ਸਭ ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਵਿਸਰੀ ਮਨਿ ਚੂਕਾ ਆਲ ਜੰਜਾਲੁ ॥
सभ आसा मनसा विसरी मनि चूका आल जंजालु ॥
जिससे सभी आशाएँ व वासनाएँ भूल गई हैं और मन से संसार के जंजाल छूट गए हैं।
ਗੁਰਿ ਤੁਠੈ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਹਮ ਕੀਏ ਸਬਦਿ ਨਿਹਾਲੁ ॥
गुरि तुठै नामु द्रिड़ाइआ हम कीए सबदि निहालु ॥
गुरु ने प्रसन्न होकर हरिनाम ही दृढ़ करवाया और शब्द द्वारा हमें निहाल कर दिया है।
ਜਨ ਨਾਨਕਿ ਅਤੁਟੁ ਧਨੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਹਰਿ ਧਨੁ ਮਾਲੁ ॥੨॥
जन नानकि अतुटु धनु पाइआ हरि नामा हरि धनु मालु ॥२॥
दास नानक ने हरिनाम रूपी अक्षुण्ण धन पा लिया है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਹਰਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਵਡ ਵਡੇ ਵਡੇ ਵਡ ਊਚੇ ਸਭ ਊਪਰਿ ਵਡੇ ਵਡੌਨਾ ॥
हरि तुम्ह वड वडे वडे वड ऊचे सभ ऊपरि वडे वडौना ॥
हे हरि ! तुम बहुत बड़े हो, बड़े से भी बड़े, सर्वोच्च, सर्वोपरि एवं महान् हो।
ਜੋ ਧਿਆਵਹਿ ਹਰਿ ਅਪਰੰਪਰੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ਹਰੇ ਤੇ ਹੋਨਾ ॥
जो धिआवहि हरि अपर्मपरु हरि हरि हरि धिआइ हरे ते होना ॥
जो लोग अपरम्पार हरि का ध्यान करते हैं, वे हरि का ध्यान करके उसी का रूप हो जाते हैं।
ਜੋ ਗਾਵਹਿ ਸੁਣਹਿ ਤੇਰਾ ਜਸੁ ਸੁਆਮੀ ਤਿਨ ਕਾਟੇ ਪਾਪ ਕਟੋਨਾ ॥
जो गावहि सुणहि तेरा जसु सुआमी तिन काटे पाप कटोना ॥
हे स्वामी ! जो तेरा यश गाते अथवा सुनते हैं, उनके सब पाप कट जाते हैं।
ਤੁਮ ਜੈਸੇ ਹਰਿ ਪੁਰਖ ਜਾਨੇ ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਮੁਖਿ ਵਡ ਵਡ ਭਾਗ ਵਡੋਨਾ ॥
तुम जैसे हरि पुरख जाने मति गुरमति मुखि वड वड भाग वडोना ॥
गुरु की शिक्षा से हरि-भक्ति को हरि जैसा माना है, वह बड़ा एवं भाग्यशाली है।
ਸਭਿ ਧਿਆਵਹੁ ਆਦਿ ਸਤੇ ਜੁਗਾਦਿ ਸਤੇ ਪਰਤਖਿ ਸਤੇ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਤੇ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ਦਸੋਨਾ ॥੫॥
सभि धिआवहु आदि सते जुगादि सते परतखि सते सदा सदा सते जनु नानकु दासु दसोना ॥५॥
सभी हरि का ध्यान करते हैं, एकमात्र वही सत्यस्वरूप है, युग-युगांतर सत्य है, अब भी सत्य है, सर्वदा सत्य रहने वाला है, दास नानक उसके दासों का दास है॥ ५॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥
ਹਮਰੇ ਹਰਿ ਜਗਜੀਵਨਾ ਹਰਿ ਜਪਿਓ ਹਰਿ ਗੁਰ ਮੰਤ ॥
हमरे हरि जगजीवना हरि जपिओ हरि गुर मंत ॥
हरि संसार का जीवन है, गुरु ने (हरिनाम) मंत्र दिया तो उसी का हमने जाप किया।
ਹਰਿ ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਅਗਮੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਆਇ ਅਚਿੰਤ ॥
हरि अगमु अगोचरु अगमु हरि हरि मिलिआ आइ अचिंत ॥
वह मन-वाणी, ज्ञानेन्द्रियों से परे है और स्वाभाविक ही मिलता है।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਘਟਿ ਘਟਿ ਵਰਤਦਾ ਹਰਿ ਆਪੇ ਆਪਿ ਬਿਅੰਤ ॥
हरि आपे घटि घटि वरतदा हरि आपे आपि बिअंत ॥
वह सब शरीरों में व्याप्त है और वह बे-अन्त है।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਸਭ ਰਸ ਭੋਗਦਾ ਹਰਿ ਆਪੇ ਕਵਲਾ ਕੰਤ ॥
हरि आपे सभ रस भोगदा हरि आपे कवला कंत ॥
वह कमलापति सब रसों को भोगता है।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਭਿਖਿਆ ਪਾਇਦਾ ਸਭ ਸਿਸਟਿ ਉਪਾਈ ਜੀਅ ਜੰਤ ॥
हरि आपे भिखिआ पाइदा सभ सिसटि उपाई जीअ जंत ॥
वह सम्पूर्ण सृष्टि को उत्पन्न करके सब जीवों को रोजी देता है।
ਹਰਿ ਦੇਵਹੁ ਦਾਨੁ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਮਾਂਗਹਿ ਹਰਿ ਜਨ ਸੰਤ ॥
हरि देवहु दानु दइआल प्रभ हरि मांगहि हरि जन संत ॥
हे दयालु प्रभु ! नाम दान दो, भक्तजन यही मांगते हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਆਇ ਮਿਲੁ ਹਮ ਗਾਵਹ ਹਰਿ ਗੁਣ ਛੰਤ ॥੧॥
जन नानक के प्रभ आइ मिलु हम गावह हरि गुण छंत ॥१॥
हे नानक के प्रभु ! आकर दर्शन दे दो, हम तो तेरे ही गुण गाते हैं।॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਜਣੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਮੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਨਾਮੁ ਸਰੀਰਿ ॥
हरि प्रभु सजणु नामु हरि मै मनि तनि नामु सरीरि ॥
हे सज्जन प्रभु ! हमारे मन, तन में तेरा नाम बस गया है।
ਸਭਿ ਆਸਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪੂਰੀਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸੁਣਿ ਹਰਿ ਧੀਰ ॥੨॥
सभि आसा गुरमुखि पूरीआ जन नानक सुणि हरि धीर ॥२॥
गुरु ने सभी आशाएँ पूरी कर दी हैं और हरिनाम यश सुनकर नानक को धैर्य हो गया है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਹਰਿ ਊਤਮੁ ਹਰਿਆ ਨਾਮੁ ਹੈ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਮਉਲਾ ॥
हरि ऊतमु हरिआ नामु है हरि पुरखु निरंजनु मउला ॥
हरिनाम सर्वोत्तम है, वह परमपुरुष, मायातीत एवं नित्य-नवीन है।
ਜੋ ਜਪਦੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਿਨਸੁ ਰਾਤਿ ਤਿਨ ਸੇਵੇ ਚਰਨ ਨਿਤ ਕਉਲਾ ॥
जो जपदे हरि हरि दिनसु राति तिन सेवे चरन नित कउला ॥
जो दिन-रात हरि का जाप करते हैं, माया नित्य उनके चरणों की सेवा करती है।
ਨਿਤ ਸਾਰਿ ਸਮਾਲ੍ਹ੍ਹੇ ਸਭ ਜੀਅ ਜੰਤ ਹਰਿ ਵਸੈ ਨਿਕਟਿ ਸਭ ਜਉਲਾ ॥
नित सारि समाल्हे सभ जीअ जंत हरि वसै निकटि सभ जउला ॥
ईश्वर सब जीवों की नित्य संभाल करता है और वह सब के निकट ही बसता है।
ਸੋ ਬੂਝੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਇਸੀ ਜਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸਉਲਾ ॥
सो बूझै जिसु आपि बुझाइसी जिसु सतिगुरु पुरखु प्रभु सउला ॥
वही उसका रहस्य बूझता है, जिसे स्वयं समझाता है और जिस पर सतिगुरु की कृपा-दृष्टि होती है।
ਸਭਿ ਗਾਵਹੁ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਹਰੇ ਗੋਵਿੰਦ ਹਰੇ ਗੋਵਿੰਦ ਹਰੇ ਗੁਣ ਗਾਵਤ ਗੁਣੀ ਸਮਉਲਾ ॥੬॥
सभि गावहु गुण गोविंद हरे गोविंद हरे गोविंद हरे गुण गावत गुणी समउला ॥६॥
सभी परमात्मा के गुण गाओ, उसका गुणगान कर गुणवान् बन जाओ॥ ६॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥
ਸੁਤਿਆ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਚੇਤਿ ਮਨਿ ਹਰਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਧਿ ਸਮਾਇ ॥
सुतिआ हरि प्रभु चेति मनि हरि सहजि समाधि समाइ ॥
हे अज्ञानी मन ! प्रभु का चिंतन कर, सहज समाधि में लीन रहो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਚਾਉ ਮਨਿ ਗੁਰੁ ਤੁਠਾ ਮੇਲੇ ਮਾਇ ॥੧॥
जन नानक हरि हरि चाउ मनि गुरु तुठा मेले माइ ॥१॥
नानक के मन में प्रभु मिलन का चाव है और गुरु प्रसन्न होकर उससे मिलाता है॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਹਰਿ ਇਕਸੁ ਸੇਤੀ ਪਿਰਹੜੀ ਹਰਿ ਇਕੋ ਮੇਰੈ ਚਿਤਿ ॥
हरि इकसु सेती पिरहड़ी हरि इको मेरै चिति ॥
एकमात्र प्रभु से ही हमारा प्रेम है, एकमात्र वही मेरे दिल में बसा हुआ है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਇਕੁ ਅਧਾਰੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਇਕਸ ਤੇ ਗਤਿ ਪਤਿ ॥੨॥
जन नानक इकु अधारु हरि प्रभ इकस ते गति पति ॥२॥
नानक फुरमाते हैं-प्रभु ही एकमात्र आसरा है, उसी से मुक्ति एवं मान-प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਪੰਚੇ ਸਬਦ ਵਜੇ ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਵਡਭਾਗੀ ਅਨਹਦੁ ਵਜਿਆ ॥
पंचे सबद वजे मति गुरमति वडभागी अनहदु वजिआ ॥
गुरु की शिक्षा से पाँच शब्द गूंज उठे, अहोभाग्य से अनाहत नाद गूंजा।
ਆਨਦ ਮੂਲੁ ਰਾਮੁ ਸਭੁ ਦੇਖਿਆ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਗੋਵਿਦੁ ਗਜਿਆ ॥
आनद मूलु रामु सभु देखिआ गुर सबदी गोविदु गजिआ ॥
सब ओर आनंद का मूल स्रोत ईश्वर दृष्टिमान हुआ है और गुरु के शब्द से वही प्रगट हुआ है।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਵੇਸੁ ਹਰਿ ਏਕੋ ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਭਜਿਆ ॥
आदि जुगादि वेसु हरि एको मति गुरमति हरि प्रभु भजिआ ॥
युग-युगांतर एकमात्र वही स्थित है और गुरु की शिक्षा से प्रभु का भजन किया है।
ਹਰਿ ਦੇਵਹੁ ਦਾਨੁ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰਭ ਜਨ ਰਾਖਹੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਲਜਿਆ ॥
हरि देवहु दानु दइआल प्रभ जन राखहु हरि प्रभ लजिआ ॥
हे प्रभु ! दयालु होकर नाम-दान प्रदान करो और भक्तजनों की लाज रखो।