ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਾਧੂ ਸਰਣਾਈ ॥
राम नामु साधू सरणाई ॥
साधु महात्मा की शरण में आने से ही राम-नाम मिलता है और
ਸਤਿਗੁਰ ਬਚਨੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਪਾਈ ॥
सतिगुर बचनी गति मिति पाई ॥
सतगुरु की वाणी द्वारा उसकी गति एवं विस्तार का रहस्य प्राप्त होता है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਮੇਲੇ ਮੇਲਣਹਾਰਾ ਹੇ ॥੧੭॥੩॥੯॥
नानक हरि जपि हरि मन मेरे हरि मेले मेलणहारा हे ॥१७॥३॥९॥
गुरु नानक का कथन है कि हे मेरे मन ! हरि नाम का जाप करो; क्योंकि यही परम-सत्य से मिलाने वाला है॥ १७॥ ३॥ ९॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥
ਘਰਿ ਰਹੁ ਰੇ ਮਨ ਮੁਗਧ ਇਆਨੇ ॥
घरि रहु रे मन मुगध इआने ॥
हे मूर्ख नादान मन ! हृदय-घर में स्थिर रहो,
ਰਾਮੁ ਜਪਹੁ ਅੰਤਰਗਤਿ ਧਿਆਨੇ ॥
रामु जपहु अंतरगति धिआने ॥
ध्यान लगाकर अन्तर्मुख होकर राम को जपते रहो।
ਲਾਲਚ ਛੋਡਿ ਰਚਹੁ ਅਪਰੰਪਰਿ ਇਉ ਪਾਵਹੁ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰਾ ਹੇ ॥੧॥
लालच छोडि रचहु अपर्मपरि इउ पावहु मुकति दुआरा हे ॥१॥
लोभ-लालच को छोड़कर अपरंपार परमेश्वर में लीन रहो, इस प्रकार मुक्ति का द्वार पा लो॥ १॥
ਜਿਸੁ ਬਿਸਰਿਐ ਜਮੁ ਜੋਹਣਿ ਲਾਗੈ ॥
जिसु बिसरिऐ जमु जोहणि लागै ॥
जिसे विस्मृत करने से यम पीड़ित करने लगता है,
ਸਭਿ ਸੁਖ ਜਾਹਿ ਦੁਖਾ ਫੁਨਿ ਆਗੈ ॥
सभि सुख जाहि दुखा फुनि आगै ॥
सभी सुख दूर हो जाते हैं और आगे परलोक में दुख पुनः भोगने पड़ते हैं।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੀਅੜੇ ਏਹੁ ਪਰਮ ਤਤੁ ਵੀਚਾਰਾ ਹੇ ॥੨॥
राम नामु जपि गुरमुखि जीअड़े एहु परम ततु वीचारा हे ॥२॥
हे मन ! गुरुमुख बनकर राम नाम का जाप करते रहो, यही परम-तत्व का चिंतन है॥ २॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ॥
हरि हरि नामु जपहु रसु मीठा ॥
हरि-नाम जपो, यही मीठा रस है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਅੰਤਰਿ ਡੀਠਾ ॥
गुरमुखि हरि रसु अंतरि डीठा ॥
गुरुमुख ने अन्तर्मन में ही हरि-रस को देख लिया है।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਰਾਮ ਰਹਹੁ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਏਹੁ ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਸਾਰਾ ਹੇ ॥੩॥
अहिनिसि राम रहहु रंगि राते एहु जपु तपु संजमु सारा हे ॥३॥
नित्य राम-रंग में लीन रहो, यही जप, तपस्या एवं संयम का सार है॥ ३॥
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਬੋਲਹੁ ॥
राम नामु गुर बचनी बोलहु ॥
गुरु के वचन द्वारा राम नाम बोलो;
ਸੰਤ ਸਭਾ ਮਹਿ ਇਹੁ ਰਸੁ ਟੋਲਹੁ ॥
संत सभा महि इहु रसु टोलहु ॥
संतों की सभा में इस रस को तलाशो।
ਗੁਰਮਤਿ ਖੋਜਿ ਲਹਹੁ ਘਰੁ ਅਪਨਾ ਬਹੁੜਿ ਨ ਗਰਭ ਮਝਾਰਾ ਹੇ ॥੪॥
गुरमति खोजि लहहु घरु अपना बहुड़ि न गरभ मझारा हे ॥४॥
गुरु की शिक्षा द्वारा अपना सच्चा घर खोज लो, इस तरह पुनः गर्भ-योनि में नहीं आओगे॥ ४॥
ਸਚੁ ਤੀਰਥਿ ਨਾਵਹੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹੁ ॥
सचु तीरथि नावहु हरि गुण गावहु ॥
नाम रूपी सच्चे तीर्थ में स्नान करो;
ਤਤੁ ਵੀਚਾਰਹੁ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਵਹੁ ॥
ततु वीचारहु हरि लिव लावहु ॥
भगवान के गुण गाओ, परम-तत्व का चिंतन करो एवं परमात्मा में ध्यान लगाओ।
ਅੰਤ ਕਾਲਿ ਜਮੁ ਜੋਹਿ ਨ ਸਾਕੈ ਹਰਿ ਬੋਲਹੁ ਰਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ਹੇ ॥੫॥
अंत कालि जमु जोहि न साकै हरि बोलहु रामु पिआरा हे ॥५॥
प्यारे प्रभु का नाम जपते रहो, इस प्रकार अंतकाल यम प्रभावित नहीं कर सकेगा॥ ५॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਦਾਤਾ ਵਡ ਦਾਣਾ ॥
सतिगुरु पुरखु दाता वड दाणा ॥
सतगुरु दाता है, बड़ा चतुर है।
ਜਿਸੁ ਅੰਤਰਿ ਸਾਚੁ ਸੁ ਸਬਦਿ ਸਮਾਣਾ ॥
जिसु अंतरि साचु सु सबदि समाणा ॥
जिसके अन्तर्मन में सत्य अवस्थित होता है, वह ब्रह्म में ही विलीन हो जाता है।
ਜਿਸ ਕਉ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ਤਿਸੁ ਚੂਕਾ ਜਮ ਭੈ ਭਾਰਾ ਹੇ ॥੬॥
जिस कउ सतिगुरु मेलि मिलाए तिसु चूका जम भै भारा हे ॥६॥
सतगुरु जिसे परमेश्वर से मिला देता है, उसका यम का भारी भय समाप्त हो जाता है॥ ६॥
ਪੰਚ ਤਤੁ ਮਿਲਿ ਕਾਇਆ ਕੀਨੀ ॥
पंच ततु मिलि काइआ कीनी ॥
पंच तत्वों से मिलकर यह शरीर बनाया गया है और
ਤਿਸ ਮਹਿ ਰਾਮ ਰਤਨੁ ਲੈ ਚੀਨੀ ॥
तिस महि राम रतनु लै चीनी ॥
इस में मौजूद राम-नाम रत्न को पहचान लो।
ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਰਾਮੁ ਹੈ ਆਤਮ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਾ ਹੇ ॥੭॥
आतम रामु रामु है आतम हरि पाईऐ सबदि वीचारा हे ॥७॥
आत्मा एवं परमात्मा एक ही हैं और इस तथ्य का ज्ञान शब्द के चिंतन द्वारा ही होता है॥ ७॥
ਸਤ ਸੰਤੋਖਿ ਰਹਹੁ ਜਨ ਭਾਈ ॥
सत संतोखि रहहु जन भाई ॥
हे भाई ! सत्य एवं संतोष में रहो,
ਖਿਮਾ ਗਹਹੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ॥
खिमा गहहु सतिगुर सरणाई ॥
क्षमा भावना रखो और गुरु की शरण में पड़ जाओ।
ਆਤਮੁ ਚੀਨਿ ਪਰਾਤਮੁ ਚੀਨਹੁ ਗੁਰ ਸੰਗਤਿ ਇਹੁ ਨਿਸਤਾਰਾ ਹੇ ॥੮॥
आतमु चीनि परातमु चीनहु गुर संगति इहु निसतारा हे ॥८॥
आत्मा को जान कर परमात्मा को पहचान लो; गुरु की संगति में ही उद्धार हो सकता है॥ ८॥
ਸਾਕਤ ਕੂੜ ਕਪਟ ਮਹਿ ਟੇਕਾ ॥
साकत कूड़ कपट महि टेका ॥
प्रभु से विमुख मनुष्य झूठ एवं कपट में ही टिका रहता है और
ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਿੰਦਾ ਕਰਹਿ ਅਨੇਕਾ
अहिनिसि निंदा करहि अनेका ॥
दिन-रात अनेक लोगों की निन्दा करता है।
ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਆਵਹਿ ਫੁਨਿ ਜਾਵਹਿ ਗ੍ਰਭ ਜੋਨੀ ਨਰਕ ਮਝਾਰਾ ਹੇ ॥੯॥
बिनु सिमरन आवहि फुनि जावहि ग्रभ जोनी नरक मझारा हे ॥९॥
परमात्मा के सिमरन बिना वह पुनः पुनः जन्मता-मरता है और नरक रूपी गर्भ-योनि में पड़ता है॥ ९॥
ਸਾਕਤ ਜਮ ਕੀ ਕਾਣਿ ਨ ਚੂਕੈ ॥
साकत जम की काणि न चूकै ॥
पदार्थवादी मनुष्य का मृत्यु का डर दूर नहीं होता,
ਜਮ ਕਾ ਡੰਡੁ ਨ ਕਬਹੂ ਮੂਕੈ ॥
जम का डंडु न कबहू मूकै ॥
यमदूतों का दण्ड उसका कभी समाप्त नहीं होता।
ਬਾਕੀ ਧਰਮ ਰਾਇ ਕੀ ਲੀਜੈ ਸਿਰਿ ਅਫਰਿਓ ਭਾਰੁ ਅਫਾਰਾ ਹੇ ॥੧੦॥
बाकी धरम राइ की लीजै सिरि अफरिओ भारु अफारा हे ॥१०॥
उस अहंकारी के सिर पर पाप रूपी अहंकार का भार टिका रहता है और धर्मराज उसके कमों का निपटारा करता है॥ १०॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਾਕਤੁ ਕਹਹੁ ਕੋ ਤਰਿਆ ॥
बिनु गुर साकतु कहहु को तरिआ ॥
बताओ, गुरु के बिना कौन-सा पदार्थवादी मनुष्य पार हुआ है।
ਹਉਮੈ ਕਰਤਾ ਭਵਜਲਿ ਪਰਿਆ ॥
हउमै करता भवजलि परिआ ॥
यह तो अभिमान करता हुआ भवसागर में ही पड़ा है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪਾਰੁ ਨ ਪਾਵੈ ਕੋਈ ਹਰਿ ਜਪੀਐ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ਹੇ ॥੧੧॥
बिनु गुर पारु न पावै कोई हरि जपीऐ पारि उतारा हे ॥११॥
गुरु के बिना कोई भी पार नहीं हो सकता, परमात्मा का जाप करने से ही मुक्ति मिलती है॥ ११॥
ਗੁਰ ਕੀ ਦਾਤਿ ਨ ਮੇਟੈ ਕੋਈ ॥
गुर की दाति न मेटै कोई ॥
गुरु की बख्शिश कोई मिटा नहीं सकता,
ਜਿਸੁ ਬਖਸੇ ਤਿਸੁ ਤਾਰੇ ਸੋਈ ॥
जिसु बखसे तिसु तारे सोई ॥
जिस पर कृपा करता है, उसका उद्धार हो जाता है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ਮਨਿ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਰ ਅਪਾਰਾ ਹੇ ॥੧੨॥
जनम मरण दुखु नेड़ि न आवै मनि सो प्रभु अपर अपारा हे ॥१२॥
जन्म-मरण का दुःख उसके निकट नहीं आता और उसका मन अपरम्पार प्रभु में ही लीन रहता है॥ १२॥
ਗੁਰ ਤੇ ਭੂਲੇ ਆਵਹੁ ਜਾਵਹੁ ॥
गुर ते भूले आवहु जावहु ॥
यदि गुरु को भूल गए तो आवागमन में पड़े रहोगे;
ਜਨਮਿ ਮਰਹੁ ਫੁਨਿ ਪਾਪ ਕਮਾਵਹੁ ॥
जनमि मरहु फुनि पाप कमावहु ॥
पुनः जन्म-मरण ही बना रहेगा; और पाप-कर्म में लिप्त रहोगे।
ਸਾਕਤ ਮੂੜ ਅਚੇਤ ਨ ਚੇਤਹਿ ਦੁਖੁ ਲਾਗੈ ਤਾ ਰਾਮੁ ਪੁਕਾਰਾ ਹੇ ॥੧੩॥
साकत मूड़ अचेत न चेतहि दुखु लागै ता रामु पुकारा हे ॥१३॥
मूर्ख एवं ज्ञानहीन जीव परमात्मा को याद नहीं करता किन्तु जब उसे कोई दुख लगता है तो राम को पुकारता है॥ १३॥
ਸੁਖੁ ਦੁਖੁ ਪੁਰਬ ਜਨਮ ਕੇ ਕੀਏ ॥
सुखु दुखु पुरब जनम के कीए ॥
दुख-सुख तो पूर्व जन्म के शुभाशुभ कर्मों का फल है,
ਸੋ ਜਾਣੈ ਜਿਨਿ ਦਾਤੈ ਦੀਏ ॥
सो जाणै जिनि दातै दीए ॥
परन्तु इस भेद को वही जानता है, जिस दाता ने दिए हैं।
ਕਿਸ ਕਉ ਦੋਸੁ ਦੇਹਿ ਤੂ ਪ੍ਰਾਣੀ ਸਹੁ ਅਪਣਾ ਕੀਆ ਕਰਾਰਾ ਹੇ ॥੧੪॥
किस कउ दोसु देहि तू प्राणी सहु अपणा कीआ करारा हे ॥१४॥
हे प्राणी ! तू किसी अन्य को दोष क्यों दे रहा है, अब तो अपने कर्मों का कठोर दुख भोग ॥१४॥