Hindi Page 338

ਉਰ ਨ ਭੀਜੈ ਪਗੁ ਨਾ ਖਿਸੈ ਹਰਿ ਦਰਸਨ ਕੀ ਆਸਾ ॥੧॥
उर न भीजै पगु ना खिसै हरि दरसन की आसा ॥१॥
उसका हृदय प्रसन्न नहीं और भगवान के दर्शनों की आशा में वह अपने चरण पीछे नहीं हटाती॥ १॥

ਉਡਹੁ ਨ ਕਾਗਾ ਕਾਰੇ ॥
उडहु न कागा कारे ॥
हे काले कौए ! उड़ जा,

ਬੇਗਿ ਮਿਲੀਜੈ ਅਪੁਨੇ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बेगि मिलीजै अपुने राम पिआरे ॥१॥ रहाउ ॥
चूंकि जो मैं अपने प्रियतम प्रभु को शीघ्र मिल जाऊँ॥ १॥ रहाउ॥

ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਜੀਵਨ ਪਦ ਕਾਰਨਿ ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਕਰੀਜੈ ॥
कहि कबीर जीवन पद कारनि हरि की भगति करीजै ॥
कबीर जी कहते हैं जीवन पदवी प्राप्त करने के लिए भगवान की भक्ति करनी चाहिए।

ਏਕੁ ਆਧਾਰੁ ਨਾਮੁ ਨਾਰਾਇਨ ਰਸਨਾ ਰਾਮੁ ਰਵੀਜੈ ॥੨॥੧॥੧੪॥੬੫॥
एकु आधारु नामु नाराइन रसना रामु रवीजै ॥२॥१॥१४॥६५॥
नारायण के नाम का ही एकमात्र सहारा होना चाहिए और जिह्म से राम को ही स्मरण करना चाहिए॥ २ ॥ १॥ १४॥ ६५॥

ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ੧੧ ॥
रागु गउड़ी ११ ॥
रागु गउड़ी ११ ॥

ਆਸ ਪਾਸ ਘਨ ਤੁਰਸੀ ਕਾ ਬਿਰਵਾ ਮਾਝ ਬਨਾ ਰਸਿ ਗਾਊਂ ਰੇ ॥
आस पास घन तुरसी का बिरवा माझ बना रसि गाऊं रे ॥
जिस मुरली मनोहर के आसपास तुलसी के सघन पौधे थे तथा जो तुलसी के वन में प्रेमपूर्वक गाएँ चराता गा रहा था,

ਉਆ ਕਾ ਸਰੂਪੁ ਦੇਖਿ ਮੋਹੀ ਗੁਆਰਨਿ ਮੋ ਕਉ ਛੋਡਿ ਨ ਆਉ ਨ ਜਾਹੂ ਰੇ ॥੧॥
उआ का सरूपु देखि मोही गुआरनि मो कउ छोडि न आउ न जाहू रे ॥१॥
उसका दर्शन करके गोकुल की ग्वालिनी मुग्ध हो गई और कहने लगी, हे प्रियवर! मुझे छोड़कर किसी अन्य स्थान पर मत जाना॥ १॥

ਤੋਹਿ ਚਰਨ ਮਨੁ ਲਾਗੋ ਸਾਰਿੰਗਧਰ ॥
तोहि चरन मनु लागो सारिंगधर ॥
हे सारिंगधर प्रभु! मेरा मन तेरे चरणों से लगा हुआ है,

ਸੋ ਮਿਲੈ ਜੋ ਬਡਭਾਗੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सो मिलै जो बडभागो ॥१॥ रहाउ ॥
लेकिन तुझे वही मिलता है जो भाग्यशाली होता है॥ १॥ रहाउ॥

ਬਿੰਦ੍ਰਾਬਨ ਮਨ ਹਰਨ ਮਨੋਹਰ ਕ੍ਰਿਸਨ ਚਰਾਵਤ ਗਾਊ ਰੇ ॥
बिंद्राबन मन हरन मनोहर क्रिसन चरावत गाऊ रे ॥
वृंदावन मन को लुभाने वाला है, जहाँ मनोहर कृष्ण गौएँ चराता था।

ਜਾ ਕਾ ਠਾਕੁਰੁ ਤੁਹੀ ਸਾਰਿੰਗਧਰ ਮੋਹਿ ਕਬੀਰਾ ਨਾਊ ਰੇ ॥੨॥੨॥੧੫॥੬੬॥
जा का ठाकुरु तुही सारिंगधर मोहि कबीरा नाऊ रे ॥२॥२॥१५॥६६॥
हे सारिंगधर ! मेरा नाम कबीर है, जिसका ठाकुर तू है॥ २ ॥ २ ॥ १५॥ ६६॥

ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ੧੨ ॥
गउड़ी पूरबी १२ ॥
गउड़ी पूरबी १२ ॥

ਬਿਪਲ ਬਸਤ੍ਰ ਕੇਤੇ ਹੈ ਪਹਿਰੇ ਕਿਆ ਬਨ ਮਧੇ ਬਾਸਾ ॥
बिपल बसत्र केते है पहिरे किआ बन मधे बासा ॥
कुछ व्यक्ति अनेक प्रकार के वस्त्र पहनते हैं। जंगल में बसेरा करने की क्या लाभ ?

ਕਹਾ ਭਇਆ ਨਰ ਦੇਵਾ ਧੋਖੇ ਕਿਆ ਜਲਿ ਬੋਰਿਓ ਗਿਆਤਾ ॥੧॥
कहा भइआ नर देवा धोखे किआ जलि बोरिओ गिआता ॥१॥
यदि धूप इत्यादि जलाकर देवताओं की पूजा कर ली तो क्या लाभ हुआ ? और यदि अपने शरीर को (तीर्थो के) जल में डुबा लिया तो क्या लाभ हुआ ?॥ १॥

ਜੀਅਰੇ ਜਾਹਿਗਾ ਮੈ ਜਾਨਾਂ ॥
जीअरे जाहिगा मै जानां ॥
हे मन ! मैं जानता हूँ कि तुम (इस दुनिया से) चले जाओगे।

ਅਬਿਗਤ ਸਮਝੁ ਇਆਨਾ ॥
अबिगत समझु इआना ॥
हे मूर्ख प्राणी ! एक परमेश्वर को समझ।

ਜਤ ਜਤ ਦੇਖਉ ਬਹੁਰਿ ਨ ਪੇਖਉ ਸੰਗਿ ਮਾਇਆ ਲਪਟਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जत जत देखउ बहुरि न पेखउ संगि माइआ लपटाना ॥१॥ रहाउ ॥
जो कुछ भी प्राणी अब देखता है, वह उसे दोबारा नहीं देखेगा परन्तु तो भी वह माया से लिपटा हुआ है। १॥ रहाउ॥

ਗਿਆਨੀ ਧਿਆਨੀ ਬਹੁ ਉਪਦੇਸੀ ਇਹੁ ਜਗੁ ਸਗਲੋ ਧੰਧਾ ॥
गिआनी धिआनी बहु उपदेसी इहु जगु सगलो धंधा ॥
कोई ज्ञान-चर्चा कर रहा है, कोई मनन कर रहा है, कोई दूसरों को उपदेश दे रहा है, लेकिन यह समूचा जगत् माया का जंजाल ही है।

ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਇਕ ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਇਆ ਜਗੁ ਮਾਇਆ ਅੰਧਾ ॥੨॥੧॥੧੬॥੬੭॥
कहि कबीर इक राम नाम बिनु इआ जगु माइआ अंधा ॥२॥१॥१६॥६७॥
कबीर जी कहते हैं-एक राम का नाम-सिमरन किए बिना यह दुनिया माया ने ज्ञानहीन बनाई हुई है॥ २॥ १॥ १६॥ ६७॥

ਗਉੜੀ ੧੨ ॥
गउड़ी १२ ॥
गउड़ी १२ ॥

ਮਨ ਰੇ ਛਾਡਹੁ ਭਰਮੁ ਪ੍ਰਗਟ ਹੋਇ ਨਾਚਹੁ ਇਆ ਮਾਇਆ ਕੇ ਡਾਂਡੇ ॥
मन रे छाडहु भरमु प्रगट होइ नाचहु इआ माइआ के डांडे ॥
हे मेरे मन ! भ्रम छोड़ दे और प्रत्यक्ष तौर पर नृत्य कर। चूंकि यह सब माया के झगड़े हैं।

ਸੂਰੁ ਕਿ ਸਨਮੁਖ ਰਨ ਤੇ ਡਰਪੈ ਸਤੀ ਕਿ ਸਾਂਚੈ ਭਾਂਡੇ ॥੧॥
सूरु कि सनमुख रन ते डरपै सती कि सांचै भांडे ॥१॥
वह कैसा शूरवीर है जो आमने-सामने लड़ाई से डरता है और वह नारी सती नहीं हो सकती जो घर के बर्तन एकत्रित करने लग जाती है?॥ १॥

ਡਗਮਗ ਛਾਡਿ ਰੇ ਮਨ ਬਉਰਾ ॥
डगमग छाडि रे मन बउरा ॥
हे मूर्ख मन ! डगमगाना त्याग दे।

ਅਬ ਤਉ ਜਰੇ ਮਰੇ ਸਿਧਿ ਪਾਈਐ ਲੀਨੋ ਹਾਥਿ ਸੰਧਉਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अब तउ जरे मरे सिधि पाईऐ लीनो हाथि संधउरा ॥१॥ रहाउ ॥
जिस नारी ने हाथ में सिंदूर लगाया हुआ नारियल ले लिया उसे तो अब जल कर ही सिद्धि प्राप्त होगी॥ १॥ रहाउ ॥

ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਮਾਇਆ ਕੇ ਲੀਨੇ ਇਆ ਬਿਧਿ ਜਗਤੁ ਬਿਗੂਤਾ ॥
काम क्रोध माइआ के लीने इआ बिधि जगतु बिगूता ॥
सारी दुनिया काम, क्रोध एवं माया में लीन है। इस तरह यह दुनिया नाश हो रही है।

ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਨ ਛੋਡਉ ਸਗਲ ਊਚ ਤੇ ਊਚਾ ॥੨॥੨॥੧੭॥੬੮॥
कहि कबीर राजा राम न छोडउ सगल ऊच ते ऊचा ॥२॥२॥१७॥६८॥
कबीर जी कहते हैं तू राजा राम को मत त्याग, जो सर्वोपरि है॥ २॥ २॥ १७ ॥ ६८ ॥

ਗਉੜੀ ੧੩ ॥
गउड़ी १३ ॥
गउड़ी १३ ॥

ਫੁਰਮਾਨੁ ਤੇਰਾ ਸਿਰੈ ਊਪਰਿ ਫਿਰਿ ਨ ਕਰਤ ਬੀਚਾਰ ॥
फुरमानु तेरा सिरै ऊपरि फिरि न करत बीचार ॥
हे भगवान ! तेरा हुक्म मुझे मंजूर है और पुनः इस पर विचार नहीं करता।

ਤੁਹੀ ਦਰੀਆ ਤੁਹੀ ਕਰੀਆ ਤੁਝੈ ਤੇ ਨਿਸਤਾਰ ॥੧॥
तुही दरीआ तुही करीआ तुझै ते निसतार ॥१॥
हे प्रभु ! तू ही दरिया है और तू ही मल्लाह है। तुझ से ही मेरा कल्याण है॥ १॥

ਬੰਦੇ ਬੰਦਗੀ ਇਕਤੀਆਰ ॥
बंदे बंदगी इकतीआर ॥
हे मनुष्य ! प्रभु की भक्ति स्वीकार कर,

ਸਾਹਿਬੁ ਰੋਸੁ ਧਰਉ ਕਿ ਪਿਆਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साहिबु रोसु धरउ कि पिआरु ॥१॥ रहाउ ॥
चाहे तेरा मालिक तुझ पर क्रोधित होवे अथवा तुझ से प्रेम करे॥१ ॥ रहाउ ॥

ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਆਧਾਰੁ ਮੇਰਾ ਜਿਉ ਫੂਲੁ ਜਈ ਹੈ ਨਾਰਿ ॥
नामु तेरा आधारु मेरा जिउ फूलु जई है नारि ॥
“(हे भगवान !) तेरा नाम ही मेरा ऐसे आधार है, जैसे फूल जल में खिला रहता है।

ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਗੁਲਾਮੁ ਘਰ ਕਾ ਜੀਆਇ ਭਾਵੈ ਮਾਰਿ ॥੨॥੧੮॥੬੯॥
कहि कबीर गुलामु घर का जीआइ भावै मारि ॥२॥१८॥६९॥
कबीर जी कहते हैं-मैं तेरे घर का गुलाम हूँ, चाहे जीवित रखो, चाहे जीवन लीला समाप्त कर दो ॥ २ ॥ १८ ॥ ६९॥

ਗਉੜੀ ॥
गउड़ी ॥
गउड़ी ॥

ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਜੀਅ ਜੋਨਿ ਮਹਿ ਭ੍ਰਮਤ ਨੰਦੁ ਬਹੁ ਥਾਕੋ ਰੇ ॥
लख चउरासीह जीअ जोनि महि भ्रमत नंदु बहु थाको रे ॥
हे जिज्ञासु ! चौरासी लाख जीवों की योनियों में भटक-भटक कर (श्रीकृष्ण का पालनहार पिता) नन्द बहुत थक गया था।

ਭਗਤਿ ਹੇਤਿ ਅਵਤਾਰੁ ਲੀਓ ਹੈ ਭਾਗੁ ਬਡੋ ਬਪੁਰਾ ਕੋ ਰੇ ॥੧॥
भगति हेति अवतारु लीओ है भागु बडो बपुरा को रे ॥१॥
उसकी भक्ति पर खुश होकर श्रीकृष्ण ने उसके घर अवतार धारण किया। तब उस बेचारे नन्द का भाग्य उदय हुआ।॥ १॥

ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਜੁ ਕਹਤ ਹਉ ਨੰਦ ਕੋ ਨੰਦਨੁ ਨੰਦ ਸੁ ਨੰਦਨੁ ਕਾ ਕੋ ਰੇ ॥
तुम्ह जु कहत हउ नंद को नंदनु नंद सु नंदनु का को रे ॥
हे जिज्ञासु ! तुम कहते हो कि श्री कृष्ण नन्द का पुत्र था, वह नन्द स्वयं किसका पुत्र था ?

ਧਰਨਿ ਅਕਾਸੁ ਦਸੋ ਦਿਸ ਨਾਹੀ ਤਬ ਇਹੁ ਨੰਦੁ ਕਹਾ ਥੋ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
धरनि अकासु दसो दिस नाही तब इहु नंदु कहा थो रे ॥१॥ रहाउ ॥
जब यह धरती, आकाश एवं दसों दिशाएँ नहीं होते थे, तब यह नन्द कहाँ था ? ॥ १॥ रहाउ॥

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