ਖਟੁ ਦਰਸਨ ਭ੍ਰਮਤੇ ਫਿਰਹਿ ਨਹ ਮਿਲੀਐ ਭੇਖੰ ॥
खटु दरसन भ्रमते फिरहि नह मिलीऐ भेखं ॥
छः दर्शनों वाले योगी, जंगम, बौद्धि, संन्यासी, वैरागी एवं जैनी भटकते रहते हैं किन्तु वेष धारण से भगवान् नहीं मिलता।
ਵਰਤ ਕਰਹਿ ਚੰਦ੍ਰਾਇਣਾ ਸੇ ਕਿਤੈ ਨ ਲੇਖੰ ॥
वरत करहि चंद्राइणा से कितै न लेखं ॥
कुछ लोग चन्द्रायण का व्रत रखते हैं किन्तु वह भी किसी काम नहीं आता।
ਬੇਦ ਪੜਹਿ ਸੰਪੂਰਨਾ ਤਤੁ ਸਾਰ ਨ ਪੇਖੰ ॥
बेद पड़हि स्मपूरना ततु सार न पेखं ॥
कुछ विद्वान सम्पूर्ण वेदों का पाठ करते हैं लेकिन वे भी सार तत्व को नहीं देखते।
ਤਿਲਕੁ ਕਢਹਿ ਇਸਨਾਨੁ ਕਰਿ ਅੰਤਰਿ ਕਾਲੇਖੰ ॥
तिलकु कढहि इसनानु करि अंतरि कालेखं ॥
जो स्नान करके अपने माथे पर तिलक लगाते हैं, उनके मन में पाप रूपी कालिमा भरी रहती है।
ਭੇਖੀ ਪ੍ਰਭੂ ਨ ਲਭਈ ਵਿਣੁ ਸਚੀ ਸਿਖੰ ॥
भेखी प्रभू न लभई विणु सची सिखं ॥सच्ची शिक्षा के बिना पाखण्ड अथवा आडम्बर से प्रभु नहीं मिलता।
ਭੂਲਾ ਮਾਰਗਿ ਸੋ ਪਵੈ ਜਿਸੁ ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਲੇਖੰ ॥
भूला मारगि सो पवै जिसु धुरि मसतकि लेखं ॥
जिसके माथे पर भाग्य हो, वह भूला हुआ आदमी सन्मार्ग पा लेता है।
ਤਿਨਿ ਜਨਮੁ ਸਵਾਰਿਆ ਆਪਣਾ ਜਿਨਿ ਗੁਰੁ ਅਖੀ ਦੇਖੰ ॥੧੩॥
तिनि जनमु सवारिआ आपणा जिनि गुरु अखी देखं ॥१३॥
जिन्होंने गुरु के साक्षात् दर्शन किए हैं, उन्होंने अपना जीवन संवार लिया है॥ १३॥
ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे मः ५ ॥
डखणे महला ५॥
ਸੋ ਨਿਵਾਹੂ ਗਡਿ ਜੋ ਚਲਾਊ ਨ ਥੀਐ ॥
सो निवाहू गडि जो चलाऊ न थीऐ ॥
मित्रता निभाने वाले प्रभु को अपने हृदय में बसा लो, जो तेरा साथ छोड़कर जाने वाला नहीं।
ਕਾਰ ਕੂੜਾਵੀ ਛਡਿ ਸੰਮਲੁ ਸਚੁ ਧਣੀ ॥੧॥
कार कूड़ावी छडि समलु सचु धणी ॥१॥
झूठे कार्यों को छोड़कर सच्चे मालिक की बंदगी करो॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਹਭ ਸਮਾਣੀ ਜੋਤਿ ਜਿਉ ਜਲ ਘਟਾਊ ਚੰਦ੍ਰਮਾ ॥
हभ समाणी जोति जिउ जल घटाऊ चंद्रमा ॥
जैसे जल से भरे हुए घड़ों में चन्द्रमा की परछाई समाई होती है, वैसे ही सब में परमात्मा की ज्योति समाई हुई है।
ਪਰਗਟੁ ਥੀਆ ਆਪਿ ਨਾਨਕ ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਿਆ ॥੨॥
परगटु थीआ आपि नानक मसतकि लिखिआ ॥२॥
हे नानक प्रभु स्वयं ही उसके हृदय में प्रगट हो गया है, जिसके माथे पर भाग्य लिखा हुआ है॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਮੁਖ ਸੁਹਾਵੇ ਨਾਮੁ ਚਉ ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
मुख सुहावे नामु चउ आठ पहर गुण गाउ ॥
नाम जपने से ही मुख सुन्दर होता है, अतः आठ प्रहर ईश्वर के ही गुण गाओ।
ਨਾਨਕ ਦਰਗਹ ਮੰਨੀਅਹਿ ਮਿਲੀ ਨਿਥਾਵੇ ਥਾਉ ॥੩॥
नानक दरगह मंनीअहि मिली निथावे थाउ ॥३॥
हे नानक ! परमात्मा के दरबार में ही शोभा हासिल होती है और बेसहारा को भी सहारा मिल जाता है॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਬਾਹਰ ਭੇਖਿ ਨ ਪਾਈਐ ਪ੍ਰਭੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
बाहर भेखि न पाईऐ प्रभु अंतरजामी ॥
प्रभु अन्तर्यामी है, अतः बाहरी ढोंग अथवा पाखण्ड से उसे पाया नहीं जा सकता।
ਇਕਸੁ ਹਰਿ ਜੀਉ ਬਾਹਰੀ ਸਭ ਫਿਰੈ ਨਿਕਾਮੀ ॥
इकसु हरि जीउ बाहरी सभ फिरै निकामी ॥
एक ईश्वर के बिना सब लोग बेकार फिरते रहते हैं।
ਮਨੁ ਰਤਾ ਕੁਟੰਬ ਸਿਉ ਨਿਤ ਗਰਬਿ ਫਿਰਾਮੀ ॥
मनु रता कुट्मब सिउ नित गरबि फिरामी ॥
जिन लोगों का मन अपने परिवार के प्रेम में लीन रहता है, वे नित्य ही घमण्डी बने फेिरते रहते हैं।
ਫਿਰਹਿ ਗੁਮਾਨੀ ਜਗ ਮਹਿ ਕਿਆ ਗਰਬਹਿ ਦਾਮੀ ॥
फिरहि गुमानी जग महि किआ गरबहि दामी ॥
जो व्यक्ति संसार में घमण्डी बने फिरते हैं, वे धन का क्यों घमण्ड करते हैं ?
ਚਲਦਿਆ ਨਾਲਿ ਨ ਚਲਈ ਖਿਨ ਜਾਇ ਬਿਲਾਮੀ ॥
चलदिआ नालि न चलई खिन जाइ बिलामी ॥
क्योंकि संसार में से चलते वक्त यह (धन) किसी के साथ नहीं जाता और यह बिना किसी विलम्व क्षण में ही किसी अन्य के पास चला जाता है।
ਬਿਚਰਦੇ ਫਿਰਹਿ ਸੰਸਾਰ ਮਹਿ ਹਰਿ ਜੀ ਹੁਕਾਮੀ ॥
बिचरदे फिरहि संसार महि हरि जी हुकामी ॥
सच तो यही है कि परमात्मा के हुक्म से ऐसे व्यक्ति संसार में भटकते रहते हैं।
ਕਰਮੁ ਖੁਲਾ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਸੁਆਮੀ ॥
करमु खुला गुरु पाइआ हरि मिलिआ सुआमी ॥
जिसका भाग्योदय हो गया, उसने गुरु को पा लिया और गुरु के सान्निध्य में उसे स्वामी प्रभु मिल गया है।
ਜੋ ਜਨੁ ਹਰਿ ਕਾ ਸੇਵਕੋ ਹਰਿ ਤਿਸ ਕੀ ਕਾਮੀ ॥੧੪॥
जो जनु हरि का सेवको हरि तिस की कामी ॥१४॥
जो व्यक्ति परमात्मा का उपासक है, वह उसके सब कार्य संवार देता है॥ १४॥
ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे मः ५ ॥
डखणे महला ५॥
ਮੁਖਹੁ ਅਲਾਏ ਹਭ ਮਰਣੁ ਪਛਾਣੰਦੋ ਕੋਇ ॥
मुखहु अलाए हभ मरणु पछाणंदो कोइ ॥
मुँह से सभी (मृत्यु के संदर्भ में) बातें करते हैं, लेकिन कोई विरला ही मौत के रहस्य को पहचानता है।
ਨਾਨਕ ਤਿਨਾ ਖਾਕੁ ਜਿਨਾ ਯਕੀਨਾ ਹਿਕ ਸਿਉ ॥੧॥
नानक तिना खाकु जिना यकीना हिक सिउ ॥१॥
हे नानक ! जिनका परमात्मा में यकीन है, उनकी चरण-धूलि ही चाहता हूँ॥१॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਜਾਣੁ ਵਸੰਦੋ ਮੰਝਿ ਪਛਾਣੂ ਕੋ ਹੇਕੜੋ ॥
जाणु वसंदो मंझि पछाणू को हेकड़ो ॥
यह बात जान लो केि परमात्मा सब में अवस्थित है, किन्तु कोई विरला ही उसे पहचानने वाला है।
ਤੈ ਤਨਿ ਪੜਦਾ ਨਾਹਿ ਨਾਨਕ ਜੈ ਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ॥੨॥
तै तनि पड़दा नाहि नानक जै गुरु भेटिआ ॥२॥
हे नानक ! जिसका गुरु से साक्षात्कार हो गया है, उसके तन में भ्रम का पर्दा नहीं रहता॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਮਤੜੀ ਕਾਂਢਕੁ ਆਹ ਪਾਵ ਧੋਵੰਦੋ ਪੀਵਸਾ ॥
मतड़ी कांढकु आह पाव धोवंदो पीवसा ॥
मैं उस महापुरुष के चरण धोकर पी जाऊँ, जो खोटी बुद्धि को मन से बाहर निकालने वाला है।
ਮੂ ਤਨਿ ਪ੍ਰੇਮੁ ਅਥਾਹ ਪਸਣ ਕੂ ਸਚਾ ਧਣੀ ॥੩॥
मू तनि प्रेमु अथाह पसण कू सचा धणी ॥३॥
मेरे मन-तन में प्रभु का दर्शन करने के लिए अथाह प्रेम है, जो जगत् का सच्चा मालिक है॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਨਿਰਭਉ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਨਾਲਿ ਮਾਇਆ ਰਚਾ ॥
निरभउ नामु विसारिआ नालि माइआ रचा ॥
जिसने निर्भय परमात्मा का नाम भुला दिया है और माया के संग लीन रहता है,
ਆਵੈ ਜਾਇ ਭਵਾਈਐ ਬਹੁ ਜੋਨੀ ਨਚਾ ॥
आवै जाइ भवाईऐ बहु जोनी नचा ॥
वह आवागमन में भटकता हुआ अनेक योनियों का शिकार होता है।
ਬਚਨੁ ਕਰੇ ਤੈ ਖਿਸਕਿ ਜਾਇ ਬੋਲੇ ਸਭੁ ਕਚਾ ॥
बचनु करे तै खिसकि जाइ बोले सभु कचा ॥
वह जो भी वचन करता है, उससे मुकर जाता है, इस प्रकार वह सब झूठ ही बोलता है।
ਅੰਦਰਹੁ ਥੋਥਾ ਕੂੜਿਆਰੁ ਕੂੜੀ ਸਭ ਖਚਾ ॥
अंदरहु थोथा कूड़िआरु कूड़ी सभ खचा ॥
ऐसा झूठा इन्सान मन से खोखला ही होता है और सब झूठी क्रिया में ही लीन रहता है।
ਵੈਰੁ ਕਰੇ ਨਿਰਵੈਰ ਨਾਲਿ ਝੂਠੇ ਲਾਲਚਾ ॥
वैरु करे निरवैर नालि झूठे लालचा ॥
वह झूठे लालच में फँसकर निर्वेर लोगों से भी वैर करता है।
ਮਾਰਿਆ ਸਚੈ ਪਾਤਿਸਾਹਿ ਵੇਖਿ ਧੁਰਿ ਕਰਮਚਾ ॥
मारिआ सचै पातिसाहि वेखि धुरि करमचा ॥
उसके खोटे कर्मो को देखकर ही सच्चे पातशाह प्रभु ने उसे मारा है।
ਜਮਦੂਤੀ ਹੈ ਹੇਰਿਆ ਦੁਖ ਹੀ ਮਹਿ ਪਚਾ ॥
जमदूती है हेरिआ दुख ही महि पचा ॥
यमदूत उसे तंग करते हैं और वह दुखों में ही लीन रहता है।
ਹੋਆ ਤਪਾਵਸੁ ਧਰਮ ਕਾ ਨਾਨਕ ਦਰਿ ਸਚਾ ॥੧੫॥
होआ तपावसु धरम का नानक दरि सचा ॥१५॥
हे नानक ! परमात्मा के सच्चे दरबार में धर्म का ही न्याय हुआ है।१५॥
ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे मः ५ ॥
डखणे महला ५॥
ਪਰਭਾਤੇ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਧਿਆਇ ॥
परभाते प्रभ नामु जपि गुर के चरण धिआइ ॥
सुबह उठकर प्रभु का नाम जपो, गुरु के चरणों का ध्यान करो।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਮਲੁ ਉਤਰੈ ਸਚੇ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੧॥
जनम मरण मलु उतरै सचे के गुण गाइ ॥१॥
भगवान् का गुणगान करने से जन्म-मरण की सारी मैल दूर हो जाती है।॥१॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਦੇਹ ਅੰਧਾਰੀ ਅੰਧੁ ਸੁੰਞੀ ਨਾਮ ਵਿਹੂਣੀਆ ॥
देह अंधारी अंधु सुंञी नाम विहूणीआ ॥
परमात्मा के नाम से विहीन मानव-देह अन्धकारमय, गुणहीन एवं ज्ञानहीन ही है।
ਨਾਨਕ ਸਫਲ ਜਨੰਮੁ ਜੈ ਘਟਿ ਵੁਠਾ ਸਚੁ ਧਣੀ ॥੨॥
नानक सफल जनमु जै घटि वुठा सचु धणी ॥२॥
हे नानक ! जिसके ह्रदय में सच्चे मालिक की स्मृति बसी रहती है, उसका ही जन्म सफल है॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਲੋਇਣ ਲੋਈ ਡਿਠ ਪਿਆਸ ਨ ਬੁਝੈ ਮੂ ਘਣੀ ॥
लोइण लोई डिठ पिआस न बुझै मू घणी ॥
इन ऑखों से तो प्रभु-ज्योति को ही देखा है, मगर अब भी उसके दर्शनों की अत्याधिक प्यास लगी हुई है, जो बुझती ही नहीं।