ਮਾਨੁ ਮਹਤੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਤੇਰੇ ॥੪॥੪੦॥੧੦੯॥
मानु महतु नानक प्रभु तेरे ॥४॥४०॥१०९॥
नानक का कथन है कि हे दयालु परमात्मा ! मुझे प्रतिष्ठा एवं मान-सम्मान तेरा ही दिया हुआ है॥ ४ ॥ ४० ॥ १०९॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਜਾ ਕਉ ਤੁਮ ਭਏ ਸਮਰਥ ਅੰਗਾ ॥
जा कउ तुम भए समरथ अंगा ॥
हे सर्वशक्तिमान स्वामी ! तू जिस व्यक्ति की सहायता करता है,”
ਤਾ ਕਉ ਕਛੁ ਨਾਹੀ ਕਾਲੰਗਾ ॥੧॥
ता कउ कछु नाही कालंगा ॥१॥
उसे कोई भी कलंक नहीं लग सकता॥ १॥
ਮਾਧਉ ਜਾ ਕਉ ਹੈ ਆਸ ਤੁਮਾਰੀ ॥
माधउ जा कउ है आस तुमारी ॥
हे माधो ! जिसकी आशा तुझ में है,”
ਤਾ ਕਉ ਕਛੁ ਨਾਹੀ ਸੰਸਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ता कउ कछु नाही संसारी ॥१॥ रहाउ ॥
उसे संसार की तृष्णा लेशमात्र भी नहीं रहती।॥ १॥ रहाउll
ਜਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਠਾਕੁਰੁ ਹੋਇ ॥
जा कै हिरदै ठाकुरु होइ ॥
जिसके हृदय में जगत् का ठाकुर निवास करता है,”
ਤਾ ਕਉ ਸਹਸਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥੨॥
ता कउ सहसा नाही कोइ ॥२॥
उसको कोई भी दुःख-दर्द स्पर्श नहीं कर सकता॥ २॥
ਜਾ ਕਉ ਤੁਮ ਦੀਨੀ ਪ੍ਰਭ ਧੀਰ ॥
जा कउ तुम दीनी प्रभ धीर ॥
हे सर्वेश्वर प्रभु ! जिसे तू अपना धैर्य प्रदान करता है,”
ਤਾ ਕੈ ਨਿਕਟਿ ਨ ਆਵੈ ਪੀਰ ॥੩॥
ता कै निकटि न आवै पीर ॥३॥
उसके निकट कोई भी पीड़ा नहीं आतीII ३ll
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੈ ਸੋ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥
कहु नानक मै सो गुरु पाइआ ॥
हे नानक ! मुझे वह गुरु प्राप्त हुआ है,”
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪੂਰਨ ਦੇਖਾਇਆ ॥੪॥੪੧॥੧੧੦॥
पारब्रहम पूरन देखाइआ ॥४॥४१॥११०॥
जिसने मुझे पूर्ण पारब्रह्म प्रभु के दर्शन करवा दिए हैंI॥ ४ ॥ ४१ ॥ ११० ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਦੁਲਭ ਦੇਹ ਪਾਈ ਵਡਭਾਗੀ ॥
दुलभ देह पाई वडभागी ॥
यह दुर्लभ मानव-देहि सौभाग्य से प्राप्त हुई है।
ਨਾਮੁ ਨ ਜਪਹਿ ਤੇ ਆਤਮ ਘਾਤੀ ॥੧॥
नामु न जपहि ते आतम घाती ॥१॥
जो ईश्वर का नाम-स्मरण नहीं करते, वे आत्मघाती हैं।॥ १॥
ਮਰਿ ਨ ਜਾਹੀ ਜਿਨਾ ਬਿਸਰਤ ਰਾਮ ॥
मरि न जाही जिना बिसरत राम ॥
जो व्यक्ति राम को विस्मृत करते हैं, वह मृत्यु को क्यों नहीं प्राप्त होते ?
ਨਾਮ ਬਿਹੂਨ ਜੀਵਨ ਕਉਨ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नाम बिहून जीवन कउन काम ॥१॥ रहाउ ॥
नाम के बिना यह जीवन किस काम का है ॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਖਾਤ ਪੀਤ ਖੇਲਤ ਹਸਤ ਬਿਸਥਾਰ ॥
खात पीत खेलत हसत बिसथार ॥
खाना-पीना, खेलना- हँसना इत्यादि साधन आडम्बर हैं,
ਕਵਨ ਅਰਥ ਮਿਰਤਕ ਸੀਗਾਰ ॥੨॥
कवन अरथ मिरतक सीगार ॥२॥
क्योंकि यह मृतक को आभूषणों से सज्जित करने के समान हैं।॥ २॥
ਜੋ ਨ ਸੁਨਹਿ ਜਸੁ ਪਰਮਾਨੰਦਾ ॥
जो न सुनहि जसु परमानंदा ॥
जो व्यक्ति परमानंद प्रभु का यश नहीं सुनता,
ਪਸੁ ਪੰਖੀ ਤ੍ਰਿਗਦ ਜੋਨਿ ਤੇ ਮੰਦਾ ॥੩॥
पसु पंखी त्रिगद जोनि ते मंदा ॥३॥
वह पशु-पक्षियों, रेंगने वाले जीवों की योनियों से भी बुरा है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ॥
कहु नानक गुरि मंत्रु द्रिड़ाइआ ॥
हे नानक ! गुरु ने मेरे भीतर नाम मंत्र सुदृढ़ कर दिया है।
ਕੇਵਲ ਨਾਮੁ ਰਿਦ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇਆ ॥੪॥੪੨॥੧੧੧॥
केवल नामु रिद माहि समाइआ ॥४॥४२॥१११॥
केवल नाम ही मेरे हृदय में लीन रहता है॥ ४॥ ४२॥ १११॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਕਾ ਕੀ ਮਾਈ ਕਾ ਕੋ ਬਾਪ ॥
का की माई का को बाप ॥
न कोई किसी की माता है और न कोई किसी का पिता है।
ਨਾਮ ਧਾਰੀਕ ਝੂਠੇ ਸਭਿ ਸਾਕ ॥੧॥
नाम धारीक झूठे सभि साक ॥१॥
ये सारे रिश्ते नाममात्र एवं झूठे हैं।॥ १॥
ਕਾਹੇ ਕਉ ਮੂਰਖ ਭਖਲਾਇਆ ॥
काहे कउ मूरख भखलाइआ ॥
हे मूर्ख ! तू किसके लिए दुहाई दे रहा है?
ਮਿਲਿ ਸੰਜੋਗਿ ਹੁਕਮਿ ਤੂੰ ਆਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिलि संजोगि हुकमि तूं आइआ ॥१॥ रहाउ ॥
भगवान के हुक्म एवं संयोगवश तू इस दुनिया में आया है॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਏਕਾ ਮਾਟੀ ਏਕਾ ਜੋਤਿ ॥
एका माटी एका जोति ॥
समस्त प्राणियों में एक ही मिट्टी है और एक ही ब्रह्म-ज्योति है।
ਏਕੋ ਪਵਨੁ ਕਹਾ ਕਉਨੁ ਰੋਤਿ ॥੨॥
एको पवनु कहा कउनु रोति ॥२॥
सब में एक ही प्राण हैं, जिसके द्वारा जीव श्वास लेते एवं जीवित रहते हैं। अतः किसी के दुनिया से चले जाने से हम क्यों विलाप करें ? ॥ २॥
ਮੇਰਾ ਮੇਰਾ ਕਰਿ ਬਿਲਲਾਹੀ ॥
मेरा मेरा करि बिललाही ॥
लोग ‘मेरा मेरा’ कहकर विलाप करते हैं।
ਮਰਣਹਾਰੁ ਇਹੁ ਜੀਅਰਾ ਨਾਹੀ ॥੩॥
मरणहारु इहु जीअरा नाही ॥३॥
परन्तु यह आत्मा नाशवंत नहीं ॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਖੋਲੇ ਕਪਾਟ ॥
कहु नानक गुरि खोले कपाट ॥
हे नानक ! गुरु ने जिनके कपाट खोल दिए हैं,
ਮੁਕਤੁ ਭਏ ਬਿਨਸੇ ਭ੍ਰਮ ਥਾਟ ॥੪॥੪੩॥੧੧੨॥
मुकतु भए बिनसे भ्रम थाट ॥४॥४३॥११२॥
वे मुक्त हो गए हैं और उनका भ्रम का प्रसार नाश हो गया है ॥४॥४३॥११२॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਵਡੇ ਵਡੇ ਜੋ ਦੀਸਹਿ ਲੋਗ ॥
वडे वडे जो दीसहि लोग ॥
जितने भी बड़े-बड़े (धनवान) लोग दिखाई देते हैं,
ਤਿਨ ਕਉ ਬਿਆਪੈ ਚਿੰਤਾ ਰੋਗ ॥੧॥
तिन कउ बिआपै चिंता रोग ॥१॥
उनको चिन्ता का रोग लगा रहता है॥ १॥
ਕਉਨ ਵਡਾ ਮਾਇਆ ਵਡਿਆਈ ॥
कउन वडा माइआ वडिआई ॥
माया की प्रशंसा के कारण कोई भी मनुष्य बड़ा नहीं बनता ?
ਸੋ ਵਡਾ ਜਿਨਿ ਰਾਮ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सो वडा जिनि राम लिव लाई ॥१॥ रहाउ ॥
वही महान है जिसने राम से वृति लगाई है॥ १॥ रहाउ॥
ਭੂਮੀਆ ਭੂਮਿ ਊਪਰਿ ਨਿਤ ਲੁਝੈ ॥
भूमीआ भूमि ऊपरि नित लुझै ॥
भूमि का स्वामी मनुष्य भूमि के लिए दूसरों से लड़ाई-झगड़ा करता है।
ਛੋਡਿ ਚਲੈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਨਹੀ ਬੁਝੈ ॥੨॥
छोडि चलै त्रिसना नही बुझै ॥२॥
लेकिन जिसकी खातिर वह लड़ता है, वह सारी भूमि यहीं छोड़कर चला जाता है परन्तु उसकी तृष्णा नहीं मिटती ॥ २ ॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਾ ॥
कहु नानक इहु ततु बीचारा ॥
हे नानक ! वास्तविक बात जिस पर मैंने विचार किया है,
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਜਨ ਨਾਹੀ ਛੁਟਕਾਰਾ ॥੩॥੪੪॥੧੧੩॥
बिनु हरि भजन नाही छुटकारा ॥३॥४४॥११३॥
वह यह है कि भगवान के भजन के बिना किसी को भी मुक्ति नहीं मिलती॥ ३॥ ४४॥ ११३॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਪੂਰਾ ਮਾਰਗੁ ਪੂਰਾ ਇਸਨਾਨੁ ॥
पूरा मारगु पूरा इसनानु ॥
प्रभु लब्धि हेतु नाम-मार्ग पूर्ण सही है और नाम-सिमरन ही पूर्ण तीर्थ-स्नान है
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਪੂਰਾ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ॥੧॥
सभु किछु पूरा हिरदै नामु ॥१॥
जिस व्यक्ति के हृदय में नाम का निवास हो जाता है, उसका सब कुछ पूर्ण हो जाता है। ॥ १॥
ਪੂਰੀ ਰਹੀ ਜਾ ਪੂਰੈ ਰਾਖੀ ॥
पूरी रही जा पूरै राखी ॥
उस पूर्ण ब्रह्म ने उसकी पूर्ण प्रतिष्ठा रख ली ;
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੀ ਸਰਣਿ ਜਨ ਤਾਕੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पारब्रहम की सरणि जन ताकी ॥१॥ रहाउ ॥
जब सेवक ने अपने स्वामी पारब्रह्म की शरण ली ॥ १॥ रहाउ॥
ਪੂਰਾ ਸੁਖੁ ਪੂਰਾ ਸੰਤੋਖੁ ॥
पूरा सुखु पूरा संतोखु ॥
सेवक को पूर्ण सुख एवं पूर्ण संतोष प्राप्त हो गया है।
ਪੂਰਾ ਤਪੁ ਪੂਰਨ ਰਾਜੁ ਜੋਗੁ ॥੨॥
पूरा तपु पूरन राजु जोगु ॥२॥
नाम-सिमरन ही पूर्ण तपस्या और पूर्ण राज योग है॥२॥
ਹਰਿ ਕੈ ਮਾਰਗਿ ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ॥
हरि कै मारगि पतित पुनीत ॥
भगवान के मार्ग पर चलने वाला पापी भी पवित्र हो जाता है
ਪੂਰੀ ਸੋਭਾ ਪੂਰਾ ਲੋਕੀਕ ॥੩॥
पूरी सोभा पूरा लोकीक ॥३॥
और वह लोक-परलोक में पूर्ण शोभा प्राप्त करता है तथा लोगों से उसका व्यवहार भी अच्छा हो जाता है।॥३॥
ਕਰਣਹਾਰੁ ਸਦ ਵਸੈ ਹਦੂਰਾ ॥
करणहारु सद वसै हदूरा ॥
सृजनहार प्रभु सदैव उसके निकट वास करता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੇਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ॥੪॥੪੫॥੧੧੪॥
कहु नानक मेरा सतिगुरु पूरा ॥४॥४५॥११४॥
हे नानक ! मेरा सतिगुरु पूर्ण है॥ ४॥ ४५॥ ११४॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਸੰਤ ਕੀ ਧੂਰਿ ਮਿਟੇ ਅਘ ਕੋਟ ॥
संत की धूरि मिटे अघ कोट ॥
संतों की चरण-धूलि से करोड़ों ही पाप मिट जाते हैं।