ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਜਨਮ ਮਰਣ ਤੇ ਛੋਟ ॥੧॥
संत प्रसादि जनम मरण ते छोट ॥१॥
संतों की कृपा से जन्म-मरण से मुक्ति हो जाती है॥ १॥
ਸੰਤ ਕਾ ਦਰਸੁ ਪੂਰਨ ਇਸਨਾਨੁ ॥
संत का दरसु पूरन इसनानु ॥
संतों के दर्शन ही पूर्ण तीर्थ स्नान है।
ਸੰਤ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਜਪੀਐ ਨਾਮੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
संत क्रिपा ते जपीऐ नामु ॥१॥ रहाउ ॥
संतों की कृपा से हरिनाम का जाप किया जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਤ ਕੈ ਸੰਗਿ ਮਿਟਿਆ ਅਹੰਕਾਰੁ ॥
संत कै संगि मिटिआ अहंकारु ॥
संतों की संगति से मनुष्य का अहंत्व मिट जाता है
ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਆਵੈ ਸਭੁ ਏਕੰਕਾਰੁ ॥੨॥
द्रिसटि आवै सभु एकंकारु ॥२॥
और फिर सर्वत्र एक ईश्वर ही दृष्टिगोचर होता है॥ २॥
ਸੰਤ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਆਏ ਵਸਿ ਪੰਚਾ ॥
संत सुप्रसंन आए वसि पंचा ॥
संतों की सुप्रसन्नता से पाँच विकार-(काम, क्रोध, लोभ, मोह-अहंकार) वश में आ जाते हैं।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਲੈ ਸੰਚਾ ॥੩॥
अम्रितु नामु रिदै लै संचा ॥३॥
मनुष्य अपने हृदय को अमृत नाम से संचित कर लेता है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕਾ ਪੂਰਾ ਕਰਮ ॥
कहु नानक जा का पूरा करम ॥
हे नानक ! जिसकी किस्मत पूर्ण है,
ਤਿਸੁ ਭੇਟੇ ਸਾਧੂ ਕੇ ਚਰਨ ॥੪॥੪੬॥੧੧੫॥
तिसु भेटे साधू के चरन ॥४॥४६॥११५॥
वही संतों के चरण स्पर्श करता है ॥ ४॥ ४६ ॥ ११५ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਹਰਿ ਗੁਣ ਜਪਤ ਕਮਲੁ ਪਰਗਾਸੈ ॥
हरि गुण जपत कमलु परगासै ॥
भगवान की महिमा-स्तुति करने से हृदय-कमल प्रफुल्लित हो जाता है।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਤ੍ਰਾਸ ਸਭ ਨਾਸੈ ॥੧॥
हरि सिमरत त्रास सभ नासै ॥१॥
भगवान का सिमरन करने से समस्त भय नाश हो जाते हैं।॥ १॥
ਸਾ ਮਤਿ ਪੂਰੀ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥
सा मति पूरी जितु हरि गुण गावै ॥
वही मति पूर्ण है, जिससे भगवान का यश गायन किया जाता है।
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਪਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
वडै भागि साधू संगु पावै ॥१॥ रहाउ ॥
संतों की संगति किस्मत से ही मिलती है॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਪਾਈਐ ਨਿਧਿ ਨਾਮਾ ॥
साधसंगि पाईऐ निधि नामा ॥
संतों की संगति करने से नाम-निधि प्राप्त हो जाती है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਪੂਰਨ ਸਭਿ ਕਾਮਾ ॥੨॥
साधसंगि पूरन सभि कामा ॥२॥
संतों की संगति करने से समस्त कार्य सफल हो जाते हैं॥ २ ॥
ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਜਨਮੁ ਪਰਵਾਣੁ ॥
हरि की भगति जनमु परवाणु ॥
भगवान की भक्ति करने से मनुष्य का जन्म सफल हो जाता है।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੁ ॥੩॥
गुर किरपा ते नामु वखाणु ॥३॥
गुरु की कृपा से प्रभु का नाम सिमरन होता है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੋ ਜਨੁ ਪਰਵਾਨੁ ॥
कहु नानक सो जनु परवानु ॥
हे नानक ! वह सत्य के दरबार में स्वीकार हो जाता है,”
ਜਾ ਕੈ ਰਿਦੈ ਵਸੈ ਭਗਵਾਨੁ ॥੪॥੪੭॥੧੧੬॥
जा कै रिदै वसै भगवानु ॥४॥४७॥११६॥
जिस मनुष्य के हृदय में भगवान का निवास हो जाता है॥ ४ ॥ ४७ ॥ ११६ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਏਕਸੁ ਸਿਉ ਜਾ ਕਾ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ॥
एकसु सिउ जा का मनु राता ॥
जिस व्यक्ति का मन एक ईश्वर के प्रेम में मग्न हो जाता है,
ਵਿਸਰੀ ਤਿਸੈ ਪਰਾਈ ਤਾਤਾ ॥੧॥
विसरी तिसै पराई ताता ॥१॥
वह दूसरों से इर्षा-द्वेष करना भूल जाता है॥ १ ॥
ਬਿਨੁ ਗੋਬਿੰਦ ਨ ਦੀਸੈ ਕੋਈ ॥
बिनु गोबिंद न दीसै कोई ॥
उसे गोविन्द के अलावा दूसरा कोई नहीं दिखाई देता।
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਕਰਤਾ ਸੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करन करावन करता सोई ॥१॥ रहाउ ॥
उसे ज्ञान हो जाता है कि जगत् का कर्ता स्वयं ही सबकुछ करने वाला एवं जीवों से कराने वाला है॥ १॥ रहाउ॥
ਮਨਹਿ ਕਮਾਵੈ ਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਬੋਲੈ ॥
मनहि कमावै मुखि हरि हरि बोलै ॥
जो व्यक्ति एकाग्रचित होकर नाम-सिमरन की साधना करता है, और अपने मुख से हरि-परमेश्वर का नाम बोलता रहता है,
ਸੋ ਜਨੁ ਇਤ ਉਤ ਕਤਹਿ ਨ ਡੋਲੈ ॥੨॥
सो जनु इत उत कतहि न डोलै ॥२॥
वह लोक-परलोक में कहीं भी डगमगाता नहीं ॥ २॥
ਜਾ ਕੈ ਹਰਿ ਧਨੁ ਸੋ ਸਚ ਸਾਹੁ ॥
जा कै हरि धनु सो सच साहु ॥
जिस मनुष्य के पास हरि नाम रूपी धन है, वही सच्चा साहूकार है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਕਰਿ ਦੀਨੋ ਵਿਸਾਹੁ ॥੩॥
गुरि पूरै करि दीनो विसाहु ॥३॥
पूर्ण गुरु ने उसकी प्रतिष्ठा बना दी है॥ ३॥
ਜੀਵਨ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥
जीवन पुरखु मिलिआ हरि राइआ ॥
उसे जीवन पुरुष हरि-परमेश्वर मिल जाता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੪੮॥੧੧੭॥
कहु नानक परम पदु पाइआ ॥४॥४८॥११७॥
हे नानक ! इस तरह वह परम पद प्राप्त कर लेता है॥ ४ ॥ ४८॥ ११७ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਨਾਮੁ ਭਗਤ ਕੈ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੁ ॥
नामु भगत कै प्रान अधारु ॥
प्रभु का नाम ही उसके भक्त के प्राणों का आधार है।
ਨਾਮੋ ਧਨੁ ਨਾਮੋ ਬਿਉਹਾਰੁ ॥੧॥
नामो धनु नामो बिउहारु ॥१॥
नाम ही उसका धन है, नाम ही उसका व्यापार है॥ १॥
ਨਾਮ ਵਡਾਈ ਜਨੁ ਸੋਭਾ ਪਾਏ ॥
नाम वडाई जनु सोभा पाए ॥
नाम द्वारा भक्त प्रशंसा एवं शोभा प्राप्त करता है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਦਿਵਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा जिसु आपि दिवाए ॥१॥ रहाउ ॥
लेकिन यह नाम उसे ही प्राप्त होता है, जिसको प्रभु स्वयं कृपा करके दिलवाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਭਗਤ ਕੈ ਸੁਖ ਅਸਥਾਨੁ ॥
नामु भगत कै सुख असथानु ॥
नाम भक्त की सुख-शांति का निवास है।
ਨਾਮ ਰਤੁ ਸੋ ਭਗਤੁ ਪਰਵਾਨੁ ॥੨॥
नाम रतु सो भगतु परवानु ॥२॥
जो भक्त नाम में मग्न रहता है, वह स्वीकार हो जाता है॥ २ ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਜਨ ਕਉ ਧਾਰੈ ॥
हरि का नामु जन कउ धारै ॥
हरि का नाम उसके सेवक को आधार प्रदान करता है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਜਨੁ ਨਾਮੁ ਸਮਾਰੈ ॥੩॥
सासि सासि जनु नामु समारै ॥३॥
श्वास-श्वास से ईश्वर का सेवक नाम-सिमरन करता रहता है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਪੂਰਾ ਭਾਗੁ ॥
कहु नानक जिसु पूरा भागु ॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति की किस्मत अच्छी होती है,
ਨਾਮ ਸੰਗਿ ਤਾ ਕਾ ਮਨੁ ਲਾਗੁ ॥੪॥੪੯॥੧੧੮॥
नाम संगि ता का मनु लागु ॥४॥४९॥११८॥
उसका ही मन नाम से लगा रहता है ॥ ४ ॥ ४९ ॥ ११८ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥
संत प्रसादि हरि नामु धिआइआ ॥
संत की कृपा से जब से मैंने भगवान के नाम का ध्यान किया है,
ਤਬ ਤੇ ਧਾਵਤੁ ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤਾਇਆ ॥੧॥
तब ते धावतु मनु त्रिपताइआ ॥१॥
तब से मेरा विकारों की ओर भटकता हुआ मन तृप्त हो गया है॥ १॥
ਸੁਖ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ਪਾਇਆ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥
सुख बिस्रामु पाइआ गुण गाइ ॥
प्रभु की गुणस्तुति करने से मुझे सुख का विश्राम प्राप्त हो गया है।
ਸ੍ਰਮੁ ਮਿਟਿਆ ਮੇਰੀ ਹਤੀ ਬਲਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
स्रमु मिटिआ मेरी हती बलाइ ॥१॥ रहाउ ॥
मेरी पीड़ा दूर हो गई है और मेरे कुकर्मों का दैत्य नष्ट हो गया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਅਰਾਧਿ ਭਗਵੰਤਾ ॥
चरन कमल अराधि भगवंता ॥
हे भाई ! भगवान के चरण-कमलों का चिन्तन कर।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਨ ਤੇ ਮਿਟੀ ਮੇਰੀ ਚਿੰਤਾ ॥੨॥
हरि सिमरन ते मिटी मेरी चिंता ॥२॥
हरि का सिमरन करने से मेरी चिन्ता मिट गई है ॥ २ ॥
ਸਭ ਤਜਿ ਅਨਾਥੁ ਏਕ ਸਰਣਿ ਆਇਓ ॥
सभ तजि अनाथु एक सरणि आइओ ॥
मैं अनाथ सब सहारों को त्याग चुका हूँ और एक ईश्वर की शरणागत हूँ।
ਊਚ ਅਸਥਾਨੁ ਤਬ ਸਹਜੇ ਪਾਇਓ ॥੩॥
ऊच असथानु तब सहजे पाइओ ॥३॥
तब से मैंने सर्वोच्च स्थान को सहज ही प्राप्त कर लिया है॥ ३॥
ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਭਰਮੁ ਭਉ ਨਸਿਆ ॥
दूखु दरदु भरमु भउ नसिआ ॥
मेरे दुःख-दर्द, भ्रम-भय नाश हो गए हैं।
ਕਰਣਹਾਰੁ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਬਸਿਆ ॥੪॥੫੦॥੧੧੯॥
करणहारु नानक मनि बसिआ ॥४॥५०॥११९॥
हे नानक ! सृजनहार प्रभु ने हृदय में निवास कर लिया है॥ ४॥ ५० ॥ ११९॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਕਰ ਕਰਿ ਟਹਲ ਰਸਨਾ ਗੁਣ ਗਾਵਉ ॥
कर करि टहल रसना गुण गावउ ॥
मैं अपने हाथों से प्रभु की सेवा करता हूँ और मुख से उसकी गुणस्तुति करता हूँ।