ਸਚੁ ਸਚਾ ਰਸੁ ਜਿਨੀ ਚਖਿਆ ਸੇ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਰਹੇ ਆਘਾਈ ॥
सचु सचा रसु जिनी चखिआ से त्रिपति रहे आघाई ॥
जिन्होंने सत्यनाम रूपी रस चखा है, ये तृप्त होकर शांत हो गए हैं।
ਇਹੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਸੇਈ ਜਾਣਦੇ ਜਿਉ ਗੂੰਗੈ ਮਿਠਿਆਈ ਖਾਈ ॥
इहु हरि रसु सेई जाणदे जिउ गूंगै मिठिआई खाई ॥
इस हरि-रस के आनंद को वहीं गुरमुख जानते हैं, जिन्होंने यह रस चखा है। जैसे गूंगे की खाई हुई मिठाई के स्वाद को वह गूंगा ही जानता है, अन्य कोई नहीं जान सकता।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੇਵਿਆ ਮਨਿ ਵਜੀ ਵਾਧਾਈ ॥੧੮॥
गुरि पूरै हरि प्रभु सेविआ मनि वजी वाधाई ॥१८॥
जिन्होंने पूर्ण गुरु के द्वारा हरि-प्रभु की आराधना की है, उनके मन में आनंद की शुभकामनाएँ प्रगट हुई हैं।॥ १८॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४ II
ਜਿਨਾ ਅੰਦਰਿ ਉਮਰਥਲ ਸੇਈ ਜਾਣਨਿ ਸੂਲੀਆ ॥
जिना अंदरि उमरथल सेई जाणनि सूलीआ ॥
जिस तरह जिनके शरीर में फोड़ा है, उसकी पीड़ा को वही व्यक्ति जानते हैं।
ਹਰਿ ਜਾਣਹਿ ਸੇਈ ਬਿਰਹੁ ਹਉ ਤਿਨ ਵਿਟਹੁ ਸਦ ਘੁਮਿ ਘੋਲੀਆ ॥
हरि जाणहि सेई बिरहु हउ तिन विटहु सद घुमि घोलीआ ॥
वैसे ही जिन जिज्ञासुओं के भीतर भगवान की जुदाई है, उस जुदाई की पीड़ा को वहीं जानते हैं। मैं उन पर हमेशा ही न्यौछावर हूँ, जो ईश्वर से जुदाई की पीड़ा को जानते हैं।
ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸਜਣੁ ਪੁਰਖੁ ਮੇਰਾ ਸਿਰੁ ਤਿਨ ਵਿਟਹੁ ਤਲ ਰੋਲੀਆ ॥
हरि मेलहु सजणु पुरखु मेरा सिरु तिन विटहु तल रोलीआ ॥
हे प्रभु ! मुझे किसी ऐसे (गुरु) सृज्जन महापुरुष से मिला दे। जिनके लिए मेरा सिर उनके पैरों के नीचे झुक जाए।
ਜੋ ਸਿਖ ਗੁਰ ਕਾਰ ਕਮਾਵਹਿ ਹਉ ਗੁਲਮੁ ਤਿਨਾ ਕਾ ਗੋਲੀਆ ॥
जो सिख गुर कार कमावहि हउ गुलमु तिना का गोलीआ ॥
जो सिक्ख गुरु की बताई हुई करनी करते हैं, मैं उनके गुलामों का गुलाम हूँ।
ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਚਲੂਲੈ ਜੋ ਰਤੇ ਤਿਨ ਭਿਨੀ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਚੋਲੀਆ ॥
हरि रंगि चलूलै जो रते तिन भिनी हरि रंगि चोलीआ ॥
जिनके हृदय प्रभु नाम के गहरे रंग में रंगे हैं, उनके चोले (अर्थात् शरीर) प्रभु-प्रेम में भीगे हुए होते हैं।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਨਕ ਮੇਲਿ ਗੁਰ ਪਹਿ ਸਿਰੁ ਵੇਚਿਆ ਮੋਲੀਆ ॥੧॥
करि किरपा नानक मेलि गुर पहि सिरु वेचिआ मोलीआ ॥१॥
हे नानक ! भगवान ने दया करके उन्हें गुरु से मिलाया है और उन्होंने अपना सिर गुरु के समक्ष बेच दिया है॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਅਉਗਣੀ ਭਰਿਆ ਸਰੀਰੁ ਹੈ ਕਿਉ ਸੰਤਹੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥
अउगणी भरिआ सरीरु है किउ संतहु निरमलु होइ ॥
हे संतजनों ! यह शरीर अवगुणों से भरा हुआ है, यह कैसे पवित्र हो सकता है?
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗੁਣ ਵੇਹਾਝੀਅਹਿ ਮਲੁ ਹਉਮੈ ਕਢੈ ਧੋਇ ॥
गुरमुखि गुण वेहाझीअहि मलु हउमै कढै धोइ ॥
यदि गुरमुख बनकर गुण खरीदे जाएँ तो अहंकार रूपी मैल को निकाल कर यह शरीर निर्मल हो सकता है।
ਸਚੁ ਵਣੰਜਹਿ ਰੰਗ ਸਿਉ ਸਚੁ ਸਉਦਾ ਹੋਇ ॥
सचु वणंजहि रंग सिउ सचु सउदा होइ ॥
जो मनुष्य प्रेम-पूर्वक सत्य को खरीदते हैं, इनका यह सौदा सदा साथ निभाता है,
ਤੋਟਾ ਮੂਲਿ ਨ ਆਵਈ ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਸੋਇ ॥
तोटा मूलि न आवई लाहा हरि भावै सोइ ॥
“(इस सौदे में) घाटा कभी नहीं होता और जिस तरह प्रभु की इच्छा होती है, वह लाभ प्राप्त करता है।
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਸਚੁ ਵਣੰਜਿਆ ਜਿਨਾ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੨॥
नानक तिन सचु वणंजिआ जिना धुरि लिखिआ परापति होइ ॥२॥
हे नानक ! सत्य नाम की खरीद वहीं मनुष्य करते हैं, जिनकी किस्मत में आदि से ही लिखा होता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਸਾਲਾਹੀ ਸਚੁ ਸਾਲਾਹਣਾ ਸਚੁ ਸਚਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਾਲੇ ॥
सालाही सचु सालाहणा सचु सचा पुरखु निराले ॥
मैं उस सराहनीय सत्य प्रभु की महिमा-स्तुति करता हूँ। सत्यस्वरूप भगवान सत्य ही निराला है।
ਸਚੁ ਸੇਵੀ ਸਚੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਚੁ ਸਚਾ ਹਰਿ ਰਖਵਾਲੇ ॥
सचु सेवी सचु मनि वसै सचु सचा हरि रखवाले ॥
सद्पुरुष की सेवा करने से सत्य हृदय में बस जाता है। सत्य का पुंज हरि सबका रक्षक है।
ਸਚੁ ਸਚਾ ਜਿਨੀ ਅਰਾਧਿਆ ਸੇ ਜਾਇ ਰਲੇ ਸਚ ਨਾਲੇ ॥
सचु सचा जिनी अराधिआ से जाइ रले सच नाले ॥
जिन्होंने सचमुच सच्चे हरि की आराधना की है, वे उस सच्चे के साथ विलीन हो गए हैं।
ਸਚੁ ਸਚਾ ਜਿਨੀ ਨ ਸੇਵਿਆ ਸੇ ਮਨਮੁਖ ਮੂੜ ਬੇਤਾਲੇ ॥
सचु सचा जिनी न सेविआ से मनमुख मूड़ बेताले ॥
जो सत्यस्वरूप हरि की सेवा नहीं करते, वे मनमुख मूर्ख एवं बेताल (भूत) हैं।
ਓਹ ਆਲੁ ਪਤਾਲੁ ਮੁਹਹੁ ਬੋਲਦੇ ਜਿਉ ਪੀਤੈ ਮਦਿ ਮਤਵਾਲੇ ॥੧੯॥
ओह आलु पतालु मुहहु बोलदे जिउ पीतै मदि मतवाले ॥१९॥
शराब पीकर धुत हुए शराबी की भाँति वे अपने मुख से बकवास करते हैं।॥ १९॥
ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੩ ॥
सलोक महला ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਗਉੜੀ ਰਾਗਿ ਸੁਲਖਣੀ ਜੇ ਖਸਮੈ ਚਿਤਿ ਕਰੇਇ ॥
गउड़ी रागि सुलखणी जे खसमै चिति करेइ ॥
गउड़ी रागिनी तो ही सुलक्षणा है, यदि वह मालिक प्रभु को चित्त में बसा ले।
ਭਾਣੈ ਚਲੈ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕੈ ਐਸਾ ਸੀਗਾਰੁ ਕਰੇਇ ॥
भाणै चलै सतिगुरू कै ऐसा सीगारु करेइ ॥
वह सतिगुरु की इच्छानुसार चले, ऐसा हार-श्रृंगार उसके लिए करना उचित है।
ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਭਤਾਰੁ ਹੈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਰਾਵੇਇ ॥
सचा सबदु भतारु है सदा सदा रावेइ ॥
सच्चा शब्द प्राणी का कंत (पति) है, हमेशा उसे उसी का आनंद लेना चाहिए।
ਜਿਉ ਉਬਲੀ ਮਜੀਠੈ ਰੰਗੁ ਗਹਗਹਾ ਤਿਉ ਸਚੇ ਨੋ ਜੀਉ ਦੇਇ ॥
जिउ उबली मजीठै रंगु गहगहा तिउ सचे नो जीउ देइ ॥
जैसे मजीठ उबाल सहन करती है एवं उसका रंग गहरा लाल हो जाता है, वैसे ही (जीव रूपी स्त्री) अपनी आत्मा कंत (पति) पर न्योछावर करे,
ਰੰਗਿ ਚਲੂਲੈ ਅਤਿ ਰਤੀ ਸਚੇ ਸਿਉ ਲਗਾ ਨੇਹੁ ॥
रंगि चलूलै अति रती सचे सिउ लगा नेहु ॥
तो उसका सत्यस्वरूप परमात्मा के साथ प्रेम हो जाता है, वह (नाम के) गहरे रंग में रंग जाती है।
ਕੂੜੁ ਠਗੀ ਗੁਝੀ ਨਾ ਰਹੈ ਕੂੜੁ ਮੁਲੰਮਾ ਪਲੇਟਿ ਧਰੇਹੁ ॥
कूड़ु ठगी गुझी ना रहै कूड़ु मुलमा पलेटि धरेहु ॥
मिथ्या (रूपी) मुलम्मा (निसंदेह सत्य के साथ) लपेट कर रखो,
ਕੂੜੀ ਕਰਨਿ ਵਡਾਈਆ ਕੂੜੇ ਸਿਉ ਲਗਾ ਨੇਹੁ ॥
कूड़ी करनि वडाईआ कूड़े सिउ लगा नेहु ॥
“(फिर भी) जो झूठ एवं ठगी है, वे छिपे नहीं रह सकते जिनका झूठ से प्रेम होता है। वह दुनिया की झूठी ही प्रशंसा करते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਆਪਿ ਹੈ ਆਪੇ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥੧॥
नानक सचा आपि है आपे नदरि करेइ ॥१॥
हे नानक ! ईश्वर ही सत्य है और वह स्वयं ही अपनी कृपा की दृष्टि करता है॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਹਿ ਹਰਿ ਉਸਤਤਿ ਹੈ ਸੰਗਿ ਸਾਧੂ ਮਿਲੇ ਪਿਆਰਿਆ ॥
सतसंगति महि हरि उसतति है संगि साधू मिले पिआरिआ ॥
सत्संग में प्रभु की गुणस्तुति होती है, (क्योंकि) संतों की संगति करने से ही प्रियतम मिलता है।
ਓਇ ਪੁਰਖ ਪ੍ਰਾਣੀ ਧੰਨਿ ਜਨ ਹਹਿ ਉਪਦੇਸੁ ਕਰਹਿ ਪਰਉਪਕਾਰਿਆ ॥
ओइ पुरख प्राणी धंनि जन हहि उपदेसु करहि परउपकारिआ ॥
वे पुरुष-प्राणी भाग्यवान हैं (क्योंकि) वे परोपकार हेतु उपदेश करते हैं।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਵਹਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸੁਣਾਵਹਿ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਜਗੁ ਨਿਸਤਾਰਿਆ ॥
हरि नामु द्रिड़ावहि हरि नामु सुणावहि हरि नामे जगु निसतारिआ ॥
ईश्वर के नाम में आस्था रखते हैं, ईश्वर का नाम ही सुनाते हैं और ईश्वर के नाम के द्वारा ही संसार का कल्याण करते हैं।
ਗੁਰ ਵੇਖਣ ਕਉ ਸਭੁ ਕੋਈ ਲੋਚੈ ਨਵ ਖੰਡ ਜਗਤਿ ਨਮਸਕਾਰਿਆ ॥
गुर वेखण कउ सभु कोई लोचै नव खंड जगति नमसकारिआ ॥
हरेक जीव गुरु के दर्शनों की अभिलाषा करता है और संसार में नवखण्ड के जीव सतिगुरु के समक्ष प्रणाम करते हैं।
ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਆਪੁ ਰਖਿਆ ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਚਿ ਗੁਰੁ ਆਪੇ ਤੁਧੁ ਸਵਾਰਿਆ ॥
तुधु आपे आपु रखिआ सतिगुर विचि गुरु आपे तुधु सवारिआ ॥
हे भगवान ! तूने अपना आप सतिगुरु में छिपा रखा है और तूने स्वयं ही गुरु को सुन्दर बनाया है।
ਤੂ ਆਪੇ ਪੂਜਹਿ ਪੂਜ ਕਰਾਵਹਿ ਸਤਿਗੁਰ ਕਉ ਸਿਰਜਣਹਾਰਿਆ ॥
तू आपे पूजहि पूज करावहि सतिगुर कउ सिरजणहारिआ ॥
हे सतिगुरु को पैदा करने वाले परमात्मा ! तुम स्वयं सतिगुरु की पूजा करते हो और दूसरों से उनकी पूजा करवाते हो।
ਕੋਈ ਵਿਛੁੜਿ ਜਾਇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਪਾਸਹੁ ਤਿਸੁ ਕਾਲਾ ਮੁਹੁ ਜਮਿ ਮਾਰਿਆ ॥
कोई विछुड़ि जाइ सतिगुरू पासहु तिसु काला मुहु जमि मारिआ ॥
यदि कोई मनुष्य सतिगुरु से बिछुड़ जाए, उसका मुंह काला होता है और यमराज से उसे बड़ी मार पड़ती है।