Hindi Page 1403

ਬੇਵਜੀਰ ਬਡੇ ਧੀਰ ਧਰਮ ਅੰਗ ਅਲਖ ਅਗਮ ਖੇਲੁ ਕੀਆ ਆਪਣੈ ਉਛਾਹਿ ਜੀਉ ॥
बेवजीर बडे धीर धरम अंग अलख अगम खेलु कीआ आपणै उछाहि जीउ ॥
तू बेपरवाह है, बड़ा धैर्यवान, धर्म का पुंज, अलक्ष्य, अगम्य है, यह जगत-तमाशा तुमने अपनी इच्छा से ही बनाया है।

ਅਕਥ ਕਥਾ ਕਥੀ ਨ ਜਾਇ ਤੀਨਿ ਲੋਕ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ਸੁਤਹ ਸਿਧ ਰੂਪੁ ਧਰਿਓ ਸਾਹਨ ਕੈ ਸਾਹਿ ਜੀਉ ॥
अकथ कथा कथी न जाइ तीनि लोक रहिआ समाइ सुतह सिध रूपु धरिओ साहन कै साहि जीउ ॥
तेरी महिमा अकथनीय है, इसका कथन हम नहीं कर सकते, तू तीनों लोकों में मौजूद है, सहज स्वाभाविक ही तूने रूप धारण किया है, तू बादशाहों का भी बादशाह है।

ਸਤਿ ਸਾਚੁ ਸ੍ਰੀ ਨਿਵਾਸੁ ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਸਦਾ ਤੁਹੀ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿ ਜੀਉ ॥੩॥੮॥
सति साचु स्री निवासु आदि पुरखु सदा तुही वाहिगुरू वाहिगुरू वाहिगुरू वाहि जीउ ॥३॥८॥
हे सतिगुरु रामदास ! तू सत्य है, शाश्वत रूप है, कर्ता पुरुष है, देवी लक्ष्मी तेरी सेवा में तल्लीन है, तू सदैव रहने वाला है। वाह गुरु ! वाह वाह ! वाहिगुरु तू महान् है, तुझ पर मैं कुर्बान जाता हूँ॥३॥८॥

ਸਤਿਗੁਰੂ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸਤਿਗੁਰੁ ਗੁਬਿੰਦ ਜੀਉ ॥
सतिगुरू सतिगुरू सतिगुरु गुबिंद जीउ ॥
हे सतिगुरु रामदास ! तू सर्वकर्ता ईश्वर है।

ਬਲਿਹਿ ਛਲਨ ਸਬਲ ਮਲਨ ਭਗ੍ਤਿ ਫਲਨ ਕਾਨੑ ਕੁਅਰ ਨਿਹਕਲੰਕ ਬਜੀ ਡੰਕ ਚੜ੍ਹੂ ਦਲ ਰਵਿੰਦ ਜੀਉ ॥
बलिहि छलन सबल मलन भग्ति फलन कान्ह कुअर निहकलंक बजी डंक चड़्हू दल रविंद जीउ ॥
राजा बलि को छलनेवाला तू ही है, तू पापी-अहंकारी पुरुषों का नाश करने वाला है, भक्ति फल देनेवाला है, तू कृष्ण कन्हैया है, पाप दोषों से रहित है, तेरी महिमा का डंका सब ओर बज रहा है, सूर्य एवं चन्द्रमा तेरी कीर्ति के लिए उदय होते हैं।

ਰਾਮ ਰਵਣ ਦੁਰਤ ਦਵਣ ਸਕਲ ਭਵਣ ਕੁਸਲ ਕਰਣ ਸਰਬ ਭੂਤ ਆਪਿ ਹੀ ਦੇਵਾਧਿ ਦੇਵ ਸਹਸ ਮੁਖ ਫਨਿੰਦ ਜੀਉ ॥
राम रवण दुरत दवण सकल भवण कुसल करण सरब भूत आपि ही देवाधि देव सहस मुख फनिंद जीउ ॥
हे राम ! तू सर्वव्यापक है। तू पापों को जलाने वाला है, समस्त लोकों में कल्याण करने वाला है, पूरी दुनिया में मौजूद है, तू देवाधिदेव है, हजारों मुख वाला शेषनाग भी तू है।

ਜਰਮ ਕਰਮ ਮਛ ਕਛ ਹੁਅ ਬਰਾਹ ਜਮੁਨਾ ਕੈ ਕੂਲਿ ਖੇਲੁ ਖੇਲਿਓ ਜਿਨਿ ਗਿੰਦ ਜੀਉ ॥
जरम करम मछ कछ हुअ बराह जमुना कै कूलि खेलु खेलिओ जिनि गिंद जीउ ॥
मत्स्यावतार, कच्छपावतार, वाराहावतार में तूने ही कर्म किए और यमुना के तट पर गेंद से खेल कर कालिय नाग का मर्दन तूने ही किया।

ਨਾਮੁ ਸਾਰੁ ਹੀਏ ਧਾਰੁ ਤਜੁ ਬਿਕਾਰੁ ਮਨ ਗਯੰਦ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸਤਿਗੁਰ ਗੁਬਿੰਦ ਜੀਉ ॥੪॥੯॥
नामु सारु हीए धारु तजु बिकारु मन गयंद सतिगुरू सतिगुरू सतिगुर गुबिंद जीउ ॥४॥९॥
भाट गयंद का मन से यही कथन है कि विकारों को छोड़कर नाम को हृदय में धारण करो, सतिगुरु रामदास करण-कारण, सृष्टि का पालक एवं विधाता है ॥ ४ ॥ ६ ॥

ਸਿਰੀ ਗੁਰੂ ਸਿਰੀ ਗੁਰੂ ਸਿਰੀ ਗੁਰੂ ਸਤਿ ਜੀਉ ॥
सिरी गुरू सिरी गुरू सिरी गुरू सति जीउ ॥
महामहिम पूज्य गुरु (रामदास) शाश्वत रूप है।

ਗੁਰ ਕਹਿਆ ਮਾਨੁ ਨਿਜ ਨਿਧਾਨੁ ਸਚੁ ਜਾਨੁ ਮੰਤ੍ਰੁ ਇਹੈ ਨਿਸਿ ਬਾਸੁਰ ਹੋਇ ਕਲੵਾਨੁ ਲਹਹਿ ਪਰਮ ਗਤਿ ਜੀਉ ॥
गुर कहिआ मानु निज निधानु सचु जानु मंत्रु इहै निसि बासुर होइ कल्यानु लहहि परम गति जीउ ॥
गुरु जो शिक्षा देता है, उसका सहर्ष पालन करो, चूंकि यह सुखों की निधि सदैव साथ निभाने वाली है। इस सच्चे उपदेश को भलीभांति जान लो, रात-दिन आप का कल्याण होगा एवं परमगति की प्राप्ति होगी।

ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਜਣ ਜਣ ਸਿਉ ਛਾਡੁ ਧੋਹੁ ਹਉਮੈ ਕਾ ਫੰਧੁ ਕਾਟੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਰਤਿ ਜੀਉ ॥
कामु क्रोधु लोभु मोहु जण जण सिउ छाडु धोहु हउमै का फंधु काटु साधसंगि रति जीउ ॥
काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं लोगों से धोखा करना छोड़ दो, अभिमान का फंदा काट कर साधु पुरुषों की संगत में लीन रहो।

ਦੇਹ ਗੇਹੁ ਤ੍ਰਿਅ ਸਨੇਹੁ ਚਿਤ ਬਿਲਾਸੁ ਜਗਤ ਏਹੁ ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਦਾ ਸੇਉ ਦ੍ਰਿੜਤਾ ਕਰੁ ਮਤਿ ਜੀਉ ॥
देह गेहु त्रिअ सनेहु चित बिलासु जगत एहु चरन कमल सदा सेउ द्रिड़ता करु मति जीउ ॥
यह शरीर, घर, स्त्री से प्रेम, यह जगत सब दिल का बहलावा है, अतः अपने मन में गुरु के चरण कमल को सदा के लिए दृढ़ करो।

ਨਾਮੁ ਸਾਰੁ ਹੀਏ ਧਾਰੁ ਤਜੁ ਬਿਕਾਰੁ ਮਨ ਗਯੰਦ ਸਿਰੀ ਗੁਰੂ ਸਿਰੀ ਗੁਰੂ ਸਿਰੀ ਗੁਰੂ ਸਤਿ ਜੀਉ ॥੫॥੧੦॥
नामु सारु हीए धारु तजु बिकारु मन गयंद सिरी गुरू सिरी गुरू सिरी गुरू सति जीउ ॥५॥१०॥
भाट गयंद का मन से आग्रह है कि हरिनाम सार को हृदय में धारण करो, विकारों को छोड़ दो। श्री गुरु रामदास सत्यस्वरूप एवं शाश्वत हैं।॥५॥१०॥

ਸੇਵਕ ਕੈ ਭਰਪੂਰ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਵਾਹਗੁਰੂ ਤੇਰਾ ਸਭੁ ਸਦਕਾ ॥
सेवक कै भरपूर जुगु जुगु वाहगुरू तेरा सभु सदका ॥
हे गुरु (रामदास) वाह वाह ! युग-युग से तू भक्तों के दिल में बसा हुआ है, तेरी सब कृपा है।

ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਸਲਾਮਤਿ ਕਹਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਊ ਤੂ ਕਦ ਕਾ ॥
निरंकारु प्रभु सदा सलामति कहि न सकै कोऊ तू कद का ॥
तू निराकार प्रभु है, तू सदा रहने वाला है, अटल है, कोई नहीं कह सकता कि तेरा अस्तित्व कब से है अर्थात तू अनादि अकालमूर्ति है।

ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਸਿਰੇ ਤੈ ਅਗਨਤ ਤਿਨ ਕਉ ਮੋਹੁ ਭਯਾ ਮਨ ਮਦ ਕਾ ॥
ब्रहमा बिसनु सिरे तै अगनत तिन कउ मोहु भया मन मद का ॥
तुमने अनगिनत ब्रह्मा, विष्णु इत्यादि उत्पन्न किए हैं, उनको मन के अहंकार का ही मोह है।

ਚਵਰਾਸੀਹ ਲਖ ਜੋਨਿ ਉਪਾਈ ਰਿਜਕੁ ਦੀਆ ਸਭ ਹੂ ਕਉ ਤਦ ਕਾ ॥
चवरासीह लख जोनि उपाई रिजकु दीआ सभ हू कउ तद का ॥
तुमने चौरासी लख-योनियों को उत्पन्न किया और सब को रोजी-रोटी देकर उनका पालन कर रहा है।

ਸੇਵਕ ਕੈ ਭਰਪੂਰ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਵਾਹਗੁਰੂ ਤੇਰਾ ਸਭੁ ਸਦਕਾ ॥੧॥੧੧॥
सेवक कै भरपूर जुगु जुगु वाहगुरू तेरा सभु सदका ॥१॥११॥
हे (गुरु) वाहिगुरु (रामदास) ! युग-युग से तू भक्तों के दिलों में बसा हुआ है, सब तेरी कृपा है॥१॥११॥

ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਕਾ ਬਡਾ ਤਮਾਸਾ ॥
वाहु वाहु का बडा तमासा ॥
यह सम्पूर्ण सृष्टि रूपी एक बड़ा खेल तमाशा गुरु ही रचकर चला रहा है।

ਆਪੇ ਹਸੈ ਆਪਿ ਹੀ ਚਿਤਵੈ ਆਪੇ ਚੰਦੁ ਸੂਰੁ ਪਰਗਾਸਾ ॥
आपे हसै आपि ही चितवै आपे चंदु सूरु परगासा ॥
वह स्वयं ही हँसता है, स्वयं ही सोचता है और स्वयं ही चांद एवं सूर्य को रोशनी दे रहा है।

ਆਪੇ ਜਲੁ ਆਪੇ ਥਲੁ ਥੰਮ੍ਹ੍ਹਨੁ ਆਪੇ ਕੀਆ ਘਟਿ ਘਟਿ ਬਾਸਾ ॥
आपे जलु आपे थलु थम्हनु आपे कीआ घटि घटि बासा ॥
जल एवं थल स्वयं गुरु ही है, सबका अवलम्ब है, घट-घट में वही बसा हुआ है।

ਆਪੇ ਨਰੁ ਆਪੇ ਫੁਨਿ ਨਾਰੀ ਆਪੇ ਸਾਰਿ ਆਪ ਹੀ ਪਾਸਾ ॥
आपे नरु आपे फुनि नारी आपे सारि आप ही पासा ॥
यह स्वयं ही नर है और फिर नारी भी स्वयं है। वह स्वयं ही जगत रूपी चौपड़ है और स्वयं ही जीव रूपी गोटियाँ है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੰਗਤਿ ਸਭੈ ਬਿਚਾਰਹੁ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਕਾ ਬਡਾ ਤਮਾਸਾ ॥੨॥੧੨॥
गुरमुखि संगति सभै बिचारहु वाहु वाहु का बडा तमासा ॥२॥१२॥
गुरु की संगत में सब इसी तथ्य का चिंतन करते हैं कि सम्पूर्ण सृष्टि रूपी एक बड़ा खेल तमाशा गुरु ही रच कर चला रहा है॥२ ॥१२ ॥

ਕੀਆ ਖੇਲੁ ਬਡ ਮੇਲੁ ਤਮਾਸਾ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਤੇਰੀ ਸਭ ਰਚਨਾ ॥
कीआ खेलु बड मेलु तमासा वाहिगुरू तेरी सभ रचना ॥
हे वाहिगुरु (रामदास) ! तू प्रशंसनीय है, यह संसार रूपी तमाशा सब तेरी रचना है, पंच तत्वों को मिलाकर खेल रचा है।

ਤੂ ਜਲਿ ਥਲਿ ਗਗਨਿ ਪਯਾਲਿ ਪੂਰਿ ਰਹੵਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਤੇ ਮੀਠੇ ਜਾ ਕੇ ਬਚਨਾ ॥
तू जलि थलि गगनि पयालि पूरि रह्या अम्रित ते मीठे जा के बचना ॥
तू जल, भूमि, गगन एवं आकाश सब में व्याप्त है, तेरे वचन अमृत की तरह मीठे हैं।

ਮਾਨਹਿ ਬ੍ਰਹਮਾਦਿਕ ਰੁਦ੍ਰਾਦਿਕ ਕਾਲ ਕਾ ਕਾਲੁ ਨਿਰੰਜਨ ਜਚਨਾ ॥
मानहि ब्रहमादिक रुद्रादिक काल का कालु निरंजन जचना ॥
ब्रह्मा, शिव इत्यादि देवी-देवता सब तेरा ही मनन करते हैं, तू काल का भी काल है, तू माया की कालिमा से रहित है, पूरी दुनिया तुझ से ही मांगती है।

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