ਗਿਆਨੁ ਰਾਸਿ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਸਉਪਿਓਨੁ ਇਸੁ ਸਉਦੇ ਲਾਇਕ ॥
गिआनु रासि नामु धनु सउपिओनु इसु सउदे लाइक ॥
उसने मुझे ज्ञान रूपी राशि एवं नाम रूपी धन सौंप दिया है और मुझे इस व्यापार के योग्य बना दिया है।
ਸਾਝੀ ਗੁਰ ਨਾਲਿ ਬਹਾਲਿਆ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਇਕ ॥
साझी गुर नालि बहालिआ सरब सुख पाइक ॥
उसने गुरु के साथ सांझेदार बनाकर बिठा दिया है और मैंने सर्व सुख पा लिए हैं।
ਮੈ ਨਾਲਹੁ ਕਦੇ ਨ ਵਿਛੁੜੈ ਹਰਿ ਪਿਤਾ ਸਭਨਾ ਗਲਾ ਲਾਇਕ ॥੨੧॥
मै नालहु कदे न विछुड़ै हरि पिता सभना गला लाइक ॥२१॥
मेरा हरि पिता सब बातों अर्थात् सर्वकला समर्थ है, (मेरी तो बस यही कामना है कि) अब वह मुझसे कभी जुदा न होए॥ २१॥
ਸਲੋਕ ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
सलोक डखणे मः ५ ॥
श्लोक डखणे महला ५॥
ਨਾਨਕ ਕਚੜਿਆ ਸਿਉ ਤੋੜਿ ਢੂਢਿ ਸਜਣ ਸੰਤ ਪਕਿਆ ॥
नानक कचड़िआ सिउ तोड़ि ढूढि सजण संत पकिआ ॥
नानक का कथन है कि हे मनुष्य ! झूठे एवं पाखण्डी लोगों से नाता तोड़कर पक्के सज्जन संतों को ढूंढ लो।
ਓਇ ਜੀਵੰਦੇ ਵਿਛੁੜਹਿ ਓਇ ਮੁਇਆ ਨ ਜਾਹੀ ਛੋੜਿ ॥੧॥
ओइ जीवंदे विछुड़हि ओइ मुइआ न जाही छोड़ि ॥१॥
चूंकेि झूठे लोग तो जीते जी ही बिछुड़ जाते हैं परन्तु सज्जन संत तो मरणोपरांत भी साथ नहीं छोड़ते॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਨਾਨਕ ਬਿਜੁਲੀਆ ਚਮਕੰਨਿ ਘੁਰਨੑਿ ਘਟਾ ਅਤਿ ਕਾਲੀਆ ॥
नानक बिजुलीआ चमकंनि घुरन्हि घटा अति कालीआ ॥
हे नानक ! बिजली चमकती है, अत्यंत काली घटा गरजती है, चाहे बादल बहुत बरसते हैं,
ਬਰਸਨਿ ਮੇਘ ਅਪਾਰ ਨਾਨਕ ਸੰਗਮਿ ਪਿਰੀ ਸੁਹੰਦੀਆ ॥੨॥
बरसनि मेघ अपार नानक संगमि पिरी सुहंदीआ ॥२॥
हे नानक ! जीव-स्त्री तो प्रभु मिलन में ही शोभायमान होती है।॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਜਲ ਥਲ ਨੀਰਿ ਭਰੇ ਸੀਤਲ ਪਵਣ ਝੁਲਾਰਦੇ ॥
जल थल नीरि भरे सीतल पवण झुलारदे ॥
चाहे धरती के सरोवर-नदियाँ जल से भरे हुए हों, शीतल पवन बहती हो,
ਸੇਜੜੀਆ ਸੋਇੰਨ ਹੀਰੇ ਲਾਲ ਜੜੰਦੀਆ ॥
सेजड़ीआ सोइंन हीरे लाल जड़ंदीआ ॥
सोने की सेज हीरे-मोतियों से जड़ित हो,
ਸੁਭਰ ਕਪੜ ਭੋਗ ਨਾਨਕ ਪਿਰੀ ਵਿਹੂਣੀ ਤਤੀਆ ॥੩॥
सुभर कपड़ भोग नानक पिरी विहूणी ततीआ ॥३॥
सुन्दर कपड़े एवं स्वादिष्ट भोग-पदार्थ भी हों परन्तु हे नानक ! पति-प्रभु के बिना सब दुखदायक ही प्रतीत होते हैं॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਕਾਰਣੁ ਕਰਤੈ ਜੋ ਕੀਆ ਸੋਈ ਹੈ ਕਰਣਾ ॥
कारणु करतै जो कीआ सोई है करणा ॥
परमात्मा ने जो कारण बनाया है, मनुष्य ने वही करना है।
ਜੇ ਸਉ ਧਾਵਹਿ ਪ੍ਰਾਣੀਆ ਪਾਵਹਿ ਧੁਰਿ ਲਹਣਾ ॥
जे सउ धावहि प्राणीआ पावहि धुरि लहणा ॥
यदि प्राणी सौ यत्न करता हुआ भी भागदौड़ करता रहे, किन्तु उसे वही प्राप्त होता है, जो प्रारब्ध में लिखा होता है।
ਬਿਨੁ ਕਰਮਾ ਕਿਛੂ ਨ ਲਭਈ ਜੇ ਫਿਰਹਿ ਸਭ ਧਰਣਾ ॥
बिनु करमा किछू न लभई जे फिरहि सभ धरणा ॥
यदि प्राणी सारी धरती पर भी घूमता रहे, फिर भी भाग्य के बिना उसे कुछ भी नहीं मिलता।
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਭਉ ਗੋਵਿੰਦ ਕਾ ਭੈ ਡਰੁ ਦੂਰਿ ਕਰਣਾ ॥
गुर मिलि भउ गोविंद का भै डरु दूरि करणा ॥
गुरु को मिलकर जो भगवान के प्रति अदा रूपी भय मन में बसा लेता है, उसका यम का भय दूर हो जाता है।
ਭੈ ਤੇ ਬੈਰਾਗੁ ਊਪਜੈ ਹਰਿ ਖੋਜਤ ਫਿਰਣਾ ॥
भै ते बैरागु ऊपजै हरि खोजत फिरणा ॥
श्रद्धा रूपी भय धारण करने से ही प्रभु-मिलन के लिए वैराग्य उत्पन्न होता है और तब वह परमात्मा को खोजता है।
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਸਹਜੁ ਉਪਜਿਆ ਫਿਰਿ ਜਨਮਿ ਨ ਮਰਣਾ ॥
खोजत खोजत सहजु उपजिआ फिरि जनमि न मरणा ॥
भगवान् को खोजते-खोजते ही मन में परमानंद पैदा होता है और फिर जन्म-मरण छूट जाता है।
ਹਿਆਇ ਕਮਾਇ ਧਿਆਇਆ ਪਾਇਆ ਸਾਧ ਸਰਣਾ ॥
हिआइ कमाइ धिआइआ पाइआ साध सरणा ॥
उसने साधु की शरण पाकर हृदय में परमात्मा का ही ध्यान किया है।
ਬੋਹਿਥੁ ਨਾਨਕ ਦੇਉ ਗੁਰੁ ਜਿਸੁ ਹਰਿ ਚੜਾਏ ਤਿਸੁ ਭਉਜਲੁ ਤਰਣਾ ॥੨੨॥
बोहिथु नानक देउ गुरु जिसु हरि चड़ाए तिसु भउजलु तरणा ॥२२॥
हे नानक ! गुरु ही नाम रूपी जहाज है, जिसे ईश्वर इस में चढ़ा देता है, उसे भवसागर से तार देता है॥ २२॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਪਹਿਲਾ ਮਰਣੁ ਕਬੂਲਿ ਜੀਵਣ ਕੀ ਛਡਿ ਆਸ ॥
पहिला मरणु कबूलि जीवण की छडि आस ॥
सर्वप्रथम मृत्यु को कबूल करो; जीने की आशा छोड़ दो,
ਹੋਹੁ ਸਭਨਾ ਕੀ ਰੇਣੁਕਾ ਤਉ ਆਉ ਹਮਾਰੈ ਪਾਸਿ ॥੧॥
होहु सभना की रेणुका तउ आउ हमारै पासि ॥१॥
सबकी चरणरज बन जाओ; हे मानव ! तो ही हमारे पास आओ॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਮੁਆ ਜੀਵੰਦਾ ਪੇਖੁ ਜੀਵੰਦੇ ਮਰਿ ਜਾਨਿ ॥
मुआ जीवंदा पेखु जीवंदे मरि जानि ॥
अहंकार-भाव से मृत आदमी को ही जीवित समझो एवं अभिमान में जीवित को तो मृतक ही समझो।
ਜਿਨੑਾ ਮੁਹਬਤਿ ਇਕ ਸਿਉ ਤੇ ਮਾਣਸ ਪਰਧਾਨ ॥੨॥
जिन्हा मुहबति इक सिउ ते माणस परधान ॥२॥
वही मनुष्य सर्वश्रेष्ठ हैं, जिनकी ईश्वर से मुहब्बत लगी हुई है॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨਿਕਟਿ ਨ ਆਵੈ ਪੀਰ ॥
जिसु मनि वसै पारब्रहमु निकटि न आवै पीर ॥
जिसके मन में परब्रह्म बस जाता है, कोई पीड़ा उसके निकट भी नहीं आती।
ਭੁਖ ਤਿਖ ਤਿਸੁ ਨ ਵਿਆਪਈ ਜਮੁ ਨਹੀ ਆਵੈ ਨੀਰ ॥੩॥
भुख तिख तिसु न विआपई जमु नही आवै नीर ॥३॥
भूख-प्यास तो उसे बिल्कुल तंग नहीं करते और यम उसके निकट ही नहीं आता॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈਐ ਸਚੁ ਸਾਹ ਅਡੋਲੈ ॥
कीमति कहणु न जाईऐ सचु साह अडोलै ॥
हे सच्चे मालिक ! तू सदैव अडोल है, तेरी कीमत आँकी नहीं जा सकती।
ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਗਿਆਨੀ ਧਿਆਨੀਆ ਕਉਣੁ ਤੁਧੁਨੋ ਤੋਲੈ ॥
सिध साधिक गिआनी धिआनीआ कउणु तुधुनो तोलै ॥
सिद्ध-साधक, ज्ञानी-ध्यानी में से कौन तेरी महिमा को तौल सकता है।
ਭੰਨਣ ਘੜਣ ਸਮਰਥੁ ਹੈ ਓਪਤਿ ਸਭ ਪਰਲੈ ॥
भंनण घड़ण समरथु है ओपति सभ परलै ॥
तू नष्ट करने एवं बनाने में समर्थ है, संसार की उत्पत्ति एवं प्रलय सब तेरी ही लीला है।
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥੁ ਹੈ ਘਟਿ ਘਟਿ ਸਭ ਬੋਲੈ ॥
करण कारण समरथु है घटि घटि सभ बोलै ॥
तू सब कुछ करने-करवाने में समर्थ है और सब शरीरों में तू ही बोलता है।
ਰਿਜਕੁ ਸਮਾਹੇ ਸਭਸੈ ਕਿਆ ਮਾਣਸੁ ਡੋਲੈ ॥
रिजकु समाहे सभसै किआ माणसु डोलै ॥
हे मनुष्य ! तू क्यों फिक्र करता है, जबकि परमात्मा तो सब को आहार प्रदान करता है।
ਗਹਿਰ ਗਭੀਰੁ ਅਥਾਹੁ ਤੂ ਗੁਣ ਗਿਆਨ ਅਮੋਲੈ ॥
गहिर गभीरु अथाहु तू गुण गिआन अमोलै ॥
हे ईश्वर ! तू गहन-गम्भीर एवं अथाह है, तेरे गुण एवं ज्ञान अमूल्य हैं।
ਸੋਈ ਕੰਮੁ ਕਮਾਵਣਾ ਕੀਆ ਧੁਰਿ ਮਉਲੈ ॥
सोई कमु कमावणा कीआ धुरि मउलै ॥
मनुष्य ने तो वही काम करना है, जो परमेश्वर ने उसके लिए निश्चित कर दिया है।
ਤੁਧਹੁ ਬਾਹਰਿ ਕਿਛੁ ਨਹੀ ਨਾਨਕੁ ਗੁਣ ਬੋਲੈ ॥੨੩॥੧॥੨॥
तुधहु बाहरि किछु नही नानकु गुण बोलै ॥२३॥१॥२॥
हे मालिक ! तुझसे बाहर कुछ भी नहीं है, नानक तो तेरे ही गुण गाता हैं॥ २३ ॥ १॥ २॥
ਰਾਗੁ ਮਾਰੂ ਬਾਣੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਕੀ
रागु मारू बाणी कबीर जीउ की
रागु मारू बाणी कबीर जीउ की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਪਡੀਆ ਕਵਨ ਕੁਮਤਿ ਤੁਮ ਲਾਗੇ ॥
पडीआ कवन कुमति तुम लागे ॥
अरे पण्डित ! तुम किस कुमति में लग चुके हो।
ਬੂਡਹੁਗੇ ਪਰਵਾਰ ਸਕਲ ਸਿਉ ਰਾਮੁ ਨ ਜਪਹੁ ਅਭਾਗੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बूडहुगे परवार सकल सिउ रामु न जपहु अभागे ॥१॥ रहाउ ॥
हे अभागे, अगर राम का नाम नहीं जपा तो पूरे परिवार सहित डूब जाओगे॥ १॥ रहाउ॥
ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਪੜੇ ਕਾ ਕਿਆ ਗੁਨੁ ਖਰ ਚੰਦਨ ਜਸ ਭਾਰਾ ॥
बद पुरान पड़े का किआ गुनु खर चंदन जस भारा ॥
वेद एवं पुराणों को पढ़ने का तुझे क्या फायदा ? यह तो यूं ही व्यर्थ है, जैसे गधे पर चन्दन का भार लादा होता है।