ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਆਰਾਧੇ ॥
गुरु पूरा आराधे ॥
पूर्ण गुरु की आराधना करने से
ਕਾਰਜ ਸਗਲੇ ਸਾਧੇ ॥
कारज सगले साधे ॥
सभी कार्य सिद्ध हो गए हैं।
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰੇ ॥
सगल मनोरथ पूरे ॥
मेरे सभी मनोरथ भी पूरे हो गए हैं और
ਬਾਜੇ ਅਨਹਦ ਤੂਰੇ ॥੧॥
बाजे अनहद तूरे ॥१॥
मन में अनहद नाद बजते हैं।॥१॥
ਸੰਤਹੁ ਰਾਮੁ ਜਪਤ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
संतहु रामु जपत सुखु पाइआ ॥
हे संतो ! राम का भजन करने से सुख की उपलब्धि हुई है।
ਸੰਤ ਅਸਥਾਨਿ ਬਸੇ ਸੁਖ ਸਹਜੇ ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਮਿਟਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
संत असथानि बसे सुख सहजे सगले दूख मिटाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
संतों के पावन स्थान पर निर्मल सहज सुख पा लिया है और सभी दुःख मिट गए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਬਾਣੀ ॥ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਮਨਿ ਭਾਣੀ ॥
गुर पूरे की बाणी ॥ पारब्रहम मनि भाणी ॥
पूर्ण गुरु की मधुर वाणी परब्रह्म-परमेश्वर के मन को लुभाती है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸਿ ਵਖਾਣੀ ॥ ਨਿਰਮਲ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥੨॥੧੮॥੮੨॥
नानक दासि वखाणी ॥ निरमल अकथ कहाणी ॥२॥१८॥८२॥
दास नानक ने वही बखान किया है जो प्रभु की निर्मल अकथनीय कहानी है ॥२॥१८॥८२॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥
ਭੂਖੇ ਖਾਵਤ ਲਾਜ ਨ ਆਵੈ ॥
भूखे खावत लाज न आवै ॥
जैसे किसी भूखे पुरुष को खाते वक्त लज्जा नहीं आती
ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥੧॥
तिउ हरि जनु हरि गुण गावै ॥१॥
वैसे ही प्रभु-भक्त नि:संकोच प्रभु का गुणगान करता है॥ १॥
ਅਪਨੇ ਕਾਜ ਕਉ ਕਿਉ ਅਲਕਾਈਐ ॥
अपने काज कउ किउ अलकाईऐ ॥
अपने कार्य (प्रभु-भक्ति) को करने में क्यों आलस्य करें ?
ਜਿਤੁ ਸਿਮਰਨਿ ਦਰਗਹ ਮੁਖੁ ਊਜਲ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जितु सिमरनि दरगह मुखु ऊजल सदा सदा सुखु पाईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
जिसका सिमरन करने से प्रभु-दरबार में मुख उज्ज्वल होता है और हमेशा ही सुख की उपलब्धि होती है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਉ ਕਾਮੀ ਕਾਮਿ ਲੁਭਾਵੈ ॥
जिउ कामी कामि लुभावै ॥
जैसे कामुक व्यक्ति कामवासना में ही तल्लीन रहता है,
ਤਿਉ ਹਰਿ ਦਾਸ ਹਰਿ ਜਸੁ ਭਾਵੈ ॥੨॥
तिउ हरि दास हरि जसु भावै ॥२॥
वैसे ही प्रभु के भक्त को प्रभु का यशगान ही अच्छा लगता है॥ २ ॥
ਜਿਉ ਮਾਤਾ ਬਾਲਿ ਲਪਟਾਵੈ ॥
जिउ माता बालि लपटावै ॥
जैसे माता अपने बालक के साथ मोह में लिपटी रहती है,
ਤਿਉ ਗਿਆਨੀ ਨਾਮੁ ਕਮਾਵੈ ॥੩॥
तिउ गिआनी नामु कमावै ॥३॥
वैसे ही ज्ञानवान व्यक्ति प्रभु-नाम की साधना में ही मग्न रहता है।॥३॥
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਪਾਵੈ ॥ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈ ॥੪॥੧੯॥੮੩॥
गुर पूरे ते पावै ॥ जन नानक नामु धिआवै ॥४॥१९॥८३॥
नानक का कथन है कि पूर्ण गुरु से नाम-सिमरन की प्राप्ति होती है, और वह प्रभु-नाम का ही ध्यान करता है ॥४॥१६॥८३॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥
ਸੁਖ ਸਾਂਦਿ ਘਰਿ ਆਇਆ ॥
सुख सांदि घरि आइआ ॥
मैं अपने घर में सकुशल आ गया हूँ और
ਨਿੰਦਕ ਕੈ ਮੁਖਿ ਛਾਇਆ ॥
निंदक कै मुखि छाइआ ॥
निन्दकों का मुँह काला हो गया है अर्थात् निन्दक लज्जित हो गए हैं।
ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਪਹਿਰਾਇਆ ॥
पूरै गुरि पहिराइआ ॥
पूर्ण गुरु ने मुझे प्रतिष्ठा का परिधान पहना दिया है और
ਬਿਨਸੇ ਦੁਖ ਸਬਾਇਆ ॥੧॥
बिनसे दुख सबाइआ ॥१॥
मेरे समस्त दु:खों का विनाश हो गया है॥ १॥
ਸੰਤਹੁ ਸਾਚੇ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
संतहु साचे की वडिआई ॥
हे भक्तजनों ! यह सच्चे परमेश्वर का बड़प्पन है,
ਜਿਨਿ ਅਚਰਜ ਸੋਭ ਬਣਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिनि अचरज सोभ बणाई ॥१॥ रहाउ ॥
जिसने मेरी अद्भुत शोभा बनाई है ॥१॥ रहाउ ॥
ਬੋਲੇ ਸਾਹਿਬ ਕੈ ਭਾਣੈ ॥ ਦਾਸੁ ਬਾਣੀ ਬ੍ਰਹਮੁ ਵਖਾਣੈ ॥
बोले साहिब कै भाणै ॥ दासु बाणी ब्रहमु वखाणै ॥
मैं तो मालिक की रज़ा में ही बोलता हूँ और यह दास तो ब्रह्म-वाणी का ही बखान करता है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸੁਖਦਾਈ ॥ ਜਿਨਿ ਪੂਰੀ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥੨॥੨੦॥੮੪॥
नानक प्रभ सुखदाई ॥ जिनि पूरी बणत बणाई ॥२॥२०॥८४॥
हे नानक ! वह प्रभु बड़ा सुखदायक है, जिसने पूर्ण सृष्टि का निर्माण किया है ॥२॥२०॥८४॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥
ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਰਿਦੈ ਧਿਆਏ ॥
प्रभु अपुना रिदै धिआए ॥
अपने प्रभु का हृदय में ध्यान करते हुए
ਘਰਿ ਸਹੀ ਸਲਾਮਤਿ ਆਏ ॥
घरि सही सलामति आए ॥
हम सकुशल घर लौट आए हैं।
ਸੰਤੋਖੁ ਭਇਆ ਸੰਸਾਰੇ ॥
संतोखु भइआ संसारे ॥
अब संसार को संतोष प्राप्त हो गया है चूंकि
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਲੈ ਤਾਰੇ ॥੧॥
गुरि पूरै लै तारे ॥१॥
पूर्ण गुरु ने उसे भवसागर से तार दिया है॥ १॥
ਸੰਤਹੁ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਸਦਾ ਦਇਆਲਾ ॥
संतहु प्रभु मेरा सदा दइआला ॥
हे भक्तजनों ! मेरा प्रभु हमेशा ही मुझ पर दयालु है।
ਅਪਨੇ ਭਗਤ ਕੀ ਗਣਤ ਨ ਗਣਈ ਰਾਖੈ ਬਾਲ ਗੁਪਾਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अपने भगत की गणत न गणई राखै बाल गुपाला ॥१॥ रहाउ ॥
वह अपने भक्त के कर्मों का लेखा-जोखा नहीं करता और अपनी संतान की भांति उसकी रक्षा करता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ॥
हरि नामु रिदै उरि धारे ॥
मैंने तो अपने हृदय में भगवान का नाम ही धारण किया हुआ है और
ਤਿਨਿ ਸਭੇ ਥੋਕ ਸਵਾਰੇ ॥
तिनि सभे थोक सवारे ॥
उसने मेरे सभी कार्य संवार दिए हैं।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਤੁਸਿ ਦੀਆ ॥ ਫਿਰਿ ਨਾਨਕ ਦੂਖੁ ਨ ਥੀਆ ॥੨॥੨੧॥੮੫॥
गुरि पूरै तुसि दीआ ॥ फिरि नानक दूखु न थीआ ॥२॥२१॥८५॥
पूर्ण गुरु ने प्रसन्न होकर नाम-दान दिया है, अतः नानक को पुनः कोई कष्ट नहीं हुआ ॥ २॥ २१॥ ८५ ॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥
ਹਰਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਵਸਿਆ ਸੋਈ ॥
हरि मनि तनि वसिआ सोई ॥
मेरे मन-तन में हरि का निवास हो गया है,
ਜੈ ਜੈ ਕਾਰੁ ਕਰੇ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥
जै जै कारु करे सभु कोई ॥
जिसके फलस्वरूप अब सभी मेरा मान-सम्मान कर रहे हैं।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
गुर पूरे की वडिआई ॥
यह पूर्ण गुरु का बड़प्पन है कि
ਤਾ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥
ता की कीमति कही न जाई ॥१॥
उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ॥ १॥
ਹਉ ਕੁਰਬਾਨੁ ਜਾਈ ਤੇਰੇ ਨਾਵੈ ॥
हउ कुरबानु जाई तेरे नावै ॥
हे प्रभु ! मैं तेरे नाम पर कुर्बान जाता हूँ।
ਜਿਸ ਨੋ ਬਖਸਿ ਲੈਹਿ ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਸੋ ਜਸੁ ਤੇਰਾ ਗਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिस नो बखसि लैहि मेरे पिआरे सो जसु तेरा गावै ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे प्यारे ! जिसे तू क्षमा कर देता है, वही तेरा यश गाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਤੂੰ ਭਾਰੋ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰਾ ॥
तूं भारो सुआमी मेरा ॥
हे ईश्वर ! तू मेरा महान् स्वामी है और
ਸੰਤਾਂ ਭਰਵਾਸਾ ਤੇਰਾ ॥
संतां भरवासा तेरा ॥
संतों को तेरा ही भरोसा है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਈ ॥ ਮੁਖਿ ਨਿੰਦਕ ਕੈ ਛਾਈ ॥੨॥੨੨॥੮੬॥
नानक प्रभ सरणाई ॥ मुखि निंदक कै छाई ॥२॥२२॥८६॥
नानक का कथन है कि प्रभु की शरण में आने से निन्दकों का मुँह काला हो गया है॥ २॥ २२॥ ८६॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥
ਆਗੈ ਸੁਖੁ ਮੇਰੇ ਮੀਤਾ ॥
आगै सुखु मेरे मीता ॥
हे मेरे मित्र ! भूतकाल-भविष्यकाल (लोक-परलोक) में
ਪਾਛੇ ਆਨਦੁ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਤਾ ॥
पाछे आनदु प्रभि कीता ॥
मेरे लिए प्रभु ने सुख एवं आनंद कर दिया है।
ਪਰਮੇਸੁਰਿ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥
परमेसुरि बणत बणाई ॥
परमेश्वर ने ऐसा विधान बनाया है कि
ਫਿਰਿ ਡੋਲਤ ਕਤਹੂ ਨਾਹੀ ॥੧॥
फिरि डोलत कतहू नाही ॥१॥
मेरा मन फिर कहीं ओर डांवाडोल नहीं होता ॥१॥
ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬ ਸਿਉ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥
साचे साहिब सिउ मनु मानिआ ॥
मेरा मन अब तो सच्चे परमेश्वर में लीन हो गया है और
ਹਰਿ ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਜਾਨਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि सरब निरंतरि जानिआ ॥१॥ रहाउ ॥
मैंने उस प्रभु को निरन्तर सर्वव्यापी जान लिया है ॥१॥ रहाउ॥