Hindi Page 1138

ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸਭ ਦੁਨੀਆ ਛਾਰੁ ॥੧॥
नाम बिना सभ दुनीआ छारु ॥१॥
प्रभु-नाम के सिवा सारी दुनिया धूल समान है॥१॥

ਅਚਰਜੁ ਤੇਰੀ ਕੁਦਰਤਿ ਤੇਰੇ ਕਦਮ ਸਲਾਹ ॥
अचरजु तेरी कुदरति तेरे कदम सलाह ॥
तेरी बनाई कुदरत अद्भुत है और तेरे उपकार भी प्रशंसनीय हैं।

ਗਨੀਵ ਤੇਰੀ ਸਿਫਤਿ ਸਚੇ ਪਾਤਿਸਾਹ ॥੨॥
गनीव तेरी सिफति सचे पातिसाह ॥२॥
हे सच्चे बादशाह ! तेरी स्तुति का कोई मूल्य नहीं है॥२॥

ਨੀਧਰਿਆ ਧਰ ਪਨਹ ਖੁਦਾਇ ॥
नीधरिआ धर पनह खुदाइ ॥
हे खुदा ! बेसहारा लोगों का तू ही सहारा है और तू ही उनकी पनाह है।

ਗਰੀਬ ਨਿਵਾਜੁ ਦਿਨੁ ਰੈਣਿ ਧਿਆਇ ॥੩॥
गरीब निवाजु दिनु रैणि धिआइ ॥३॥
हे गरीब-नवाज ! मैं दिन-रात तेरे ध्यान में लीन रहता हूँ॥३॥

ਨਾਨਕ ਕਉ ਖੁਦਿ ਖਸਮ ਮਿਹਰਵਾਨ ॥
नानक कउ खुदि खसम मिहरवान ॥
नानक का कथन है कि मालिक खुद ही उस पर मेहरबान है और

ਅਲਹੁ ਨ ਵਿਸਰੈ ਦਿਲ ਜੀਅ ਪਰਾਨ ॥੪॥੧੦॥
अलहु न विसरै दिल जीअ परान ॥४॥१०॥
दिल-प्राण से वह अल्लाह हरगिज नहीं भूलता॥४॥ १०॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਸਾਚ ਪਦਾਰਥੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਲਹਹੁ ॥
साच पदारथु गुरमुखि लहहु ॥
प्रभु-नाम रूपी सच्चा पदार्थ गुरु से प्राप्त करो और

ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਭਾਣਾ ਸਤਿ ਕਰਿ ਸਹਹੁ ॥੧॥
प्रभ का भाणा सति करि सहहु ॥१॥
प्रभु की रज़ा को सत्य समझकर मानो॥१॥

ਜੀਵਤ ਜੀਵਤ ਜੀਵਤ ਰਹਹੁ ॥
जीवत जीवत जीवत रहहु ॥
आध्यात्मिक तौर पर जिंदा रहना है तो

ਰਾਮ ਰਸਾਇਣੁ ਨਿਤ ਉਠਿ ਪੀਵਹੁ ॥
राम रसाइणु नित उठि पीवहु ॥
राम नाम रूपी रसायन का नित्य उठकर पान करो।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਸਨਾ ਕਹਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि हरि हरि रसना कहहु ॥१॥ रहाउ ॥
हे सज्जनो, हरदम जिह्म से ईश्वर के गुण गाओ॥१॥ रहाउ॥

ਕਲਿਜੁਗ ਮਹਿ ਇਕ ਨਾਮਿ ਉਧਾਰੁ ॥ ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੈ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰੁ ॥੨॥੧੧॥
कलिजुग महि इक नामि उधारु ॥ नानकु बोलै ब्रहम बीचारु ॥२॥११॥
कलियुग में केवल प्रभु-नाम से ही संसार के बन्धनों से उद्धार हो सकता है नानक यही ब्रह्म-विचार बोलता है॥२॥ ११॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸਰਬ ਫਲ ਪਾਏ ॥
सतिगुरु सेवि सरब फल पाए ॥
सतगुरु की सेवा करने से सब फल प्राप्त हो जाते हैं और

ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਮੈਲੁ ਮਿਟਾਏ ॥੧॥
जनम जनम की मैलु मिटाए ॥१॥
जन्म-जन्मांतर की मैल निवृत्त हो जाती है॥१॥

ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੋ ਨਾਉ ॥
पतित पावन प्रभ तेरो नाउ ॥
हे प्रभु! तेरा नाम पापी जीवों को पावन करनेवाला है और

ਪੂਰਬਿ ਕਰਮ ਲਿਖੇ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूरबि करम लिखे गुण गाउ ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्व कर्मानुसार प्रारब्ध से ही तेरे गुण गाने का सुअवसर प्राप्त होता है॥१॥ रहाउ॥

ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਹੋਵੈ ਉਧਾਰੁ ॥
साधू संगि होवै उधारु ॥
साधु पुरुषों के संग रहने से उद्धार हो जाता है और

ਸੋਭਾ ਪਾਵੈ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਦੁਆਰ ॥੨॥
सोभा पावै प्रभ कै दुआर ॥२॥
इस तरह प्रभु के द्वार पर शोभा प्राप्त होती है॥२॥

ਸਰਬ ਕਲਿਆਣ ਚਰਣ ਪ੍ਰਭ ਸੇਵਾ ॥
सरब कलिआण चरण प्रभ सेवा ॥
प्रभु-चरणों की सेवा से सर्व कल्याण होता है और

ਧੂਰਿ ਬਾਛਹਿ ਸਭਿ ਸੁਰਿ ਨਰ ਦੇਵਾ ॥੩॥
धूरि बाछहि सभि सुरि नर देवा ॥३॥
देवी-देवता एवं मनुष्य भी उसकी चरण-धूलि की आकांक्षा करते हैं।॥३॥

ਨਾਨਕ ਪਾਇਆ ਨਾਮ ਨਿਧਾਨੁ ॥
नानक पाइआ नाम निधानु ॥
नानक का कथन है कि हमने भी हरिनाम रूपी सुखनिधान को पा लिया है,

ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪਿ ਉਧਰਿਆ ਸਗਲ ਜਹਾਨੁ ॥੪॥੧੨॥
हरि जपि जपि उधरिआ सगल जहानु ॥४॥१२॥
जिसका निरन्तर जाप करके सारे जहान का उद्धार हो गया है॥४॥ १२॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਅਪਣੇ ਦਾਸ ਕਉ ਕੰਠਿ ਲਗਾਵੈ ॥
अपणे दास कउ कंठि लगावै ॥
ईश्वर अपने दास को गले से लगा लेता है,

ਨਿੰਦਕ ਕਉ ਅਗਨਿ ਮਹਿ ਪਾਵੈ ॥੧॥
निंदक कउ अगनि महि पावै ॥१॥
किन्तु निंदक को दु:खों की अग्नि में डाल देता है॥१॥

ਪਾਪੀ ਤੇ ਰਾਖੇ ਨਾਰਾਇਣ ॥
पापी ते राखे नाराइण ॥
परमेश्वर ही पापी से बचाता है,

ਪਾਪੀ ਕੀ ਗਤਿ ਕਤਹੂ ਨਾਹੀ ਪਾਪੀ ਪਚਿਆ ਆਪ ਕਮਾਇਣ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पापी की गति कतहू नाही पापी पचिआ आप कमाइण ॥१॥ रहाउ ॥
पापी की कहीं भी गति नहीं होती और वह अपने किए कर्मों का ही फल भोगता है॥१॥ रहाउ॥

ਦਾਸ ਰਾਮ ਜੀਉ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
दास राम जीउ लागी प्रीति ॥
दास की प्रभु से प्रीति लगी हुई है और

ਨਿੰਦਕ ਕੀ ਹੋਈ ਬਿਪਰੀਤਿ ॥੨॥
निंदक की होई बिपरीति ॥२॥
निंदक का बहुत बुरा हाल हुआ है।॥२॥

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਅਪਣਾ ਬਿਰਦੁ ਪ੍ਰਗਟਾਇਆ ॥
पारब्रहमि अपणा बिरदु प्रगटाइआ ॥
परब्रह्म ने अपने विरद् को प्रकट किया है और

ਦੋਖੀ ਅਪਣਾ ਕੀਤਾ ਪਾਇਆ ॥੩॥
दोखी अपणा कीता पाइआ ॥३॥
दोषी ने अपने किए कर्मो की सजा प्राप्त की है॥३॥

ਆਇ ਨ ਜਾਈ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਹਰਿ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ॥੪॥੧੩॥
आइ न जाई रहिआ समाई ॥ नानक दास हरि की सरणाई ॥४॥१३॥
ईश्वर न आता है, न हो जाता है, सब में ही समाया रहता है, दास नानक प्रभु की शरण में ही रहता है॥४॥ १३॥

ਰਾਗੁ ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੨
रागु भैरउ महला ५ चउपदे घरु २
रागु भैरउ महला ५ चउपदे घरु २

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਸ੍ਰੀਧਰ ਮੋਹਨ ਸਗਲ ਉਪਾਵਨ ਨਿਰੰਕਾਰ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥
स्रीधर मोहन सगल उपावन निरंकार सुखदाता ॥
सुखदाता निरंकार ब्रह्म ही सबको उत्पन्न करने वाला है।

ਐਸਾ ਪ੍ਰਭੁ ਛੋਡਿ ਕਰਹਿ ਅਨ ਸੇਵਾ ਕਵਨ ਬਿਖਿਆ ਰਸ ਮਾਤਾ ॥੧॥
ऐसा प्रभु छोडि करहि अन सेवा कवन बिखिआ रस माता ॥१॥
ऐसे प्रभु को छोड़कर विषय-विकारों में मस्त जीव अन्य की ही सेवा करता है॥१॥

ਰੇ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤੂ ਗੋਵਿਦ ਭਾਜੁ ॥
रे मन मेरे तू गोविद भाजु ॥
हे मेरे मन ! तू ईश्वर का भजन-संकीर्तन कर,

ਅਵਰ ਉਪਾਵ ਸਗਲ ਮੈ ਦੇਖੇ ਜੋ ਚਿਤਵੀਐ ਤਿਤੁ ਬਿਗਰਸਿ ਕਾਜੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अवर उपाव सगल मै देखे जो चितवीऐ तितु बिगरसि काजु ॥१॥ रहाउ ॥
क्योंकि मैंने अन्य सब उपाय करके देख लिए हैं, अगर उनके बारे में सोचा जाए तो सब कार्य बिगड़ जाते हैं।॥१॥ रहाउ॥

ਠਾਕੁਰੁ ਛੋਡਿ ਦਾਸੀ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਮਨਮੁਖ ਅੰਧ ਅਗਿਆਨਾ ॥
ठाकुरु छोडि दासी कउ सिमरहि मनमुख अंध अगिआना ॥
अन्धा-अज्ञानी मनमुख, मालिक को छोड़कर उसकी दासी माया को याद करता है,

ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਤਿਨ ਨਿੰਦਹਿ ਨਿਗੁਰੇ ਪਸੂ ਸਮਾਨਾ ॥੨॥
हरि की भगति करहि तिन निंदहि निगुरे पसू समाना ॥२॥
वह प्रभु की भक्ति करने वालों की निंदा करता रहता है, ऐसा निगुरा व्यक्ति पशु समान है॥२॥

ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਤਨੁ ਧਨੁ ਸਭੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਸਾਕਤ ਕਹਤੇ ਮੇਰਾ ॥
जीउ पिंडु तनु धनु सभु प्रभ का साकत कहते मेरा ॥
यह प्राण, शरीर, तन-धन सब प्रभु का दिया हुआ है, मगर मायावी पुरुष इनको अपना बताता है।

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