ਅਨਦਿਨੁ ਰਤੜੀਏ ਸਹਜਿ ਮਿਲੀਜੈ ॥
अनदिनु रतड़ीए सहजि मिलीजै ॥
नित्य प्रभु-प्रेम में रत रहने वाली सहज-स्वभाव ही मिल जाती है।
ਸੁਖਿ ਸਹਜਿ ਮਿਲੀਜੈ ਰੋਸੁ ਨ ਕੀਜੈ ਗਰਬੁ ਨਿਵਾਰਿ ਸਮਾਣੀ ॥
सुखि सहजि मिलीजै रोसु न कीजै गरबु निवारि समाणी ॥
सहज-स्वभाव मिलन से ही परम सुख मिलता है, क्रोध मत करो, अहम् का निवारण कर लीन हुआ जा सकता है।
ਸਾਚੈ ਰਾਤੀ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਈ ਮਨਮੁਖਿ ਆਵਣ ਜਾਣੀ ॥
साचै राती मिलै मिलाई मनमुखि आवण जाणी ॥
गुरु के माध्यम से सत्य में लीन जीव-स्त्री का मिलाप हो जाता है परन्तु स्वेच्छाचारी आवागमन में पड़ी रहती है।
ਜਬ ਨਾਚੀ ਤਬ ਘੂਘਟੁ ਕੈਸਾ ਮਟੁਕੀ ਫੋੜਿ ਨਿਰਾਰੀ ॥
जब नाची तब घूघटु कैसा मटुकी फोड़ि निरारी ॥
अगर लोक-लाज छोड़कर प्रभु-भक्ति में नाचने लग गई तो घूंघट कैसा।
ਨਾਨਕ ਆਪੈ ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰੀ ॥੪॥੪॥
नानक आपै आपु पछाणै गुरमुखि ततु बीचारी ॥४॥४॥
गुरु नानक का मत है- सार तत्व यही है कि गुरु के द्वारा जीव को आत्म-स्वरूप की पहचान होती है॥ ४॥ ४॥
ਤੁਖਾਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
तुखारी महला १ ॥
तुखारी महला १॥
ਮੇਰੇ ਲਾਲ ਰੰਗੀਲੇ ਹਮ ਲਾਲਨ ਕੇ ਲਾਲੇ ॥
मेरे लाल रंगीले हम लालन के लाले ॥
मेरा प्रियतम प्रभु रंगीला है, हम भी उसी के उपासक हैं।
ਗੁਰਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਇਆ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਭਾਲੇ ॥
गुरि अलखु लखाइआ अवरु न दूजा भाले ॥
जब से गुरु ने उस अदृष्ट प्रभु के दर्शन करवाए हैं, उसके सिवा हम किसी अन्य को नहीं ढूंढते।
ਗੁਰਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਇਆ ਜਾ ਤਿਸੁ ਭਾਇਆ ਜਾ ਪ੍ਰਭਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥
गुरि अलखु लखाइआ जा तिसु भाइआ जा प्रभि किरपा धारी ॥
जब प्रभु की इच्छा हुई तो उसने कृपा कर दी और गुरु ने अदृष्ट प्रभु को दिखा दिया।
ਜਗਜੀਵਨੁ ਦਾਤਾ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ਸਹਜਿ ਮਿਲੇ ਬਨਵਾਰੀ ॥
जगजीवनु दाता पुरखु बिधाता सहजि मिले बनवारी ॥
संसार का जीवन-दाता परम पुरुष विधाता सहज ही मिल जाता है।
ਨਦਰਿ ਕਰਹਿ ਤੂ ਤਾਰਹਿ ਤਰੀਐ ਸਚੁ ਦੇਵਹੁ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
नदरि करहि तू तारहि तरीऐ सचु देवहु दीन दइआला ॥
हे दीनदयाल ! जब तू अपनी कृपा करता है, संसार-सागर से उद्धार हो जाता है, अतः सच्चा नाम प्रदान करो।
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸਾ ਤੂ ਸਰਬ ਜੀਆ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥੧॥
प्रणवति नानक दासनि दासा तू सरब जीआ प्रतिपाला ॥१॥
नानक की विनती है कि हम तेरे दासों के भी दास हैं और तू सब जीवों का पोषक है॥ १॥
ਭਰਿਪੁਰਿ ਧਾਰਿ ਰਹੇ ਅਤਿ ਪਿਆਰੇ ॥ ਸਬਦੇ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਗੁਰ ਰੂਪਿ ਮੁਰਾਰੇ ॥
भरिपुरि धारि रहे अति पिआरे ॥ सबदे रवि रहिआ गुर रूपि मुरारे ॥
भरपूर ब्रह्म में वह प्रियतम प्यारा (गुरु) व्याप्त है,” गुरु रूप ईश्वर शब्द में ही रमण कर रहा है।
ਗੁਰ ਰੂਪ ਮੁਰਾਰੇ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਧਾਰੇ ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
गुर रूप मुरारे त्रिभवण धारे ता का अंतु न पाइआ ॥
गुरु रूप परमेश्वर तीनों लोकों का आधार है, उसका रहस्य पाया नहीं जा सकता।
ਰੰਗੀ ਜਿਨਸੀ ਜੰਤ ਉਪਾਏ ਨਿਤ ਦੇਵੈ ਚੜੈ ਸਵਾਇਆ ॥
रंगी जिनसी जंत उपाए नित देवै चड़ै सवाइआ ॥
उसने कितने ही रंग एवं प्रकार के जीव उत्पन्न किए हैं और नित्य ही बढ़-चढ़कर देता रहता है।
ਅਪਰੰਪਰੁ ਆਪੇ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪੇ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਹੋਵੈ ॥
अपर्मपरु आपे थापि उथापे तिसु भावै सो होवै ॥
अपरंपार प्रभु स्वयं ही बनाता एवं बिगाड़ देता है और जो वह चाहता है, वही होता है।
ਨਾਨਕ ਹੀਰਾ ਹੀਰੈ ਬੇਧਿਆ ਗੁਣ ਕੈ ਹਾਰਿ ਪਰੋਵੈ ॥੨॥
नानक हीरा हीरै बेधिआ गुण कै हारि परोवै ॥२॥
गुरु नानक का कथन है कि गुरु गुणों की माला में पिरोकर हीरा बनकर हीरे के साथ विंध जाता है॥ २॥
ਗੁਣ ਗੁਣਹਿ ਸਮਾਣੇ ਮਸਤਕਿ ਨਾਮ ਨੀਸਾਣੋ ॥
गुण गुणहि समाणे मसतकि नाम नीसाणो ॥
गुण गुणों में लीन हुए ललाट पर नाम-स्मरण का भाग्यालेख था।
ਸਚੁ ਸਾਚਿ ਸਮਾਇਆ ਚੂਕਾ ਆਵਣ ਜਾਣੋ ॥
सचु साचि समाइआ चूका आवण जाणो ॥
जब परम-सत्य में विलीन हो गया तो आवागमन मिट गया।
ਸਚੁ ਸਾਚਿ ਪਛਾਤਾ ਸਾਚੈ ਰਾਤਾ ਸਾਚੁ ਮਿਲੈ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ॥
सचु साचि पछाता साचै राता साचु मिलै मनि भावै ॥
सत्य में लीन रहकर सत्य को पहचान लिया, सत्य में मिलन हो जाए तो यही मन को अच्छा लगता है।
ਸਾਚੇ ਊਪਰਿ ਅਵਰੁ ਨ ਦੀਸੈ ਸਾਚੇ ਸਾਚਿ ਸਮਾਵੈ ॥
साचे ऊपरि अवरु न दीसै साचे साचि समावै ॥
उस सच्चे परमेश्वर के सिवा अन्य कोई दृष्टिमान नहीं होता, सत्यनिष्ठ बनकर सत्य में समाया जा सकता है।
ਮੋਹਨਿ ਮੋਹਿ ਲੀਆ ਮਨੁ ਮੇਰਾ ਬੰਧਨ ਖੋਲਿ ਨਿਰਾਰੇ ॥
मोहनि मोहि लीआ मनु मेरा बंधन खोलि निरारे ॥
प्रभु ने मेरा मन मोह लिया है और बन्धनों से छुटकारा हो गया है।
ਨਾਨਕ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ਜਾ ਮਿਲਿਆ ਅਤਿ ਪਿਆਰੇ ॥੩॥
नानक जोती जोति समाणी जा मिलिआ अति पिआरे ॥३॥
हे नानक ! जब प्यारा प्रभु मिला तो आत्म-ज्योति, परम-ज्योति में विलीन हो गई।॥ ३॥
ਸਚ ਘਰੁ ਖੋਜਿ ਲਹੇ ਸਾਚਾ ਗੁਰ ਥਾਨੋ ॥
सच घरु खोजि लहे साचा गुर थानो ॥
सच्चा गुरु वह स्थान है, जहाँ से सच्चे घर (प्रभु) की खोज होती है।
ਮਨਮੁਖਿ ਨਹ ਪਾਈਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਿਆਨੋ ॥
मनमुखि नह पाईऐ गुरमुखि गिआनो ॥
मन की मर्जी करने से प्राप्ति नहीं होती यदि गुरमुख बना जाए तो ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है।
ਦੇਵੈ ਸਚੁ ਦਾਨੋ ਸੋ ਪਰਵਾਨੋ ਸਦ ਦਾਤਾ ਵਡ ਦਾਣਾ ॥
देवै सचु दानो सो परवानो सद दाता वड दाणा ॥
ईश्वर सदैव देने वाला है, बड़ा प्रतिभावान् है, सत्य ही देता है और वही स्वीकार होता है।
ਅਮਰੁ ਅਜੋਨੀ ਅਸਥਿਰੁ ਜਾਪੈ ਸਾਚਾ ਮਹਲੁ ਚਿਰਾਣਾ ॥
अमरु अजोनी असथिरु जापै साचा महलु चिराणा ॥
वह अमर, अयोनि, चिरस्थाई है और उसका सच्चा स्थान सदैव रहने वाला है।
ਦੋਤਿ ਉਚਾਪਤਿ ਲੇਖੁ ਨ ਲਿਖੀਐ ਪ੍ਰਗਟੀ ਜੋਤਿ ਮੁਰਾਰੀ ॥
दोति उचापति लेखु न लिखीऐ प्रगटी जोति मुरारी ॥
यदि परमेश्वर की ज्योति अन्तर्मन में प्रगट हो जाए तो हर रोज़ के कर्मों का लेख नहीं लिखा जाता।
ਨਾਨਕ ਸਾਚਾ ਸਾਚੈ ਰਾਚਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਰੀਐ ਤਾਰੀ ॥੪॥੫॥
नानक साचा साचै राचा गुरमुखि तरीऐ तारी ॥४॥५॥
हे नानक ! सत्यनिष्ठ जीव परम-सत्य प्रभु की स्मृति में लीन रहता है और ऐसा गुरुमुख भवसागर से पार उतर जाता है॥ ४॥ ५॥
ਤੁਖਾਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
तुखारी महला १ ॥
तुखारी महला १॥
ਏ ਮਨ ਮੇਰਿਆ ਤੂ ਸਮਝੁ ਅਚੇਤ ਇਆਣਿਆ ਰਾਮ ॥
ए मन मेरिआ तू समझु अचेत इआणिआ राम ॥
ऐ मेरे मन ! तू समझ, क्यों नासमझ और अचेत बना हुआ है।
ਏ ਮਨ ਮੇਰਿਆ ਛਡਿ ਅਵਗਣ ਗੁਣੀ ਸਮਾਣਿਆ ਰਾਮ ॥
ए मन मेरिआ छडि अवगण गुणी समाणिआ राम ॥
अवगुणों को छोड़कर गुणों में लीन हो जा।
ਬਹੁ ਸਾਦ ਲੁਭਾਣੇ ਕਿਰਤ ਕਮਾਣੇ ਵਿਛੁੜਿਆ ਨਹੀ ਮੇਲਾ ॥
बहु साद लुभाणे किरत कमाणे विछुड़िआ नही मेला ॥
अनेक स्वादों के लोभ में तू कर्म कर रहा है, अतः बिछुड़े हुए का यों मिलन नहीं होता।
ਕਿਉ ਦੁਤਰੁ ਤਰੀਐ ਜਮ ਡਰਿ ਮਰੀਐ ਜਮ ਕਾ ਪੰਥੁ ਦੁਹੇਲਾ ॥
किउ दुतरु तरीऐ जम डरि मरीऐ जम का पंथु दुहेला ॥
दुस्तर संसार-सागर में से कैसे पार हुआ जा सकता है, यम का डर मारता रहता है और यम का रास्ता दुखदायी है।
ਮਨਿ ਰਾਮੁ ਨਹੀ ਜਾਤਾ ਸਾਝ ਪ੍ਰਭਾਤਾ ਅਵਘਟਿ ਰੁਧਾ ਕਿਆ ਕਰੇ ॥
मनि रामु नही जाता साझ प्रभाता अवघटि रुधा किआ करे ॥
सांझ-सवेरे मन ने राम नाम के भजन की महता को समझा नहीं, यम के मार्ग में क्या कर सकते हो।
ਬੰਧਨਿ ਬਾਧਿਆ ਇਨ ਬਿਧਿ ਛੂਟੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵੈ ਨਰਹਰੇ ॥੧॥
बंधनि बाधिआ इन बिधि छूटै गुरमुखि सेवै नरहरे ॥१॥
यदि गुरु के माध्यम से प्रभु की उपासना की जाए तो इन कर्म-बन्धनों से छुटकारा हो सकता है॥ १॥
ਏ ਮਨ ਮੇਰਿਆ ਤੂ ਛੋਡਿ ਆਲ ਜੰਜਾਲਾ ਰਾਮ ॥
ए मन मेरिआ तू छोडि आल जंजाला राम ॥
ऐ मेरे मन ! सब जंजाल छोड़ दो और
ਏ ਮਨ ਮੇਰਿਆ ਹਰਿ ਸੇਵਹੁ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਾਲਾ ਰਾਮ ॥
ए मन मेरिआ हरि सेवहु पुरखु निराला राम ॥
परमपुरुष निराले प्रभु की उपासना करो।