ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਕੀ ਮਨ ਰੁਚੈ ॥
हरि के नाम की मन रुचै ॥
मन में हरिनाम की चाहत बनी हो तो
ਕੋਟਿ ਸਾਂਤਿ ਅਨੰਦ ਪੂਰਨ ਜਲਤ ਛਾਤੀ ਬੁਝੈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
कोटि सांति अनंद पूरन जलत छाती बुझै ॥ रहाउ ॥
करोड़ों सुख-शान्तियों एवं पूर्ण आनंद की प्राप्ति होती है तथा दिल की जलन बुझ जाती है।॥ रहाउ॥
ਸੰਤ ਮਾਰਗਿ ਚਲਤ ਪ੍ਰਾਨੀ ਪਤਿਤ ਉਧਰੇ ਮੁਚੈ ॥
संत मारगि चलत प्रानी पतित उधरे मुचै ॥
संतों के मार्ग चलने पर पतित प्राणियों का उद्धार हो गया है,”
ਰੇਨੁ ਜਨ ਕੀ ਲਗੀ ਮਸਤਕਿ ਅਨਿਕ ਤੀਰਥ ਸੁਚੈ ॥੧॥
रेनु जन की लगी मसतकि अनिक तीरथ सुचै ॥१॥
(अगर) संतजनों की चरणरज मस्तक पर लग गई तो अनेकों तीर्थ स्नान की शुद्धता का फल मिल जाता है।॥ १॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਧਿਆਨ ਭੀਤਰਿ ਘਟਿ ਘਟਹਿ ਸੁਆਮੀ ਸੁਝੈ ॥
चरन कमल धिआन भीतरि घटि घटहि सुआमी सुझै ॥
मन में प्रभु-चरणों का ही ध्यान है और घट-घट में वह स्वामी व्याप्त है।
ਸਰਨਿ ਦੇਵ ਅਪਾਰ ਨਾਨਕ ਬਹੁਰਿ ਜਮੁ ਨਹੀ ਲੁਝੈ ॥੨॥੭॥੧੫॥
सरनि देव अपार नानक बहुरि जमु नही लुझै ॥२॥७॥१५॥
नानक का कथन है कि देवाधिदेव प्रभु की शरण में आने से यम दोबारा दुखी नहीं करते॥ २॥ ७॥ १५॥
ਕੇਦਾਰਾ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੫
केदारा छंत महला ५
केदारा छंत महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
वह अद्वितीय परमेश्वर जिसका वाचक ओम् है, केवल (ऑकार स्वरूप) एक है, सतगुरु की कृपा से प्राप्त होता है।
ਮਿਲੁ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪਿਆਰਿਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥
मिलु मेरे प्रीतम पिआरिआ ॥ रहाउ ॥
हे मेरे प्रियतम, प्यारे प्रभु ! मुझे आ मिलो॥ रहाउ॥
ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਸਰਬਤ੍ਰ ਮੈ ਸੋ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥
पूरि रहिआ सरबत्र मै सो पुरखु बिधाता ॥
वह आदिपुरुष विधाता सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है।
ਮਾਰਗੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਹਰਿ ਕੀਆ ਸੰਤਨ ਸੰਗਿ ਜਾਤਾ ॥
मारगु प्रभ का हरि कीआ संतन संगि जाता ॥
प्रभु को पाने का मार्ग उसने स्वयं ही बनाया है और संतजनों की संगत में ही वह जाना जाता है।
ਸੰਤਨ ਸੰਗਿ ਜਾਤਾ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ਘਟਿ ਘਟਿ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿਆ ॥
संतन संगि जाता पुरखु बिधाता घटि घटि नदरि निहालिआ ॥
संतजनों के संग ही परमपुरुष विधाता ज्ञात होता है और घट-घट में वही दिखाई देता है।
ਜੋ ਸਰਨੀ ਆਵੈ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਵੈ ਤਿਲੁ ਨਹੀ ਭੰਨੈ ਘਾਲਿਆ ॥
जो सरनी आवै सरब सुख पावै तिलु नही भंनै घालिआ ॥
जो शरण में आता है, वह सर्व सुख पाता है और उसकी सेवा निष्फल नहीं होती।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਗਾਏ ਸਹਜ ਸੁਭਾਏ ਪ੍ਰੇਮ ਮਹਾ ਰਸ ਮਾਤਾ ॥
हरि गुण निधि गाए सहज सुभाए प्रेम महा रस माता ॥
जिसने सहज-स्वभाव ईश्वर के गुण गाए हैं, वह प्रेम रूपी महारस में ही मस्त रहता है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ਤੂ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥੧॥
नानक दास तेरी सरणाई तू पूरन पुरखु बिधाता ॥१॥
हे परमेश्वर ! दास नानक तेरी शरण में है, केवल तू ही पूर्ण परमपुरुष विधाता है॥ १॥
ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਜਨ ਬੇਧਿਆ ਸੇ ਆਨ ਕਤ ਜਾਹੀ ॥
हरि प्रेम भगति जन बेधिआ से आन कत जाही ॥
भक्त तो प्रभु की प्रेम-भक्ति से बिंध गया है, फिर अन्य कहीं जा सकता है।
ਮੀਨੁ ਬਿਛੋਹਾ ਨਾ ਸਹੈ ਜਲ ਬਿਨੁ ਮਰਿ ਪਾਹੀ ॥
मीनु बिछोहा ना सहै जल बिनु मरि पाही ॥
जिस प्रकार मछली वियोग सह नहीं पाती और जल बिना मर ही जाती है,”
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਕਿਉ ਰਹੀਐ ਦੂਖ ਕਿਨਿ ਸਹੀਐ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਬੂੰਦ ਪਿਆਸਿਆ ॥
हरि बिनु किउ रहीऐ दूख किनि सहीऐ चात्रिक बूंद पिआसिआ ॥
वैसे ही प्रभु बिना क्योंकर रहा जा सकता है, दुख कैसे सहा जा सकता है, पपीहा बिन बूंद प्यासा ही मर जाता है।
ਕਬ ਰੈਨਿ ਬਿਹਾਵੈ ਚਕਵੀ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ਸੂਰਜ ਕਿਰਣਿ ਪ੍ਰਗਾਸਿਆ ॥
कब रैनि बिहावै चकवी सुखु पावै सूरज किरणि प्रगासिआ ॥
कब रात्रि व्यतीत होगी, चकवी को सूर्य-किरणों का उजाला होने से परम सुख प्राप्त होता है।
ਹਰਿ ਦਰਸਿ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ਦਿਨਸੁ ਸਭਾਗਾ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਹੀ ॥
हरि दरसि मनु लागा दिनसु सभागा अनदिनु हरि गुण गाही ॥
मन प्रभु-दर्शन की लालसा में लीन है, वह दिन खुशनसीब है, जब रात-दिन ईश्वर का ही गुणानुवाद किया है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਕਤ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਪ੍ਰਾਣ ਟਿਕਾਹੀ ॥੨॥
नानक दासु कहै बेनंती कत हरि बिनु प्राण टिकाही ॥२॥
दास नानक विनती करते हैं कि प्रभु बिन प्राण कैसे टिक सकते हैं।॥२॥
ਸਾਸ ਬਿਨਾ ਜਿਉ ਦੇਹੁਰੀ ਕਤ ਸੋਭਾ ਪਾਵੈ ॥
सास बिना जिउ देहुरी कत सोभा पावै ॥
जैसे श्वास बिना शरीर को शोभा प्राप्त नहीं होती,”
ਦਰਸ ਬਿਹੂਨਾ ਸਾਧ ਜਨੁ ਖਿਨੁ ਟਿਕਣੁ ਨ ਆਵੈ ॥
दरस बिहूना साध जनु खिनु टिकणु न आवै ॥
वैसे ही दर्शन विहीन साधुजन पल भर टिक नहीं पाते।
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਜੋ ਰਹਣਾ ਨਰਕੁ ਸੋ ਸਹਣਾ ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ॥
हरि बिनु जो रहणा नरकु सो सहणा चरन कमल मनु बेधिआ ॥
मन प्रभु-चरणों में ही बिंधा हुआ है, अतः प्रभु बिना रहना तो नरक भोगना है।
ਹਰਿ ਰਸਿਕ ਬੈਰਾਗੀ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਕਤਹੁ ਨ ਜਾਇ ਨਿਖੇਧਿਆ ॥
हरि रसिक बैरागी नामि लिव लागी कतहु न जाइ निखेधिआ ॥
वैराग्यवान एवं प्रभु का रसिया, जिसकी नाम में लगन लगी रहती है, उसका तिरस्कार नहीं किया जा सकता।
ਹਰਿ ਸਿਉ ਜਾਇ ਮਿਲਣਾ ਸਾਧਸੰਗਿ ਰਹਣਾ ਸੋ ਸੁਖੁ ਅੰਕਿ ਨ ਮਾਵੈ ॥
हरि सिउ जाइ मिलणा साधसंगि रहणा सो सुखु अंकि न मावै ॥
ईश्वर से मिलना, साधु-पुरुषों की संगत में रहने का सच्चा सुख अन्तर में समाया नहीं जा सकता।
ਹੋਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਨਾਨਕ ਕੇ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਚਰਨਹ ਸੰਗਿ ਸਮਾਵੈ ॥੩॥
होहु क्रिपाल नानक के सुआमी हरि चरनह संगि समावै ॥३॥
हे नानक के स्वामी ! कृपालु हो जाओ ताकि तेरे चरणों में लीन रहूँ॥ ३॥
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲੇ ਹਰਿ ਕਰੁਣਾ ਧਾਰੇ ॥
खोजत खोजत प्रभ मिले हरि करुणा धारे ॥
खोजते-खोजते करुणामय प्रभु से साक्षात्कार हुआ है।
ਨਿਰਗੁਣੁ ਨੀਚੁ ਅਨਾਥੁ ਮੈ ਨਹੀ ਦੋਖ ਬੀਚਾਰੇ ॥
निरगुणु नीचु अनाथु मै नही दोख बीचारे ॥
मैं गुणविहीन, नीच व अनाथ हूँ, पर उसने मेरे दोषों की ओर ध्यान नहीं दिया।
ਨਹੀ ਦੋਖ ਬੀਚਾਰੇ ਪੂਰਨ ਸੁਖ ਸਾਰੇ ਪਾਵਨ ਬਿਰਦੁ ਬਖਾਨਿਆ ॥
नही दोख बीचारे पूरन सुख सारे पावन बिरदु बखानिआ ॥
उसने दोषों की ओर ध्यान न देकर भी सब सुख प्रदान किए हैं और पावन करना उसका धर्म-स्वभाव माना जाता है।
ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਸੁਨਿ ਅੰਚਲੋੁ ਗਹਿਆ ਘਟਿ ਘਟਿ ਪੂਰ ਸਮਾਨਿਆ ॥
भगति वछलु सुनि अंचलो गहिआ घटि घटि पूर समानिआ ॥
यह सुनकर कि वह अपने भक्तों को प्यार करता है, मैंने आँचल को पकड़ लिया है। वह पूरी तरह से हर दिल में प्रवेश कर रहा है।
ਸੁਖ ਸਾਗਰੋੁ ਪਾਇਆ ਸਹਜ ਸੁਭਾਇਆ ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖ ਹਾਰੇ ॥
सुख सागरो पाइआ सहज सुभाइआ जनम मरन दुख हारे ॥
मैंने सहज-स्वभाव सुख-सागर परमेश्वर को पा लिया है, जिससे जन्म-मरण का दुख निवृत्त हो गया है।
ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੀਨੇ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਅਪਨੇ ਰਾਮ ਨਾਮ ਉਰਿ ਹਾਰੇ ॥੪॥੧॥
करु गहि लीने नानक दास अपने राम नाम उरि हारे ॥४॥१॥
नानक का कथन है कि प्रभु ने हाथ थमाकर दास को अपने साथ मिला लिया है, उसने हृदय में राम-नाम की माला धारण कर ली है॥ ४॥ १॥