Hindi Page 1213

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੈ ਅਤੁਲ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਜਨਮ ਮਰਣ ਭੈ ਲਾਥੇ ॥੨॥੨੦॥੪੩॥
कहु नानक मै अतुल सुखु पाइआ जनम मरण भै लाथे ॥२॥२०॥४३॥
हे नानक ! मैंने असीम सुख पा लिया है और जन्म-मरण का भय दूर हो गया है॥२॥ २० ॥ ४३ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਰੇ ਮੂੜ੍ਹ੍ਹੇ ਆਨ ਕਾਹੇ ਕਤ ਜਾਈ ॥
रे मूड़्हे आन काहे कत जाई ॥
अरे मूर्ख ! तू कहीं और क्यों जाता है?

ਸੰਗਿ ਮਨੋਹਰੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹੈ ਰੇ ਭੂਲਿ ਭੂਲਿ ਬਿਖੁ ਖਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
संगि मनोहरु अम्रितु है रे भूलि भूलि बिखु खाई ॥१॥ रहाउ ॥
मनोहर अमृत तो तेरे संग ही है, फिर भी भूल-भूलकर जहर खा रहा है॥१॥रहाउ॥।

ਪ੍ਰਭ ਸੁੰਦਰ ਚਤੁਰ ਅਨੂਪ ਬਿਧਾਤੇ ਤਿਸ ਸਿਉ ਰੁਚ ਨਹੀ ਰਾਈ ॥
प्रभ सुंदर चतुर अनूप बिधाते तिस सिउ रुच नही राई ॥
सुन्दर प्रभु चतुर, अनुपम एवं विधाता है, उससे तेरी थोड़ी-सी भी दिलचस्पी नहीं।

ਮੋਹਨਿ ਸਿਉ ਬਾਵਰ ਮਨੁ ਮੋਹਿਓ ਝੂਠਿ ਠਗਉਰੀ ਪਾਈ ॥੧॥
मोहनि सिउ बावर मनु मोहिओ झूठि ठगउरी पाई ॥१॥
रे बावले ! माया-मोहिनी ने तेरा मन मोह लिया है और झूठी ठगबूटी प्राप्त कर ली है॥१॥

ਭਇਓ ਦਇਆਲੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਦੁਖ ਹਰਤਾ ਸੰਤਨ ਸਿਉ ਬਨਿ ਆਈ ॥
भइओ दइआलु क्रिपालु दुख हरता संतन सिउ बनि आई ॥
जब दुखों को नाश करने वाला दयालु परमेश्वर कृपालु होता है तो संत पुरुषों के संग प्रीति बनी रहती है।

ਸਗਲ ਨਿਧਾਨ ਘਰੈ ਮਹਿ ਪਾਏ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜੋਤਿ ਸਮਾਈ ॥੨॥੨੧॥੪੪॥
सगल निधान घरै महि पाए कहु नानक जोति समाई ॥२॥२१॥४४॥
हे नानक ! इस तरह सर्व सुखों के भण्डार घर में ही प्राप्त हो जाते हैं और आत्म-ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो जाती है ॥२॥ २१।४४ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਓਅੰ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਿ ਚੀਤਿ ਪਹਿਲਰੀਆ ॥
ओअं प्रिअ प्रीति चीति पहिलरीआ ॥
प्रिय ओम् का प्रेम तो पूर्व से चित में मौजूद है।

ਜੋ ਤਉ ਬਚਨੁ ਦੀਓ ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਤਉ ਮੈ ਸਾਜ ਸੀਗਰੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो तउ बचनु दीओ मेरे सतिगुर तउ मै साज सीगरीआ ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे सच्चे गुरु ! जब से तूने वचन दिया है, तब से मैंने भक्ति रूपी श्रृंगार कर लिया है॥१॥रहाउ॥।

ਹਮ ਭੂਲਹ ਤੁਮ ਸਦਾ ਅਭੂਲਾ ਹਮ ਪਤਿਤ ਤੁਮ ਪਤਿਤ ਉਧਰੀਆ ॥
हम भूलह तुम सदा अभूला हम पतित तुम पतित उधरीआ ॥
हम सदैव भूल करते हैं, परन्तु तुम कभी भूल नहीं करते। हम पतित हैं और तुम पतितों के उद्धारक हो।

ਹਮ ਨੀਚ ਬਿਰਖ ਤੁਮ ਮੈਲਾਗਰ ਲਾਜ ਸੰਗਿ ਸੰਗਿ ਬਸਰੀਆ ॥੧॥
हम नीच बिरख तुम मैलागर लाज संगि संगि बसरीआ ॥१॥
हम तुच्छ वृक्ष हैं परन्तु तुम मलयगिरि की मानिंद महकदार हो, तुम्हारे संग ही रहते हैं, लाज रखना ॥१॥

ਤੁਮ ਗੰਭੀਰ ਧੀਰ ਉਪਕਾਰੀ ਹਮ ਕਿਆ ਬਪੁਰੇ ਜੰਤਰੀਆ ॥
तुम ग्मभीर धीर उपकारी हम किआ बपुरे जंतरीआ ॥
तुम गंभीर, सहनशील एवं उपकारी हो, लेकिन हम जीव बेचारे तेरे आगे क्या चीज हैं।

ਗੁਰ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਮੇਲਿਓ ਤਉ ਮੇਰੀ ਸੂਖਿ ਸੇਜਰੀਆ ॥੨॥੨੨॥੪੫॥
गुर क्रिपाल नानक हरि मेलिओ तउ मेरी सूखि सेजरीआ ॥२॥२२॥४५॥
नानक का कथन है कि जब गुरु ने कृपालु होकर प्रभु से मिला दिया तो मेरी सेज सुखदायक हो गई॥२॥२२॥४५ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਮਨ ਓਇ ਦਿਨਸ ਧੰਨਿ ਪਰਵਾਨਾਂ ॥
मन ओइ दिनस धंनि परवानां ॥
हे मन ! वह दिन धन्य एवं परवान है।

ਸਫਲ ਤੇ ਘਰੀ ਸੰਜੋਗ ਸੁਹਾਵੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸੰਗਿ ਗਿਆਨਾਂ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सफल ते घरी संजोग सुहावे सतिगुर संगि गिआनां ॥१॥ रहाउ ॥
वह घड़ी सफल और संयोग सुहावना है, जब सतगुरु के संग ज्ञान-ध्यान की प्राप्ति हुई॥१॥रहाउ॥।

ਧੰਨਿ ਸੁਭਾਗ ਧੰਨਿ ਸੋਹਾਗਾ ਧੰਨਿ ਦੇਤ ਜਿਨਿ ਮਾਨਾਂ ॥
धंनि सुभाग धंनि सोहागा धंनि देत जिनि मानां ॥
मेरा सौभाग्य धन्य है, मेरा सुहाग धन्य है, जिसे मान-प्रतिष्ठा देता है, वह भी धन्य है।

ਇਹੁ ਤਨੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰਾ ਸਭੁ ਗ੍ਰਿਹੁ ਧਨੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰਾ ਹੀਂਉ ਕੀਓ ਕੁਰਬਾਨਾਂ ॥੧॥
इहु तनु तुम्हरा सभु ग्रिहु धनु तुम्हरा हींउ कीओ कुरबानां ॥१॥
यह तन, घर, धन सब कुछ तुम्हारा है और मैंने इस हृदय को तुझ पर कुर्बान कर दिया है।॥१॥

ਕੋਟਿ ਲਾਖ ਰਾਜ ਸੁਖ ਪਾਏ ਇਕ ਨਿਮਖ ਪੇਖਿ ਦ੍ਰਿਸਟਾਨਾਂ ॥
कोटि लाख राज सुख पाए इक निमख पेखि द्रिसटानां ॥
एक पल दर्शन करने से लाखों-करोड़ों राज सुखों की प्राप्ति होती है।

ਜਉ ਕਹਹੁ ਮੁਖਹੁ ਸੇਵਕ ਇਹ ਬੈਸੀਐ ਸੁਖ ਨਾਨਕ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਨਾਂ ॥੨॥੨੩॥੪੬॥
जउ कहहु मुखहु सेवक इह बैसीऐ सुख नानक अंतु न जानां ॥२॥२३॥४६॥
नानक का कथन है कि अगर तू मुँह से कह दे कि सेवक यहाँ बैठना है तो इस सुख का अन्त भी नहीं जाना जा सकता ॥ २ ॥ २३ ॥ ४६ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਅਬ ਮੋਰੋ ਸਹਸਾ ਦੂਖੁ ਗਇਆ ॥
अब मोरो सहसा दूखु गइआ ॥
अब मेरा संशय, दुख दूर हो गया है, क्योंकि

ਅਉਰ ਉਪਾਵ ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਛੋਡੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਿ ਪਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अउर उपाव सगल तिआगि छोडे सतिगुर सरणि पइआ ॥१॥ रहाउ ॥
अन्य सब उपाय छोड़कर सतगुरु की शरण में पड़ गया हूँ॥१॥रहाउ॥।

ਸਰਬ ਸਿਧਿ ਕਾਰਜ ਸਭਿ ਸਵਰੇ ਅਹੰ ਰੋਗ ਸਗਲ ਹੀ ਖਇਆ ॥
सरब सिधि कारज सभि सवरे अहं रोग सगल ही खइआ ॥
सर्व सिद्धियां प्राप्त हुई, सभी कार्य पूरे हो गए हैं और अहम् का रोग समाप्त हो गया है।

ਕੋਟਿ ਪਰਾਧ ਖਿਨ ਮਹਿ ਖਉ ਭਈ ਹੈ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਹਿਆ ॥੧॥
कोटि पराध खिन महि खउ भई है गुर मिलि हरि हरि कहिआ ॥१॥
गुरु को मिलकर हरिनाम जपा तो पल में करोड़ों अपराध नष्ट हो गए ॥१॥

ਪੰਚ ਦਾਸ ਗੁਰਿ ਵਸਗਤਿ ਕੀਨੇ ਮਨ ਨਿਹਚਲ ਨਿਰਭਇਆ ॥
पंच दास गुरि वसगति कीने मन निहचल निरभइआ ॥
गुरु ने कामादिक पाँच दासों को वश में कर दिया है, जिससे मन निश्चल एवं निर्भय हो गया है।

ਆਇ ਨ ਜਾਵੈ ਨ ਕਤ ਹੀ ਡੋਲੈ ਥਿਰੁ ਨਾਨਕ ਰਾਜਇਆ ॥੨॥੨੪॥੪੭॥
आइ न जावै न कत ही डोलै थिरु नानक राजइआ ॥२॥२४॥४७॥
अब यह न ही कहीं आता जाता है, न ही विचलित होता है। नानक का कथन है कि अब वह स्थिर रहता है ॥२॥२४॥४७॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰੋ ਇਤ ਉਤ ਸਦਾ ਸਹਾਈ ॥
प्रभु मेरो इत उत सदा सहाई ॥
मेरा प्रभु लोक-परलोक सदा सहायता करने वाला है।

ਮਨਮੋਹਨੁ ਮੇਰੇ ਜੀਅ ਕੋ ਪਿਆਰੋ ਕਵਨ ਕਹਾ ਗੁਨ ਗਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनमोहनु मेरे जीअ को पिआरो कवन कहा गुन गाई ॥१॥ रहाउ ॥
वह मनमोहन मेरे प्राणों को प्रिय है, उसका बेशक कितना ही गुणगान किया जाए, कम है॥१॥ रहाउ॥।

ਖੇਲਿ ਖਿਲਾਇ ਲਾਡ ਲਾਡਾਵੈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਅਨਦਾਈ ॥
खेलि खिलाइ लाड लाडावै सदा सदा अनदाई ॥
वह खेल खेलाता, लाड लडाता और सर्वदा आनंद प्रदान करता है।

ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੈ ਬਾਰਿਕ ਕੀ ਨਿਆਈ ਜੈਸੇ ਮਾਤ ਪਿਤਾਈ ॥੧॥
प्रतिपालै बारिक की निआई जैसे मात पिताई ॥१॥
वह माता-पिता की तरह बालक समझकर परवरिश करता है॥१॥

ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਨਿਮਖ ਨਹੀ ਰਹਿ ਸਕੀਐ ਬਿਸਰਿ ਨ ਕਬਹੂ ਜਾਈ ॥
तिसु बिनु निमख नही रहि सकीऐ बिसरि न कबहू जाई ॥
उसके बिना पल भर भी रहा नहीं जा सकता, अतः वह कभी भी न भूले।

error: Content is protected !!