ਜਿਨਾ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਨ ਵਿਸਰੈ ਸੇ ਪੂਰੇ ਪੁਰਖ ਪਰਧਾਨ ॥
जिना सासि गिरासि न विसरै से पूरे पुरख परधान ॥
जिन्हें श्वास लेते और भोजन खाते समय एक क्षण भर के लिए भी भगवान का नाम विस्मृत नहीं होता, वही सर्वगुणसम्पन्न एवं प्रधान हैं।
ਕਰਮੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਈਐ ਅਨਦਿਨੁ ਲਗੈ ਧਿਆਨੁ ॥
करमी सतिगुरु पाईऐ अनदिनु लगै धिआनु ॥
भगवान की कृपा से सतिगुरु (उन्हें) मिलता है और उनका ध्यान रात-दिन भगवान में लगा रहता है।
ਤਿਨ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਰਹਾ ਦਰਗਹ ਪਾਈ ਮਾਨੁ ॥
तिन की संगति मिलि रहा दरगह पाई मानु ॥
मैं भी उन गुरमुखों की संगति करुं ताकि भगवान के दरबार में सम्मान प्राप्त हो।
ਸਉਦੇ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਉਚਰਹਿ ਉਠਦੇ ਭੀ ਵਾਹੁ ਕਰੇਨਿ ॥
सउदे वाहु वाहु उचरहि उठदे भी वाहु करेनि ॥
वे सोते और जागते वक्त ईश्वर की गुणस्तुति करते हैं।
ਨਾਨਕ ਤੇ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਜਿ ਨਿਤ ਉਠਿ ਸੰਮਾਲੇਨਿ ॥੧॥
नानक ते मुख उजले जि नित उठि समालेनि ॥१॥
हे नानक ! उनके चेहरे उज्ज्वल हैं जो प्रतिदिन सुबह जागकर ईश्वर को स्मरण करते हैं।॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੀਐ ਆਪਣਾ ਪਾਈਐ ਨਾਮੁ ਅਪਾਰੁ ॥
सतिगुरु सेवीऐ आपणा पाईऐ नामु अपारु ॥
अपने सतिगुरु की सेवा करने से मनुष्य अपार नाम प्राप्त करता है।
ਭਉਜਲਿ ਡੁਬਦਿਆ ਕਢਿ ਲਏ ਹਰਿ ਦਾਤਿ ਕਰੇ ਦਾਤਾਰੁ ॥
भउजलि डुबदिआ कढि लए हरि दाति करे दातारु ॥
दाता गुरदेव ईश्वर के नाम की देन प्रदान करता है और डूबते हुए मनुष्य को भयानक संसार-सागर में से निकाल लेता है।
ਧੰਨੁ ਧੰਨੁ ਸੇ ਸਾਹ ਹੈ ਜਿ ਨਾਮਿ ਕਰਹਿ ਵਾਪਾਰੁ ॥
धंनु धंनु से साह है जि नामि करहि वापारु ॥
वह शाह धन्य-धन्य हैं जो ईश्वर के नाम का व्यापार करते हैं।
ਵਣਜਾਰੇ ਸਿਖ ਆਵਦੇ ਸਬਦਿ ਲਘਾਵਣਹਾਰੁ ॥
वणजारे सिख आवदे सबदि लघावणहारु ॥
सिक्ख व्यापारी आते हैं और सतिगुरु उन्हें शब्द द्वारा भवसागर से पार करवा देता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਜਿਨ ਕਉ ਕ੍ਰਿਪਾ ਭਈ ਤਿਨ ਸੇਵਿਆ ਸਿਰਜਣਹਾਰੁ ॥੨॥
जन नानक जिन कउ क्रिपा भई तिन सेविआ सिरजणहारु ॥२॥
हे नानक ! सृजनहार प्रभु की सेवा-भक्ति वही मनुष्य करते हैं, जिस पर वह स्वयं कृपा करता है। २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਸਚੁ ਸਚੇ ਕੇ ਜਨ ਭਗਤ ਹਹਿ ਸਚੁ ਸਚਾ ਜਿਨੀ ਅਰਾਧਿਆ ॥
सचु सचे के जन भगत हहि सचु सचा जिनी अराधिआ ॥
जो सत्य के पुंज परमात्मा की सत्य ही भक्ति करते हैं, वही (परमात्मा) के भक्त है।
ਜਿਨ ਗੁਰਮੁਖਿ ਖੋਜਿ ਢੰਢੋਲਿਆ ਤਿਨ ਅੰਦਰਹੁ ਹੀ ਸਚੁ ਲਾਧਿਆ ॥
जिन गुरमुखि खोजि ढंढोलिआ तिन अंदरहु ही सचु लाधिआ ॥
जो मनुष्य गुरु के समक्ष होकर खोजकर ढूंढते हैं, वे अपने हृदय में ही प्रभु को प्राप्त कर लेते हैं।
ਸਚੁ ਸਾਹਿਬੁ ਸਚੁ ਜਿਨੀ ਸੇਵਿਆ ਕਾਲੁ ਕੰਟਕੁ ਮਾਰਿ ਤਿਨੀ ਸਾਧਿਆ ॥
सचु साहिबु सचु जिनी सेविआ कालु कंटकु मारि तिनी साधिआ ॥
जिन मनुष्यों ने सच्चे मालिक की सचमुच सेवा की है, उन्होंने दुःखदायक काल को मारकर नियंत्रित कर लिया है।
ਸਚੁ ਸਚਾ ਸਭ ਦੂ ਵਡਾ ਹੈ ਸਚੁ ਸੇਵਨਿ ਸੇ ਸਚਿ ਰਲਾਧਿਆ ॥
सचु सचा सभ दू वडा है सचु सेवनि से सचि रलाधिआ ॥
सत्य का पुंज परमात्मा महान है, उसकी सेवा-भक्ति जो मनुष्य करते हैं, वे सत्य में ही लीन हो जाते हैं।
ਸਚੁ ਸਚੇ ਨੋ ਸਾਬਾਸਿ ਹੈ ਸਚੁ ਸਚਾ ਸੇਵਿ ਫਲਾਧਿਆ ॥੨੨॥
सचु सचे नो साबासि है सचु सचा सेवि फलाधिआ ॥२२॥
वह सत्य का पुंज परमात्मा धन्य है, जो व्यक्ति सच्चे (परमात्मा) की भक्ति करते हैं, उन्हें उत्तम फल मिलता है॥ २२ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥
ਮਨਮੁਖੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ਮੁਗਧੁ ਹੈ ਨਾਮਹੀਣ ਭਰਮਾਇ ॥
मनमुखु प्राणी मुगधु है नामहीण भरमाइ ॥
स्वेच्छाचारी प्राणी मुर्ख है, चूंकि ऐसा नामविहीन इन्सान भटकता ही रहता है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਮਨੂਆ ਨਾ ਟਿਕੈ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੂਨੀ ਪਾਇ ॥
बिनु गुर मनूआ ना टिकै फिरि फिरि जूनी पाइ ॥
गुरु के बिना उसका मन स्थिर नहीं होता और वह बार-बार गर्भ-योनि में पड़ता है।
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ਦਇਆਲ ਹੋਹਿ ਤਾਂ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲਿਆ ਆਇ ॥
हरि प्रभु आपि दइआल होहि तां सतिगुरु मिलिआ आइ ॥
जब हरि-प्रभु स्वयं दया के घर में आता है तो इसे सतिगुरु आकर मिल जाता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਿ ਤੂ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥੧॥
जन नानक नामु सलाहि तू जनम मरण दुखु जाइ ॥१॥
(इसलिए) हे नानक ! तुम भी नाम की महिमा-स्तुति करो चूंकेि तेरा जन्म-मरण का दुःख मिट जाए ॥ १ ॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਗੁਰੁ ਸਾਲਾਹੀ ਆਪਣਾ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਰੰਗਿ ਸੁਭਾਇ ॥
गुरु सालाही आपणा बहु बिधि रंगि सुभाइ ॥
मैं अपने गुरु की बड़े प्रेम से अनेक विधियों से प्रशंसा करता हूँ।
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਤੀ ਮਨੁ ਰਤਾ ਰਖਿਆ ਬਣਤ ਬਣਾਇ ॥
सतिगुर सेती मनु रता रखिआ बणत बणाइ ॥
मेरा मन गुरु के साथ मग्न है। गुरु जी ने मेरे मन को संवार दिया है।
ਜਿਹਵਾ ਸਾਲਾਹਿ ਨ ਰਜਈ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥
जिहवा सालाहि न रजई हरि प्रीतम चितु लाइ ॥
मेरी रसना प्रशंसा करके तृप्त नहीं होती और मन प्रियतम-प्रभु के साथ प्रेम करके तृप्त नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਨਾਵੈ ਕੀ ਮਨਿ ਭੁਖ ਹੈ ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤੈ ਹਰਿ ਰਸੁ ਖਾਇ ॥੨॥
नानक नावै की मनि भुख है मनु त्रिपतै हरि रसु खाइ ॥२॥
हे नानक ! मन को नाम की भूख है और मन हरि-रस को पान करने से तृप्त होता है।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਸਚੁ ਸਚਾ ਕੁਦਰਤਿ ਜਾਣੀਐ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਜਿਨਿ ਬਣਾਈਆ ॥
सचु सचा कुदरति जाणीऐ दिनु राती जिनि बणाईआ ॥
सत्यस्वरूप प्रभु जिसने दिन और रात बनाए हैं, वह सत्य का पुंज (इस) कुदरत से ही सचमुच बड़ी महानता वाला मालूम होता है।
ਸੋ ਸਚੁ ਸਲਾਹੀ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਚੁ ਸਚੇ ਕੀਆ ਵਡਿਆਈਆ ॥
सो सचु सलाही सदा सदा सचु सचे कीआ वडिआईआ ॥
मैं सदैव उस सत्यस्वरूप परमात्मा की प्रशंसा करता हूँ और सच्चे (परमात्मा) की महिमा सत्य है।
ਸਾਲਾਹੀ ਸਚੁ ਸਲਾਹ ਸਚੁ ਸਚੁ ਕੀਮਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈਆ ॥
सालाही सचु सलाह सचु सचु कीमति किनै न पाईआ ॥
प्रशंसनीय परमात्मा सत्य है और उसकी प्रशंसा भी सत्य है। सत्यस्वरूप परमात्मा का कोई भी मूल्यांकन नहीं जान सका।
ਜਾ ਮਿਲਿਆ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਤਾ ਹਾਜਰੁ ਨਦਰੀ ਆਈਆ ॥
जा मिलिआ पूरा सतिगुरू ता हाजरु नदरी आईआ ॥
जब पूर्ण सतिगुरु मिलता है तो परमात्मा प्रत्यक्ष दिखाई देता है।
ਸਚੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਨੀ ਸਲਾਹਿਆ ਤਿਨਾ ਭੁਖਾ ਸਭਿ ਗਵਾਈਆ ॥੨੩॥
सचु गुरमुखि जिनी सलाहिआ तिना भुखा सभि गवाईआ ॥२३॥
जो गुरमुख सत्य का यश गाते हैं, उनकी तमाम भूख निवृत्त हो जाती है॥ २३॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥
ਮੈ ਮਨੁ ਤਨੁ ਖੋਜਿ ਖੋਜੇਦਿਆ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਲਧਾ ਲੋੜਿ ॥
मै मनु तनु खोजि खोजेदिआ सो प्रभु लधा लोड़ि ॥
अपने मन एवं तन में ही भलीभाँति खोज-खोजकर मैंने उस प्रभु को ढूंढ लिया है, जिसे मैं चाहता था।
ਵਿਸਟੁ ਗੁਰੂ ਮੈ ਪਾਇਆ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਦਿਤਾ ਜੋੜਿ ॥੧॥
विसटु गुरू मै पाइआ जिनि हरि प्रभु दिता जोड़ि ॥१॥
मुझे गुरु वकील मिल गया है, जिसने मुझे प्रभु-परमेश्वर से मिला दिया है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਮਾਇਆਧਾਰੀ ਅਤਿ ਅੰਨਾ ਬੋਲਾ ॥
माइआधारी अति अंना बोला ॥
मायाधारी बड़ा अन्धा एवं बहरा है।
ਸਬਦੁ ਨ ਸੁਣਈ ਬਹੁ ਰੋਲ ਘਚੋਲਾ ॥
सबदु न सुणई बहु रोल घचोला ॥
ऐसा व्यक्ति गुरु के शब्द को ध्यानपूर्वक नहीं सुनता और बड़ा शोर-शराबा करता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਪੈ ਸਬਦਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
गुरमुखि जापै सबदि लिव लाइ ॥
गुरमुख शब्द में सुरति लगाने से ही जाना जाता है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸੁਣਿ ਮੰਨੇ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇ ॥
हरि नामु सुणि मंने हरि नामि समाइ ॥
वे ईश्वर के नाम को सुनते और उसमें आस्था रखते हैं और ईश्वर के नाम में ही वे समा जाते हैं।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੁ ਕਰੇ ਕਰਾਇਆ ॥
जो तिसु भावै सु करे कराइआ ॥
“(परन्तु मायाधारी अथवा गुरमुख के क्या वश ?) जो कुछ उस ईश्वर को भला लगता है, (उसके अनुसार) यह जीव कराने से काम करता है।
ਨਾਨਕ ਵਜਦਾ ਜੰਤੁ ਵਜਾਇਆ ॥੨॥
नानक वजदा जंतु वजाइआ ॥२॥
हे नानक ! जीव रूपी बाजा वैसे बजता है, जैसे प्रभु उसे बजाता है॥ २॥