ਬਿਖਿਆਸਕਤ ਰਹਿਓ ਨਿਸਿ ਬਾਸੁਰ ਕੀਨੋ ਅਪਨੋ ਭਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बिखिआसकत रहिओ निसि बासुर कीनो अपनो भाइओ ॥१॥ रहाउ ॥
दिन-रात विषय-विकारों में आसक्त रहकर अपनी मनमर्जी करते रहे ॥१॥रहाउ॥।
ਗੁਰ ਉਪਦੇਸੁ ਸੁਨਿਓ ਨਹਿ ਕਾਨਨਿ ਪਰ ਦਾਰਾ ਲਪਟਾਇਓ ॥
गुर उपदेसु सुनिओ नहि काननि पर दारा लपटाइओ ॥
गुरु के उपदेश को कान लगाकर सुना नहीं और पराई नारी में ही लिपटे रहे।
ਪਰ ਨਿੰਦਾ ਕਾਰਨਿ ਬਹੁ ਧਾਵਤ ਸਮਝਿਓ ਨਹ ਸਮਝਾਇਓ ॥੧॥
पर निंदा कारनि बहु धावत समझिओ नह समझाइओ ॥१॥
पराई निन्दा की वजह से बहुत भागदौड़ की परन्तु अच्छी बात समझाने पर भी समझ नहीं पाए ॥१॥
ਕਹਾ ਕਹਉ ਮੈ ਅਪੁਨੀ ਕਰਨੀ ਜਿਹ ਬਿਧਿ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਓ ॥
कहा कहउ मै अपुनी करनी जिह बिधि जनमु गवाइओ ॥
मैं अपने कर्म किस तरह बताऊँ किं यह जन्म कैसे गंवा दिया है।
ਕਹਿ ਨਾਨਕ ਸਭ ਅਉਗਨ ਮੋ ਮਹਿ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਸਰਨਾਇਓ ॥੨॥੪॥੩॥੧੩॥੧੩੯॥੪॥੧੫੯॥
कहि नानक सभ अउगन मो महि राखि लेहु सरनाइओ ॥२॥४॥३॥१३॥१३९॥४॥१५९॥
नानक कहते हैं कि हे ईश्वर ! मुझ में अवगुण ही अवगुण हैं, अपनी शरण में बचा लो ॥२॥४॥३॥१३॥१३६॥४॥१५६॥
ਰਾਗੁ ਸਾਰਗ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧
रागु सारग असटपदीआ महला १ घरु १
रागु सारग असटपदीआ महला १ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਕਿਉ ਜੀਵਾ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ॥
हरि बिनु किउ जीवा मेरी माई ॥
हे माँ ! ईश्वर के बिना मेरा जीना संभव नहीं।
ਜੈ ਜਗਦੀਸ ਤੇਰਾ ਜਸੁ ਜਾਚਉ ਮੈ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਰਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जै जगदीस तेरा जसु जाचउ मै हरि बिनु रहनु न जाई ॥१॥ रहाउ ॥
हे जगदीश्वर ! तेरी जय है।मैं तेरा ही यश चाहता हूँ, तेरे बिना मुझसे रहा नहीं जाता॥१॥रहाउ॥।
ਹਰਿ ਕੀ ਪਿਆਸ ਪਿਆਸੀ ਕਾਮਨਿ ਦੇਖਉ ਰੈਨਿ ਸਬਾਈ ॥
हरि की पिआस पिआसी कामनि देखउ रैनि सबाई ॥
प्रभु-मिलन की प्यास में मैं प्यासी कामिनी रात भर उसी का रास्ता देखती हूँ।
ਸ੍ਰੀਧਰ ਨਾਥ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਲੀਨਾ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਨੈ ਪੀਰ ਪਰਾਈ ॥੧॥
स्रीधर नाथ मेरा मनु लीना प्रभु जानै पीर पराई ॥१॥
उस नाथ ने मेरा मन वश में कर लिया है और वह प्रभु ही मेरे दिल का दर्द जानता है॥१॥
ਗਣਤ ਸਰੀਰਿ ਪੀਰ ਹੈ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਪਾਂਈ ॥
गणत सरीरि पीर है हरि बिनु गुर सबदी हरि पांई ॥
प्रभु के बिना यह शरीर पीड़ा से भरा हुआ है और गुरु के उपदेश से ही प्रभु को पाया जाता है।
ਹੋਹੁ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਹਾਂ ਸਮਾਈ ॥੨॥
होहु दइआल क्रिपा करि हरि जीउ हरि सिउ रहां समाई ॥२॥
हे प्रभु ! दयालु होकर मुझ पर कृपा करो, ताकि तुझ में ही विलीन हो जाऊँ ॥२ ॥
ਐਸੀ ਰਵਤ ਰਵਹੁ ਮਨ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਈ ॥
ऐसी रवत रवहु मन मेरे हरि चरणी चितु लाई ॥
हे मेरे मन ! यही कार्य करो किं परमात्मा के चरणों में चित लगा रहे।
ਬਿਸਮ ਭਏ ਗੁਣ ਗਾਇ ਮਨੋਹਰ ਨਿਰਭਉ ਸਹਜਿ ਸਮਾਈ ॥੩॥
बिसम भए गुण गाइ मनोहर निरभउ सहजि समाई ॥३॥
उसके मनोहर गुण गाकर हम आनंद से विस्मित हो गए और सहज स्वाभाविक प्रभु में लीन हो गए॥३॥
ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਧੁਨਿ ਨਿਹਚਲ ਘਟੈ ਨ ਕੀਮਤਿ ਪਾਈ ॥
हिरदै नामु सदा धुनि निहचल घटै न कीमति पाई ॥
इस हृदय में सदा हरि-नाम की निश्चल ध्वनि बजती रहती है, जो न तो घटती है और इसकी महत्ता अवर्णनीय है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ਨਿਰਧਨੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥੪॥
बिनु नावै सभु कोई निरधनु सतिगुरि बूझ बुझाई ॥४॥
सच्चे गुरु ने भेद बताया है कि हरि-नाम के बिना प्रत्येक व्यक्ति निर्धन है॥४॥
ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਾਨ ਭਏ ਸੁਨਿ ਸਜਨੀ ਦੂਤ ਮੁਏ ਬਿਖੁ ਖਾਈ ॥
प्रीतम प्रान भए सुनि सजनी दूत मुए बिखु खाई ॥
हे सजनी ! जरा सुनोः प्रियतम प्राण मेरे हो गए हैं और कामादिक विकार विष खाकर समाप्त हो गए हैं।
ਜਬ ਕੀ ਉਪਜੀ ਤਬ ਕੀ ਤੈਸੀ ਰੰਗੁਲ ਭਈ ਮਨਿ ਭਾਈ ॥੫॥
जब की उपजी तब की तैसी रंगुल भई मनि भाई ॥५॥
जब से प्रेम उत्पन्न हुआ है, वह उतना ही है और मेरा मन उसके प्रेम में आसक्त है॥५॥
ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ਸਦਾ ਲਿਵ ਹਰਿ ਸਿਉ ਜੀਵਾਂ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਈ ॥
सहज समाधि सदा लिव हरि सिउ जीवां हरि गुन गाई ॥
सहज स्वाभाविक मेरी परमात्मा से लगन लगी हुई है और उसके गुण गाकर जी रही हूँ।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਰਤਾ ਬੈਰਾਗੀ ਨਿਜ ਘਰਿ ਤਾੜੀ ਲਾਈ ॥੬॥
गुर कै सबदि रता बैरागी निज घरि ताड़ी लाई ॥६॥
गुरु के उपदेश में लीन होकर वैराग्यवान हो गई हूँ और सच्चे घर में ही ध्यान लगाया हुआ है॥६॥
ਸੁਧ ਰਸ ਨਾਮੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ਨਿਜ ਘਰਿ ਤਤੁ ਗੁਸਾਂਈਂ ॥
सुध रस नामु महा रसु मीठा निज घरि ततु गुसांईं ॥
अमृतमय हरि-नाम ही मुझे मीठा महारस लगा है और अन्तर्मन में ही मालिक प्राप्त हो गया है।
ਤਹ ਹੀ ਮਨੁ ਜਹ ਹੀ ਤੈ ਰਾਖਿਆ ਐਸੀ ਗੁਰਮਤਿ ਪਾਈ ॥੭॥
तह ही मनु जह ही तै राखिआ ऐसी गुरमति पाई ॥७॥
गुरु से ऐसी शिक्षा प्राप्त की कि जहाँ पर मन को टिकाया था, वहाँ पर ही टिका हुआ है।॥७॥
ਸਨਕ ਸਨਾਦਿ ਬ੍ਰਹਮਾਦਿ ਇੰਦ੍ਰਾਦਿਕ ਭਗਤਿ ਰਤੇ ਬਨਿ ਆਈ ॥
सनक सनादि ब्रहमादि इंद्रादिक भगति रते बनि आई ॥
सनक-सनंदन, ब्रह्मा, इन्द्र इत्यादि परमात्मा की भक्ति तें लीन रहकर सफल हुए।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਘਰੀ ਨ ਜੀਵਾਂ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਵਡਾਈ ॥੮॥੧॥
नानक हरि बिनु घरी न जीवां हरि का नामु वडाई ॥८॥१॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि परमेश्वर के बिना घड़ी भर भी जीना दूभर है, क्योंकि परमेश्वर के नाम में ही सब बड़ाई है॥८॥१॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सारग महला १ ॥
सारग महला १ ॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਕਿਉ ਧੀਰੈ ਮਨੁ ਮੇਰਾ ॥
हरि बिनु किउ धीरै मनु मेरा ॥
परमेश्वर के बिना मेरे मन को किस तरह धैर्य हो सकता है ?
ਕੋਟਿ ਕਲਪ ਕੇ ਦੂਖ ਬਿਨਾਸਨ ਸਾਚੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇ ਨਿਬੇਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कोटि कलप के दूख बिनासन साचु द्रिड़ाइ निबेरा ॥१॥ रहाउ ॥
वह करोड़ों कल्पों के दुखों को दूर करने वाला है और सत्य में विश्वस्त करके ही फैसला करता है॥१॥रहाउ॥।
ਕ੍ਰੋਧੁ ਨਿਵਾਰਿ ਜਲੇ ਹਉ ਮਮਤਾ ਪ੍ਰੇਮੁ ਸਦਾ ਨਉ ਰੰਗੀ ॥
क्रोधु निवारि जले हउ ममता प्रेमु सदा नउ रंगी ॥
क्रोध का निवारण हुआ तो अहम्-भावना एवं ममत्व जल गए और मन में नवरंग प्रेम बस गया।
ਅਨਭਉ ਬਿਸਰਿ ਗਏ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਚਿਆ ਹਰਿ ਨਿਰਮਾਇਲੁ ਸੰਗੀ ॥੧॥
अनभउ बिसरि गए प्रभु जाचिआ हरि निरमाइलु संगी ॥१॥
प्रभु के पास प्रार्थना की तो सभी भय दूर हो गए, अब निर्मल प्रभु साथ ही रहता है।॥१॥
ਚੰਚਲ ਮਤਿ ਤਿਆਗਿ ਭਉ ਭੰਜਨੁ ਪਾਇਆ ਏਕ ਸਬਦਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
चंचल मति तिआगि भउ भंजनु पाइआ एक सबदि लिव लागी ॥
एक शब्द में लगन लगाई तो चंचल बुद्धि छोड़ दी, इस तरह भय नाशक प्रभु को पा लिया।
ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖਿ ਤ੍ਰਿਖਾ ਨਿਵਾਰੀ ਹਰਿ ਮੇਲਿ ਲਏ ਬਡਭਾਗੀ ॥੨॥
हरि रसु चाखि त्रिखा निवारी हरि मेलि लए बडभागी ॥२॥
हरि-नाम रस को चखकर अपनी प्यास बुझा ली और अहोभाग्य से परमात्मा से मिलन हो गया ॥२॥
ਅਭਰਤ ਸਿੰਚਿ ਭਏ ਸੁਭਰ ਸਰ ਗੁਰਮਤਿ ਸਾਚੁ ਨਿਹਾਲਾ ॥
अभरत सिंचि भए सुभर सर गुरमति साचु निहाला ॥
खाली पड़ा मन रूपी सरोवर पूर्णतया भर गया है और गुरु की शिक्षा से परम सत्य को देखकर निहाल हो गया है।