ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੀ ॥
करि किरपा प्रभि पारि उतारी ॥
हे प्रभु ! कृपा करके तूने उसका संसार-सागर से उद्धार कर दिया है।
ਅਗਨਿ ਪਾਣੀ ਸਾਗਰੁ ਅਤਿ ਗਹਰਾ ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ਹੇ ॥੨॥
अगनि पाणी सागरु अति गहरा गुरु सतिगुरु पारि उतारा हे ॥२॥
यह संसार-सागर तृष्णा की अग्नि के जल से भरा हुआ है, जो बहुत ही गहरा है, परन्तु गुरु इस में से पार उतार देता है॥ २॥
ਮਨਮੁਖ ਅੰਧੁਲੇ ਸੋਝੀ ਨਾਹੀ ॥
मनमुख अंधुले सोझी नाही ॥
अंधे को इस बात की सूझ ही नहीं है।
ਆਵਹਿ ਜਾਹਿ ਮਰਹਿ ਮਰਿ ਜਾਹੀ ॥
आवहि जाहि मरहि मरि जाही ॥
इसलिए वह जगत् में आता-जाता, मरता और मरकर यहाँ से चला जाता है।
ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਲੇਖੁ ਨ ਮਿਟਈ ਜਮ ਦਰਿ ਅੰਧੁ ਖੁਆਰਾ ਹੇ ॥੩॥
पूरबि लिखिआ लेखु न मिटई जम दरि अंधु खुआरा हे ॥३॥
पूर्व कर्मों द्वारा लिखा भाग्यलेख कभी मिटता नहीं और मनमुखी यम के दर पर दुखी होता है॥ ३॥
ਇਕਿ ਆਵਹਿ ਜਾਵਹਿ ਘਰਿ ਵਾਸੁ ਨ ਪਾਵਹਿ ॥
इकि आवहि जावहि घरि वासु न पावहि ॥
कई जीव जन्मते-मरते रहते हैं और सच्चे घर में निवास प्राप्त नहीं करते और
ਕਿਰਤ ਕੇ ਬਾਧੇ ਪਾਪ ਕਮਾਵਹਿ ॥
किरत के बाधे पाप कमावहि ॥
कर्म बंधन में फँसकर पाप करते रहते हैं।
ਅੰਧੁਲੇ ਸੋਝੀ ਬੂਝ ਨ ਕਾਈ ਲੋਭੁ ਬੁਰਾ ਅਹੰਕਾਰਾ ਹੇ ॥੪॥
अंधुले सोझी बूझ न काई लोभु बुरा अहंकारा हे ॥४॥
ऐसे ज्ञानहीन को कोई सूझ-बूझ ही नहीं है कि लोभ एवं अहंकार बहुत बुरा है॥ ४॥
ਪਿਰ ਬਿਨੁ ਕਿਆ ਤਿਸੁ ਧਨ ਸੀਗਾਰਾ ॥
पिर बिनु किआ तिसु धन सीगारा ॥
पति-प्रभु के बिना उस जीव स्त्री का श्रृंगार व्यर्थ है
ਪਰ ਪਿਰ ਰਾਤੀ ਖਸਮੁ ਵਿਸਾਰਾ ॥
पर पिर राती खसमु विसारा ॥
वह पराए पुरुष के प्रेम में आसक्त रहकर अपने मालिक को भुला देती है।
ਜਿਉ ਬੇਸੁਆ ਪੂਤ ਬਾਪੁ ਕੋ ਕਹੀਐ ਤਿਉ ਫੋਕਟ ਕਾਰ ਵਿਕਾਰਾ ਹੇ ॥੫॥
जिउ बेसुआ पूत बापु को कहीऐ तिउ फोकट कार विकारा हे ॥५॥
जैसे वेश्या के पुत्र का पिता किंसे कहा जा सकता है ? यों ही मनमुखके किए हुए सभी कर्म व्यर्थ एवं विकार रूप हैं।॥ ५॥
ਪ੍ਰੇਤ ਪਿੰਜਰ ਮਹਿ ਦੂਖ ਘਨੇਰੇ ॥
प्रेत पिंजर महि दूख घनेरे ॥
मनमुख प्रेत के शरीर रूपी पिंजरे में अनेक दुख भरे हुए हैं।
ਨਰਕਿ ਪਚਹਿ ਅਗਿਆਨ ਅੰਧੇਰੇ ॥
नरकि पचहि अगिआन अंधेरे ॥
वह अज्ञान रूपी अंधेरे के कारण नरक में दुखी होता है।
ਧਰਮ ਰਾਇ ਕੀ ਬਾਕੀ ਲੀਜੈ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਾ ਹੇ ॥੬॥
धरम राइ की बाकी लीजै जिनि हरि का नामु विसारा हे ॥६॥
जिसने परमात्मा का नाम भुला है, उसे यमराज का दण्ड भोगना पड़ता है॥ ६॥
ਸੂਰਜੁ ਤਪੈ ਅਗਨਿ ਬਿਖੁ ਝਾਲਾ ॥ ਅਪਤੁ ਪਸੂ ਮਨਮੁਖੁ ਬੇਤਾਲਾ ॥
सूरजु तपै अगनि बिखु झाला ॥ अपतु पसू मनमुखु बेताला ॥
नरक-कुण्ड में सूर्य प्रचंड तपता रहता है और उस में से अग्नि की विध रूपी लपटें निकलती रहती हैं। मन के संकेतों पर चलने वाला प्राणी बेशर्म, पशु एवं प्रेत समान है।
ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਕੂੜੁ ਕਮਾਵਹਿ ਰੋਗੁ ਬੁਰਾ ਬੁਰਿਆਰਾ ਹੇ ॥੭॥
आसा मनसा कूड़ु कमावहि रोगु बुरा बुरिआरा हे ॥७॥
वह आशा एवं अभिलाषा की पूर्ति के लिए झुठ का ही उपयोग करता है और उसे बुराई करने का बुरा रोग लगा रहता है॥ ७॥
ਮਸਤਕਿ ਭਾਰੁ ਕਲਰ ਸਿਰਿ ਭਾਰਾ ॥
मसतकि भारु कलर सिरि भारा ॥
जिस ने अपने माथे एवं सिर पर पाप रूपी मिट्टी का भार उठाया है,
ਕਿਉ ਕਰਿ ਭਵਜਲੁ ਲੰਘਸਿ ਪਾਰਾ ॥
किउ करि भवजलु लंघसि पारा ॥
वह भवसागर से क्योंकर पार हो सकता है ?
ਸਤਿਗੁਰੁ ਬੋਹਿਥੁ ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ਹੇ ॥੮॥
सतिगुरु बोहिथु आदि जुगादी राम नामि निसतारा हे ॥८॥
सृष्टि के आदि एवं युगादि से सतिगुरु ही जहाज है, जो राम-नाम द्वारा पार करवा देता है॥ ८॥
ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਜਗਿ ਹੇਤੁ ਪਿਆਰਾ ॥ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਪਸਰਿਆ ਪਾਸਾਰਾ ॥
पुत्र कलत्र जगि हेतु पिआरा ॥ माइआ मोहु पसरिआ पासारा ॥
जग में प्रत्येक मनुष्य को पुत्र एवं पत्नी ही प्रिय है और सर्वत्र मोह-माया का ही प्रसार फैला हुआ है।
ਜਮ ਕੇ ਫਾਹੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਤੋੜੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਾ ਹੇ ॥੯॥
जम के फाहे सतिगुरि तोड़े गुरमुखि ततु बीचारा हे ॥९॥
जो गुरु के सान्निध्य में परम-तत्व का चिंतन करता है, सतगुरु उसके यम के बन्धन तोड़ देता है॥ ९॥
ਕੂੜਿ ਮੁਠੀ ਚਾਲੈ ਬਹੁ ਰਾਹੀ ॥
कूड़ि मुठी चालै बहु राही ॥
झूठ की ठगी हुई दुनिया अनेक मार्गों पर चलती है और
ਮਨਮੁਖੁ ਦਾਝੈ ਪੜਿ ਪੜਿ ਭਾਹੀ ॥
मनमुखु दाझै पड़ि पड़ि भाही ॥
मनमुख तृष्णाग्नि में पड़-पड़कर जलता रहता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਗੁਰੂ ਵਡ ਦਾਣਾ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਸੁਖ ਸਾਰਾ ਹੇ ॥੧੦॥
अम्रित नामु गुरू वड दाणा नामु जपहु सुख सारा हे ॥१०॥
गुरु नामामृत देने वाला बड़ा दानवीर है; परमात्मा का नाम जपते रहो, यही सच्चा सुख देने वाला है॥ १०॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਤੁਠਾ ਸਚੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
सतिगुरु तुठा सचु द्रिड़ाए ॥
सतगुरु प्रसन्न होकर सत्य का रहस्य दृढ़ करवाता है;
ਸਭਿ ਦੁਖ ਮੇਟੇ ਮਾਰਗਿ ਪਾਏ ॥
सभि दुख मेटे मारगि पाए ॥
वह सभी दुख मिटाकर सन्मार्ग लगाता है।
ਕੰਡਾ ਪਾਇ ਨ ਗਡਈ ਮੂਲੇ ਜਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਰਾਖਣਹਾਰਾ ਹੇ ॥੧੧॥
कंडा पाइ न गडई मूले जिसु सतिगुरु राखणहारा हे ॥११॥
जिसका सतगुरु रखवाला बन जाता है, उसके पैर में कॉटा बिल्कुल ही नहीं चुभता॥ ११॥
ਖੇਹੂ ਖੇਹ ਰਲੈ ਤਨੁ ਛੀਜੈ ॥
खेहू खेह रलै तनु छीजै ॥
जब मनुष्य का शरीर क्षीण हो जाता है तो यह खाक बनकर खाक में ही मिल जाता है।
ਮਨਮੁਖੁ ਪਾਥਰੁ ਸੈਲੁ ਨ ਭੀਜੈ ॥
मनमुखु पाथरु सैलु न भीजै ॥
मनमुखी जीव पत्थर समान है, जिसका मन भक्ति में नहीं भीगता।
ਕਰਣ ਪਲਾਵ ਕਰੇ ਬਹੁਤੇਰੇ ਨਰਕਿ ਸੁਰਗਿ ਅਵਤਾਰਾ ਹੇ ॥੧੨॥
करण पलाव करे बहुतेरे नरकि सुरगि अवतारा हे ॥१२॥
वह अनेक प्रलाप करता है किन्तु फिर भी कभी नरक और कभी स्वर्ग में जन्म लेता रहता है॥ १२॥
ਮਾਇਆ ਬਿਖੁ ਭੁਇਅੰਗਮ ਨਾਲੇ ॥
माइआ बिखु भुइअंगम नाले ॥
विष रूप माया नागिन जीवों के संग ही रहती है और
ਇਨਿ ਦੁਬਿਧਾ ਘਰ ਬਹੁਤੇ ਗਾਲੇ ॥
इनि दुबिधा घर बहुते गाले ॥
इस दुविधा ने अनेक घर बर्बाद कर दिए हैं।
ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝਹੁ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਉਪਜੈ ਭਗਤਿ ਰਤੇ ਪਤੀਆਰਾ ਹੇ ॥੧੩॥
सतिगुर बाझहु प्रीति न उपजै भगति रते पतीआरा हे ॥१३॥
सच्चे गुरु के बिना मन में प्रीति उत्पन्न नहीं होती और भक्ति में लीन रहने वाले संतुष्ट रहते हैं। १३॥
ਸਾਕਤ ਮਾਇਆ ਕਉ ਬਹੁ ਧਾਵਹਿ ॥
साकत माइआ कउ बहु धावहि ॥
शक्ति का पुजारी माया के लिए तो बहुत भागदौड़ करता है किन्तु
ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਕਹਾ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ॥
नामु विसारि कहा सुखु पावहि ॥
नाम को भुलाकर कैसे सुख प्राप्त कर सकता है।
ਤ੍ਰਿਹੁ ਗੁਣ ਅੰਤਰਿ ਖਪਹਿ ਖਪਾਵਹਿ ਨਾਹੀ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ਹੇ ॥੧੪॥
त्रिहु गुण अंतरि खपहि खपावहि नाही पारि उतारा हे ॥१४॥
वह त्रिगुणात्मक माया में ही खपता खपाता रहता है, अतः उसकी मुक्ति नहीं होती॥ १४॥
ਕੂਕਰ ਸੂਕਰ ਕਹੀਅਹਿ ਕੂੜਿਆਰਾ ॥
कूकर सूकर कहीअहि कूड़िआरा ॥
झूठे आदमी को कुत्ता एवं सूअर ही कहा जाता है,
ਭਉਕਿ ਮਰਹਿ ਭਉ ਭਉ ਭਉ ਹਾਰਾ ॥
भउकि मरहि भउ भउ भउ हारा ॥
वह कुते की तरह व्यर्थ भौंकता रहता है और भौंक-भौंक कर हार जाता है।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਝੂਠੇ ਕੂੜੁ ਕਮਾਵਹਿ ਦੁਰਮਤਿ ਦਰਗਹ ਹਾਰਾ ਹੇ ॥੧੫॥
मनि तनि झूठे कूड़ु कमावहि दुरमति दरगह हारा हे ॥१५॥
वह मन-तन से झूठा है, झूठे काम करता है और दुर्मति के कारण अपनी जीवन बाजी हार कर ही प्रभु-दरबार में जाता है॥ १५॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਮਨੂਆ ਟੇਕੈ ॥
सतिगुरु मिलै त मनूआ टेकै ॥
यदि सतगुरु मिल जाए तो मन स्थिर हो जाता है और शरण में आए हुए को राम-नाम प्रदान कर देता है।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਦੇ ਸਰਣਿ ਪਰੇਕੈ ॥
राम नामु दे सरणि परेकै ॥
वह अमूल्य हरि-नाम रूपी धन प्रदान करता है।
ਹਰਿ ਧਨੁ ਨਾਮੁ ਅਮੋਲਕੁ ਦੇਵੈ ਹਰਿ ਜਸੁ ਦਰਗਹ ਪਿਆਰਾ ਹੇ ॥੧੬॥
हरि धनु नामु अमोलकु देवै हरि जसु दरगह पिआरा हे ॥१६॥
जो हरि का यशगान करता है वही दरबार में प्रभु को प्यारा लगता है ॥१६॥