Hindi Page 840

ਆਈ ਪੂਤਾ ਇਹੁ ਜਗੁ ਸਾਰਾ ॥
आई पूता इहु जगु सारा ॥
यह समूचा जगत् जगन्माता के पुत्र समान है।

ਪ੍ਰਭ ਆਦੇਸੁ ਆਦਿ ਰਖਵਾਰਾ ॥
प्रभ आदेसु आदि रखवारा ॥
मेरा उस परमात्मा को शत्-शत् नमन है, जो प्रारम्भ से ही सबका रखवाला है।

ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਹੈ ਭੀ ਹੋਗੁ ॥
आदि जुगादी है भी होगु ॥
वह युग -युगांतरों से है, वर्तमान में भी है और भविष्य में भी उसका ही अस्तित्व होगा।

ਓਹੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਕਰਣੈ ਜੋਗੁ ॥੧੧॥
ओहु अपर्मपरु करणै जोगु ॥११॥
वह अपरंपार है और सबकुछ करने में समर्थ है॥ ११॥

ਦਸਮੀ ਨਾਮੁ ਦਾਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ॥
दसमी नामु दानु इसनानु ॥
दसमी-नाम जपो, दान करो शरीर की शुद्धता के लिए स्नान करो।

ਅਨਦਿਨੁ ਮਜਨੁ ਸਚਾ ਗੁਣ ਗਿਆਨੁ ॥
अनदिनु मजनु सचा गुण गिआनु ॥
सत्य के गुणों का ज्ञान प्राप्त करना नित्य स्नान करना है।

ਸਚਿ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਭਾਗੈ ॥ ਬਿਲਮੁ ਨ ਤੂਟਸਿ ਕਾਚੈ ਤਾਗੈ ॥
सचि मैलु न लागै भ्रमु भउ भागै ॥ बिलमु न तूटसि काचै तागै ॥
सत्य-नाम का सिमरन करने से मन विकारों की मैल नहीं लगती और भ्रम एवं भय दूर हो जाता है। कच्चे धागे को टूटते कोई देर नहीं होती।

ਜਿਉ ਤਾਗਾ ਜਗੁ ਏਵੈ ਜਾਣਹੁ ॥
जिउ तागा जगु एवै जाणहु ॥
जगत् को ऐसे ही जानो जैसे कच्चा धागा है।

ਅਸਥਿਰੁ ਚੀਤੁ ਸਾਚਿ ਰੰਗੁ ਮਾਣਹੁ ॥੧੨॥
असथिरु चीतु साचि रंगु माणहु ॥१२॥
अपना चित स्थिर करने के लिए के रंग में लीन रहो ॥ १२ ॥

ਏਕਾਦਸੀ ਇਕੁ ਰਿਦੈ ਵਸਾਵੈ ॥
एकादसी इकु रिदै वसावै ॥
एकादशी-जो व्यक्ति परमात्मा को हृदय में बसाता है,

ਹਿੰਸਾ ਮਮਤਾ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਵੈ ॥
हिंसा ममता मोहु चुकावै ॥
अपने मन से हिंसा, ममता एवं मोह को दूर कर देता है,

ਫਲੁ ਪਾਵੈ ਬ੍ਰਤੁ ਆਤਮ ਚੀਨੈ ॥
फलु पावै ब्रतु आतम चीनै ॥
उसे इस व्रत का यही फल मिलता है कि वह अपनी अन्तरात्मा को पहचान लेता है।

ਪਾਖੰਡਿ ਰਾਚਿ ਤਤੁ ਨਹੀ ਬੀਨੈ ॥
पाखंडि राचि ततु नही बीनै ॥
पाखण्ड में लीन होकर मनुष्य परमतत्व को नहीं देख सकता।

ਨਿਰਮਲੁ ਨਿਰਾਹਾਰੁ ਨਿਹਕੇਵਲੁ ॥
निरमलु निराहारु निहकेवलु ॥
एक वही निर्मल, निराहार एवं वासना रहित है और

ਸੂਚੈ ਸਾਚੇ ਨਾ ਲਾਗੈ ਮਲੁ ॥੧੩॥
सूचै साचे ना लागै मलु ॥१३॥
उस शुद्ध एवं सत्यस्वरुप को विकारों की कोई मैल नहीं लगती॥ १३॥

ਜਹ ਦੇਖਉ ਤਹ ਏਕੋ ਏਕਾ ॥
जह देखउ तह एको एका ॥
मैं जिधर भी देखता हूँ, एक परमात्मा ही मौजूद है।

ਹੋਰਿ ਜੀਅ ਉਪਾਏ ਵੇਕੋ ਵੇਕਾ ॥
होरि जीअ उपाए वेको वेका ॥
उसने भिन्न-भिन्न प्रकार के अनेक जीव पैदा किए हुए हैं।

ਫਲੋਹਾਰ ਕੀਏ ਫਲੁ ਜਾਇ ॥
फलोहार कीए फलु जाइ ॥
फलों का आहार करने से मनुष्य को कोई फल नहीं मिलता।

ਰਸ ਕਸ ਖਾਏ ਸਾਦੁ ਗਵਾਇ ॥
रस कस खाए सादु गवाइ ॥
वह अनेक स्वादों को ग्रहण करता है, जो उसके व्रत का स्वाद गंवा देते हैं।

ਕੂੜੈ ਲਾਲਚਿ ਲਪਟੈ ਲਪਟਾਇ ॥
कूड़ै लालचि लपटै लपटाइ ॥
वह झूठे लालच में ही फंसा रहता है।

ਛੂਟੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚੁ ਕਮਾਇ ॥੧੪॥
छूटै गुरमुखि साचु कमाइ ॥१४॥
लेकिन वह तभी छूटता है, जब गुरु के माध्यम से सत्य की साधना करता है ॥१४॥

ਦੁਆਦਸਿ ਮੁਦ੍ਰਾ ਮਨੁ ਅਉਧੂਤਾ ॥
दुआदसि मुद्रा मनु अउधूता ॥
द्वादशी-अवधूत वही है, जिसका मन व्यर्थ की बारह मुद्राओं से पृथक हो गया है।

ਅਹਿਨਿਸਿ ਜਾਗਹਿ ਕਬਹਿ ਨ ਸੂਤਾ ॥
अहिनिसि जागहि कबहि न सूता ॥
वह दिन-रात जागता रहता है और मोह-माया की नींद में नहीं सोता तथा

ਜਾਗਤੁ ਜਾਗਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ ਗੁਰ ਪਰਚੈ ਤਿਸੁ ਕਾਲੁ ਨ ਖਾਇ ॥
जागतु जागि रहै लिव लाइ ॥ गुर परचै तिसु कालु न खाइ ॥
परमात्मा में ही ध्यान लगाकर रखता है। जो गुरु पर श्रद्धा रखता है, उसे काल भी नहीं खाता।

ਅਤੀਤ ਭਏ ਮਾਰੇ ਬੈਰਾਈ ॥
अतीत भए मारे बैराई ॥
जिन्होंने कामादिक विकारों को समाप्त कर लिया है, वह त्यागी है।

ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕ ਤਹ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੧੫॥
प्रणवति नानक तह लिव लाई ॥१५॥
नानक विनती करता है कि उसने ही परमात्मा में वृति लगाई है॥ १५॥

ਦੁਆਦਸੀ ਦਇਆ ਦਾਨੁ ਕਰਿ ਜਾਣੈ ॥
दुआदसी दइआ दानु करि जाणै ॥
द्वादशी-जीवों पर दया एवं दान करना चाहिए।

ਬਾਹਰਿ ਜਾਤੋ ਭੀਤਰਿ ਆਣੈ ॥
बाहरि जातो भीतरि आणै ॥
भटकते मन को नियंत्रण में करना चाहिए।

ਬਰਤੀ ਬਰਤ ਰਹੈ ਨਿਹਕਾਮ ॥
बरती बरत रहै निहकाम ॥
जो निष्काम रहता है, उस व्रत रखने वाले का ही सच्चा व्रत है।

ਅਜਪਾ ਜਾਪੁ ਜਪੈ ਮੁਖਿ ਨਾਮ ॥
अजपा जापु जपै मुखि नाम ॥
अपने मुख से नाम का अजपा जाप जपते रहना चाहिए।

ਤੀਨਿ ਭਵਣ ਮਹਿ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ॥
तीनि भवण महि एको जाणै ॥
तीनों लोकों में एक परमात्मा को ही जानो।

ਸਭਿ ਸੁਚਿ ਸੰਜਮ ਸਾਚੁ ਪਛਾਣੈ ॥੧੬॥
सभि सुचि संजम साचु पछाणै ॥१६॥
जो सत्य को पहचान लेता है, वही शुद्धिकरण एवं संयम के सारे उद्यम कर रहा है॥ १६ ॥

ਤੇਰਸਿ ਤਰਵਰ ਸਮੁਦ ਕਨਾਰੈ ॥
तेरसि तरवर समुद कनारै ॥
त्रयोदशी- मानव जीवन समुद्र के किनारे खड़े वृक्ष जैसा है। जैसे समुद्र की लहर उसे किसी भी वक्त उखाड़ सकती है, वैसे ही मृत्यु किसी भी समय खत्म कर सकती है।

ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਮੂਲੁ ਸਿਖਰਿ ਲਿਵ ਤਾਰੈ ॥
अम्रितु मूलु सिखरि लिव तारै ॥
शरीर का मूल भाव जड़ मन है और उसका शिखर दसम द्वार है। परमात्मा का नाम अमृत है। शरीर का मूल मन अमृत नाम द्वारा जीव को पार करवा देता है।

ਡਰ ਡਰਿ ਮਰੈ ਨ ਬੂਡੈ ਕੋਇ ॥
डर डरि मरै न बूडै कोइ ॥
यदि कोई प्रभु-डर से डरकर मरता है, वह भवसागर में नहीं डूबता।

ਨਿਡਰੁ ਬੂਡਿ ਮਰੈ ਪਤਿ ਖੋਇ ॥
निडरु बूडि मरै पति खोइ ॥
जो परमात्मा से नहीं डरता, वह भवसागर में डूबकर अपनी प्रतिष्ठा गंवा देता है।

ਡਰ ਮਹਿ ਘਰੁ ਘਰ ਮਹਿ ਡਰੁ ਜਾਣੈ ॥
डर महि घरु घर महि डरु जाणै ॥
जो प्रभु-डर में रहने को अपना घर समझता है, वह हृदय-धर में प्रभु का डर मानता है।

ਤਖਤਿ ਨਿਵਾਸੁ ਸਚੁ ਮਨਿ ਭਾਣੈ ॥੧੭॥
तखति निवासु सचु मनि भाणै ॥१७॥
वह ईश्वर के चरणों में निवास पा लेता है और उसे सत्य ही भाता है।॥१७॥

ਚਉਦਸਿ ਚਉਥੇ ਥਾਵਹਿ ਲਹਿ ਪਾਵੈ ॥
चउदसि चउथे थावहि लहि पावै ॥
चतुर्दशी-जब मनुष्य तुरीयावस्था प्राप्त कर लेता है तो

ਰਾਜਸ ਤਾਮਸ ਸਤ ਕਾਲ ਸਮਾਵੈ ॥
राजस तामस सत काल समावै ॥
रजो, तमो एवं सतोगुण काल में ही समा जाते हैं और

ਸਸੀਅਰ ਕੈ ਘਰਿ ਸੂਰੁ ਸਮਾਵੈ ॥
ससीअर कै घरि सूरु समावै ॥
चन्द्रमा के घर में सूर्य समा जाता है।

ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਪਾਵੈ ॥
जोग जुगति की कीमति पावै ॥
वह मनुष्य योग-भक्ति का मूल्य पा लेता है।

ਚਉਦਸਿ ਭਵਨ ਪਾਤਾਲ ਸਮਾਏ ॥ ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਰਹਿਆ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥੧੮॥
चउदसि भवन पाताल समाए ॥ खंड ब्रहमंड रहिआ लिव लाए ॥१८॥
जो परमात्मा चौदह लोकों, पातालों, खण्डों-ब्रह्माण्डों में समाया हुआ है ऐसा मनुष्य उस परमात्मा में लगन लगाकर रखता है ।॥१८॥

ਅਮਾਵਸਿਆ ਚੰਦੁ ਗੁਪਤੁ ਗੈਣਾਰਿ ॥
अमावसिआ चंदु गुपतु गैणारि ॥
अमावस्या-अमावस्या की रात्रि को चन्द्रमा आसमान में लुप्त रहता है।

ਬੂਝਹੁ ਗਿਆਨੀ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥
बूझहु गिआनी सबदु बीचारि ॥
हे ज्ञानी ! इस तथ्य को शब्द के चिन्तन द्वारा समझो।

ਸਸੀਅਰੁ ਗਗਨਿ ਜੋਤਿ ਤਿਹੁ ਲੋਈ ॥
ससीअरु गगनि जोति तिहु लोई ॥
जैसे चांद गगन में होता है लेकिन उसका आलोक तीनों लोकों में होता है।

ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਕਰਤਾ ਸੋਈ ॥
करि करि वेखै करता सोई ॥
वैसे ही परमात्मा की ज्योति सब में समाई हुई है वह रचयिता सृष्टि-रचना कर करके उसकी देखभाल करता रहता है।

ਗੁਰ ਤੇ ਦੀਸੈ ਸੋ ਤਿਸ ਹੀ ਮਾਹਿ ॥
गुर ते दीसै सो तिस ही माहि ॥
जो गुरु द्वारा इसे समझता है वह उसी में समां जाता है

ਮਨਮੁਖਿ ਭੂਲੇ ਆਵਹਿ ਜਾਹਿ ॥੧੯॥
मनमुखि भूले आवहि जाहि ॥१९॥
लेकिन स्वेच्छाचारी जीव भ्रम में फंसकर जन्मते-मरते रहते हैं।॥ १९ ॥

ਘਰੁ ਦਰੁ ਥਾਪਿ ਥਿਰੁ ਥਾਨਿ ਸੁਹਾਵੈ ॥
घरु दरु थापि थिरु थानि सुहावै ॥
जो व्यक्ति प्रभु चरणों में स्थाई निवास बना लेता है,

ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ਜਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਵੈ ॥
आपु पछाणै जा सतिगुरु पावै ॥
वह आत्मस्वरूप को पहचान कर सतगुरु को पा लेता है।

ਜਹ ਆਸਾ ਤਹ ਬਿਨਸਿ ਬਿਨਾਸਾ ॥
जह आसा तह बिनसि बिनासा ॥
जिसकी सब अभिलाषाएँ मिट जाती हैं,

ਫੂਟੈ ਖਪਰੁ ਦੁਬਿਧਾ ਮਨਸਾ ॥
फूटै खपरु दुबिधा मनसा ॥
उसके मन की दुविधा एवं लालसा वाला हृदय रूपी बर्तन भी फूट जाता है।

ਮਮਤਾ ਜਾਲ ਤੇ ਰਹੈ ਉਦਾਸਾ ॥
ममता जाल ते रहै उदासा ॥
उसका मन ममता जाल से दूर रहता है।

ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕ ਹਮ ਤਾ ਕੇ ਦਾਸਾ ॥੨੦॥੧॥
प्रणवति नानक हम ता के दासा ॥२०॥१॥
नानक प्रार्थना करता है कि हम उस जीव के दास हैं ॥ २० ॥ १॥

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