Hindi Page 999

ਰਾਜਸੁ ਸਾਤਕੁ ਤਾਮਸੁ ਡਰਪਹਿ ਕੇਤੇ ਰੂਪ ਉਪਾਇਆ ॥
राजसु सातकु तामसु डरपहि केते रूप उपाइआ ॥
रजोगुणी (मनुष्य), सतोगुणी (देवते) एवं तमोगुणी (दैत्य) तथा अनेक रूप वाले उत्पन्न जीव परमात्मा के भय में विचरते है।

ਛਲ ਬਪੁਰੀ ਇਹ ਕਉਲਾ ਡਰਪੈ ਅਤਿ ਡਰਪੈ ਧਰਮ ਰਾਇਆ ॥੩॥
छल बपुरी इह कउला डरपै अति डरपै धरम राइआ ॥३॥
जीवो से चल करने वाली बेचारी माया भी ईश्वर से भयभीत है और धर्मराज भी भय में विचरण कर रहा है। ३॥

ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਡਰਹਿ ਬਿਆਪੀ ਬਿਨੁ ਡਰ ਕਰਣੈਹਾਰਾ ॥
सगल समग्री डरहि बिआपी बिनु डर करणैहारा ॥
समूची जगत्-रचना उसके भय में है, मगर ईश्वर को कोई डर नहीं।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਗਤਨ ਕਾ ਸੰਗੀ ਭਗਤ ਸੋਹਹਿ ਦਰਬਾਰਾ ॥੪॥੧॥
कहु नानक भगतन का संगी भगत सोहहि दरबारा ॥४॥१॥
हे नानक ! वह भक्तजनो का साथी है और भक्त उसके दरबार में ही शोभा के पात्र बनते है।॥४॥१॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥

ਪਾਂਚ ਬਰਖ ਕੋ ਅਨਾਥੁ ਧ੍ਰੂ ਬਾਰਿਕੁ ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਅਮਰ ਅਟਾਰੇ ॥
पांच बरख को अनाथु ध्रू बारिकु हरि सिमरत अमर अटारे ॥
पाँच वर्ष का मासूम बालक ध्रुव ईश्वर का सिमरन करके अमर पद पा गया।

ਪੁਤ੍ਰ ਹੇਤਿ ਨਾਰਾਇਣੁ ਕਹਿਓ ਜਮਕੰਕਰ ਮਾਰਿ ਬਿਦਾਰੇ ॥੧॥
पुत्र हेति नाराइणु कहिओ जमकंकर मारि बिदारे ॥१॥
अजामल ने पुत्र प्रेम के कारण मुँह से नारायण कहा तो ईश्वर ने यमदूतों को मार भगाकर उसका उद्धार किया ॥१॥

ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਕੇਤੇ ਅਗਨਤ ਉਧਾਰੇ ॥
मेरे ठाकुर केते अगनत उधारे ॥
हे मेरे ठाकुर ! तूने कितने ही असंख्य जीवों का उद्धार कर दिया।

ਮੋਹਿ ਦੀਨ ਅਲਪ ਮਤਿ ਨਿਰਗੁਣ ਪਰਿਓ ਸਰਣਿ ਦੁਆਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मोहि दीन अलप मति निरगुण परिओ सरणि दुआरे ॥१॥ रहाउ ॥
मैं दीन, अल्पमति एवं गुणविहीन तेरी शरण में आया हूँ, मेरा कल्याण करो॥ १॥ रहाउ॥

ਬਾਲਮੀਕੁ ਸੁਪਚਾਰੋ ਤਰਿਓ ਬਧਿਕ ਤਰੇ ਬਿਚਾਰੇ ॥
बालमीकु सुपचारो तरिओ बधिक तरे बिचारे ॥
वाल्मीक को मोक्ष प्राप्त हुआ और बेचारे नीच शिकारी की मुक्ति हुई।

ਏਕ ਨਿਮਖ ਮਨ ਮਾਹਿ ਅਰਾਧਿਓ ਗਜਪਤਿ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੇ ॥੨॥
एक निमख मन माहि अराधिओ गजपति पारि उतारे ॥२॥
एक पल हाथी ने मन में आराधना की तो ईश्वर ने मगरमच्छ से उसका छुटकारा किया। २॥

ਕੀਨੀ ਰਖਿਆ ਭਗਤ ਪ੍ਰਹਿਲਾਦੈ ਹਰਨਾਖਸ ਨਖਹਿ ਬਿਦਾਰੇ ॥
कीनी रखिआ भगत प्रहिलादै हरनाखस नखहि बिदारे ॥
दैत्य हिरण्यकशिपु को नखों से चीर कर नृसिंह भगवान् ने भक्त प्रहलाद की रक्षा की।

ਬਿਦਰੁ ਦਾਸੀ ਸੁਤੁ ਭਇਓ ਪੁਨੀਤਾ ਸਗਲੇ ਕੁਲ ਉਜਾਰੇ ॥੩॥
बिदरु दासी सुतु भइओ पुनीता सगले कुल उजारे ॥३॥
दासी पुत्र विदुर को पावन कर दिया और उसकी समस्त वंशावलि उज्ज्वल कर दी॥ ३॥

ਕਵਨ ਪਰਾਧ ਬਤਾਵਉ ਅਪੁਨੇ ਮਿਥਿਆ ਮੋਹ ਮਗਨਾਰੇ ॥
कवन पराध बतावउ अपुने मिथिआ मोह मगनारे ॥
मैं अपने कौन-से अपराध बताऊँ, क्योंकि जीवन भर मिथ्या मोह में ही मग्न रहा।

ਆਇਓ ਸਾਮ ਨਾਨਕ ਓਟ ਹਰਿ ਕੀ ਲੀਜੈ ਭੁਜਾ ਪਸਾਰੇ ॥੪॥੨॥
आइओ साम नानक ओट हरि की लीजै भुजा पसारे ॥४॥२॥
नानक कहते हैं कि हे हरि ! तेरा आसरा लेने के लिए मैं तेरी शरण में आया हैं, अपनी भुजा फैलाकर मुझे बचा लो॥ ४॥२॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥

ਵਿਤ ਨਵਿਤ ਭ੍ਰਮਿਓ ਬਹੁ ਭਾਤੀ ਅਨਿਕ ਜਤਨ ਕਰਿ ਧਾਏ ॥
वित नवित भ्रमिओ बहु भाती अनिक जतन करि धाए ॥
मैं धन के लिए बहुत भटकता रहा और अनेक यत्न करके भागदौड़ करता रहा।

ਜੋ ਜੋ ਕਰਮ ਕੀਏ ਹਉ ਹਉਮੈ ਤੇ ਤੇ ਭਏ ਅਜਾਏ ॥੧॥
जो जो करम कीए हउ हउमै ते ते भए अजाए ॥१॥
जितने भी कर्म अहम् में किए हैं, वे सब निष्फल हो चुके हैं॥ १॥

ਅਵਰ ਦਿਨ ਕਾਹੂ ਕਾਜ ਨ ਲਾਏ ॥
अवर दिन काहू काज न लाए ॥
जीवन के अन्य दिन किसी शुभ कर्म में नहीं लगाए,

ਸੋ ਦਿਨੁ ਮੋ ਕਉ ਦੀਜੈ ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਜਾ ਦਿਨ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सो दिनु मो कउ दीजै प्रभ जीउ जा दिन हरि जसु गाए ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु जी ! मुझे वह दिन दीजिए, जिस दिन मैं तेरा यशगान करू॥ १॥ रहाउ॥

ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਗ੍ਰਿਹ ਦੇਖਿ ਪਸਾਰਾ ਇਸ ਹੀ ਮਹਿ ਉਰਝਾਏ ॥
पुत्र कलत्र ग्रिह देखि पसारा इस ही महि उरझाए ॥
जीवन भर अपने पुत्र, पत्नी एवं घर का प्रसार देखकर इसी में उलझा रहा।

ਮਾਇਆ ਮਦ ਚਾਖਿ ਭਏ ਉਦਮਾਤੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਬਹੁ ਨ ਗਾਏ ॥੨॥
माइआ मद चाखि भए उदमाते हरि हरि कबहु न गाए ॥२॥
धन-दौलत का नशा चखकर इसमें ही मरत रहा परन्तु भगवान का कभी भजन नहीं किया॥ २॥

ਇਹ ਬਿਧਿ ਖੋਜੀ ਬਹੁ ਪਰਕਾਰਾ ਬਿਨੁ ਸੰਤਨ ਨਹੀ ਪਾਏ ॥
इह बिधि खोजी बहु परकारा बिनु संतन नही पाए ॥
मैंने अनेक प्रकार से नाम-स्मरण की युक्ति खोजी है परन्तु संतों के बिना प्राप्त नहीं होती।

ਤੁਮ ਦਾਤਾਰ ਵਡੇ ਪ੍ਰਭ ਸੰਮ੍ਰਥ ਮਾਗਨ ਕਉ ਦਾਨੁ ਆਏ ॥੩॥
तुम दातार वडे प्रभ सम्रथ मागन कउ दानु आए ॥३॥
हे ईश्वर ! तू सबसे बड़ा दाता हैं, सर्वकला समर्थ है, मैं तुझसे ही माँगने के लिए आया हूँ॥ ३॥

ਤਿਆਗਿਓ ਸਗਲਾ ਮਾਨੁ ਮਹਤਾ ਦਾਸ ਰੇਣ ਸਰਣਾਏ ॥
तिआगिओ सगला मानु महता दास रेण सरणाए ॥
समूचा अभिमान एवं गर्व त्यागकर दास चरण-धूल समान तेरी शरण में आया है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਮਿਲਿ ਭਏ ਏਕੈ ਮਹਾ ਅਨੰਦ ਸੁਖ ਪਾਏ ॥੪॥੩॥
कहु नानक हरि मिलि भए एकै महा अनंद सुख पाए ॥४॥३॥
हे नानक ! भगवान् से मिलकर एक महा आनंद एवं परमसुख उपलब्ध हुआ है॥ ४॥ ३॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥

ਕਵਨ ਥਾਨ ਧੀਰਿਓ ਹੈ ਨਾਮਾ ਕਵਨ ਬਸਤੁ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥
कवन थान धीरिओ है नामा कवन बसतु अहंकारा ॥
नाम-शोहरत किस जगह पर टिके हुए हैं, अहंकार कहाँ रहता है?

ਕਵਨ ਚਿਹਨ ਸੁਨਿ ਊਪਰਿ ਛੋਹਿਓ ਮੁਖ ਤੇ ਸੁਨਿ ਕਰਿ ਗਾਰਾ ॥੧॥
कवन चिहन सुनि ऊपरि छोहिओ मुख ते सुनि करि गारा ॥१॥
मुँह से गाली सुनकर चेहरे पर कौन-सा जख्म पड़ गया है कि तू क्रोध से भर गया है ?॥ १॥

ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਤੂ ਕਉਨੁ ਕਹਾ ਤੇ ਆਇਓ ॥
सुनहु रे तू कउनु कहा ते आइओ ॥
अरे भाई ! सुनो; तू कौन है और कहाँ से आया है ?

ਏਤੀ ਨ ਜਾਨਉ ਕੇਤੀਕ ਮੁਦਤਿ ਚਲਤੇ ਖਬਰਿ ਨ ਪਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एती न जानउ केतीक मुदति चलते खबरि न पाइओ ॥१॥ रहाउ ॥
तू इतनी बात भी नहीं जानता कि यहाँ कब तक रहना है और तुझे यहाँ से चले जाने की खबर भी नहीं होनी॥ १॥ रहाउ॥

ਸਹਨ ਸੀਲ ਪਵਨ ਅਰੁ ਪਾਣੀ ਬਸੁਧਾ ਖਿਮਾ ਨਿਭਰਾਤੇ ॥
सहन सील पवन अरु पाणी बसुधा खिमा निभराते ॥
पवन और पानी दोनों ही सहनशील हैं और पृथ्वी तो निःसंदेह क्षमावान् हैं।

ਪੰਚ ਤਤ ਮਿਲਿ ਭਇਓ ਸੰਜੋਗਾ ਇਨ ਮਹਿ ਕਵਨ ਦੁਰਾਤੇ ॥੨॥
पंच तत मिलि भइओ संजोगा इन महि कवन दुराते ॥२॥
पाँच तत्वों से मिलकर तेरा शरीर बना है, बताओ, इन में क्या बुराई हैं ?॥२॥

ਜਿਨਿ ਰਚਿ ਰਚਿਆ ਪੁਰਖਿ ਬਿਧਾਤੈ ਨਾਲੇ ਹਉਮੈ ਪਾਈ ॥
जिनि रचि रचिआ पुरखि बिधातै नाले हउमै पाई ॥
जिस विधाता ने शरीर-रचना की है, उसने ही इसमें अभिमान भी डाल दिया है।

ਜਨਮ ਮਰਣੁ ਉਸ ਹੀ ਕਉ ਹੈ ਰੇ ਓਹਾ ਆਵੈ ਜਾਈ ॥੩॥
जनम मरणु उस ही कउ है रे ओहा आवै जाई ॥३॥
जन्म-मरण का चक्र उस मनुष्य को ही हैं और वहीं आवागमन में पड़ा रहता है॥ ३॥

ਬਰਨੁ ਚਿਹਨੁ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਰਚਨਾ ਮਿਥਿਆ ਸਗਲ ਪਸਾਰਾ ॥
बरनु चिहनु नाही किछु रचना मिथिआ सगल पसारा ॥
यह समूचा जगत्त-प्रसार मिथ्या है और इस रचना का कोई भी रंग रूप व चिन्ह स्थिर नहीं है।

ਭਣਤਿ ਨਾਨਕੁ ਜਬ ਖੇਲੁ ਉਝਾਰੈ ਤਬ ਏਕੈ ਏਕੰਕਾਰਾ ॥੪॥੪॥
भणति नानकु जब खेलु उझारै तब एकै एकंकारा ॥४॥४॥
नानक कहते हैं कि जब वह जगत् लीला को नष्ट कर देता हैं तो एक ओंकार का ही अस्तित्व रह जाता है ॥४॥४॥

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