ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਜੀਅ ਜੀਅਨ ਕੋ ਭਾਗਹੀਨ ਨਹੀ ਭਾਵੈਗੋ ॥
सतिगुरु दाता जीअ जीअन को भागहीन नही भावैगो ॥
सतगुरु सब जीवों का दाता है, परन्तु दुर्भाग्यशाली लोगों को अच्छा नहीं लगता।
ਫਿਰਿ ਏਹ ਵੇਲਾ ਹਾਥਿ ਨ ਆਵੈ ਪਰਤਾਪੈ ਪਛੁਤਾਵੈਗੋ ॥੭॥
फिरि एह वेला हाथि न आवै परतापै पछुतावैगो ॥७॥
मनुष्य जीवन का यह सुनहरी अवसर पुनः हाथ नहीं आता और मनुष्य दुखी होकर पछताता है॥ ७॥
ਜੇ ਕੋ ਭਲਾ ਲੋੜੈ ਭਲ ਅਪਨਾ ਗੁਰ ਆਗੈ ਢਹਿ ਢਹਿ ਪਾਵੈਗੋ ॥
जे को भला लोड़ै भल अपना गुर आगै ढहि ढहि पावैगो ॥
यदि अपना भला चाहते हो तो गुरु के सन्मुख झुक जाओ।
ਨਾਨਕ ਦਇਆ ਦਇਆ ਕਰਿ ਠਾਕੁਰ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰ ਭਸਮ ਲਗਾਵੈਗੋ ॥੮॥੩॥
नानक दइआ दइआ करि ठाकुर मै सतिगुर भसम लगावैगो ॥८॥३॥
नानक विनती करते हैं कि हे ईश्वर ! मुझ पर दया कीजिए, गुरु की चरणरज माथे पर लगाना चाहता हूँ ॥८॥३॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
ਮਨੁ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਗਾਵੈਗੋ ॥
मनु हरि रंगि राता गावैगो ॥
हे मन ! ईश्वर के रंग में लीन होकर उसी का गुणगान करो।
ਭੈ ਭੈ ਤ੍ਰਾਸ ਭਏ ਹੈ ਨਿਰਮਲ ਗੁਰਮਤਿ ਲਾਗਿ ਲਗਾਵੈਗੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भै भै त्रास भए है निरमल गुरमति लागि लगावैगो ॥१॥ रहाउ ॥
इससे सब भय एवं चिन्ता दूर हो जाती है, गुरु के उपदेश से निर्मल मन प्रभु की लगन में लीन रहता है॥ १॥रहाउ॥
ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਸਦ ਬੈਰਾਗੀ ਹਰਿ ਨਿਕਟਿ ਤਿਨਾ ਘਰਿ ਆਵੈਗੋ ॥
हरि रंगि राता सद बैरागी हरि निकटि तिना घरि आवैगो ॥
ईश्वर के रंग में लीन जीव सदा वैराग्यवान रहता है और परमात्मा उसके ह्रदय घर में ही रहता है।
ਤਿਨ ਕੀ ਪੰਕ ਮਿਲੈ ਤਾਂ ਜੀਵਾ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਆਪਿ ਦਿਵਾਵੈਗੋ ॥੧॥
तिन की पंक मिलै तां जीवा करि किरपा आपि दिवावैगो ॥१॥
यदि ऐसे भक्तों की चरण-धूल मिल जाए तो जीवन बना रहता है और प्रभु कृपा करके स्वयं ही दिलवाता है।॥ १॥
ਦੁਬਿਧਾ ਲੋਭਿ ਲਗੇ ਹੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਮਨਿ ਕੋਰੈ ਰੰਗੁ ਨ ਆਵੈਗੋ ॥
दुबिधा लोभि लगे है प्राणी मनि कोरै रंगु न आवैगो ॥
दुविधा एवं लोभ में लीन प्राणी का मन कोरा ही रहता है और उसे प्रभु-रंग नहीं चढ़ता।
ਫਿਰਿ ਉਲਟਿਓ ਜਨਮੁ ਹੋਵੈ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲੈ ਰੰਗੁ ਲਾਵੈਗੋ ॥੨॥
फिरि उलटिओ जनमु होवै गुर बचनी गुरु पुरखु मिलै रंगु लावैगो ॥२॥
जब गुरु मिल जाता है तो मन बदल जाता है, गुरु के वचनों से जीव का नया जन्म होता है, फिर उसे प्रभु-भक्ति का रंग लगा रहता है।॥ २॥
ਇੰਦ੍ਰੀ ਦਸੇ ਦਸੇ ਫੁਨਿ ਧਾਵਤ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣੀਆ ਖਿਨੁ ਨ ਟਿਕਾਵੈਗੋ ॥
इंद्री दसे दसे फुनि धावत त्रै गुणीआ खिनु न टिकावैगो ॥
दसों इन्द्रियों दसों दिशाओं में भागती हैं और तीन गुणों के कारण पल भर भी नहीं टिकती।
ਸਤਿਗੁਰ ਪਰਚੈ ਵਸਗਤਿ ਆਵੈ ਮੋਖ ਮੁਕਤਿ ਸੋ ਪਾਵੈਗੋ ॥੩॥
सतिगुर परचै वसगति आवै मोख मुकति सो पावैगो ॥३॥
जब सतगुरु से साक्षात्कार होता है तो वह वश में आ जाती हैं और मुक्ति प्राप्त हो जाती है॥ ३॥
ਓਅੰਕਾਰਿ ਏਕੋ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਭੁ ਏਕਸ ਮਾਹਿ ਸਮਾਵੈਗੋ ॥
ओअंकारि एको रवि रहिआ सभु एकस माहि समावैगो ॥
केवल ओमकार सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त है और सब ने उस एक में ही लीन होना है।
ਏਕੋ ਰੂਪੁ ਏਕੋ ਬਹੁ ਰੰਗੀ ਸਭੁ ਏਕਤੁ ਬਚਨਿ ਚਲਾਵੈਗੋ ॥੪॥
एको रूपु एको बहु रंगी सभु एकतु बचनि चलावैगो ॥४॥
वह एक ही रूप वाला है, अनेक रंगों में विद्यमान है, समूचा संसार उस ‘एक’ के ही वचन से चलता है॥ ४॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਏਕੋ ਏਕੁ ਪਛਾਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਲਖਾਵੈਗੋ ॥
गुरमुखि एको एकु पछाता गुरमुखि होइ लखावैगो ॥
गुरु उस एक अनंतशक्ति को ही मानता है और वही रहस्य को जानता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਇ ਮਿਲੈ ਨਿਜ ਮਹਲੀ ਅਨਹਦ ਸਬਦੁ ਬਜਾਵੈਗੋ ॥੫॥
गुरमुखि जाइ मिलै निज महली अनहद सबदु बजावैगो ॥५॥
गुरु के द्वारा जीव अपने सच्चे घट में जा मिलता है और उसके अन्तर्मन में अनहद शब्द गूंजता रहता है।॥ ५॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭ ਸਿਸਟਿ ਉਪਾਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੋਭਾ ਪਾਵੈਗੋ ॥
जीअ जंत सभ सिसटि उपाई गुरमुखि सोभा पावैगो ॥
जीव-जन्तु समूची सृष्टि को उत्पन्न करके परमेश्वर ने गुरु को ही शोभा प्रदान की है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਕੋ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵੈ ਆਇ ਜਾਇ ਦੁਖੁ ਪਾਵੈਗੋ ॥੬॥
बिनु गुर भेटे को महलु न पावै आइ जाइ दुखु पावैगो ॥६॥
गुरु के साक्षात्कार बिना ईश्वर प्राप्त नहीं होता, अन्यथा जीव जन्म-मरण के चक्र में दुख पाता है॥ ६॥
ਅਨੇਕ ਜਨਮ ਵਿਛੁੜੇ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਵੈਗੋ ॥
अनेक जनम विछुड़े मेरे प्रीतम करि किरपा गुरू मिलावैगो ॥
हे मेरे प्रियतम ! हम अनेक जन्मों से बिछुड़े हुए हैं, कृपा करके गुरु से मिला दो।
ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਤ ਮਹਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਮਤਿ ਮਲੀਨ ਬਿਗਸਾਵੈਗੋ ॥੭॥
सतिगुर मिलत महा सुखु पाइआ मति मलीन बिगसावैगो ॥७॥
सच्चे गुरु को मिलकर परम सुख प्राप्त होता है और मलिन बुद्धि भी खिल उठती है॥ ७॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹੁ ਜਗਜੀਵਨ ਮੈ ਸਰਧਾ ਨਾਮਿ ਲਗਾਵੈਗੋ ॥
हरि हरि क्रिपा करहु जगजीवन मै सरधा नामि लगावैगो ॥
हे परमेश्वर ! कृपा करो और मुझे श्रद्धापूर्वक नाम-कीर्तन में लगा दो।
ਨਾਨਕ ਗੁਰੂ ਗੁਰੂ ਹੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਰਨਿ ਮਿਲਾਵੈਗੋ ॥੮॥੪॥
नानक गुरू गुरू है सतिगुरु मै सतिगुरु सरनि मिलावैगो ॥८॥४॥
नानक का कथन है कि गुरु ही परमेश्वर है, गुरु-परमेश्वर एक रूप हैं और मुझे सच्चे गुरु की शरण में मिला ॥८॥४॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
ਮਨ ਗੁਰਮਤਿ ਚਾਲ ਚਲਾਵੈਗੋ ॥
मन गुरमति चाल चलावैगो ॥
हे मन ! गुरु-उपदेशानुसार जीवन-आचरण अपनाना चाहिए।
ਜਿਉ ਮੈਗਲੁ ਮਸਤੁ ਦੀਜੈ ਤਲਿ ਕੁੰਡੇ ਗੁਰ ਅੰਕਸੁ ਸਬਦੁ ਦ੍ਰਿੜਾਵੈਗੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिउ मैगलु मसतु दीजै तलि कुंडे गुर अंकसु सबदु द्रिड़ावैगो ॥१॥ रहाउ ॥
ज्यों मस्त हाथी को अंकुश के नीचे रखा जाता है, वैसे ही गुरु अपने शब्द के अंकुश से चलाता है॥ १॥रहाउ॥
ਚਲਤੌ ਚਲੈ ਚਲੈ ਦਹ ਦਹ ਦਿਸਿ ਗੁਰੁ ਰਾਖੈ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਵੈਗੋ ॥
चलतौ चलै चलै दह दह दिसि गुरु राखै हरि लिव लावैगो ॥
मन दसों दिशाओं में दोलायमान होता है, लेकिन गुरु इसे रोककर परमात्मा के ध्यान में लगाता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਬਦੁ ਦੇਇ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਚੁਆਵੈਗੋ ॥੧॥
सतिगुरु सबदु देइ रिद अंतरि मुखि अम्रितु नामु चुआवैगो ॥१॥
सतिगुरु ह्रदय में शब्द ही देता है और मुख में हरिनाम अमृत डाल देता है॥ १॥
ਬਿਸੀਅਰ ਬਿਸੂ ਭਰੇ ਹੈ ਪੂਰਨ ਗੁਰੁ ਗਰੁੜ ਸਬਦੁ ਮੁਖਿ ਪਾਵੈਗੋ ॥
बिसीअर बिसू भरे है पूरन गुरु गरुड़ सबदु मुखि पावैगो ॥
माया रूपी सांप वासनाओं के जहर से भरा हुआ है और पूर्ण गुरु शब्द रूपी गारुड़ी मंत्र मुख में डालता है।
ਮਾਇਆ ਭੁਇਅੰਗ ਤਿਸੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ਬਿਖੁ ਝਾਰਿ ਝਾਰਿ ਲਿਵ ਲਾਵੈਗੋ ॥੨॥
माइआ भुइअंग तिसु नेड़ि न आवै बिखु झारि झारि लिव लावैगो ॥२॥
तदन्तर माया रूपी सांप उसके निकट नहीं आता और वासना का जहर उतर कर परमात्मा में ध्यान लग जाता है॥ २॥
ਸੁਆਨੁ ਲੋਭੁ ਨਗਰ ਮਹਿ ਸਬਲਾ ਗੁਰੁ ਖਿਨ ਮਹਿ ਮਾਰਿ ਕਢਾਵੈਗੋ ॥
सुआनु लोभु नगर महि सबला गुरु खिन महि मारि कढावैगो ॥
लोभ रूपी कुत्ता शरीर रूपी नगर में शक्तिशाली है लेकिन गुरु पल में ही इसे मार कर निकाल देता है।
ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਧਰਮੁ ਆਨਿ ਰਾਖੇ ਹਰਿ ਨਗਰੀ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਵੈਗੋ ॥੩॥
सतु संतोखु धरमु आनि राखे हरि नगरी हरि गुन गावैगो ॥३॥
ईश्वर की नगरी में सत्य, संतोष, धर्म इत्यादि शुभ गुणों को टिकाया गया हैं और वहाँ परमात्मा का गुणगान होता है।॥ ३॥