ਭਗਵਤ ਭੀਰਿ ਸਕਤਿ ਸਿਮਰਨ ਕੀ ਕਟੀ ਕਾਲ ਭੈ ਫਾਸੀ ॥
भगवत भीरि सकति सिमरन की कटी काल भै फासी ॥
भगवान के भक्तगणों की सत्संगति करने एवं स्मरण की शक्ति से काल के भय का फन्दा कट जाता है।
ਦਾਸੁ ਕਮੀਰੁ ਚੜ੍ਹ੍ਹਿਓ ਗੜ੍ਹ੍ਹ ਊਪਰਿ ਰਾਜੁ ਲੀਓ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥੬॥੯॥੧੭॥
दासु कमीरु चड़्हिओ गड़्ह ऊपरि राजु लीओ अबिनासी ॥६॥९॥१७॥
हे कबीर ! इस तरह दास किले पर चढ़कर अटल राज पा लेता है॥६॥ ६॥ १७॥
ਗੰਗ ਗੁਸਾਇਨਿ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰ ॥ ਜੰਜੀਰ ਬਾਂਧਿ ਕਰਿ ਖਰੇ ਕਬੀਰ ॥੧॥
गंग गुसाइनि गहिर ग्मभीर ॥ जंजीर बांधि करि खरे कबीर ॥१॥
गंगा मैया बड़ी गहन गंभीर है, जंजीर से बांधकर कबीर को वहाँ खड़ा कर फेंक दिया गया॥१॥
ਮਨੁ ਨ ਡਿਗੈ ਤਨੁ ਕਾਹੇ ਕਉ ਡਰਾਇ ॥
मनु न डिगै तनु काहे कउ डराइ ॥
जब मन नहीं डोलता तो फिर तन कैसे डर सकता है।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਚਿਤੁ ਰਹਿਓ ਸਮਾਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
चरन कमल चितु रहिओ समाइ ॥ रहाउ ॥
कबीर का चित ईश्वर के चरण कमल में विलीन था॥१॥
ਗੰਗਾ ਕੀ ਲਹਰਿ ਮੇਰੀ ਟੁਟੀ ਜੰਜੀਰ ॥
गंगा की लहरि मेरी टुटी जंजीर ॥
गंगा की लहरों से मेरी जंजीर टूट गई और
ਮ੍ਰਿਗਛਾਲਾ ਪਰ ਬੈਠੇ ਕਬੀਰ ॥੨॥
म्रिगछाला पर बैठे कबीर ॥२॥
कबीर मृगशाला पर बैठ गया॥२॥
ਕਹਿ ਕੰਬੀਰ ਕੋਊ ਸੰਗ ਨ ਸਾਥ ॥
कहि कंबीर कोऊ संग न साथ ॥
कबीर जी कहते हैं कि जहाँ कोई साथ नहीं देता,
ਜਲ ਥਲ ਰਾਖਨ ਹੈ ਰਘੁਨਾਥ ॥੩॥੧੦॥੧੮॥
जल थल राखन है रघुनाथ ॥३॥१०॥१८॥
जल और थल में वहाँ परमात्मा ही रक्षा करता है॥३॥ १०॥ १८॥ (जब बादशाह सिकंदर लोधी द्वारा कबीर जी को गंगा में फेंका गया था, उस समय का वृत्तांत हैं]”
ਭੈਰਉ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਅਸਟਪਦੀ ਘਰੁ ੨
भैरउ कबीर जीउ असटपदी घरु २
भैरउ कबीर जीउ असटपदी घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਅਗਮ ਦ੍ਰੁਗਮ ਗੜਿ ਰਚਿਓ ਬਾਸ ॥
अगम द्रुगम गड़ि रचिओ बास ॥
अपहुँच एवं दुर्गम (दशम द्वार रूपी) किले की रचना करके ईश्वर ने इसमें वास किया हुआ है और
ਜਾ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਕਰੇ ਪਰਗਾਸ ॥
जा महि जोति करे परगास ॥
उसमें उसकी ज्योति का आलोक है।
ਬਿਜੁਲੀ ਚਮਕੈ ਹੋਇ ਅਨੰਦੁ ॥
बिजुली चमकै होइ अनंदु ॥
वहाँ बहाज्ञान रूपी बिजली चमकती है और आनंद बना रहता है
ਜਿਹ ਪਉੜ੍ਹ੍ਹੇ ਪ੍ਰਭ ਬਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ॥੧॥
जिह पउड़्हे प्रभ बाल गोबिंद ॥१॥
जिस स्थान पर गोविन्द बसता है ।॥१॥
ਇਹੁ ਜੀਉ ਰਾਮ ਨਾਮ ਲਿਵ ਲਾਗੈ ॥
इहु जीउ राम नाम लिव लागै ॥
यदि जीवात्मा की राम नाम में लगन लग जाए तो
ਜਰਾ ਮਰਨੁ ਛੂਟੈ ਭ੍ਰਮੁ ਭਾਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जरा मरनु छूटै भ्रमु भागै ॥१॥ रहाउ ॥
जन्म-मरण छूट जाता है और भ्रम भी भाग जाता है।॥१॥ रहाउ॥
ਅਬਰਨ ਬਰਨ ਸਿਉ ਮਨ ਹੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
अबरन बरन सिउ मन ही प्रीति ॥
जिसके मन में जात-पात का प्रेम बना होता है,
ਹਉਮੈ ਗਾਵਨਿ ਗਾਵਹਿ ਗੀਤ ॥
हउमै गावनि गावहि गीत ॥
वह अहम्-भावना के गीत गाता रहता है।
ਅਨਹਦ ਸਬਦ ਹੋਤ ਝੁਨਕਾਰ ॥ ਜਿਹ ਪਉੜ੍ਹ੍ਹੇ ਪ੍ਰਭ ਸ੍ਰੀ ਗੋਪਾਲ ॥੨॥
अनहद सबद होत झुनकार ॥ जिह पउड़्हे प्रभ स्री गोपाल ॥२॥
जिस स्थान पर प्रभु विद्यमान है, वहाँ अनाहत शब्द की झांकार होती रहती है॥२॥
ਖੰਡਲ ਮੰਡਲ ਮੰਡਲ ਮੰਡਾ ॥
खंडल मंडल मंडल मंडा ॥
परमेश्वर खण्डों-मण्डलों की रचना करने वाला है,
ਤ੍ਰਿਅ ਅਸਥਾਨ ਤੀਨਿ ਤ੍ਰਿਅ ਖੰਡਾ ॥
त्रिअ असथान तीनि त्रिअ खंडा ॥
वह तीनों लोकों ब्रह्मा, विष्णु, शिव- त्रिदेवों तथा तीन गुणों का संहार करने वाला है।
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਰਹਿਆ ਅਭ ਅੰਤ ॥
अगम अगोचरु रहिआ अभ अंत ॥
मन-वाणी से परे प्रभु अन्तर्मन में ही विद्यमान है,
ਪਾਰੁ ਨ ਪਾਵੈ ਕੋ ਧਰਨੀਧਰ ਮੰਤ ॥੩॥
पारु न पावै को धरनीधर मंत ॥३॥
उस पृथ्वीपालक का रहस्य कोई नहीं पा सकता॥३॥
ਕਦਲੀ ਪੁਹਪ ਧੂਪ ਪਰਗਾਸ ॥
कदली पुहप धूप परगास ॥
केले, फूल, धूपबत्ती ये उसी का प्रकाश है,
ਰਜ ਪੰਕਜ ਮਹਿ ਲੀਓ ਨਿਵਾਸ ॥
रज पंकज महि लीओ निवास ॥
कमल के सौरभ में भी वही वास कर रहा है।
ਦੁਆਦਸ ਦਲ ਅਭ ਅੰਤਰਿ ਮੰਤ ॥ ਜਹ ਪਉੜੇ ਸ੍ਰੀ ਕਮਲਾ ਕੰਤ ॥੪॥
दुआदस दल अभ अंतरि मंत ॥ जह पउड़े स्री कमला कंत ॥४॥
बारह पंखुड़ियों वाले हृदय कमल में उसी का मन्तवय है, हर स्थान पर लक्ष्मीपति नारायण ही विद्यमान है॥४॥
ਅਰਧ ਉਰਧ ਮੁਖਿ ਲਾਗੋ ਕਾਸੁ ॥
अरध उरध मुखि लागो कासु ॥
नीचे, ऊपर एवं मुख में उसकी ज्योति आलोकित हो रही है,
ਸੁੰਨ ਮੰਡਲ ਮਹਿ ਕਰਿ ਪਰਗਾਸੁ ॥
सुंन मंडल महि करि परगासु ॥
शून्य मण्डल (दशम द्वार) में ईश्वर का आलोक स्थित है।
ਊਹਾਂ ਸੂਰਜ ਨਾਹੀ ਚੰਦ ॥
ऊहां सूरज नाही चंद ॥
वहाँ सूर्य एवं चांद नहीं,
ਆਦਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਕਰੈ ਅਨੰਦ ॥੫॥
आदि निरंजनु करै अनंद ॥५॥
वहाँ भी आदिपुरुष मायातीत प्रभु आनंद कर रहा है॥५॥
ਸੋ ਬ੍ਰਹਮੰਡਿ ਪਿੰਡਿ ਸੋ ਜਾਨੁ ॥
सो ब्रहमंडि पिंडि सो जानु ॥
जो ब्रह्माण्ड में है, उसे पिण्ड में भी विद्यमान जानो।
ਮਾਨ ਸਰੋਵਰਿ ਕਰਿ ਇਸਨਾਨੁ ॥
मान सरोवरि करि इसनानु ॥
प्रभु नाम रूपी मानसरोवर में स्नान करो,
ਸੋਹੰ ਸੋ ਜਾ ਕਉ ਹੈ ਜਾਪ ॥
सोहं सो जा कउ है जाप ॥
मैं वही हूँ सोहम् जिसका जाप है,
ਜਾ ਕਉ ਲਿਪਤ ਨ ਹੋਇ ਪੁੰਨ ਅਰੁ ਪਾਪ ॥੬॥
जा कउ लिपत न होइ पुंन अरु पाप ॥६॥
उस पर पाप एवं पुण्य लिप्त नहीं होता॥६॥
ਅਬਰਨ ਬਰਨ ਘਾਮ ਨਹੀ ਛਾਮ ॥
अबरन बरन घाम नही छाम ॥
ईश्वर वर्ण-अवर्ण, धूप अथवा छांव से परे है,
ਅਵਰ ਨ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਕੀ ਸਾਮ ॥
अवर न पाईऐ गुर की साम ॥
गुरु की शरण बिना उसे कहीं भी पाया नहीं जा सकता।
ਟਾਰੀ ਨ ਟਰੈ ਆਵੈ ਨ ਜਾਇ ॥
टारी न टरै आवै न जाइ ॥
उसमें लगा ध्यान भंग नहीं हो सकता, इससे प्राणी का आवागमन छूट जाता है और
ਸੁੰਨ ਸਹਜ ਮਹਿ ਰਹਿਓ ਸਮਾਇ ॥੭॥
सुंन सहज महि रहिओ समाइ ॥७॥
वह नैसर्गिक ही शून्य समाधि में लवलीन रहता है।॥ ७॥
ਮਨ ਮਧੇ ਜਾਨੈ ਜੇ ਕੋਇ ॥
मन मधे जानै जे कोइ ॥
अगर कोई मन में उसे जान ले तो
ਜੋ ਬੋਲੈ ਸੋ ਆਪੈ ਹੋਇ ॥
जो बोलै सो आपै होइ ॥
जो बोलता है, वह पूरा हो जाता है।
ਜੋਤਿ ਮੰਤ੍ਰਿ ਮਨਿ ਅਸਥਿਰੁ ਕਰੈ ॥
जोति मंत्रि मनि असथिरु करै ॥
हे कबीर ! जो पुरुष प्रभु-ज्योति रूपी मंत्र के द्वारा मन को स्थिर कर लेता है,
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਸੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ਤਰੈ ॥੮॥੧॥
कहि कबीर सो प्रानी तरै ॥८॥१॥
वह जगत से पार हो जाता है॥ ८॥१॥
ਕੋਟਿ ਸੂਰ ਜਾ ਕੈ ਪਰਗਾਸ ॥
कोटि सूर जा कै परगास ॥
जिसका करोड़ों सूर्यो जितना प्रकाश है,
ਕੋਟਿ ਮਹਾਦੇਵ ਅਰੁ ਕਬਿਲਾਸ ॥
कोटि महादेव अरु कबिलास ॥
करोड़ों महादेव और कैलाश पर्वत जिसमें व्याप्त हैं,
ਦੁਰਗਾ ਕੋਟਿ ਜਾ ਕੈ ਮਰਦਨੁ ਕਰੈ ॥
दुरगा कोटि जा कै मरदनु करै ॥
करोड़ों दुर्गा देवियाँ जिसकी चरण-सेवा में लीन हैं,
ਬ੍ਰਹਮਾ ਕੋਟਿ ਬੇਦ ਉਚਰੈ ॥੧॥
ब्रहमा कोटि बेद उचरै ॥१॥
करोड़ों ब्रह्मा जिसके वन्दन में वेदों का उच्चारण करते हैं।॥१॥
ਜਉ ਜਾਚਉ ਤਉ ਕੇਵਲ ਰਾਮ ॥
जउ जाचउ तउ केवल राम ॥
मैं तो केवल राम को ही चाहता हूँ,
ਆਨ ਦੇਵ ਸਿਉ ਨਾਹੀ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आन देव सिउ नाही काम ॥१॥ रहाउ ॥
किसी अन्य देवता से कोई मतलब नहीं॥१॥ रहाउ॥
ਕੋਟਿ ਚੰਦ੍ਰਮੇ ਕਰਹਿ ਚਰਾਕ ॥
कोटि चंद्रमे करहि चराक ॥
करोड़ों चन्द्रमा जिसके दर पर चिराग करते हैं,