ਓੁਂ ਨਮੋ ਭਗਵੰਤ ਗੁਸਾਈ ॥
ओं नमो भगवंत गुसाई ॥
ओम् को हमारा प्रणाम है,
ਖਾਲਕੁ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਰਬ ਠਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
खालकु रवि रहिआ सरब ठाई ॥१॥ रहाउ ॥
वह भगवंत, पृथ्वीपालक, स्रष्टा सब स्थानों पर बसा हुआ है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਗੰਨਾਥ ਜਗਜੀਵਨ ਮਾਧੋ ॥
जगंनाथ जगजीवन माधो ॥
वह समूचे जगत् का मालिक है, जगत् को जीवन देने वाला है,
ਭਉ ਭੰਜਨ ਰਿਦ ਮਾਹਿ ਅਰਾਧੋ ॥
भउ भंजन रिद माहि अराधो ॥
उस भयभंजन की हृदय में आराधना करो।
ਰਿਖੀਕੇਸ ਗੋਪਾਲ ਗੋੁਵਿੰਦ ॥
रिखीकेस गोपाल गोविंद ॥
हे ऋषिकेष, हे गोपाल गोविंद,
ਪੂਰਨ ਸਰਬਤ੍ਰ ਮੁਕੰਦ ॥੨॥
पूरन सरबत्र मुकंद ॥२॥
हे मुक्तिदाता ! तू विश्वव्यापक है॥ २॥
ਮਿਹਰਵਾਨ ਮਉਲਾ ਤੂਹੀ ਏਕ ॥
मिहरवान मउला तूही एक ॥
एक तू ही मेहरबान मौला है
ਪੀਰ ਪੈਕਾਂਬਰ ਸੇਖ ॥
पीर पैकांबर सेख ॥
दुनिया में कितने ही पीर-पैगम्बर एवं शेख हैं परन्तु
ਦਿਲਾ ਕਾ ਮਾਲਕੁ ਕਰੇ ਹਾਕੁ ॥
दिला का मालकु करे हाकु ॥
तू सबके दिलों का मालिक है और सबसे इन्साफ करता है।
ਕੁਰਾਨ ਕਤੇਬ ਤੇ ਪਾਕੁ ॥੩॥
कुरान कतेब ते पाकु ॥३॥
तू कुरान-कतेब से भी पवित्र है॥ ३॥
ਨਾਰਾਇਣ ਨਰਹਰ ਦਇਆਲ ॥
नाराइण नरहर दइआल ॥
हे नारायण नृसिंह रूप ! तू बड़ा दयालु है।
ਰਮਤ ਰਾਮ ਘਟ ਘਟ ਆਧਾਰ ॥
रमत राम घट घट आधार ॥
घट-घट में व्यापक राम सबके जीवन का आधार है।
ਬਾਸੁਦੇਵ ਬਸਤ ਸਭ ਠਾਇ ॥
बासुदेव बसत सभ ठाइ ॥
वह वासुदेव सब जीवों में निवास करता है,
ਲੀਲਾ ਕਿਛੁ ਲਖੀ ਨ ਜਾਇ ॥੪॥
लीला किछु लखी न जाइ ॥४॥
उसकी लीला को समझा नहीं जा सकता ॥ ४ ॥
ਮਿਹਰ ਦਇਆ ਕਰਿ ਕਰਨੈਹਾਰ ॥
मिहर दइआ करि करनैहार ॥
हे बनाने वाले ! अपनी मेहर एवं दया करो।
ਭਗਤਿ ਬੰਦਗੀ ਦੇਹਿ ਸਿਰਜਣਹਾਰ ॥
भगति बंदगी देहि सिरजणहार ॥
हे सृजनहार ! मुझे अपनी भक्ति एवं बंदगी दीजिए।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਖੋਏ ਭਰਮ ॥
कहु नानक गुरि खोए भरम ॥
हे नानक ! गुरु ने मेरे सारे भ्रम दूर कर दिए हैं और
ਏਕੋ ਅਲਹੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ॥੫॥੩੪॥੪੫॥
एको अलहु पारब्रहम ॥५॥३४॥४५॥
सत्य तो यही है कि परब्रह्म-अल्लाह एक ही हैं।॥ ५॥ ३४॥ ४५ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੇ ਬਿਨਸੇ ਪਾਪ ॥ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਤ ਨਾਹੀ ਸੰਤਾਪ ॥
कोटि जनम के बिनसे पाप ॥ हरि हरि जपत नाही संताप ॥
करोड़ों जन्मों के सब पाप नाश हो जाते हैं, हरि-हरि नाम का जाप करने से कोई संताप नहीं लगता।
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨਿ ਵਸੇ ॥
गुर के चरन कमल मनि वसे ॥
यदि गुरु के सुन्दर चरण-कमल मन में निवसित हो जाएँ,
ਮਹਾ ਬਿਕਾਰ ਤਨ ਤੇ ਸਭਿ ਨਸੇ ॥੧॥
महा बिकार तन ते सभि नसे ॥१॥
तो सारे महाविकार भी तन से दूर हो जाते हैं।॥ १॥
ਗੋਪਾਲ ਕੋ ਜਸੁ ਗਾਉ ਪ੍ਰਾਣੀ ॥
गोपाल को जसु गाउ प्राणी ॥
हे प्राणी ! ईश्वर का यशगान करो।
ਅਕਥ ਕਥਾ ਸਾਚੀ ਪ੍ਰਭ ਪੂਰਨ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अकथ कथा साची प्रभ पूरन जोती जोति समाणी ॥१॥ रहाउ ॥
सच्चे प्रभु की कथा अकथनीय है और आत्म ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो जाती है॥ १॥ रहाउ॥
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭੂਖ ਸਭ ਨਾਸੀ ॥
त्रिसना भूख सभ नासी ॥
सारी भूख एवं तृष्णा नाश हो गई है
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਜਪਿਆ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥
संत प्रसादि जपिआ अबिनासी ॥
जब संतों की कृपा से अविनाशी प्रभु का जाप किया।
ਰੈਨਿ ਦਿਨਸੁ ਪ੍ਰਭ ਸੇਵ ਕਮਾਨੀ ॥
रैनि दिनसु प्रभ सेव कमानी ॥
रात-दिन प्रभु की भक्ति करनी चाहिए,
ਹਰਿ ਮਿਲਣੈ ਕੀ ਏਹ ਨੀਸਾਨੀ ॥੨॥
हरि मिलणै की एह नीसानी ॥२॥
हरि से मिलन की यही निशानी है॥ २॥
ਮਿਟੇ ਜੰਜਾਲ ਹੋਏ ਪ੍ਰਭ ਦਇਆਲ ॥
मिटे जंजाल होए प्रभ दइआल ॥
प्रभु मुझ पर दयालु हो गया है, जिससे सब विपत्तियां मिट गई हैं।
ਗੁਰ ਕਾ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਨਿਹਾਲ ॥
गुर का दरसनु देखि निहाल ॥
गुरु का दर्शन करके निहाल हो गया हूँ।
ਪਰਾ ਪੂਰਬਲਾ ਕਰਮੁ ਬਣਿ ਆਇਆ ॥
परा पूरबला करमु बणि आइआ ॥
मेरे पूर्व जन्म के कर्मों का भाग्य उदय हो गया है और
ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਨਿਤ ਰਸਨਾ ਗਾਇਆ ॥੩॥
हरि के गुण नित रसना गाइआ ॥३॥
रसना से नित्य भगवान का गुणगान करता रहता हूँ॥ ३॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਸਦਾ ਪਰਵਾਣੁ ॥
हरि के संत सदा परवाणु ॥
भगवान के संत सदैव मान्य होते हैं,
ਸੰਤ ਜਨਾ ਮਸਤਕਿ ਨੀਸਾਣੁ ॥
संत जना मसतकि नीसाणु ॥
संतजनों के माथे पर स्वीकृत का नाम-रूपी निशान पड़ा होता है।
ਦਾਸ ਕੀ ਰੇਣੁ ਪਾਏ ਜੇ ਕੋਇ ॥
दास की रेणु पाए जे कोइ ॥
हे नानक ! यदि कोई व्यक्ति परमात्मा के दास की चरण-धूलि प्राप्त कर ले तो
ਨਾਨਕ ਤਿਸ ਕੀ ਪਰਮ ਗਤਿ ਹੋਇ ॥੪॥੩੫॥੪੬॥
नानक तिस की परम गति होइ ॥४॥३५॥४६॥
उसकी परमगति हो जाती है।॥ ४॥ ३५॥ ४६॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਦਰਸਨ ਕਉ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਨੁ ॥
दरसन कउ जाईऐ कुरबानु ॥
गुरु के दर्शन पर कुर्बान जाना चाहिए,
ਚਰਨ ਕਮਲ ਹਿਰਦੈ ਧਰਿ ਧਿਆਨੁ ॥
चरन कमल हिरदै धरि धिआनु ॥
हृदय में उसके चरण-कमल का ध्यान करना चाहिए।
ਧੂਰਿ ਸੰਤਨ ਕੀ ਮਸਤਕਿ ਲਾਇ ॥
धूरि संतन की मसतकि लाइ ॥
अपने मस्तक पर संतों की चरण-धूलि लगानी चाहिए,
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਦੁਰਮਤਿ ਮਲੁ ਜਾਇ ॥੧॥
जनम जनम की दुरमति मलु जाइ ॥१॥
इससे जन्म-जन्मांतर की दुर्मति की मैल दूर हो जाती है।॥ १॥
ਜਿਸੁ ਭੇਟਤ ਮਿਟੈ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
जिसु भेटत मिटै अभिमानु ॥
जिस गुरु से भेंट करने से अभिमान मिट जाता है,
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਸਭੁ ਨਦਰੀ ਆਵੈ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪੂਰਨ ਭਗਵਾਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पारब्रहमु सभु नदरी आवै करि किरपा पूरन भगवान ॥१॥ रहाउ ॥
सब परब्रह्म ही नजर आता है, हे भगवान ! अपनी पूर्ण कृपा करो ॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਕੀ ਕੀਰਤਿ ਜਪੀਐ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥
गुर की कीरति जपीऐ हरि नाउ ॥
गुरु की कीर्ति यही है कि हरि-नाम का जाप करना चाहिए।
ਗੁਰ ਕੀ ਭਗਤਿ ਸਦਾ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
गुर की भगति सदा गुण गाउ ॥
गुरु की भक्ति यही है कि सदैव परमात्मा का गुणगान करो।
ਗੁਰ ਕੀ ਸੁਰਤਿ ਨਿਕਟਿ ਕਰਿ ਜਾਨੁ ॥
गुर की सुरति निकटि करि जानु ॥
गुरु की स्मृति को अपने निकट समझो।
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਤਿ ਕਰਿ ਮਾਨੁ ॥੨॥
गुर का सबदु सति करि मानु ॥२॥
गुरु का शब्द सत्य जान कर मानो ॥ २ ॥
ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਸਮਸਰਿ ਸੁਖ ਦੂਖ ॥
गुर बचनी समसरि सुख दूख ॥
गुरु के उपदेश द्वारा सुख-दुख को समान समझना चाहिए,
ਕਦੇ ਨ ਬਿਆਪੈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭੂਖ ॥
कदे न बिआपै त्रिसना भूख ॥
फिर कभी भी तृष्णा एवं भूख नहीं लगती।
ਮਨਿ ਸੰਤੋਖੁ ਸਬਦਿ ਗੁਰ ਰਾਜੇ ॥
मनि संतोखु सबदि गुर राजे ॥
शब्द-गुरु द्वारा मन में संतोष पैदा हो जाता है और तृप्ति हो जाती है।
ਜਪਿ ਗੋਬਿੰਦੁ ਪੜਦੇ ਸਭਿ ਕਾਜੇ ॥੩॥
जपि गोबिंदु पड़दे सभि काजे ॥३॥
गोविंद का भजन करने से सब पाप ढक जाते हैं। ३॥
ਗੁਰੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਗੁਰੁ ਗੋਵਿੰਦੁ ॥
गुरु परमेसरु गुरु गोविंदु ॥
गुरु ही परमेश्वर एवं गुरु ही गोविन्द है।
ਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਦਇਆਲ ਬਖਸਿੰਦੁ ॥
गुरु दाता दइआल बखसिंदु ॥
गुरु ही दाता, दयालु एवं क्षमावान् है।
ਗੁਰ ਚਰਨੀ ਜਾ ਕਾ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ॥
गुर चरनी जा का मनु लागा ॥
हे नानक ! जिसका मन गुरु के चरणों में लगता है,
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤਿਸੁ ਪੂਰਨ ਭਾਗਾ ॥੪॥੩੬॥੪੭॥
नानक दास तिसु पूरन भागा ॥४॥३६॥४७॥
वही पूर्ण भाग्यवान् है॥ ४॥ ३६॥ ४७॥