ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
धनासरी महला ४ ॥
धनासरी महला ४ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਬੂੰਦ ਭਏ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਹਮ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਬਿਲਲ ਬਿਲਲਾਤੀ ॥
हरि हरि बूंद भए हरि सुआमी हम चात्रिक बिलल बिललाती ॥
हे मेरे स्वामी हरि ! तेरा हरि-नाम स्वाति-बूंद बन गया है और मैं चातक इसका पान करने के लिए तड़प रहा हूँ।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਅਪਨੀ ਮੁਖਿ ਦੇਵਹੁ ਹਰਿ ਨਿਮਖਾਤੀ ॥੧॥
हरि हरि क्रिपा करहु प्रभ अपनी मुखि देवहु हरि निमखाती ॥१॥
हे हरि-प्रभु ! मुझ पर अपनी कृपा करो और एक क्षण भर के लिए मेरे मुँह में हरि-नाम रूपी स्वाति-बूंद डाल दो ॥१॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕਉ ਇਕ ਰਾਤੀ ॥
हरि बिनु रहि न सकउ इक राती ॥
हे भाई ! उस हरि के बिना में एक क्षण भर के लिए भी नहीं रह सकता।
ਜਿਉ ਬਿਨੁ ਅਮਲੈ ਅਮਲੀ ਮਰਿ ਜਾਈ ਹੈ ਤਿਉ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਹਮ ਮਰਿ ਜਾਤੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
जिउ बिनु अमलै अमली मरि जाई है तिउ हरि बिनु हम मरि जाती ॥ रहाउ ॥
जैसे नशे के बिना नशा करने वाला व्यक्ति मर जाता है, वैसे ही मैं हरि के बिना मर जाता हूँ॥ रहाउ॥
ਤੁਮ ਹਰਿ ਸਰਵਰ ਅਤਿ ਅਗਾਹ ਹਮ ਲਹਿ ਨ ਸਕਹਿ ਅੰਤੁ ਮਾਤੀ ॥
तुम हरि सरवर अति अगाह हम लहि न सकहि अंतु माती ॥
हे परमेश्वर ! तुम सागर की भांति अत्यन्त गहरे हो और मैं एक क्षण भर के लिए भी तेरा अन्त नहीं पा सकता।
ਤੂ ਪਰੈ ਪਰੈ ਅਪਰੰਪਰੁ ਸੁਆਮੀ ਮਿਤਿ ਜਾਨਹੁ ਆਪਨ ਗਾਤੀ ॥੨॥
तू परै परै अपर्मपरु सुआमी मिति जानहु आपन गाती ॥२॥
हे मेरे स्वामी ! तुम परे से परे और अपंरपार हो, अपनी गति एवं विस्तार तुम स्वयं ही जानते हो।॥ २॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਜਨਾ ਹਰਿ ਜਪਿਓ ਗੁਰ ਰੰਗਿ ਚਲੂਲੈ ਰਾਤੀ ॥
हरि के संत जना हरि जपिओ गुर रंगि चलूलै राती ॥
हरि के संतजनों ने हरि का जाप किया है और वे गुरु के प्रेम के गहरे लाल रंग में मग्न हो गए हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਬਨੀ ਅਤਿ ਸੋਭਾ ਹਰਿ ਜਪਿਓ ਊਤਮ ਪਾਤੀ ॥੩॥
हरि हरि भगति बनी अति सोभा हरि जपिओ ऊतम पाती ॥३॥
हरि की भक्ति से उनकी अत्यंत शोभा हो गई है और हरि का जाप करने से उन्हें उत्तम ख्याति मिली है ॥३॥
ਆਪੇ ਠਾਕੁਰੁ ਆਪੇ ਸੇਵਕੁ ਆਪਿ ਬਨਾਵੈ ਭਾਤੀ ॥
आपे ठाकुरु आपे सेवकु आपि बनावै भाती ॥
परमेश्वर स्वयं ही मालिक है, स्वयं ही सेवक है और वह स्वयं ही भक्ति की विधि बनाता है।
ਨਾਨਕੁ ਜਨੁ ਤੁਮਰੀ ਸਰਣਾਈ ਹਰਿ ਰਾਖਹੁ ਲਾਜ ਭਗਾਤੀ ॥੪॥੫॥
नानकु जनु तुमरी सरणाई हरि राखहु लाज भगाती ॥४॥५॥
हे हरि ! नानक तो तेरी ही शरण में आया है, इसलिए अपने भक्त की लाज रखो ॥ ४॥ ५ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
धनासरी महला ४ ॥
धनासरी महला ४ ॥
ਕਲਿਜੁਗ ਕਾ ਧਰਮੁ ਕਹਹੁ ਤੁਮ ਭਾਈ ਕਿਵ ਛੂਟਹ ਹਮ ਛੁਟਕਾਕੀ ॥
कलिजुग का धरमु कहहु तुम भाई किव छूटह हम छुटकाकी ॥
हे भाई ! तुम मुझे कलियुग का धर्म बताओ, मैं माया के बन्धनों से मुक्त होने का इच्छुक हूँ, फिर मैं कैसे छूट सकता हूँ?
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪੁ ਬੇੜੀ ਹਰਿ ਤੁਲਹਾ ਹਰਿ ਜਪਿਓ ਤਰੈ ਤਰਾਕੀ ॥੧॥
हरि हरि जपु बेड़ी हरि तुलहा हरि जपिओ तरै तराकी ॥१॥
हरि का जाप नाव है और हरि-नाम ही बेड़ा है; जिसने भी हरि का जाप किया है, वह तैराक बनकर भवसागर में से पार हो गया है॥ १॥
ਹਰਿ ਜੀ ਲਾਜ ਰਖਹੁ ਹਰਿ ਜਨ ਕੀ ॥
हरि जी लाज रखहु हरि जन की ॥
हे परमेश्वर ! अपने दास की लाज रखो;
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਨੁ ਜਪਾਵਹੁ ਅਪਨਾ ਹਮ ਮਾਗੀ ਭਗਤਿ ਇਕਾਕੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि जपनु जपावहु अपना हम मागी भगति इकाकी ॥ रहाउ ॥
मुझ से अपने नाम का जाप करवाओ। मैं तो तुझसे एक तेरी भक्ति की कामना ही करता हूँ॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸੇਵਕ ਸੇ ਹਰਿ ਪਿਆਰੇ ਜਿਨ ਜਪਿਓ ਹਰਿ ਬਚਨਾਕੀ ॥
हरि के सेवक से हरि पिआरे जिन जपिओ हरि बचनाकी ॥
जिन्होंने हरि की वाणी का जाप किया है, वही वास्तव में हरि के सेवक हैं और वे हरि के प्रिय हैं।
ਲੇਖਾ ਚਿਤ੍ਰ ਗੁਪਤਿ ਜੋ ਲਿਖਿਆ ਸਭ ਛੂਟੀ ਜਮ ਕੀ ਬਾਕੀ ॥੨॥
लेखा चित्र गुपति जो लिखिआ सभ छूटी जम की बाकी ॥२॥
चित्र-गुप्त ने उनके कर्मों का जो लेखा लिखा था, यमराज का वह शेष सारा लेखा ही मिट गया है॥ २॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਜਪਿਓ ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਗਿ ਸੰਗਤਿ ਸਾਧ ਜਨਾ ਕੀ ॥
हरि के संत जपिओ मनि हरि हरि लगि संगति साध जना की ॥
हरि के संतों ने साधुजनों की संगत में शामिल होकर अपने मन में हरि-नाम का ही जाप किया है।
ਦਿਨੀਅਰੁ ਸੂਰੁ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਗਨਿ ਬੁਝਾਨੀ ਸਿਵ ਚਰਿਓ ਚੰਦੁ ਚੰਦਾਕੀ ॥੩॥
दिनीअरु सूरु त्रिसना अगनि बुझानी सिव चरिओ चंदु चंदाकी ॥३॥
हरि-नाम ने उनके हृदय में स सूर्य रूपी तृष्णा की अग्नि बुझा दी है और उनके हृदय में शीतल रूप चांदनी वाला चांद उदय हो गया है ॥३॥
ਤੁਮ ਵਡ ਪੁਰਖ ਵਡ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਤੁਮ ਆਪੇ ਆਪਿ ਅਪਾਕੀ ॥
तुम वड पुरख वड अगम अगोचर तुम आपे आपि अपाकी ॥
हे प्रभु ! तुम ही विश्व में बड़े महापुरुष एवं अगम्य-अगोचर सर्वव्यापी हो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਕੀਜੈ ਕਰਿ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ਦਸਾਕੀ ॥੪॥੬॥
जन नानक कउ प्रभ किरपा कीजै करि दासनि दास दसाकी ॥४॥६॥
हे प्रभु ! नानक पर कृपा करो और उसे अपने दासों का दास बना लो ॥४॥६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੫ ਦੁਪਦੇ
धनासरी महला ४ घरु ५ दुपदे
धनासरी महला ४ घरु ५ दुपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਉਰ ਧਾਰਿ ਬੀਚਾਰਿ ਮੁਰਾਰਿ ਰਮੋ ਰਮੁ ਮਨਮੋਹਨ ਨਾਮੁ ਜਪੀਨੇ ॥
उर धारि बीचारि मुरारि रमो रमु मनमोहन नामु जपीने ॥
मन को मोहित करने वाले उस राम को अपने हृदय में बसाकर उसका चिन्तन करो और उसका ही नाम जपो।
ਅਦ੍ਰਿਸਟੁ ਅਗੋਚਰੁ ਅਪਰੰਪਰ ਸੁਆਮੀ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਿ ਦੀਨੇ ॥੧॥
अद्रिसटु अगोचरु अपर्मपर सुआमी गुरि पूरै प्रगट करि दीने ॥१॥
जगत का स्वामी प्रभु अदृष्य, अगोचर एवं अपरंपार है और पूर्ण गुरु ने उसे मेरे हृदय में प्रगट कर दिया है ॥१॥
ਰਾਮ ਪਾਰਸ ਚੰਦਨ ਹਮ ਕਾਸਟ ਲੋਸਟ ॥
राम पारस चंदन हम कासट लोसट ॥
राम तो पारस एवं चन्दन है लेकिन मैं एक लकड़ी एवं लोहा हूँ।
ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਹਰੀ ਸਤਸੰਗੁ ਭਏ ਹਰਿ ਕੰਚਨੁ ਚੰਦਨੁ ਕੀਨੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि संगि हरी सतसंगु भए हरि कंचनु चंदनु कीने ॥१॥ रहाउ ॥
जब उस हरि के सत्संग द्वारा मेरा उससे मिलाप हो गया तो उसने मुझे स्वर्ण एवं चन्दन बना दिया।॥ १॥ रहाउ ॥
ਨਵ ਛਿਅ ਖਟੁ ਬੋਲਹਿ ਮੁਖ ਆਗਰ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਇਵ ਨ ਪਤੀਨੇ ॥
नव छिअ खटु बोलहि मुख आगर मेरा हरि प्रभु इव न पतीने ॥
कई विद्वान नौ प्रकार के व्याकरण एवं छ: शास्त्र मौखिक बोलते रहते हैं परन्तु मेरा प्रभु इससे प्रसन्न नहीं होता।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਸਦ ਧਿਆਵਹੁ ਇਉ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਭੀਨੇ ॥੨॥੧॥੭॥
जन नानक हरि हिरदै सद धिआवहु इउ हरि प्रभु मेरा भीने ॥२॥१॥७॥
नानक का कथन है कि सदैव ही अपने हृदय में हरि का ध्यान-मनन करते रहो, इस तरह मेरा प्रभु प्रसन्न होता है ॥२॥१॥७॥