ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ਚਉਪਦੇ
रामकली महला १ घरु १ चउपदे
रामकली महला १ घरु १ चउपदे
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
ओंकार एक है, नाम उसका सत्य है, वह सृष्टि का रचयिता है, सर्वशक्तिमान है, वह भय से रहित है, वह वैर से रहित प्रेम स्वरूप है, वह कालातीत ब्रह्म मूर्ति शाश्वत है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त है, वह स्वयं प्रकाशमान हुआ है और गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।
ਕੋਈ ਪੜਤਾ ਸਹਸਾਕਿਰਤਾ ਕੋਈ ਪੜੈ ਪੁਰਾਨਾ ॥
कोई पड़ता सहसाकिरता कोई पड़ै पुराना ॥
कोई संस्कृत में वेदों को पढ़ता है, कोई पुराण पढ़ रहा है।
ਕੋਈ ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਜਪਮਾਲੀ ਲਾਗੈ ਤਿਸੈ ਧਿਆਨਾ ॥
कोई नामु जपै जपमाली लागै तिसै धिआना ॥
कोई माला द्वारा नाम जप रहा है और उसमें ही ध्यान लगा रहा है।
ਅਬ ਹੀ ਕਬ ਹੀ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਨਾ ਤੇਰਾ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਪਛਾਨਾ ॥੧॥
अब ही कब ही किछू न जाना तेरा एको नामु पछाना ॥१॥
लेकिन मैंने अब भी और कभी भी कुछ नहीं जाना, मैं तो केवल तेरे नाम को ही पहचानता हूँ॥ १॥
ਨ ਜਾਣਾ ਹਰੇ ਮੇਰੀ ਕਵਨ ਗਤੇ ॥
न जाणा हरे मेरी कवन गते ॥
हे हरि ! मैं नहीं जानता कि मेरी क्या गति होगी ?
ਹਮ ਮੂਰਖ ਅਗਿਆਨ ਸਰਨਿ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਰਾਖਹੁ ਮੇਰੀ ਲਾਜ ਪਤੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हम मूरख अगिआन सरनि प्रभ तेरी करि किरपा राखहु मेरी लाज पते ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! मैं मूर्ख एवं अज्ञानी तेरी शरण में आया हूँ, कृपा करके मेरी लाज रखो ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਬਹੂ ਜੀਅੜਾ ਊਭਿ ਚੜਤੁ ਹੈ ਕਬਹੂ ਜਾਇ ਪਇਆਲੇ ॥
कबहू जीअड़ा ऊभि चड़तु है कबहू जाइ पइआले ॥
हमारा मन कभी आकाश में चढ़ जाता है और कभी यह पाताल में जा गिरता है।
ਲੋਭੀ ਜੀਅੜਾ ਥਿਰੁ ਨ ਰਹਤੁ ਹੈ ਚਾਰੇ ਕੁੰਡਾ ਭਾਲੇ ॥੨॥
लोभी जीअड़ा थिरु न रहतु है चारे कुंडा भाले ॥२॥
यह लोभी मन स्थिर नहीं रहता और चारों दिशाओं में भटकता रहता है।॥२॥
ਮਰਣੁ ਲਿਖਾਇ ਮੰਡਲ ਮਹਿ ਆਏ ਜੀਵਣੁ ਸਾਜਹਿ ਮਾਈ ॥
मरणु लिखाइ मंडल महि आए जीवणु साजहि माई ॥
सभी जीव अपनी मृत्यु का लेख लिखवा कर दुनिया में आए हैं लेकिन वे अपने जीने के लिए योजनाएं बनाते रहते हैं।
ਏਕਿ ਚਲੇ ਹਮ ਦੇਖਹ ਸੁਆਮੀ ਭਾਹਿ ਬਲੰਤੀ ਆਈ ॥੩॥
एकि चले हम देखह सुआमी भाहि बलंती आई ॥३॥
हे स्वामी ! हम हर रोज़ किसी न किसी जीव की मृत्यु को देख रहे हैं और मृत्यु की अग्नि हर तरफ जल रही है॥ ३॥
ਨ ਕਿਸੀ ਕਾ ਮੀਤੁ ਨ ਕਿਸੀ ਕਾ ਭਾਈ ਨਾ ਕਿਸੈ ਬਾਪੁ ਨ ਮਾਈ ॥
न किसी का मीतु न किसी का भाई ना किसै बापु न माई ॥
सच तो यही है कि न किसी का कोई मित्र है, न किसी का कोई भाई है, न कोई किसी का माता-पिता है।
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕ ਜੇ ਤੂ ਦੇਵਹਿ ਅੰਤੇ ਹੋਇ ਸਖਾਈ ॥੪॥੧॥
प्रणवति नानक जे तू देवहि अंते होइ सखाई ॥४॥१॥
गुरु नानक विनय करते हैं कि हे ईश्वर ! यदि तू अपना नाम हमें प्रदान कर दे तो वह अन्तिम समय हमारा मददगार हो जाएगा ॥४॥१॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
रामकली महला १ ॥
रामकली महला १ ॥
ਸਰਬ ਜੋਤਿ ਤੇਰੀ ਪਸਰਿ ਰਹੀ ॥
सरब जोति तेरी पसरि रही ॥
हे परमेश्वर ! समूचे विश्व में तेरी ही ज्योति का प्रसार हो रहा है,
ਜਹ ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਨਰਹਰੀ ॥੧॥
जह जह देखा तह नरहरी ॥१॥
मैं जहाँ-जहाँ देखता हूँ, तू ही नजर आता है॥ १॥
ਜੀਵਨ ਤਲਬ ਨਿਵਾਰਿ ਸੁਆਮੀ ॥
जीवन तलब निवारि सुआमी ॥
हे स्वामी ! मेरी जीवन की लालसा को दूर कर दो,
ਅੰਧ ਕੂਪਿ ਮਾਇਆ ਮਨੁ ਗਾਡਿਆ ਕਿਉ ਕਰਿ ਉਤਰਉ ਪਾਰਿ ਸੁਆਮੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अंध कूपि माइआ मनु गाडिआ किउ करि उतरउ पारि सुआमी ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा मन तो माया के अंधकूप में फँसा हुआ है, फिर मैं कैसे पार हो सकता हूँ? ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਭੀਤਰਿ ਘਟ ਭੀਤਰਿ ਬਸਿਆ ਬਾਹਰਿ ਕਾਹੇ ਨਾਹੀ ॥
जह भीतरि घट भीतरि बसिआ बाहरि काहे नाही ॥
जो जीवों के हृदय में बस रहा है, वह भला बाहर क्यों नहीं बस रहा।
ਤਿਨ ਕੀ ਸਾਰ ਕਰੇ ਨਿਤ ਸਾਹਿਬੁ ਸਦਾ ਚਿੰਤ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥੨॥
तिन की सार करे नित साहिबु सदा चिंत मन माही ॥२॥
मेरा मालिक तो नित्य उनकी देखभाल करता है और सदा ही उसके मन में जीवों की चिंता लगी रहती है॥ २ ॥
ਆਪੇ ਨੇੜੈ ਆਪੇ ਦੂਰਿ ॥
आपे नेड़ै आपे दूरि ॥
परमात्मा स्वयं ही जीवों के निकट भी बसता है और दूर भी रहता है,
ਆਪੇ ਸਰਬ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥
आपे सरब रहिआ भरपूरि ॥
वह स्वयं ही सर्वव्यापक है।
ਸਤਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਅੰਧੇਰਾ ਜਾਇ ॥
सतगुरु मिलै अंधेरा जाइ ॥
जिसे सतगुरु मिल जाता है, उसका अज्ञान का अंधेरा दूर हो जाता है,