ਭੂਲੇ ਸਿਖ ਗੁਰੂ ਸਮਝਾਏ ॥
भूले सिख गुरू समझाए ॥
अगर शिष्य से भूल हो जाए तो गुरु उसे समझा देता है,
ਉਝੜਿ ਜਾਦੇ ਮਾਰਗਿ ਪਾਏ ॥
उझड़ि जादे मारगि पाए ॥
अगर वह गलत रास्ते पर जाता है तो उसे सच्चा मार्ग प्रदान करता है।
ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਸੇਵਿ ਸਦਾ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਸੰਗਿ ਸਖਾਤਾ ਹੇ ॥੧੩॥
तिसु गुर सेवि सदा दिनु राती दुख भंजन संगि सखाता हे ॥१३॥
उस गुरु की सदैव सेवा करो, जो सब दुख मिटाने वाला, सच्चा साथी एवं शुभचिन्तक है ॥१३॥
ਗੁਰ ਕੀ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਕਿਆ ਪ੍ਰਾਣੀ ॥
गुर की भगति करहि किआ प्राणी ॥
साधारण प्राणी गुरु की भक्ति क्या कर सकता है?
ਬ੍ਰਹਮੈ ਇੰਦ੍ਰਿ ਮਹੇਸਿ ਨ ਜਾਣੀ ॥
ब्रहमै इंद्रि महेसि न जाणी ॥
जब ब्रह्मा, विष्णु एवं शिवशंकर ने भेद को नहीं समझा।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਅਲਖੁ ਕਹਹੁ ਕਿਉ ਲਖੀਐ ਜਿਸੁ ਬਖਸੇ ਤਿਸਹਿ ਪਛਾਤਾ ਹੇ ॥੧੪॥
सतिगुरु अलखु कहहु किउ लखीऐ जिसु बखसे तिसहि पछाता हे ॥१४॥
सतगुरु अदृष्ट है, बताओ उसे कैसे जाना जा सकता है, जिस पर कृपा करता है, उसने उसे पहचान लिया है ॥१४॥
ਅੰਤਰਿ ਪ੍ਰੇਮੁ ਪਰਾਪਤਿ ਦਰਸਨੁ ॥
अंतरि प्रेमु परापति दरसनु ॥
जिसके मन में प्रेम होता है, उसे दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
ਗੁਰਬਾਣੀ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸੁ ਪਰਸਨੁ ॥
गुरबाणी सिउ प्रीति सु परसनु ॥
जिसकी गुरु की वाणी से प्रीति होती है, वही चरणों का स्पर्श पाता है।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਿਰਮਲ ਜੋਤਿ ਸਬਾਈ ਘਟਿ ਦੀਪਕੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ਹੇ ॥੧੫॥
अहिनिसि निरमल जोति सबाई घटि दीपकु गुरमुखि जाता हे ॥१५॥
परमात्मा की निर्मल ज्योति सब में दिन-रात आलोकित है और गुरुमुख ने यह ज्योति रूपी दीपक ह्रदय में जान लिया है॥ १५॥
ਭੋਜਨ ਗਿਆਨੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ॥
भोजन गिआनु महा रसु मीठा ॥
ज्ञान रूपी भोजन बहुत ही मीठा रस है,
ਜਿਨਿ ਚਾਖਿਆ ਤਿਨਿ ਦਰਸਨੁ ਡੀਠਾ ॥
जिनि चाखिआ तिनि दरसनु डीठा ॥
जिसने इसे चख लिया है, उसने दर्शन कर लिए हैं।
ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਮਿਲੇ ਬੈਰਾਗੀ ਮਨੁ ਮਨਸਾ ਮਾਰਿ ਸਮਾਤਾ ਹੇ ॥੧੬॥
दरसनु देखि मिले बैरागी मनु मनसा मारि समाता हे ॥१६॥
वैरागी पुरुष प्रभु-दर्शन करके उससे ही मिल जाता है और अपनी इच्छाओं को त्याग कर सत्य में विलीन हो जाता है।१६ ।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਪਰਧਾਨਾ ॥
सतिगुरु सेवहि से परधाना ॥
सतगुरु की उपासना करने वाले ही सर्वश्रेष्ठ हैं और
ਤਿਨ ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਨਾ ॥
तिन घट घट अंतरि ब्रहमु पछाना ॥
उन्होंने घट-घट में ब्रह् को पहचान लिया है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਸੁ ਹਰਿ ਜਨ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਦੀਜੈ ਜਿਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਤਾ ਹੇ ॥੧੭॥੫॥੧੧॥
नानक हरि जसु हरि जन की संगति दीजै जिन सतिगुरु हरि प्रभु जाता हे ॥१७॥५॥११॥
नानक का कथन है कि जिन्होंने सतगुरु-प्रभु को जान लिया है, मुझे हरि यश एवं उन भक्तजनों की संगतेि प्रदान करो॥ १७॥ ५॥ ११॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥
ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬ ਸਿਰਜਣਹਾਰੇ ॥
साचे साहिब सिरजणहारे ॥
परम-सत्य परमेश्वर ही सृजनहार है,
ਜਿਨਿ ਧਰ ਚਕ੍ਰ ਧਰੇ ਵੀਚਾਰੇ ॥
जिनि धर चक्र धरे वीचारे ॥
जिसने सोच-विचार कर चक्राकार पृथ्वी को धारण किया हुआ है।
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਸਾਚਾ ਵੇਪਰਵਾਹਾ ਹੇ ॥੧॥
आपे करता करि करि वेखै साचा वेपरवाहा हे ॥१॥
वह स्वयं ही रचना करके देखरेख करता है, लेकिन सच्चा प्रभु फिर भी बेपरवाह है॥ १॥
ਵੇਕੀ ਵੇਕੀ ਜੰਤ ਉਪਾਏ ॥
वेकी वेकी जंत उपाए ॥
उसने भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव पैदा किए हैं,
ਦੁਇ ਪੰਦੀ ਦੁਇ ਰਾਹ ਚਲਾਏ ॥
दुइ पंदी दुइ राह चलाए ॥
उसने गुरुमुख एवं मनमुख दो प्रकार के जीव पैदा करके अच्छाई एवं बुराई रूपी दो मार्ग चलाए हैं।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਵਿਣੁ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਲਾਹਾ ਹੇ ॥੨॥
गुर पूरे विणु मुकति न होई सचु नामु जपि लाहा हे ॥२॥
पूर्ण गुरु के बिना किसी की मुक्ति नहीं होती, ईश्वर का नाम जपने से ही लाभ होता है।॥ २॥
ਪੜਹਿ ਮਨਮੁਖ ਪਰੁ ਬਿਧਿ ਨਹੀ ਜਾਨਾ ॥
पड़हि मनमुख परु बिधि नही जाना ॥
मनमुख पाठ तो करता है किन्तु विधि को नहीं जानता।
ਨਾਮੁ ਨ ਬੂਝਹਿ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਨਾ ॥
नामु न बूझहि भरमि भुलाना ॥
वह नाम के रहस्य को नहीं बूझता अपितु भ्रम में ही भटकता है।
ਲੈ ਕੈ ਵਢੀ ਦੇਨਿ ਉਗਾਹੀ ਦੁਰਮਤਿ ਕਾ ਗਲਿ ਫਾਹਾ ਹੇ ॥੩॥
लै कै वढी देनि उगाही दुरमति का गलि फाहा हे ॥३॥
जो लोग रिश्वत लेकर झूठी गवाही देते हैं, उनके गले में दुर्मति की फांसी पड़ जाती है अर्थात् उनकी बुद्धि खोटी हो जाती है। ३॥
ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ੍ਰ ਪੜਹਿ ਪੁਰਾਣਾ ॥
सिम्रिति सासत्र पड़हि पुराणा ॥
कुछ व्यक्ति स्मृतियाँ, शास्त्र एवं पुराण पढ़ते रहते हैं,
ਵਾਦੁ ਵਖਾਣਹਿ ਤਤੁ ਨ ਜਾਣਾ ॥
वादु वखाणहि ततु न जाणा ॥
वे वाद-विवाद करते हैं परन्तु सत्यशील तत्व को नहीं समझते।
ਵਿਣੁ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤਤੁ ਨ ਪਾਈਐ ਸਚ ਸੂਚੇ ਸਚੁ ਰਾਹਾ ਹੇ ॥੪॥
विणु गुर पूरे ततु न पाईऐ सच सूचे सचु राहा हे ॥४॥
पूर्ण गुरु के बिना परम तत्व की प्राप्ति नहीं होती, सत्यशील सत्य के मार्ग पर ही चलते हैं।॥ ४॥
ਸਭ ਸਾਲਾਹੇ ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਆਖੈ ॥
सभ सालाहे सुणि सुणि आखै ॥
सभी लोग स्तुति करते हैं और सुन-सुनकर गुण सुनाते रहते हैं।
ਆਪੇ ਦਾਨਾ ਸਚੁ ਪਰਾਖੈ ॥
आपे दाना सचु पराखै ॥
वह चतुर एवं सच्चा प्रभु स्वयं ही उनकी परख करता है।
ਜਿਨ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦੁ ਸਲਾਹਾ ਹੇ ॥੫॥
जिन कउ नदरि करे प्रभु अपनी गुरमुखि सबदु सलाहा हे ॥५॥
जिन पर प्रभु अपनी कृपा-दृष्टि करता है, वह गुरु के सान्निध्य में शब्द की स्तुति करता रहता है। ५॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਆਖੈ ਕੇਤੀ ਬਾਣੀ ॥
सुणि सुणि आखै केती बाणी ॥
सुन-सुनकर कितनी ही दुनिया बोलती रहती है लेकिन
ਸੁਣਿ ਕਹੀਐ ਕੋ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਣੀ ॥
सुणि कहीऐ को अंतु न जाणी ॥
सुनने एवं बोलने से कोई भी ईश्वर का रहस्य नहीं जान सका।
ਜਾ ਕਉ ਅਲਖੁ ਲਖਾਏ ਆਪੇ ਅਕਥ ਕਥਾ ਬੁਧਿ ਤਾਹਾ ਹੇ ॥੬॥
जा कउ अलखु लखाए आपे अकथ कथा बुधि ताहा हे ॥६॥
अलख प्रभु जिसे अपना आप प्रगट कर देता है, उसे ही अकथनीय कथा करने की बुद्धि प्राप्त होती है॥ ६॥
ਜਨਮੇ ਕਉ ਵਾਜਹਿ ਵਾਧਾਏ ॥
जनमे कउ वाजहि वाधाए ॥
किसी जीव के जन्म लेने पर घर में खुशी का माहौल बन जाता है,
ਸੋਹਿਲੜੇ ਅਗਿਆਨੀ ਗਾਏ ॥
सोहिलड़े अगिआनी गाए ॥
परिवार को शुभकामनाएँ मिलती हैं और ज्ञानहीन संबंधी मिलकर मंगलगान करते हैं।
ਜੋ ਜਨਮੈ ਤਿਸੁ ਸਰਪਰ ਮਰਣਾ ਕਿਰਤੁ ਪਇਆ ਸਿਰਿ ਸਾਹਾ ਹੇ ॥੭॥
जो जनमै तिसु सरपर मरणा किरतु पइआ सिरि साहा हे ॥७॥
जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु अटल है जैसे कर्म है, वैसे ही मृत्यु का दिन तय है॥ ७॥
ਸੰਜੋਗੁ ਵਿਜੋਗੁ ਮੇਰੈ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਏ ॥
संजोगु विजोगु मेरै प्रभि कीए ॥
जीव का परिवार से संयोग एवं वियोग मेरे प्रभु ने ही बनाया हुआ है और
ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਇ ਦੁਖਾ ਸੁਖ ਦੀਏ ॥
स्रिसटि उपाइ दुखा सुख दीए ॥
सृष्टि को पैदा करके दुख-सुख भी दिए हुए हैं,
ਦੁਖ ਸੁਖ ਹੀ ਤੇ ਭਏ ਨਿਰਾਲੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੀਲੁ ਸਨਾਹਾ ਹੇ ॥੮॥
दुख सुख ही ते भए निराले गुरमुखि सीलु सनाहा हे ॥८॥
जिन गुरुमुखों ने सहनशीलता का कवच धारण कर लिया है, वे दुख-सुख से निर्लिप्त रहते हैं।॥ ८॥
ਨੀਕੇ ਸਾਚੇ ਕੇ ਵਾਪਾਰੀ ॥
नीके साचे के वापारी ॥
सत्य के व्यापारी ही भले हैं,
ਸਚੁ ਸਉਦਾ ਲੈ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰੀ ॥
सचु सउदा लै गुर वीचारी ॥
वे गुरु से विचार करके सच्चा सौदा खरीदते हैं।
ਸਚਾ ਵਖਰੁ ਜਿਸੁ ਧਨੁ ਪਲੈ ਸਬਦਿ ਸਚੈ ਓਮਾਹਾ ਹੇ ॥੯॥
सचा वखरु जिसु धनु पलै सबदि सचै ओमाहा हे ॥९॥
जिसके पास सच्चा सौदा एवं नाम-धन होता है, उसके मन में सच्चे शब्द द्वारा स्तुतिगान करने से उत्साह उत्पन्न हो जाता है।॥ ९॥
ਕਾਚੀ ਸਉਦੀ ਤੋਟਾ ਆਵੈ ॥
काची सउदी तोटा आवै ॥
झूठ का सौदा करने में नुक्सान ही होता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਣਜੁ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ॥
गुरमुखि वणजु करे प्रभ भावै ॥
प्रभु को वही मनुष्य भाता है, जो गुरमुख सच्चा व्यापार करता है।
ਪੂੰਜੀ ਸਾਬਤੁ ਰਾਸਿ ਸਲਾਮਤਿ ਚੂਕਾ ਜਮ ਕਾ ਫਾਹਾ ਹੇ ॥੧੦॥
पूंजी साबतु रासि सलामति चूका जम का फाहा हे ॥१०॥
उसकी पूँजी सुरक्षित रहती है, उसकी राशि भी ठीक-ठाक रहती है और उसका यम का फन्दा कट जाता है ॥१०॥