ਮਹਲਾ ੨ ॥
महला २ ॥
महला २॥
ਕੀਤਾ ਕਿਆ ਸਾਲਾਹੀਐ ਕਰੇ ਸੋਇ ਸਾਲਾਹਿ ॥
कीता किआ सालाहीऐ करे सोइ सालाहि ॥
दुनिया की क्या सराहना करना ? जिसने बनाया है, उस परमात्मा की प्रशंसा करो।
ਨਾਨਕ ਏਕੀ ਬਾਹਰਾ ਦੂਜਾ ਦਾਤਾ ਨਾਹਿ ॥
नानक एकी बाहरा दूजा दाता नाहि ॥
हे नानक ! एक ईश्वर के सिवा अन्य कोई दाता नहीं।
ਕਰਤਾ ਸੋ ਸਾਲਾਹੀਐ ਜਿਨਿ ਕੀਤਾ ਆਕਾਰੁ ॥
करता सो सालाहीऐ जिनि कीता आकारु ॥
उस स्रष्टा की स्तुति करो, जिसने सृष्टि रचना की है।
ਦਾਤਾ ਸੋ ਸਾਲਾਹੀਐ ਜਿ ਸਭਸੈ ਦੇ ਆਧਾਰੁ ॥
दाता सो सालाहीऐ जि सभसै दे आधारु ॥
उस दाता की सराहना करो, जो सबको आसरा दे रहा है।
ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਸਦੀਵ ਹੈ ਪੂਰਾ ਜਿਸੁ ਭੰਡਾਰੁ ॥
नानक आपि सदीव है पूरा जिसु भंडारु ॥
नानक कथन करते हैं कि वह सदैव रहने वाला है, उसके भण्डार पूर्ण हैं।
ਵਡਾ ਕਰਿ ਸਾਲਾਹੀਐ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥੨॥
वडा करि सालाहीऐ अंतु न पारावारु ॥२॥
अतः बड़ा मानकर उसी की स्तुति करो, जिसका कोई अन्त एवं आर-पार नहीं ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਸੇਵਿਐ ਸੁਖੁ ਪਾਈ ॥
हरि का नामु निधानु है सेविऐ सुखु पाई ॥
परमात्मा का नाम सुखों की निधि है, उसकी भक्ति से सुख प्राप्त होता है।
ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਉਚਰਾਂ ਪਤਿ ਸਿਉ ਘਰਿ ਜਾਂਈ ॥
नामु निरंजनु उचरां पति सिउ घरि जांई ॥
पावन हरि-नामोच्चारण से मनुष्य सम्मानपूर्वक सच्चे घर जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬਾਣੀ ਨਾਮੁ ਹੈ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਵਸਾਈ ॥
गुरमुखि बाणी नामु है नामु रिदै वसाई ॥
गुरु की वाणी नाम है, नाम को हृदय में बसाना चाहिए।
ਮਤਿ ਪੰਖੇਰੂ ਵਸਿ ਹੋਇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਧਿਆਈਂ ॥
मति पंखेरू वसि होइ सतिगुरू धिआईं ॥
सतगुरु का ध्यान करने से मति रूपी पक्षी वश में आता है।
ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਹੋਇ ਨਾਮੇ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੪॥
नानक आपि दइआलु होइ नामे लिव लाई ॥४॥
हे नानक ! जिस पर भगवान दयालु होता है, वह नाम भजन में लीन रहता है।॥४॥
ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੨ ॥
सलोक महला २ ॥
श्लोक महला २ ॥
ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਕੈਸਾ ਬੋਲਣਾ ਜਿ ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਜਾਣੁ ॥
तिसु सिउ कैसा बोलणा जि आपे जाणै जाणु ॥
उसके आगे भला क्या बोलना, जो स्वयं अन्तर्यामी है।
ਚੀਰੀ ਜਾ ਕੀ ਨਾ ਫਿਰੈ ਸਾਹਿਬੁ ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ॥
चीरी जा की ना फिरै साहिबु सो परवाणु ॥
दरअसल वही मालिक माना जाता है, जिसके हुक्म को टाला नहीं जाता।
ਚੀਰੀ ਜਿਸ ਕੀ ਚਲਣਾ ਮੀਰ ਮਲਕ ਸਲਾਰ ॥
चीरी जिस की चलणा मीर मलक सलार ॥
वही नेता, शासक एवं सेनानायक है, जिसकी आज्ञा में सब लोग चलते हैं।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਨਾਨਕਾ ਸਾਈ ਭਲੀ ਕਾਰ ॥
जो तिसु भावै नानका साई भली कार ॥
नानक का कथन है केि जो ईश्वर को अच्छा लगता है, वही कार्य भला है।
ਜਿਨੑਾ ਚੀਰੀ ਚਲਣਾ ਹਥਿ ਤਿਨੑਾ ਕਿਛੁ ਨਾਹਿ ॥
जिन्हा चीरी चलणा हथि तिन्हा किछु नाहि ॥
जिन्हें संसार से चलने का हुक्म आता है, उनके हाथ में कुछ भी नहीं होता।
ਸਾਹਿਬ ਕਾ ਫੁਰਮਾਣੁ ਹੋਇ ਉਠੀ ਕਰਲੈ ਪਾਹਿ ॥
साहिब का फुरमाणु होइ उठी करलै पाहि ॥
मालिक का फुरमान आते ही वे उठकर चल पड़ते हैं।
ਜੇਹਾ ਚੀਰੀ ਲਿਖਿਆ ਤੇਹਾ ਹੁਕਮੁ ਕਮਾਹਿ ॥
जेहा चीरी लिखिआ तेहा हुकमु कमाहि ॥
जैसी मौत की चिट्ठी लिखी होती है, वैसे ही उसके हुक्म को मानना पड़ता है।
ਘਲੇ ਆਵਹਿ ਨਾਨਕਾ ਸਦੇ ਉਠੀ ਜਾਹਿ ॥੧॥
घले आवहि नानका सदे उठी जाहि ॥१॥
हे नानक ! ईश्वर के भेजने पर जीव जन्म लेते हैं और मृत्यु का आह्मन होने पर शरीर छोड़ देते हैं।॥१॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥
महला २ ॥
महला २॥
ਸਿਫਤਿ ਜਿਨਾ ਕਉ ਬਖਸੀਐ ਸੇਈ ਪੋਤੇਦਾਰ ॥
सिफति जिना कउ बखसीऐ सेई पोतेदार ॥
जिनको ईश्वर की स्तुति का दान प्राप्त हुआ है, वही पूंजीपति हैं।
ਕੁੰਜੀ ਜਿਨ ਕਉ ਦਿਤੀਆ ਤਿਨੑਾ ਮਿਲੇ ਭੰਡਾਰ ॥
कुंजी जिन कउ दितीआ तिन्हा मिले भंडार ॥
जिनको कुंजी प्राप्त होती है, उनको ही भण्डार मिलता है।
ਜਹ ਭੰਡਾਰੀ ਹੂ ਗੁਣ ਨਿਕਲਹਿ ਤੇ ਕੀਅਹਿ ਪਰਵਾਣੁ ॥
जह भंडारी हू गुण निकलहि ते कीअहि परवाणु ॥
वही दरबार में मान्य होता है, जिस भण्डारी के पास गुण मौजूद हैं।
ਨਦਰਿ ਤਿਨੑਾ ਕਉ ਨਾਨਕਾ ਨਾਮੁ ਜਿਨੑਾ ਨੀਸਾਣੁ ॥੨॥
नदरि तिन्हा कउ नानका नामु जिन्हा नीसाणु ॥२॥
हे नानक ! उन पर ही कृपा-दृष्टि होती है, जिनके पास हरिनाम का चिन्ह होता है।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਨਿਰਮਲਾ ਸੁਣਿਐ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
नामु निरंजनु निरमला सुणिऐ सुखु होई ॥
पावन हरिनाम का संकीर्तन सुनने से सुख प्राप्त होता है।
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਈਐ ਬੂਝੈ ਜਨੁ ਕੋਈ ॥
सुणि सुणि मंनि वसाईऐ बूझै जनु कोई ॥
हरिनाम को सुन-सुनकर मन में बसाना चाहिए, जिसे कोई विरला ही बूझता है।
ਬਹਦਿਆ ਉਠਦਿਆ ਨ ਵਿਸਰੈ ਸਾਚਾ ਸਚੁ ਸੋਈ ॥
बहदिआ उठदिआ न विसरै साचा सचु सोई ॥
उठते-बैठते सच्चा हरिनाम भूलना नहीं चाहिए।
ਭਗਤਾ ਕਉ ਨਾਮ ਅਧਾਰੁ ਹੈ ਨਾਮੇ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
भगता कउ नाम अधारु है नामे सुखु होई ॥
भक्तों का आसरा केवल हरिनाम है और वे नामोच्चारण में ही सुखी रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਤਨਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਸੋਈ ॥੫॥
नानक मनि तनि रवि रहिआ गुरमुखि हरि सोई ॥५॥
हे नानक ! गुरुमुखों के मन-तन में ईश्वर ही बसा हुआ है।॥५॥
ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सलोक महला १ ॥
श्लोक महला १॥
ਨਾਨਕ ਤੁਲੀਅਹਿ ਤੋਲ ਜੇ ਜੀਉ ਪਿਛੈ ਪਾਈਐ ॥
नानक तुलीअहि तोल जे जीउ पिछै पाईऐ ॥
गुरु नानक का कथन है कि यदि दिल की भावना को पलड़े में रखा जाए तो ही तौल पूरा उतरता है (मात्र पूजा-पाठ से तोलना मुमकिन नहीं)।
ਇਕਸੁ ਨ ਪੁਜਹਿ ਬੋਲ ਜੇ ਪੂਰੇ ਪੂਰਾ ਕਰਿ ਮਿਲੈ ॥
इकसु न पुजहि बोल जे पूरे पूरा करि मिलै ॥
परमात्मा की निष्ठापूर्वक उपासना के अतिरिक्त कोई जप-तप, मंत्र तुल्य नहीं, निष्ठापूर्वक नामोच्चारण, नामोपासना से ही प्रभु से मिला जा सकता है।
ਵਡਾ ਆਖਣੁ ਭਾਰਾ ਤੋਲੁ ॥
वडा आखणु भारा तोलु ॥
परमात्मा को बड़ा मानना अथवा यशोगान ही भारी तौल है।
ਹੋਰ ਹਉਲੀ ਮਤੀ ਹਉਲੇ ਬੋਲ ॥
होर हउली मती हउले बोल ॥
अन्य बोलना व चतुराई हलके ही सिद्ध होते हैं।
ਧਰਤੀ ਪਾਣੀ ਪਰਬਤ ਭਾਰੁ ॥
धरती पाणी परबत भारु ॥
ईश्वर का स्तुतिगान धरती, पानी एवं पर्वत से भी भारी है,
ਕਿਉ ਕੰਡੈ ਤੋਲੈ ਸੁਨਿਆਰੁ ॥
किउ कंडै तोलै सुनिआरु ॥
सुनार के तराजू पर भी इसे तौला नहीं जा सकता।
ਤੋਲਾ ਮਾਸਾ ਰਤਕ ਪਾਇ ॥
तोला मासा रतक पाइ ॥
दरअसल तौले-माशे पुण्य फल की बात बताकर समझाने की कोशिश करते हुए
ਨਾਨਕ ਪੁਛਿਆ ਦੇਇ ਪੁਜਾਇ ॥
नानक पुछिआ देइ पुजाइ ॥
नानक कथन करते हैं कि कर्मकाण्ड ऐसा है।
ਮੂਰਖ ਅੰਧਿਆ ਅੰਧੀ ਧਾਤੁ ॥
मूरख अंधिआ अंधी धातु ॥
मूर्ख अज्ञानी की बातें भी अंधी ही होती हैं।
ਕਹਿ ਕਹਿ ਕਹਣੁ ਕਹਾਇਨਿ ਆਪੁ ॥੧॥
कहि कहि कहणु कहाइनि आपु ॥१॥
वह कह-कहकर आत्म-प्रशंसा सिद्ध करता है॥१॥
ਮਹਲਾ ੧ ॥
महला १ ॥
महला १ ॥
ਆਖਣਿ ਅਉਖਾ ਸੁਨਣਿ ਅਉਖਾ ਆਖਿ ਨ ਜਾਪੀ ਆਖਿ ॥
आखणि अउखा सुनणि अउखा आखि न जापी आखि ॥
ईश्वर की महिमा को कहना और सुनना मुश्किल है, उसकी महिमा करके उसके रहस्य की अनुभूति नहीं हो सकती।
ਇਕਿ ਆਖਿ ਆਖਹਿ ਸਬਦੁ ਭਾਖਹਿ ਅਰਧ ਉਰਧ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ॥
इकि आखि आखहि सबदु भाखहि अरध उरध दिनु राति ॥
कोई दिन-रात उलटा लटक कर या सीधा एक ही शब्द रटता रहता है।
ਜੇ ਕਿਹੁ ਹੋਇ ਤ ਕਿਹੁ ਦਿਸੈ ਜਾਪੈ ਰੂਪੁ ਨ ਜਾਤਿ ॥
जे किहु होइ त किहु दिसै जापै रूपु न जाति ॥
अगर उसका एक रूप हो तो कुछ दिखाई दे, उसका रूप-जाति कोई नहीं है।
ਸਭਿ ਕਾਰਣ ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਘਟ ਅਉਘਟ ਘਟ ਥਾਪਿ ॥
सभि कारण करता करे घट अउघट घट थापि ॥
सब ईश्वर ही करता है, छोटा-बड़ा सब वही बनाने वाला है; वह सर्वकर्ता है।