Hindi Page 1412

ਸਭਨੀ ਘਟੀ ਸਹੁ ਵਸੈ ਸਹ ਬਿਨੁ ਘਟੁ ਨ ਕੋਇ ॥
सभनी घटी सहु वसै सह बिनु घटु न कोइ ॥
सब में ईश्वर बसा हुआ है, ऐसा कोई घट नहीं, जिसमें ईश्वर न हो।

ਨਾਨਕ ਤੇ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨੑਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥੧੯॥
नानक ते सोहागणी जिन्हा गुरमुखि परगटु होइ ॥१९॥
गुरु नानक का मत है कि वही सुहागिन है, जिसके मन में गुरु द्वारा ईश्वर प्रगट होता है।॥१६॥

ਜਉ ਤਉ ਪ੍ਰੇਮ ਖੇਲਣ ਕਾ ਚਾਉ ॥
जउ तउ प्रेम खेलण का चाउ ॥
हे मानव ! अगर तुझे प्रेम का खेल खेलने का चाव है तो

ਸਿਰੁ ਧਰਿ ਤਲੀ ਗਲੀ ਮੇਰੀ ਆਉ ॥
सिरु धरि तली गली मेरी आउ ॥
जान हथेली पर रखकर मेरी गली में चले आओ।

ਇਤੁ ਮਾਰਗਿ ਪੈਰੁ ਧਰੀਜੈ ॥
इतु मारगि पैरु धरीजै ॥
अगर इस रास्ते पर पैर रखना है तो

ਸਿਰੁ ਦੀਜੈ ਕਾਣਿ ਨ ਕੀਜੈ ॥੨੦॥
सिरु दीजै काणि न कीजै ॥२०॥
जान कुर्बान करने में संकोच मत करो ॥२०॥

ਨਾਲਿ ਕਿਰਾੜਾ ਦੋਸਤੀ ਕੂੜੈ ਕੂੜੀ ਪਾਇ ॥
नालि किराड़ा दोसती कूड़ै कूड़ी पाइ ॥
बुज़दिल से दोस्ती झूठी ही सिद्ध हुई है।

ਮਰਣੁ ਨ ਜਾਪੈ ਮੂਲਿਆ ਆਵੈ ਕਿਤੈ ਥਾਇ ॥੨੧॥
मरणु न जापै मूलिआ आवै कितै थाइ ॥२१॥
मूला किराड़ मौत के बारे में नहीं जानता, किसी भी स्थान पर आ जाती है॥२१ ॥

ਗਿਆਨ ਹੀਣੰ ਅਗਿਆਨ ਪੂਜਾ ॥
गिआन हीणं अगिआन पूजा ॥
ज्ञानविहीन व्यक्ति अज्ञान की पूजा में लीन रहते हैं।

ਅੰਧ ਵਰਤਾਵਾ ਭਾਉ ਦੂਜਾ ॥੨੨॥
अंध वरतावा भाउ दूजा ॥२२॥
वे द्वैतभाव में फँसकर झूठा व्यवहार ही करते हैं ॥२२ ॥

ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਗਿਆਨੁ ਧਰਮ ਬਿਨੁ ਧਿਆਨੁ ॥
गुर बिनु गिआनु धरम बिनु धिआनु ॥
गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता और धर्म के बिना ध्यान नहीं लगता।

ਸਚ ਬਿਨੁ ਸਾਖੀ ਮੂਲੋ ਨ ਬਾਕੀ ॥੨੩॥
सच बिनु साखी मूलो न बाकी ॥२३॥
सत्य के बिना बिल्कुल हामी नहीं भरी जाती ॥२३॥

ਮਾਣੂ ਘਲੈ ਉਠੀ ਚਲੈ ॥
माणू घलै उठी चलै ॥
इस बात का भी क्या मजा, जीव जैसा (खाली) भेजा गया, वैसे ही उठकर चला गया,

ਸਾਦੁ ਨਾਹੀ ਇਵੇਹੀ ਗਲੈ ॥੨੪॥
सादु नाही इवेही गलै ॥२४॥
कोई भजन-बंदगी एवं शुभ कर्म ही नहीं किया तो क्या फायदा ॥२४॥

ਰਾਮੁ ਝੁਰੈ ਦਲ ਮੇਲਵੈ ਅੰਤਰਿ ਬਲੁ ਅਧਿਕਾਰ ॥
रामु झुरै दल मेलवै अंतरि बलु अधिकार ॥
दशरथ-सुत श्रीरामचन्द्र को भी दुखी होना पड़ा, चाहे उनके मन में अधिकार बल भी था, (सुग्रीव, हनुमान सहित) बहुत सारी सेना मिला ली।

ਬੰਤਰ ਕੀ ਸੈਨਾ ਸੇਵੀਐ ਮਨਿ ਤਨਿ ਜੁਝੁ ਅਪਾਰੁ ॥
बंतर की सैना सेवीऐ मनि तनि जुझु अपारु ॥
वानरों की सेना सेवा के लिए तैयार हुई, मन तन में लड़ने का जोश भी था।

ਸੀਤਾ ਲੈ ਗਇਆ ਦਹਸਿਰੋ ਲਛਮਣੁ ਮੂਓ ਸਰਾਪਿ ॥
सीता लै गइआ दहसिरो लछमणु मूओ सरापि ॥
दशानन रावण छलपूर्वक सीता का हरण करके ले गया था, श्राप की वजह से लक्ष्मण युद्ध में मूर्छित हो गया।

ਨਾਨਕ ਕਰਤਾ ਕਰਣਹਾਰੁ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ॥੨੫॥
नानक करता करणहारु करि वेखै थापि उथापि ॥२५॥
गुरु नानक का फुरमान है कि ईश्वर सब करने वाला है, वही बनाने-बिगाड़ने वाला है॥२५॥

ਮਨ ਮਹਿ ਝੂਰੈ ਰਾਮਚੰਦੁ ਸੀਤਾ ਲਛਮਣ ਜੋਗੁ ॥
मन महि झूरै रामचंदु सीता लछमण जोगु ॥
रामचन्द्र सीता एवं लक्ष्मण के लिए दिल में बहुत दुखी हुए।

ਹਣਵੰਤਰੁ ਆਰਾਧਿਆ ਆਇਆ ਕਰਿ ਸੰਜੋਗੁ ॥
हणवंतरु आराधिआ आइआ करि संजोगु ॥
उन्होंने हनुमान का स्मरण किया तो वह भी संयोग से उनके पास आ गया था।

ਭੂਲਾ ਦੈਤੁ ਨ ਸਮਝਈ ਤਿਨਿ ਪ੍ਰਭ ਕੀਏ ਕਾਮ ॥
भूला दैतु न समझई तिनि प्रभ कीए काम ॥
भूला हुआ दैत्य रावण यह नहीं समझ रहा था कि प्रभु ही (उसके अंत के लिए) सब काम कर रहा है।

ਨਾਨਕ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ਸੋ ਕਿਰਤੁ ਨ ਮਿਟਈ ਰਾਮ ॥੨੬॥
नानक वेपरवाहु सो किरतु न मिटई राम ॥२६॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि ईश्वर बेपरवाह है, किए कमाँ का फल कदापि नहीं मिटता, अतः कर्मफल भोगना पड़ता है॥२६ ॥

ਲਾਹੌਰ ਸਹਰੁ ਜਹਰੁ ਕਹਰੁ ਸਵਾ ਪਹਰੁ ॥੨੭॥
लाहौर सहरु जहरु कहरु सवा पहरु ॥२७॥
लाहौर शहर में जुल्म का जहर फैला हुआ है, सवा प्रहर मासूम लोगों पर मौत का कहर मचा हुआ है॥२७ ॥

ਮਹਲਾ ੩ ॥
महला ३ ॥
महला ३॥

ਲਾਹੌਰ ਸਹਰੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੁ ਸਿਫਤੀ ਦਾ ਘਰੁ ॥੨੮॥
लाहौर सहरु अम्रित सरु सिफती दा घरु ॥२८॥
गुरु अमरदास जी कथन करते हैं, (गुरु रामदास के आने से) अब लाहौर शहर नामामृत का सरोवर तथा प्रभु-स्तुति का घर बन गया है॥२८ ॥

ਮਹਲਾ ੧ ॥
महला १ ॥
महला १ ॥

ਉਦੋਸਾਹੈ ਕਿਆ ਨੀਸਾਨੀ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ਅੰਨੀ ॥
उदोसाहै किआ नीसानी तोटि न आवै अंनी ॥
उदो नामक अमीर शाह की क्या निशानी है ? उसके घर में किसी चीज़ की कोई कभी नहीं।

ਉਦੋਸੀਅ ਘਰੇ ਹੀ ਵੁਠੀ ਕੁੜਿਈਂ ਰੰਨੀ ਧੰਮੀ ॥
उदोसीअ घरे ही वुठी कुड़िईं रंनी धमी ॥
उसके पूरे घर में बेटी-बहू, पत्नी की चहलपहल है।

ਸਤੀ ਰੰਨੀ ਘਰੇ ਸਿਆਪਾ ਰੋਵਨਿ ਕੂੜੀ ਕੰਮੀ ॥
सती रंनी घरे सिआपा रोवनि कूड़ी कमी ॥
घर में सात औरतें हैं जिस कारण रोज़ लड़ाई झगड़ा बना रहता है, किसी का एक दूसरे से प्रेम नहीं।

ਜੋ ਲੇਵੈ ਸੋ ਦੇਵੈ ਨਾਹੀ ਖਟੇ ਦੰਮ ਸਹੰਮੀ ॥੨੯॥
जो लेवै सो देवै नाही खटे दम सहमी ॥२९॥
उदो शाह, जो किसी से रुपया, गहना या सौदा अमानत के तौर पर रख लेता है, वह वापिस नहीं देता, दुख देकर पैसा जमा करता है॥२६ ॥

ਪਬਰ ਤੂੰ ਹਰੀਆਵਲਾ ਕਵਲਾ ਕੰਚਨ ਵੰਨਿ ॥
पबर तूं हरीआवला कवला कंचन वंनि ॥
हे सरोवर ! तू पहले बहुत हरा-भरा था, स्वर्ण सरीखे कमल खिले रहते थेi (पर यह तो बता) किस कसूर के कारण तू जलकर काला हो गया है।

ਕੈ ਦੋਖੜੈ ਸੜਿਓਹਿ ਕਾਲੀ ਹੋਈਆ ਦੇਹੁਰੀ ਨਾਨਕ ਮੈ ਤਨਿ ਭੰਗੁ ॥
कै दोखड़ै सड़िओहि काली होईआ देहुरी नानक मै तनि भंगु ॥
गुरु नानक देव जी सरोवर के हवाले से कहते हैं कि मेरा शरीर टूटा हुआ है अर्थात् मुझे जल प्राप्त नहीं हो रहा।

ਜਾਣਾ ਪਾਣੀ ਨਾ ਲਹਾਂ ਜੈ ਸੇਤੀ ਮੇਰਾ ਸੰਗੁ ॥
जाणा पाणी ना लहां जै सेती मेरा संगु ॥
मैं जानता हूँ, जिस जल से मेरा जीवन है, वह मुझे नहीं मिल रहा।

ਜਿਤੁ ਡਿਠੈ ਤਨੁ ਪਰਫੁੜੈ ਚੜੈ ਚਵਗਣਿ ਵੰਨੁ ॥੩੦॥
जितु डिठै तनु परफुड़ै चड़ै चवगणि वंनु ॥३०॥
जिसे देखकर खिल जाता हूँ और चौगुणा रंग चढ़ जाता है ॥३० ॥

ਰਜਿ ਨ ਕੋਈ ਜੀਵਿਆ ਪਹੁਚਿ ਨ ਚਲਿਆ ਕੋਇ ॥
रजि न कोई जीविआ पहुचि न चलिआ कोइ ॥
कोई जितना भी जीवन गुजार ले, मगर जीने की तमन्ना बनी रहती है, संसारं का कार्य पूरा नहीं होता।

ਗਿਆਨੀ ਜੀਵੈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸੁਰਤੀ ਹੀ ਪਤਿ ਹੋਇ ॥
गिआनी जीवै सदा सदा सुरती ही पति होइ ॥
ज्ञानी पुरुष सदैव जीता है, प्रभु-ध्यान में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।

ਸਰਫੈ ਸਰਫੈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਏਵੈ ਗਈ ਵਿਹਾਇ ॥
सरफै सरफै सदा सदा एवै गई विहाइ ॥
धीरे-धीरे जीवन बेकार ही चला जाता है

ਨਾਨਕ ਕਿਸ ਨੋ ਆਖੀਐ ਵਿਣੁ ਪੁਛਿਆ ਹੀ ਲੈ ਜਾਇ ॥੩੧॥
नानक किस नो आखीऐ विणु पुछिआ ही लै जाइ ॥३१॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं- किससे शिकायत की जाये, जब बिना इजाज़त ही वह ले जाता है॥३१॥

ਦੋਸੁ ਨ ਦੇਅਹੁ ਰਾਇ ਨੋ ਮਤਿ ਚਲੈ ਜਾਂ ਬੁਢਾ ਹੋਵੈ ॥
दोसु न देअहु राइ नो मति चलै जां बुढा होवै ॥
प्रभु राय को दोष क्या दें; जब कोई बूढ़ा हो जाता है, तो उसकी बुद्धि उसे छोड़ देती है।

ਗਲਾਂ ਕਰੇ ਘਣੇਰੀਆ ਤਾਂ ਅੰਨੑੇ ਪਵਣਾ ਖਾਤੀ ਟੋਵੈ ॥੩੨॥
गलां करे घणेरीआ तां अंन्हे पवणा खाती टोवै ॥३२॥
बहुत बड़ी-बड़ी करता है, पर अज्ञान कें कारण नीचे ही गिरता है॥३२॥

ਪੂਰੇ ਕਾ ਕੀਆ ਸਭ ਕਿਛੁ ਪੂਰਾ ਘਟਿ ਵਧਿ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ॥
पूरे का कीआ सभ किछु पूरा घटि वधि किछु नाही ॥
धनवान को दोष मत दो, जब बूढ़ा हो जाती है तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਐਸਾ ਜਾਣੈ ਪੂਰੇ ਮਾਂਹਿ ਸਮਾਂਹੀ ॥੩੩॥
नानक गुरमुखि ऐसा जाणै पूरे मांहि समांही ॥३३॥
वह बातें हैं कि गुरुमुख उसे ही माना जाता है, जो हरदम पूर्ण परमेश्वर के ध्यान में समाया रहता है॥३३॥

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