ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਸੁਖ ਸਮੂਹਾ ਭੋਗ ਭੂਮਿ ਸਬਾਈ ਕੋ ਧਣੀ ॥
सुख समूहा भोग भूमि सबाई को धणी ॥
अगर कोई मनुष्य समूची धरती का मालिक बन जाए, समस्त सुख भोगता रहे,
ਨਾਨਕ ਹਭੋ ਰੋਗੁ ਮਿਰਤਕ ਨਾਮ ਵਿਹੂਣਿਆ ॥੨॥
नानक हभो रोगु मिरतक नाम विहूणिआ ॥२॥
मगर हे नानक ! परमात्मा के नाम बिना यह सब रोग ही हैं और वह एक मृतक समान हैं।॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला २॥
ਹਿਕਸ ਕੂੰ ਤੂ ਆਹਿ ਪਛਾਣੂ ਭੀ ਹਿਕੁ ਕਰਿ ॥
हिकस कूं तू आहि पछाणू भी हिकु करि ॥
हे जीव ! ईश्वर को ही तू चाह, उसे ही अपना शुभचिंतक बना।
ਨਾਨਕ ਆਸੜੀ ਨਿਬਾਹਿ ਮਾਨੁਖ ਪਰਥਾਈ ਲਜੀਵਦੋ ॥੩॥
नानक आसड़ी निबाहि मानुख परथाई लजीवदो ॥३॥
हे नानक ! वह हर आशा पूरी करने वाला है, किसी मनुष्य से माँगने पर तो लज्जित होना पड़ता है॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਨਿਹਚਲੁ ਏਕੁ ਨਰਾਇਣੋ ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਗਾਧਾ ॥
निहचलु एकु नराइणो हरि अगम अगाधा ॥
केवल ईश्वर ही निश्चल है, अगम्य एवं असीम है।
ਨਿਹਚਲੁ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਹਰਿ ਲਾਧਾ ॥
निहचलु नामु निधानु है जिसु सिमरत हरि लाधा ॥
नाम-रूपी सुखों की निधि निश्चल है, जिसे स्मरण करने से भगवान् मिल जाता है।
ਨਿਹਚਲੁ ਕੀਰਤਨੁ ਗੁਣ ਗੋਬਿੰਦ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਾਵਾਧਾ ॥
निहचलु कीरतनु गुण गोबिंद गुरमुखि गावाधा ॥
प्रभु का कीर्तिगान सदा स्थिर रहने वाला है, गुरुमुख प्रभु के ही गुण गाता है।
ਸਚੁ ਧਰਮੁ ਤਪੁ ਨਿਹਚਲੋ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਅਰਾਧਾ ॥
सचु धरमु तपु निहचलो दिनु रैनि अराधा ॥
सत्य, धर्म एवं तप सदैव रहने वाला है, दिन-रात परमात्मा की आराधना करो।
ਦਇਆ ਧਰਮੁ ਤਪੁ ਨਿਹਚਲੋ ਜਿਸੁ ਕਰਮਿ ਲਿਖਾਧਾ ॥
दइआ धरमु तपु निहचलो जिसु करमि लिखाधा ॥
निश्चल दया, धर्म एवं तप उसे ही मिलता है, जिसके भाग्य में लिखा होता है।
ਨਿਹਚਲੁ ਮਸਤਕਿ ਲੇਖੁ ਲਿਖਿਆ ਸੋ ਟਲੈ ਨ ਟਲਾਧਾ ॥
निहचलु मसतकि लेखु लिखिआ सो टलै न टलाधा ॥
माथे पर लिखा हुआ भाग्य सदा अटल है, वह टालने पर भी टाला नहीं जा सकता।
ਨਿਹਚਲ ਸੰਗਤਿ ਸਾਧ ਜਨ ਬਚਨ ਨਿਹਚਲੁ ਗੁਰ ਸਾਧਾ ॥
निहचल संगति साध जन बचन निहचलु गुर साधा ॥
साधु महापुरुषों की संगति एवं गुरु-साधु का वचन सदा अटल है।
ਜਿਨ ਕਉ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਤਿਨ ਸਦਾ ਸਦਾ ਆਰਾਧਾ ॥੧੯॥
जिन कउ पूरबि लिखिआ तिन सदा सदा आराधा ॥१९॥
जिनके भाग्य में प्रारम्भ से लिखा हुआ है, उन्होंने सदा भगवान् की आराधना की है॥ १६॥
ਸਲੋਕ ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
सलोक डखणे मः ५ ॥
श्लोक डखणे महला ५॥
ਜੋ ਡੁਬੰਦੋ ਆਪਿ ਸੋ ਤਰਾਏ ਕਿਨੑ ਖੇ ॥
जो डुबंदो आपि सो तराए किन्ह खे ॥
जो स्वयं डूब रहा है, वह किसी अन्य को कैसे पार करवा सकता है।
ਤਾਰੇਦੜੋ ਭੀ ਤਾਰਿ ਨਾਨਕ ਪਿਰ ਸਿਉ ਰਤਿਆ ॥੧॥
तारेदड़ो भी तारि नानक पिर सिउ रतिआ ॥१॥
हे नानक ! ईश्वर की स्मृति में लीन रहने वाला खुद तो जगत् से तैरता ही है, दूसरों का भी उद्धार करवा देता है।॥१॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਜਿਥੈ ਕੋਇ ਕਥੰਨਿ ਨਾਉ ਸੁਣੰਦੋ ਮਾ ਪਿਰੀ ॥
जिथै कोइ कथंनि नाउ सुणंदो मा पिरी ॥
जहाँ कोई मेरे प्रियतम का नाम कथन करता या सुनता है, मैं वहाँ चला जाता हूँ,
ਮੂੰ ਜੁਲਾਊਂ ਤਥਿ ਨਾਨਕ ਪਿਰੀ ਪਸੰਦੋ ਹਰਿਓ ਥੀਓਸਿ ॥੨॥
मूं जुलाऊं तथि नानक पिरी पसंदो हरिओ थीओसि ॥२॥
हे नानक ! मुझे प्रियतम प्रभु इतना पसंद है कि उसके दर्शन से ही फूल की तरह खिल जाता हँ॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਿਆ ਕਰਹਿ ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਸਨੇਹ ॥
मेरी मेरी किआ करहि पुत्र कलत्र सनेह ॥
हे जीव ! पुत्र एवं पत्नी के स्नेह में फँसकर तू क्यों कहता है कि यह मेरी (पत्नी) है, यह मेरा (पुत्र) है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਵਿਹੂਣੀਆ ਨਿਮੁਣੀਆਦੀ ਦੇਹ ॥੩॥
नानक नाम विहूणीआ निमुणीआदी देह ॥३॥
हे नानक ! परमात्मा के नाम से विहीन शरीर की कोई मजबूत नीव नहीं होती अर्थात् कभी भी नाश हो सकती है॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਨੈਨੀ ਦੇਖਉ ਗੁਰ ਦਰਸਨੋ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਮਥਾ ॥
नैनी देखउ गुर दरसनो गुर चरणी मथा ॥
इन आँखों से गुरु का दर्शन करता हूँ, गुरु-चरणों में शीश निवाता हूँ।
ਪੈਰੀ ਮਾਰਗਿ ਗੁਰ ਚਲਦਾ ਪਖਾ ਫੇਰੀ ਹਥਾ ॥
पैरी मारगि गुर चलदा पखा फेरी हथा ॥
अपने पैरों से गुरु के मार्ग पर चलता और हाथों से उसे पंखा झुलाता हूँ।
ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਰਿਦੈ ਧਿਆਇਦਾ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਜਪੰਥਾ ॥
अकाल मूरति रिदै धिआइदा दिनु रैनि जपंथा ॥
हृदय में अकालमूर्ति (ईश्वर) का मनन करता हूँ और दिन-रात उसका जाप करने में लीन हूँ।
ਮੈ ਛਡਿਆ ਸਗਲ ਅਪਾਇਣੋ ਭਰਵਾਸੈ ਗੁਰ ਸਮਰਥਾ ॥
मै छडिआ सगल अपाइणो भरवासै गुर समरथा ॥
समर्थ गुरु के भरोसे पर मैंने अपनापन छोड़ दिया है।
ਗੁਰਿ ਬਖਸਿਆ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਸਭੋ ਦੁਖੁ ਲਥਾ ॥
गुरि बखसिआ नामु निधानु सभो दुखु लथा ॥
गुरु ने मुझे हरि-नाम रूपी सुखों का भण्डार प्रदान किया है, जिससे सारा दुख दूर हो गया है।
ਭੋਗਹੁ ਭੁੰਚਹੁ ਭਾਈਹੋ ਪਲੈ ਨਾਮੁ ਅਗਥਾ ॥
भोगहु भुंचहु भाईहो पलै नामु अगथा ॥
हे मेरे भाइयो ! अकथ प्रभु का नाम मेरे पास है, आप भी उसे सेवन करो एवं आनंद प्राप्त करो।
ਨਾਮੁ ਦਾਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ਦਿੜੁ ਸਦਾ ਕਰਹੁ ਗੁਰ ਕਥਾ ॥
नामु दानु इसनानु दिड़ु सदा करहु गुर कथा ॥
सदा गुरु की कथा करो, नाम, दान एवं स्नान-इन शुभ कर्मो को हृदय में बसा लो।
ਸਹਜੁ ਭਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਜਮ ਕਾ ਭਉ ਲਥਾ ॥੨੦॥
सहजु भइआ प्रभु पाइआ जम का भउ लथा ॥२०॥
प्रभु को पाकर मन में परमानंद उत्पन्न हो गया है और यम का भय भी दूर हो गया है॥ २०॥
ਸਲੋਕ ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
सलोक डखणे मः ५ ॥
श्लोक डखणे महला ५॥
ਲਗੜੀਆ ਪਿਰੀਅੰਨਿ ਪੇਖੰਦੀਆ ਨਾ ਤਿਪੀਆ ॥
लगड़ीआ पिरीअंनि पेखंदीआ ना तिपीआ ॥
ये ऑखें तो प्रभु से ही लग चुकी हैं और उसे देखकर तृप्त नहीं होती।
ਹਭ ਮਝਾਹੂ ਸੋ ਧਣੀ ਬਿਆ ਨ ਡਿਠੋ ਕੋਇ ॥੧॥
हभ मझाहू सो धणी बिआ न डिठो कोइ ॥१॥
वह मालिक सब में मौजूद है, उसके अतिरिक्त अन्य कोई दृष्टिगत नहीं होता।॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਕਥੜੀਆ ਸੰਤਾਹ ਤੇ ਸੁਖਾਊ ਪੰਧੀਆ ॥
कथड़ीआ संताह ते सुखाऊ पंधीआ ॥
संत-महापुरुषों की कथाएँ सुखदायक रास्ते हैं,
ਨਾਨਕ ਲਧੜੀਆ ਤਿੰਨਾਹ ਜਿਨਾ ਭਾਗੁ ਮਥਾਹੜੈ ॥੨॥
नानक लधड़ीआ तिंनाह जिना भागु मथाहड़ै ॥२॥
हे नानक ! ये (शिक्षादायक कथाएँ) उन्हें ही मिलती हैं, जिनका उत्तम भाग्य होता है॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਡੂੰਗਰਿ ਜਲਾ ਥਲਾ ਭੂਮਿ ਬਨਾ ਫਲ ਕੰਦਰਾ ॥
डूंगरि जला थला भूमि बना फल कंदरा ॥
पहाड़ों, सरोवर, मारूस्थल, भूमि, वन, फल, गुफाओं,
ਪਾਤਾਲਾ ਆਕਾਸ ਪੂਰਨੁ ਹਭ ਘਟਾ ॥
पाताला आकास पूरनु हभ घटा ॥
आकाश, पाताल में सब ईश्वर ही व्याप्त है।
ਨਾਨਕ ਪੇਖਿ ਜੀਓ ਇਕਤੁ ਸੂਤਿ ਪਰੋਤੀਆ ॥੩॥
नानक पेखि जीओ इकतु सूति परोतीआ ॥३॥
हे नानक ! हम तो उसे देखकर ही जी रहे हैं, जिसने सबको एक सूत्र में पिरोया हुआ है।॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਹਰਿ ਜੀ ਮਾਤਾ ਹਰਿ ਜੀ ਪਿਤਾ ਹਰਿ ਜੀਉ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕ ॥
हरि जी माता हरि जी पिता हरि जीउ प्रतिपालक ॥
परमात्मा ही हमारा माता-पेिता है और वही हमारा प्रतिपालक है।
ਹਰਿ ਜੀ ਮੇਰੀ ਸਾਰ ਕਰੇ ਹਮ ਹਰਿ ਕੇ ਬਾਲਕ ॥
हरि जी मेरी सार करे हम हरि के बालक ॥
वही मेरी देखभाल करता है और हम उसके ही बालक हैं।
ਸਹਜੇ ਸਹਜਿ ਖਿਲਾਇਦਾ ਨਹੀ ਕਰਦਾ ਆਲਕ ॥
सहजे सहजि खिलाइदा नही करदा आलक ॥
वह सहज-स्वभाव ही जीवन रूपी खेल खेलाता है और इसमें वह कभी आलस्य नहीं करता।
ਅਉਗਣੁ ਕੋ ਨ ਚਿਤਾਰਦਾ ਗਲ ਸੇਤੀ ਲਾਇਕ ॥
अउगणु को न चितारदा गल सेती लाइक ॥
वह मेरा कोई भी अवगुण याद नहीं करता, अपितु अपने गले से लगा लेता है।
ਮੁਹਿ ਮੰਗਾਂ ਸੋਈ ਦੇਵਦਾ ਹਰਿ ਪਿਤਾ ਸੁਖਦਾਇਕ ॥
मुहि मंगां सोई देवदा हरि पिता सुखदाइक ॥
जो कुछ भी मुँह से माँगता हूँ वही दे देता है, मेरा हरि पिता सब सुख देने वाला है?