ਨਾਨਕ ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਮਨੁ ਮਾਨੀਐ ਸਾਚੇ ਸਾਚੀ ਸੋਇ ॥੩੩॥
नानक सबदि मरै मनु मानीऐ साचे साची सोइ ॥३३॥
हे नानक ! जो शब्द से (विकारों की ओर से) मरता है, उसी का मन संतुष्ट होता है और सच्चा यश पाता है॥३३॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਦੁਖੁ ਸਾਗਰੁ ਹੈ ਬਿਖੁ ਦੁਤਰੁ ਤਰਿਆ ਨ ਜਾਇ ॥
माइआ मोहु दुखु सागरु है बिखु दुतरु तरिआ न जाइ ॥
माया-मोह दुखों का भयानक सागर है, इस कठिन सागर से तैरा नहीं जा सकता।
ਮੇਰਾ ਮੇਰਾ ਕਰਦੇ ਪਚਿ ਮੁਏ ਹਉਮੈ ਕਰਤ ਵਿਹਾਇ ॥
मेरा मेरा करदे पचि मुए हउमै करत विहाइ ॥
अहम्-भाव करते कितने ही लोग खत्म हो गए हैं और अभिमान में ही उनकी जिन्दगी गुजर गई है।
ਮਨਮੁਖਾ ਉਰਵਾਰੁ ਨ ਪਾਰੁ ਹੈ ਅਧ ਵਿਚਿ ਰਹੇ ਲਪਟਾਇ ॥
मनमुखा उरवारु न पारु है अध विचि रहे लपटाइ ॥
हठधर्मी व्यक्तियों को किनारा नहीं मिलता और वे बीच में ही रह जाते हैं।
ਜੋ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੁ ਕਮਾਵਣਾ ਕਰਣਾ ਕਛੂ ਨ ਜਾਇ ॥
जो धुरि लिखिआ सु कमावणा करणा कछू न जाइ ॥
दरअसल जो विधाता ने तकदीर में लिख दिया है, वही करना पड़ता है, अन्य कुछ नहीं हो सकता।
ਗੁਰਮਤੀ ਗਿਆਨੁ ਰਤਨੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਭੁ ਦੇਖਿਆ ਬ੍ਰਹਮੁ ਸੁਭਾਇ ॥
गुरमती गिआनु रतनु मनि वसै सभु देखिआ ब्रहमु सुभाइ ॥
गुरु की शिक्षा से मन में ज्ञान बसता है और स्वाभाविक ही सब ओर ब्रह्म दिखाई देता है।
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੋਹਿਥੈ ਵਡਭਾਗੀ ਚੜੈ ਤੇ ਭਉਜਲਿ ਪਾਰਿ ਲੰਘਾਇ ॥੩੪॥
नानक सतिगुरि बोहिथै वडभागी चड़ै ते भउजलि पारि लंघाइ ॥३४॥
हे नानक ! सतिगुरु रूपी जहाज़ पर खुशकिस्मत ही चढ़ता है और वह संसार-समुद्र से पार हो जाता है।॥३४॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਦਾਤਾ ਕੋ ਨਹੀ ਜੋ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੇਇ ਆਧਾਰੁ ॥
बिनु सतिगुर दाता को नही जो हरि नामु देइ आधारु ॥
गुरु के सिवा कोई दाता नहीं, जो हरिनाम का आसरा प्रदान करे।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਨਾਉ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਦਾ ਰਹੈ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥
गुर किरपा ते नाउ मनि वसै सदा रहै उरि धारि ॥
गुरु की कृपा से मन में हरिनाम बसता है, जो सदैव दिल में बसा रहता है।
ਤਿਸਨਾ ਬੁਝੈ ਤਿਪਤਿ ਹੋਇ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਇ ਪਿਆਰਿ ॥
तिसना बुझै तिपति होइ हरि कै नाइ पिआरि ॥
हरिनाम से प्रेम करने से तृष्णा बुझ जाती है, मन तृप्त हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਅਪਨੀ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥੩੫॥
नानक गुरमुखि पाईऐ हरि अपनी किरपा धारि ॥३५॥
हे नानक ! गुरु तब प्राप्त होता है, जब ईश्वर अपनी कृपा करता है॥३५॥
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਜਗਤੁ ਬਰਲਿਆ ਕਹਣਾ ਕਛੂ ਨ ਜਾਇ ॥
बिनु सबदै जगतु बरलिआ कहणा कछू न जाइ ॥
शब्द के बिना समूचा जगत बावला हो रहा है, इस बारे अन्य कुछ कहा नहीं जा सकता।
ਹਰਿ ਰਖੇ ਸੇ ਉਬਰੇ ਸਬਦਿ ਰਹੇ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
हरि रखे से उबरे सबदि रहे लिव लाइ ॥
जिनकी परमात्मा हिफाजत करता है, ऐसे लोग शब्द में लीन रहकर बच जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਕਰਤਾ ਸਭ ਕਿਛੁ ਜਾਣਦਾ ਜਿਨਿ ਰਖੀ ਬਣਤ ਬਣਾਇ ॥੩੬॥
नानक करता सभ किछु जाणदा जिनि रखी बणत बणाइ ॥३६॥
हे नानक ! जिसने रचना रची है, वह विधाता सब जानता है॥३६॥
ਹੋਮ ਜਗ ਸਭਿ ਤੀਰਥਾ ਪੜ੍ਹ੍ਹਿ ਪੰਡਿਤ ਥਕੇ ਪੁਰਾਣ ॥
होम जग सभि तीरथा पड़्हि पंडित थके पुराण ॥
होम, यज्ञ, तीर्थ एवं वेद-पुराणों का पाठ-पठन करके पण्डित भी हताश हो गए हैं,”
ਬਿਖੁ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਨ ਮਿਟਈ ਵਿਚਿ ਹਉਮੈ ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ॥
बिखु माइआ मोहु न मिटई विचि हउमै आवणु जाणु ॥
लेकिन मोह-माया का जहर दूर नहीं होता और अभिमान में आवागमन बना रहता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਮਲੁ ਉਤਰੀ ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਣੁ ॥
सतिगुर मिलिऐ मलु उतरी हरि जपिआ पुरखु सुजाणु ॥
जब सतगुरु मिलता तो मन की मैल धुल जाती है और मन सुजान परमेश्वर का जाप करता है।
ਜਿਨਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੇਵਿਆ ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਸਦ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥੩੭॥
जिना हरि हरि प्रभु सेविआ जन नानकु सद कुरबाणु ॥३७॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि हम उन पर सदैव कुर्बान हैं, जिन्होंने प्रभु की उपासना की है॥३७॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਬਹੁ ਚਿਤਵਦੇ ਬਹੁ ਆਸਾ ਲੋਭੁ ਵਿਕਾਰ ॥
माइआ मोहु बहु चितवदे बहु आसा लोभु विकार ॥
अधिकांश व्यक्ति माया-मोह में फँसकर बहुत पाने की तमन्ना करते हैं, बहुत आशाएँ लगा लेते हैं, इस तरह लोभ तथा विकारों में पड़ जाते हैं।
ਮਨਮੁਖਿ ਅਸਥਿਰੁ ਨਾ ਥੀਐ ਮਰਿ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਖਿਨ ਵਾਰ ॥
मनमुखि असथिरु ना थीऐ मरि बिनसि जाइ खिन वार ॥
स्वेच्छाचारी को शान्ति प्राप्त नहीं होती और पल में नष्ट हो जाता है।
ਵਡ ਭਾਗੁ ਹੋਵੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਹਉਮੈ ਤਜੈ ਵਿਕਾਰ ॥
वड भागु होवै सतिगुरु मिलै हउमै तजै विकार ॥
अगर अच्छी किस्मत हो तो जीव को सतगुरु मिल जाता है और वह अभिमान-विकारों को छोड़ देता है।
ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਜਪਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰ ॥੩੮॥
हरि नामा जपि सुखु पाइआ जन नानक सबदु वीचार ॥३८॥
हे नानक ! शब्द का मुख्य विचार यही है कि परमात्मा का नाम जपने से ही सच्चा सुख प्राप्त होता है॥३८॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਵਈ ਨਾਮਿ ਨ ਲਗੈ ਪਿਆਰੁ ॥
बिनु सतिगुर भगति न होवई नामि न लगै पिआरु ॥
गुरु के बिना भक्ति नहीं होती और न ही हरिनाम से प्रेम लगता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਿਆ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਪਿਆਰਿ ॥੩੯॥
जन नानक नामु अराधिआ गुर कै हेति पिआरि ॥३९॥
हे नानक ! ईश्वर की आराधना गुरु के प्रेम व रज़ा से ही होती है।॥३६॥
ਲੋਭੀ ਕਾ ਵੇਸਾਹੁ ਨ ਕੀਜੈ ਜੇ ਕਾ ਪਾਰਿ ਵਸਾਇ ॥
लोभी का वेसाहु न कीजै जे का पारि वसाइ ॥
हे भाई ! जितना भी हो सके, लोभी व्यक्ति का ऐतबार मत करो।
ਅੰਤਿ ਕਾਲਿ ਤਿਥੈ ਧੁਹੈ ਜਿਥੈ ਹਥੁ ਨ ਪਾਇ ॥
अंति कालि तिथै धुहै जिथै हथु न पाइ ॥
क्योंकि वह आखिरी वक्त वहाँ पर धोखा देता है, जहाँ बचना मुश्किल हो जाता है।
ਮਨਮੁਖ ਸੇਤੀ ਸੰਗੁ ਕਰੇ ਮੁਹਿ ਕਾਲਖ ਦਾਗੁ ਲਗਾਇ ॥
मनमुख सेती संगु करे मुहि कालख दागु लगाइ ॥
स्वेच्छाचारी की संगत करने से मुँह में बदनामी की कालिमा लगती है।
ਮੁਹ ਕਾਲੇ ਤਿਨੑ ਲੋਭੀਆਂ ਜਾਸਨਿ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇ ॥
मुह काले तिन्ह लोभीआं जासनि जनमु गवाइ ॥
लोभियों की बेइज्जती होती है और वे अपना जीवन बेकार ही गंवा देते हैं।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਮੇਲਿ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥
सतसंगति हरि मेलि प्रभ हरि नामु वसै मनि आइ ॥
हे ईश्वर ! हमें सत्संगत में मिला दो, ताकि तेरा नाम हमारे मन में बस जाए।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਕੀ ਮਲੁ ਉਤਰੈ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥੪੦॥
जनम मरन की मलु उतरै जन नानक हरि गुन गाइ ॥४०॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि ईश्वर की महिमागान करने से जन्म-मरण की मैल साफ हो जाती॥४०॥
ਧੁਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਕਰਤੈ ਲਿਖਿਆ ਸੁ ਮੇਟਣਾ ਨ ਜਾਇ ॥
धुरि हरि प्रभि करतै लिखिआ सु मेटणा न जाइ ॥
प्रभु ने शुरु से जो तकदीर में लिख दिया है, उसे बदला या मिटाया नहीं जा सकता।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤਿਸ ਦਾ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਿ ਕਰੇ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
जीउ पिंडु सभु तिस दा प्रतिपालि करे हरि राइ ॥
प्राण, शरीर सब उसी का दिया हुआ है, वह स्रष्टा परमेश्वर ही हमारा पालन-पोषण करता है।
ਚੁਗਲ ਨਿੰਦਕ ਭੁਖੇ ਰੁਲਿ ਮੁਏ ਏਨਾ ਹਥੁ ਨ ਕਿਥਾਊ ਪਾਇ ॥
चुगल निंदक भुखे रुलि मुए एना हथु न किथाऊ पाइ ॥
चुगलखोर एवं निंदा करने वाले भूखे ही खत्म हो जाते हैं और उनको कुछ भी नहीं मिलता।
ਬਾਹਰਿ ਪਾਖੰਡ ਸਭ ਕਰਮ ਕਰਹਿ ਮਨਿ ਹਿਰਦੈ ਕਪਟੁ ਕਮਾਇ ॥
बाहरि पाखंड सभ करम करहि मनि हिरदै कपटु कमाइ ॥
वे बाहर से पाखण्ड एवं सब कर्म करते हैं, परन्तु उनके दिल में कपट ही भरा रहता है।
ਖੇਤਿ ਸਰੀਰਿ ਜੋ ਬੀਜੀਐ ਸੋ ਅੰਤਿ ਖਲੋਆ ਆਇ ॥
खेति सरीरि जो बीजीऐ सो अंति खलोआ आइ ॥
शरीर रूपी खेत में जो अच्छा-बुरा बोया होता है, आखिर उसी का फल सामने आ जाता है।