ਅਗਨਤ ਗੁਣ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੇ ॥
अगनत गुण ठाकुर प्रभ तेरे ॥
तेरे गुण असंख्य हैं।
ਮੋਹਿ ਅਨਾਥ ਤੁਮਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥
मोहि अनाथ तुमरी सरणाई ॥
मुझ अनाथ ने तेरी शरण ली है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਰਿ ਚਰਨ ਧਿਆਈ ॥੧॥
करि किरपा हरि चरन धिआई ॥१॥
हे श्री हरि ! ऐसी कृपा करो, ताकि मैं तेरे चरणों का ध्यान करता रहूँ॥ १॥
ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਬਸਹੁ ਮਨਿ ਆਇ ॥
दइआ करहु बसहु मनि आइ ॥
दया करो और मेरे मन में आ बसो।
ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨ ਲੀਜੈ ਲੜਿ ਲਾਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
मोहि निरगुन लीजै लड़ि लाइ ॥ रहाउ ॥
मुझ निर्गुण को अपने आंचल में लगा लीजिए॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਭੁ ਚਿਤਿ ਆਵੈ ਤਾ ਕੈਸੀ ਭੀੜ ॥
प्रभु चिति आवै ता कैसी भीड़ ॥
यदि प्रभु याद आ जाए तो कोई विपत्ति कैसे आ सकती है?
ਹਰਿ ਸੇਵਕ ਨਾਹੀ ਜਮ ਪੀੜ ॥
हरि सेवक नाही जम पीड़ ॥
हरि के सेवक को यम की पीड़ा सहन नहीं करनी पड़ती।
ਸਰਬ ਦੂਖ ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਨਸੇ ॥
सरब दूख हरि सिमरत नसे ॥
हरि का सिमरन करने से सर्व दुखों का नाश हो जाता है और
ਜਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਸਦਾ ਪ੍ਰਭੁ ਬਸੈ ॥੨॥
जा कै संगि सदा प्रभु बसै ॥२॥
उसके साथ प्रभु सदा बसता रहता है॥ २॥
ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਤਨਿ ਆਧਾਰੁ ॥
प्रभ का नामु मनि तनि आधारु ॥
प्रभु का नाम मेरे मन एवं तन का आसरा है।
ਬਿਸਰਤ ਨਾਮੁ ਹੋਵਤ ਤਨੁ ਛਾਰੁ ॥
बिसरत नामु होवत तनु छारु ॥
नाम विस्मृत होने से शरीर खाक हो जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਚਿਤਿ ਆਏ ਪੂਰਨ ਸਭ ਕਾਜ ॥
प्रभ चिति आए पूरन सभ काज ॥
प्रभु याद आने से सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं।
ਹਰਿ ਬਿਸਰਤ ਸਭ ਕਾ ਮੁਹਤਾਜ ॥੩॥
हरि बिसरत सभ का मुहताज ॥३॥
भगवान् को भुलाने से जीव सबका मोहताज बन जाता है॥ ३॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸੰਗਿ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
चरन कमल संगि लागी प्रीति ॥
प्रभु के चरण-कमल से मेरी प्रीति लग गई है और
ਬਿਸਰਿ ਗਈ ਸਭ ਦੁਰਮਤਿ ਰੀਤਿ ॥
बिसरि गई सभ दुरमति रीति ॥
सारी दुर्मति की रीति भूल गई है।
ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੰਤ ॥
मन तन अंतरि हरि हरि मंत ॥
मेरे मन एवं तन में हरि नाम रूपी मंत्र का जाप होता रहता है।
ਨਾਨਕ ਭਗਤਨ ਕੈ ਘਰਿ ਸਦਾ ਅਨੰਦ ॥੪॥੩॥
नानक भगतन कै घरि सदा अनंद ॥४॥३॥
हे नानक ! भक्तों के घर में सदैव आनंद कायम रहता है॥ ४॥ ३ ॥
ਰਾਗੁ ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਯਾਨੜੀਏ ਕੈ ਘਰਿ ਗਾਵਣਾ
रागु बिलावलु महला ५ घरु २ यानड़ीए कै घरि गावणा
रागु बिलावलु महला ५ घरु २ यानड़ीए कै घरि गावणा
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮੈ ਮਨਿ ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਮੈ ਮਨਿ ਤੇਰੀ ਟੇਕ ॥
मै मनि तेरी टेक मेरे पिआरे मै मनि तेरी टेक ॥
हे मेरे प्यारे प्रभु ! मेरे मन में एक तेरा ही सहारा है।
ਅਵਰ ਸਿਆਣਪਾ ਬਿਰਥੀਆ ਪਿਆਰੇ ਰਾਖਨ ਕਉ ਤੁਮ ਏਕ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अवर सिआणपा बिरथीआ पिआरे राखन कउ तुम एक ॥१॥ रहाउ ॥
मेरी अन्य समस्त चतुराइयों व्यर्थ हैं और एक तू ही मेरा रखवाला है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਜੇ ਮਿਲੈ ਪਿਆਰੇ ਸੋ ਜਨੁ ਹੋਤ ਨਿਹਾਲਾ ॥
सतिगुरु पूरा जे मिलै पिआरे सो जनु होत निहाला ॥
हे प्यारे ! जिसे पूर्ण सतगुरु मिल जाता है, वह आनंदित हो जाता है।
ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੋ ਕਰੇ ਪਿਆਰੇ ਜਿਸ ਨੋ ਹੋਇ ਦਇਆਲਾ ॥
गुर की सेवा सो करे पिआरे जिस नो होइ दइआला ॥
गुरु की सेवा वही करता है, जिस पर तू दयालु हो जाता है।
ਸਫਲ ਮੂਰਤਿ ਗੁਰਦੇਉ ਸੁਆਮੀ ਸਰਬ ਕਲਾ ਭਰਪੂਰੇ ॥
सफल मूरति गुरदेउ सुआमी सरब कला भरपूरे ॥
स्वामी गुरुदेव सफल मूर्त है और वह सर्वकला सम्पूर्ण है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਜੂਰੇ ॥੧॥
नानक गुरु पारब्रहमु परमेसरु सदा सदा हजूरे ॥१॥
हे नानक ! गुरु ही परब्रह्म परमेश्वर है जो सदा हर जगह हाजिर है॥ १॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਜੀਵਾ ਸੋਇ ਤਿਨਾ ਕੀ ਜਿਨੑ ਅਪੁਨਾ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਤਾ ॥
सुणि सुणि जीवा सोइ तिना की जिन्ह अपुना प्रभु जाता ॥
जिन्होंने अपने प्रभु को जान लिया है, मैं उनकी शोभा सुन-सुनकर जी रहा हूँ।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਹਿ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣਹਿ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਹੀ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ॥
हरि नामु अराधहि नामु वखाणहि हरि नामे ही मनु राता ॥
वे हरि-नाम की आराधना करते रहते हैं, नाम का बखान करते रहते हैं, और उनका मन हरि-नाम में लीन रहता है।
ਸੇਵਕੁ ਜਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ਮਾਗੈ ਪੂਰੈ ਕਰਮਿ ਕਮਾਵਾ ॥
सेवकु जन की सेवा मागै पूरै करमि कमावा ॥
हे प्रभु ! तेरा सेवक तेरे भक्तों की सेवा का दान माँगता है किन्तु तेरी पूर्ण कृपा से ही यह हो सकता है।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀ ਸੁਆਮੀ ਤੇਰੇ ਜਨ ਦੇਖਣੁ ਪਾਵਾ ॥੨॥
नानक की बेनंती सुआमी तेरे जन देखणु पावा ॥२॥
हे मेरे स्वामी ! नानक की तुझसे एक यही प्रार्थना है कि मैं तेरे भक्तजनों के दर्शन करूं ॥ २ ॥
ਵਡਭਾਗੀ ਸੇ ਕਾਢੀਅਹਿ ਪਿਆਰੇ ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਜਿਨਾ ਵਾਸੋ ॥
वडभागी से काढीअहि पिआरे संतसंगति जिना वासो ॥
हे प्यारे ! वही व्यक्ति भाग्यशाली कहलाने के हकदार हैं, जिनका निवास संतों की संगति में है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਅਰਾਧੀਐ ਨਿਰਮਲੁ ਮਨੈ ਹੋਵੈ ਪਰਗਾਸੋ ॥
अम्रित नामु अराधीऐ निरमलु मनै होवै परगासो ॥
अमृत-नाम की आराधना करने से निर्मल मन में प्रकाश हो जाता है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਕਾਟੀਐ ਪਿਆਰੇ ਚੂਕੈ ਜਮ ਕੀ ਕਾਣੇ ॥
जनम मरण दुखु काटीऐ पिआरे चूकै जम की काणे ॥
हे मेरे प्यारे ! उनका जन्म-मरण का दुख नाश हो जाता है और यम का सारा भय समाप्त हो जाता है।
ਤਿਨਾ ਪਰਾਪਤਿ ਦਰਸਨੁ ਨਾਨਕ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਅਪਣੇ ਭਾਣੇ ॥੩॥
तिना परापति दरसनु नानक जो प्रभ अपणे भाणे ॥३॥
हे नानक ! जो जीव अपने प्रभु को भाता है, उसे ही उसके दर्शन प्राप्त होते हैं।॥ ३॥
ਊਚ ਅਪਾਰ ਬੇਅੰਤ ਸੁਆਮੀ ਕਉਣੁ ਜਾਣੈ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ॥
ऊच अपार बेअंत सुआमी कउणु जाणै गुण तेरे ॥
हे मेरे स्वामी ! तू उच्च, अपार एवं बेअंत है, तेरे गुणों को कौन जानता है ?
ਗਾਵਤੇ ਉਧਰਹਿ ਸੁਣਤੇ ਉਧਰਹਿ ਬਿਨਸਹਿ ਪਾਪ ਘਨੇਰੇ ॥
गावते उधरहि सुणते उधरहि बिनसहि पाप घनेरे ॥
तेरा यश गाने एवं सुनने वालों का उद्धार हो जाता है तथा उनके अनेक पाप विनष्ट हो जाते हैं।
ਪਸੂ ਪਰੇਤ ਮੁਗਧ ਕਉ ਤਾਰੇ ਪਾਹਨ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੈ ॥
पसू परेत मुगध कउ तारे पाहन पारि उतारै ॥
तू पशु, प्रेत एवं मूर्खों का भी कल्याण कर देता है और तू पत्थरों को भी पार करवा देता है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਬਲਿਹਾਰੈ ॥੪॥੧॥੪॥
नानक दास तेरी सरणाई सदा सदा बलिहारै ॥४॥१॥४॥
दास नानक तेरी शरण में आया है और सदा तुझ पर ही बलिहारी जाता है॥ ४॥ १॥ ४॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਬਿਖੈ ਬਨੁ ਫੀਕਾ ਤਿਆਗਿ ਰੀ ਸਖੀਏ ਨਾਮੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਪੀਓ ॥
बिखै बनु फीका तिआगि री सखीए नामु महा रसु पीओ ॥
हे सखी ! विषय-विकारों का फीका रस छोड़ दे और हरि-नाम महारस का ही पान करो।
ਬਿਨੁ ਰਸ ਚਾਖੇ ਬੁਡਿ ਗਈ ਸਗਲੀ ਸੁਖੀ ਨ ਹੋਵਤ ਜੀਓ ॥
बिनु रस चाखे बुडि गई सगली सुखी न होवत जीओ ॥
इस नाम-रस को चखे बिना सारी दुनिया विकारों के जल में डूब गई है और यह मन कभी सुखी नहीं होता।
ਮਾਨੁ ਮਹਤੁ ਨ ਸਕਤਿ ਹੀ ਕਾਈ ਸਾਧਾ ਦਾਸੀ ਥੀਓ ॥
मानु महतु न सकति ही काई साधा दासी थीओ ॥
कोई मान, महत्व एवं शक्ति सुखी होने का साधन नहीं है, इसलिए साधुओं की दासी बन जाओ।