਪਿਰ ਭਾਣੀਆ ॥
नव हाणि नव धन सबदि जागी आपणे पिर भाणीआ ॥
नवयौवना नारी शब्द द्वारा जाग गई है और अपने प्रियतम को अच्छी लगने लगी है।

ਤਜਿ ਕੂੜੁ ਕਪਟੁ ਸੁਭਾਉ ਦੂਜਾ ਚਾਕਰੀ ਲੋਕਾਣੀਆ ॥
तजि कूड़ु कपटु सुभाउ दूजा चाकरी लोकाणीआ ॥
मैंने झूठ, कपट, द्वैतभाव एवं लोगों की चाकरी छोड़कर

ਮੈ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਕਾ ਹਾਰੁ ਕੰਠੇ ਸਾਚ ਸਬਦੁ ਨੀਸਾਣਿਆ ॥
मै नामु हरि का हारु कंठे साच सबदु नीसाणिआ ॥
हरि-नाम का हार अपने गले में डाल लिया है, अब सच्चे शब्द का परवाना मुझे मिल गया है।

ਕਰ ਜੋੜਿ ਨਾਨਕੁ ਸਾਚੁ ਮਾਗੈ ਨਦਰਿ ਕਰਿ ਤੁਧੁ ਭਾਣਿਆ ॥੨॥
कर जोड़ि नानकु साचु मागै नदरि करि तुधु भाणिआ ॥२॥
हे प्रभु ! नानक दोनों हाथ जोड़कर तुझसे सत्य ही माँगता है, यदि तुझे भला लगे तो कृपा-दृष्टि कर दो ॥ २॥

ਜਾਗੁ ਸਲੋਨੜੀਏ ਬੋਲੈ ਗੁਰਬਾਣੀ ਰਾਮ ॥
जागु सलोनड़ीए बोलै गुरबाणी राम ॥
हे सलोनी ! अज्ञान की निद्रा से जागकर गुरुवाणी का पाठ कर।

ਜਿਨਿ ਸੁਣਿ ਮੰਨਿਅੜੀ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ਰਾਮ ॥
जिनि सुणि मंनिअड़ी अकथ कहाणी राम ॥
जिसने मन लगाकर अकथनीय कहानी सुनी है,

ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਣੀ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝਏ ॥
अकथ कहाणी पदु निरबाणी को विरला गुरमुखि बूझए ॥
उसने अकथनीय कहानी सुनकर निर्वाण पद पा लिया है। इस तथ्य को कोई विरला गुरुमुख ही बूझता है।

ਓਹੁ ਸਬਦਿ ਸਮਾਏ ਆਪੁ ਗਵਾਏ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸੋਝੀ ਸੂਝਏ ॥
ओहु सबदि समाए आपु गवाए त्रिभवण सोझी सूझए ॥
वह शब्द में लीन होकर अपना अहंत्व दूर करके तीनों लोकों का ज्ञान प्राप्त कर लेता है।

ਰਹੈ ਅਤੀਤੁ ਅਪਰੰਪਰਿ ਰਾਤਾ ਸਾਚੁ ਮਨਿ ਗੁਣ ਸਾਰਿਆ ॥
रहै अतीतु अपर्मपरि राता साचु मनि गुण सारिआ ॥
वह अपरंपार प्रभु में लीन हुआ विरक्त बना रहता है और मन में सत्य का ही गुणगान करता रहता है।

ਓਹੁ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਸਰਬ ਠਾਈ ਨਾਨਕਾ ਉਰਿ ਧਾਰਿਆ ॥੩॥
ओहु पूरि रहिआ सरब ठाई नानका उरि धारिआ ॥३॥
हे नानक ! उसने उस परमात्मा को अपने हृदय में बसा लिया है, जो हर जगह पर बसा हुआ है। ३॥

ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਇੜੀਏ ਭਗਤਿ ਸਨੇਹੀ ਰਾਮ ॥
महलि बुलाइड़ीए भगति सनेही राम ॥
हे जीव-स्त्री ! जिस परमात्मा ने तुझे अपने महल में बुला लिया है, वह भक्ति से प्रेम करने वाला है।

ਗੁਰਮਤਿ ਮਨਿ ਰਹਸੀ ਸੀਝਸਿ ਦੇਹੀ ਰਾਮ ॥
गुरमति मनि रहसी सीझसि देही राम ॥
गुरु के उपदेश द्वारा भक्ति करने से मन में आनंद बना रहता है और शरीर अपने मनोरथ में सफल हो जाता है।

ਮਨੁ ਮਾਰਿ ਰੀਝੈ ਸਬਦਿ ਸੀਝੈ ਤ੍ਰੈ ਲੋਕ ਨਾਥੁ ਪਛਾਣਏ ॥
मनु मारि रीझै सबदि सीझै त्रै लोक नाथु पछाणए ॥
जो जीव-स्त्री मन को मारकर प्रसन्न होती है, वह शब्द द्वारा अपने मनोरथ में सफल हो जाती है। इस प्रकार वह त्रिलोकी नाथ को पहचान लेती है।

ਮਨੁ ਡੀਗਿ ਡੋਲਿ ਨ ਜਾਇ ਕਤ ਹੀ ਆਪਣਾ ਪਿਰੁ ਜਾਣਏ ॥
मनु डीगि डोलि न जाइ कत ही आपणा पिरु जाणए ॥
जो अपने प्रियतम-प्रभु को जान लेती है, उसका मन कभी भी डगमगाता नहीं और न ही कहीं ओर जाती है।

ਮੈ ਆਧਾਰੁ ਤੇਰਾ ਤੂ ਖਸਮੁ ਮੇਰਾ ਮੈ ਤਾਣੁ ਤਕੀਆ ਤੇਰਓ ॥
मै आधारु तेरा तू खसमु मेरा मै ताणु तकीआ तेरओ ॥
हे परमात्मा ! तू मेरा मालिक है, मुझे तेरा ही आसरा है और मुझे तेरा ही आत्मबल है।

ਸਾਚਿ ਸੂਚਾ ਸਦਾ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਝਗਰੁ ਨਿਬੇਰਓ ॥੪॥੨॥
साचि सूचा सदा नानक गुर सबदि झगरु निबेरओ ॥४॥२॥
हे नानक ! सत्य में लीन रहने वाला सदैव शुद्ध है, गुरु के शब्द ने सारा झगड़ा समाप्त कर दिया है।४॥ २॥

ਛੰਤ ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੪ ਮੰਗਲ
छंत बिलावलु महला ४ मंगल
छंत बिलावलु महला ४ मंगल

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੇਜੈ ਆਇਆ ਮਨੁ ਸੁਖਿ ਸਮਾਣਾ ਰਾਮ ॥
मेरा हरि प्रभु सेजै आइआ मनु सुखि समाणा राम ॥
मेरा प्रभु मेरी हृदय रूपी सेज पर आ गया है, जिससे मन सुखी हो गया है।

ਗੁਰਿ ਤੁਠੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਰੰਗਿ ਰਲੀਆ ਮਾਣਾ ਰਾਮ ॥
गुरि तुठै हरि प्रभु पाइआ रंगि रलीआ माणा राम ॥
गुरु के प्रसन्न होने पर ही मैंने प्रभु को पाया है, अब मैं उससे रंगरलियाँ मना रही हूँ।

ਵਡਭਾਗੀਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਹਰਿ ਮਸਤਕਿ ਮਾਣਾ ਰਾਮ ॥
वडभागीआ सोहागणी हरि मसतकि माणा राम ॥
वही जीव-स्त्री खुशनसीब एवं सुहागिन है, जिसके माथे पर हरि-नाम रूपी रत्न उदय है।

ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਹਰਿ ਸੋਹਾਗੁ ਹੈ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਭਾਣਾ ਰਾਮ ॥੧॥
हरि प्रभु हरि सोहागु है नानक मनि भाणा राम ॥१॥
हे नानक ! प्रभु ही मेरा सुहाग है, जो मेरे मन को भा रहा है॥ १॥

ਨਿੰਮਾਣਿਆ ਹਰਿ ਮਾਣੁ ਹੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਹਰਿ ਆਪੈ ਰਾਮ ॥
निमाणिआ हरि माणु है हरि प्रभु हरि आपै राम ॥
विनम्र एवं सम्मानहीन जीवों के लिए प्रभु ही माननीय है और प्रभु ही सबके लिए पूज्य है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ਨਿਤ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਾਪੈ ਰਾਮ ॥
गुरमुखि आपु गवाइआ नित हरि हरि जापै राम ॥
जिसने गुरु के माध्यम से अपने अहंत्व को दूर कर लिया है, वह नित्य प्रभु का नाम जपता रहता है।

ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ਸੋ ਕਰੈ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਹਰਿ ਰਾਪੈ ਰਾਮ ॥
मेरे हरि प्रभ भावै सो करै हरि रंगि हरि रापै राम ॥
मेरे प्रभु को जो अच्छा लगता है, वही करता है। इसलिए वह हरि के रंग में ही लीन रहता है।

ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਸਹਜਿ ਮਿਲਾਇਆ ਹਰਿ ਰਸਿ ਹਰਿ ਧ੍ਰਾਪੈ ਰਾਮ ॥੨॥
जनु नानकु सहजि मिलाइआ हरि रसि हरि ध्रापै राम ॥२॥
दास नानक को प्रभु ने सहज ही अपने साथ मिला लिया है और वह हरि-रस का पान करके तृप्त रहता है।॥ २ ॥

ਮਾਣਸ ਜਨਮਿ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਰਾਵਣ ਵੇਰਾ ਰਾਮ ॥
माणस जनमि हरि पाईऐ हरि रावण वेरा राम ॥
मानव जन्म में ही भगवान को पाया जा सकता है, इसलिए यह हरि-स्मरण का सुनहरी समय है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲੁ ਸੋਹਾਗਣੀ ਰੰਗੁ ਹੋਇ ਘਣੇਰਾ ਰਾਮ ॥
गुरमुखि मिलु सोहागणी रंगु होइ घणेरा राम ॥
गुरु के माध्यम से जीवात्मा परमात्मा से मिलकर सुहागिन बन जाती है और बड़ा आनंद प्राप्त करती है।

ਜਿਨ ਮਾਣਸ ਜਨਮਿ ਨ ਪਾਇਆ ਤਿਨੑ ਭਾਗੁ ਮੰਦੇਰਾ ਰਾਮ ॥
जिन माणस जनमि न पाइआ तिन्ह भागु मंदेरा राम ॥
जिन्होंने मनुष्य जन्म में भगवान को प्राप्त नहीं किया, यह उनका दुर्भाग्य है।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਾਖੁ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕੁ ਜਨੁ ਤੇਰਾ ਰਾਮ ॥੩॥
हरि हरि हरि हरि राखु प्रभ नानकु जनु तेरा राम ॥३॥
हे प्रभु ! नानक तेरा दास है, अपनी शरण में रखो ॥ ३॥

ਗੁਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਅਗਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਮਨੁ ਤਨੁ ਰੰਗਿ ਭੀਨਾ ਰਾਮ ॥
गुरि हरि प्रभु अगमु द्रिड़ाइआ मनु तनु रंगि भीना राम ॥
गुरु ने ईश्वर का नाम मुझे दृढ़ करा दिया है, जिससे मन-तन उसके रंग में भीग गया है।

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