ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਸੰਤ ਜਨ ਨੀਕੇ ਜਿਨ ਮਿਲਿਆਂ ਮਨੁ ਰੰਗਿ ਰੰਗੀਤਿ ॥
हरि के संत संत जन नीके जिन मिलिआं मनु रंगि रंगीति ॥
ईश्वर के भक्तजन भले हैं, जिनको मिलकर मन प्रभु के रंग में रंगीन हो जाता है।
ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਲਹੈ ਨ ਉਤਰੈ ਕਬਹੂ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਾਇ ਮਿਲੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥੩॥
हरि रंगु लहै न उतरै कबहू हरि हरि जाइ मिलै हरि प्रीति ॥३॥
ऐसा प्रभु-रंग कभी नहीं उतरता और जीव प्रभु के प्रेम में प्रभु से मिल जाता है॥३॥
ਹਮ ਬਹੁ ਪਾਪ ਕੀਏ ਅਪਰਾਧੀ ਗੁਰਿ ਕਾਟੇ ਕਟਿਤ ਕਟੀਤਿ ॥
हम बहु पाप कीए अपराधी गुरि काटे कटित कटीति ॥
हम जैसे अपराधियों ने अनेक पाप किए हैं, पर गुरु ने सब पाप-दोष काट दिए हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੀਓ ਮੁਖਿ ਅਉਖਧੁ ਜਨ ਨਾਨਕ ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤਿ ॥੪॥੫॥
हरि हरि नामु दीओ मुखि अउखधु जन नानक पतित पुनीति ॥४॥५॥
हे नानक ! पतितों को पावन करने के लिए गुरु हरिनाम रूपी औषधि ही देता है॥४॥५॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
ਜਪਿ ਮਨ ਰਾਮ ਨਾਮ ਜਗੰਨਾਥ ॥
जपि मन राम नाम जगंनाथ ॥
हे मन ! जगत के मालिक परमेश्वर का भजन कर लो,
ਘੂਮਨ ਘੇਰ ਪਰੇ ਬਿਖੁ ਬਿਖਿਆ ਸਤਿਗੁਰ ਕਾਢਿ ਲੀਏ ਦੇ ਹਾਥ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
घूमन घेर परे बिखु बिखिआ सतिगुर काढि लीए दे हाथ ॥१॥ रहाउ ॥
हम विषय-विकारों के भैंवर में पड़े हुए थे, लेकिन सतिगुरु ने हाथ देकर बाहर निकाल लिया है॥१॥रहाउ ॥
ਸੁਆਮੀ ਅਭੈ ਨਿਰੰਜਨ ਨਰਹਰਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਹਮ ਪਾਪੀ ਪਾਥ ॥
सुआमी अभै निरंजन नरहरि तुम्ह राखि लेहु हम पापी पाथ ॥
हे नारायण ! तू हमारा स्वामी है, अभय है, मोह-माया की कालिमा से परे है, कृपा करके हम पापी पत्थरों को तुम बचा लो।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਬਿਖਿਆ ਲੋਭਿ ਲੁਭਤੇ ਕਾਸਟ ਲੋਹ ਤਰੇ ਸੰਗਿ ਸਾਥ ॥੧॥
काम क्रोध बिखिआ लोभि लुभते कासट लोह तरे संगि साथ ॥१॥
हम काम-क्रोध, विषय-विकारों एवं लोभ में मगन थे, ज्यों लोहा लकड़ी के साथ पार हो जाता है, यूँ ही हमें पार उतार दो॥१॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਵਡ ਪੁਰਖ ਬਡ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਹਮ ਢੂਢਿ ਰਹੇ ਪਾਈ ਨਹੀ ਹਾਥ ॥
तुम्ह वड पुरख बड अगम अगोचर हम ढूढि रहे पाई नही हाथ ॥
हे हरि ! तुम महान् हो, सर्वशक्तिमान हो, ज्ञानेन्द्रियों से परे हो, हम तुझे ढूंढते रहे, पर तेरा साथ नहीं पा सके।
ਤੂ ਪਰੈ ਪਰੈ ਅਪਰੰਪਰੁ ਸੁਆਮੀ ਤੂ ਆਪਨ ਜਾਨਹਿ ਆਪਿ ਜਗੰਨਾਥ ॥੨॥
तू परै परै अपर्मपरु सुआमी तू आपन जानहि आपि जगंनाथ ॥२॥
तू परे से परे है, अपरंपार है, हमारा स्वामी है, पूरे जगत का मालिक है, तू अपनी महानता स्वयं ही जानता है॥२॥
ਅਦ੍ਰਿਸਟੁ ਅਗੋਚਰ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਪਾਥ ॥
अद्रिसटु अगोचर नामु धिआए सतसंगति मिलि साधू पाथ ॥
जब अदृश्य, मन-वाणी से परे मानकर नाम का ध्यान किया तो सत्संगत में सन्मार्ग मिल गया।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਨੀ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਿਓ ਅਕਥ ਕਥ ਕਾਥ ॥੩॥
हरि हरि कथा सुनी मिलि संगति हरि हरि जपिओ अकथ कथ काथ ॥३॥
सच्ची संगत में हरि कथा सुनी, अकथनीय कथा का आनंद प्राप्त किया, हरि का भजन किया॥३॥
ਹਮਰੇ ਪ੍ਰਭ ਜਗਦੀਸ ਗੁਸਾਈ ਹਮ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਜਗੰਨਾਥ ॥
हमरे प्रभ जगदीस गुसाई हम राखि लेहु जगंनाथ ॥
हे जगदीश्वर, जगत-पालक, जगन्नाथ प्रभु ! हमारी रक्षा करो।
ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ਦਾਸ ਦਾਸਨ ਕੋ ਪ੍ਰਭ ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਰਾਖਹੁ ਜਨ ਸਾਥ ॥੪॥੬॥
जन नानकु दासु दास दासन को प्रभ करहु क्रिपा राखहु जन साथ ॥४॥६॥
नानक दासों के दासों का भी दास है, हे प्रभु ! कृपा करके अपने भक्तों के साथ रख लो॥४॥६॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੪ ਪੜਤਾਲ ਘਰੁ ੫ ॥
कानड़ा महला ४ पड़ताल घरु ५ ॥
कानड़ा महला ४ पड़ताल घरु ५ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮਨ ਜਾਪਹੁ ਰਾਮ ਗੁਪਾਲ ॥
मन जापहु राम गुपाल ॥
हे मन ! परमात्मा का जाप करो।
ਹਰਿ ਰਤਨ ਜਵੇਹਰ ਲਾਲ ॥
हरि रतन जवेहर लाल ॥
हरिनाम ही रत्न, जवाहर एवं माणिक्य है।
ਹਰਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਘੜਿ ਟਕਸਾਲ ॥
हरि गुरमुखि घड़ि टकसाल ॥
गुरु की टकसाल में हरिनाम बनता है।
ਹਰਿ ਹੋ ਹੋ ਕਿਰਪਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हो हो किरपाल ॥१॥ रहाउ ॥
जब कृपालु होता है तो प्राप्त हो जाता है॥१॥रहाउ॥
ਤੁਮਰੇ ਗੁਨ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਏਕ ਜੀਹ ਕਿਆ ਕਥੈ ਬਿਚਾਰੀ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਲਾਲ ॥
तुमरे गुन अगम अगोचर एक जीह किआ कथै बिचारी राम राम राम राम लाल ॥
हे प्रभु ! तुम्हारे गुण बे-अन्त हैं, ज्ञानेन्द्रियों की पहुँच से परे हैं, मेरी एक जीभ बेचारी कैसे कथन कर सकती है।
ਤੁਮਰੀ ਜੀ ਅਕਥ ਕਥਾ ਤੂ ਤੂ ਤੂ ਹੀ ਜਾਨਹਿ ਹਉ ਹਰਿ ਜਪਿ ਭਈ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ॥੧॥
तुमरी जी अकथ कथा तू तू तू ही जानहि हउ हरि जपि भई निहाल निहाल निहाल ॥१॥
तुम्हारी कथा अकथनीय है, जिसे केवल तू ही जानता है। मैं हरिनाम का भजन करके निहाल हो गया हूँ॥१॥
ਹਮਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਾਨ ਸਖਾ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਮੀਤਾ ਮੇਰੇ ਮਨਿ ਤਨਿ ਜੀਹ ਹਰਿ ਹਰੇ ਹਰੇ ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਨੁ ਮਾਲ ॥
हमरे हरि प्रान सखा सुआमी हरि मीता मेरे मनि तनि जीह हरि हरे हरे राम नाम धनु माल ॥
ईश्वर ही हमारा प्राण-सखा है, वही हमारा स्वामी एवं परम मित्र है, मेरे मन, तन, जीभ में वही अवस्थित है और हर समय उसी का नाम जपता हूँ, वही हमारी धन-दौलत है।
ਜਾ ਕੋ ਭਾਗੁ ਤਿਨਿ ਲੀਓ ਰੀ ਸੁਹਾਗੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ਹਰੇ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ਗੁਰਮਤਿ ਹਉ ਬਲਿ ਬਲੇ ਹਉ ਬਲਿ ਬਲੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਪਿ ਭਈ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ਨਿਹਾਲ ॥੨॥੧॥੭॥
जा को भागु तिनि लीओ री सुहागु हरि हरि हरे हरे गुन गावै गुरमति हउ बलि बले हउ बलि बले जन नानक हरि जपि भई निहाल निहाल निहाल ॥२॥१॥७॥
जिसका उत्तम भाग्य होता है, उसे ही पति-प्रभु मिलता है और गुरु के उपदेश से वह परमात्मा का गुण-गान करता है। हे नानक ! मैं उस पर कुर्बान जाता हूँ, और ईश्वर का जाप कर निहाल हो गया हूँ॥२॥१॥७॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਵਹੁ ਜਗਦੀਸ ॥
हरि गुन गावहु जगदीस ॥
ईश्वर के गुण गाओ,
ਏਕਾ ਜੀਹ ਕੀਚੈ ਲਖ ਬੀਸ ॥
एका जीह कीचै लख बीस ॥
एक जिव्हा को बिस लाख बनाकर
ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਬਦਿ ਜਪੀਸ ॥
जपि हरि हरि सबदि जपीस ॥
परमात्मा का जाप करो, यही शब्द जपने योग्य है।
ਹਰਿ ਹੋ ਹੋ ਕਿਰਪੀਸ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हो हो किरपीस ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु की कृपा सदैव बनी रहेगी॥१॥रहाउ॥
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਸੁਆਮੀ ਹਮ ਲਾਇ ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪੇ ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪੇ ਜਪੁ ਜਾਪਉ ਜਗਦੀਸ ॥
हरि किरपा करि सुआमी हम लाइ हरि सेवा हरि जपि जपे हरि जपि जपे जपु जापउ जगदीस ॥
ईश्वर ने कृपा करके हमें अपनी सेवा में लगा लिया है, अब तो हर वक्त उसका नाम जप-जपकर आनंद मना रहे हैं।
ਤੁਮਰੇ ਜਨ ਰਾਮੁ ਜਪਹਿ ਤੇ ਊਤਮ ਤਿਨ ਕਉ ਹਉ ਘੁਮਿ ਘੁਮੇ ਘੁਮਿ ਘੁਮਿ ਜੀਸ ॥੧॥
तुमरे जन रामु जपहि ते ऊतम तिन कउ हउ घुमि घुमे घुमि घुमि जीस ॥१॥
हे राम ! तुम्हारे भक्त नित्य तुम्हारा नाम जपते हैं, उन उत्तम लोगों पर सर्वदा कुर्बान जाता हूँ॥१॥