ਸ੍ਰੀਰਾਗ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਬੇਣੀ ਜੀਉ ਕੀ ॥
स्रीराग बाणी भगत बेणी जीउ की ॥
श्री राग बाणी भगत बेणी जीउ की ॥
ਪਹਰਿਆ ਕੈ ਘਰਿ ਗਾਵਣਾ ॥
पहरिआ कै घरि गावणा ॥
(प्रस्तुत पद को पहरे वाणी के स्वर में गाने का आदेश दिया गया है।)
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰੇ ਨਰ ਗਰਭ ਕੁੰਡਲ ਜਬ ਆਛਤ ਉਰਧ ਧਿਆਨ ਲਿਵ ਲਾਗਾ ॥
रे नर गरभ कुंडल जब आछत उरध धिआन लिव लागा ॥
हे मानव ! जब तुम मातृ-गर्भ में थे तो सिर के बल खड़े होकर ईश्वर के स्मरण में लीन थे।
ਮਿਰਤਕ ਪਿੰਡਿ ਪਦ ਮਦ ਨਾ ਅਹਿਨਿਸਿ ਏਕੁ ਅਗਿਆਨ ਸੁ ਨਾਗਾ ॥
मिरतक पिंडि पद मद ना अहिनिसि एकु अगिआन सु नागा ॥
उस समय तुझे पार्थिव देह की गरिमा का अहंकार नहीं था और अज्ञानी एवं पूर्ण विहीन होने के कारण तुम दिन-रात एक हरि की आराधना करते थे।
ਤੇ ਦਿਨ ਸੰਮਲੁ ਕਸਟ ਮਹਾ ਦੁਖ ਅਬ ਚਿਤੁ ਅਧਿਕ ਪਸਾਰਿਆ ॥
ते दिन समलु कसट महा दुख अब चितु अधिक पसारिआ ॥
कष्ट एवं दुखों के वह दिन स्मरण कर, अब तुमने अपने मन के जाल को अत्याधिक फैला लिया है।
ਗਰਭ ਛੋਡਿ ਮ੍ਰਿਤ ਮੰਡਲ ਆਇਆ ਤਉ ਨਰਹਰਿ ਮਨਹੁ ਬਿਸਾਰਿਆ ॥੧॥
गरभ छोडि म्रित मंडल आइआ तउ नरहरि मनहु बिसारिआ ॥१॥
जब से गर्भ को त्याग कर तू इस नश्वर संसार में आया है, तब से तूने हे मानव ! ईश्वर को अपने मन से विस्मृत कर दिया ॥१॥
ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਵਹਿਗਾ ਮੂੜਿਆ ਤੂੰ ਕਵਨ ਕੁਮਤਿ ਭ੍ਰਮਿ ਲਾਗਾ ॥
फिरि पछुतावहिगा मूड़िआ तूं कवन कुमति भ्रमि लागा ॥
हे मूर्ख ! तुम्हें फिर पछताना पड़ेगा, क्यों भ्रम में पड़कर तुम कुमति कर रहे हो।
ਚੇਤਿ ਰਾਮੁ ਨਾਹੀ ਜਮ ਪੁਰਿ ਜਾਹਿਗਾ ਜਨੁ ਬਿਚਰੈ ਅਨਰਾਧਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चेति रामु नाही जम पुरि जाहिगा जनु बिचरै अनराधा ॥१॥ रहाउ ॥
राम का चिन्तन कर, अन्यथा यमपुरी जाओगे, हे मानव ! मूखों की भाँति क्यों भटकते फिरते हो? ॥१॥रहाउ॥
ਬਾਲ ਬਿਨੋਦ ਚਿੰਦ ਰਸ ਲਾਗਾ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਮੋਹਿ ਬਿਆਪੈ ॥
बाल बिनोद चिंद रस लागा खिनु खिनु मोहि बिआपै ॥
तू अपने बचपन में मनपसंद क्रीड़ाओं-विनोद के स्वाद में लीन रहा है, तुझे क्षण-क्षण उनका मोह उलझा रहा था।
ਰਸੁ ਮਿਸੁ ਮੇਧੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਬਿਖੁ ਚਾਖੀ ਤਉ ਪੰਚ ਪ੍ਰਗਟ ਸੰਤਾਪੈ ॥
रसु मिसु मेधु अम्रितु बिखु चाखी तउ पंच प्रगट संतापै ॥
अब युवावस्था में तू विष रूप माया के रसों को पवित्र समझ कर भोग रहा है; इसलिए काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार पांचों विकार तुझे दुखी कर रहे हैं।
ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਛੋਡਿ ਸੁਕ੍ਰਿਤ ਮਤਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨ ਅਰਾਧਿਆ ॥
जपु तपु संजमु छोडि सुक्रित मति राम नामु न अराधिआ ॥
तूने जप, तप, संयम एवं शुभ कर्मों वाली बुद्धि छोड़ दी है; तू राम नाम की आराधना भी नहीं करता।
ਉਛਲਿਆ ਕਾਮੁ ਕਾਲ ਮਤਿ ਲਾਗੀ ਤਉ ਆਨਿ ਸਕਤਿ ਗਲਿ ਬਾਂਧਿਆ ॥੨॥
उछलिआ कामु काल मति लागी तउ आनि सकति गलि बांधिआ ॥२॥
तेरे अन्तर्मन में कामवासना का वेग तरंगें मार रहा है; तुझे काल रूपी बुद्धि आ लगी है अब तूने कामपिपासा हेतु स्त्री को लाकर अपने गले लगा लिया है॥ २॥
ਤਰੁਣ ਤੇਜੁ ਪਰ ਤ੍ਰਿਅ ਮੁਖੁ ਜੋਹਹਿ ਸਰੁ ਅਪਸਰੁ ਨ ਪਛਾਣਿਆ ॥
तरुण तेजु पर त्रिअ मुखु जोहहि सरु अपसरु न पछाणिआ ॥
यौवन के जोश में तू पराई-नारियों को देखता है और भले-बुरे की पहचान नहीं करता।
ਉਨਮਤ ਕਾਮਿ ਮਹਾ ਬਿਖੁ ਭੂਲੈ ਪਾਪੁ ਪੁੰਨੁ ਨ ਪਛਾਨਿਆ ॥
उनमत कामि महा बिखु भूलै पापु पुंनु न पछानिआ ॥
तू कामवासना में मग्न रहकर विष रूपी प्रबल माया के मोह में फँसकर भटकता रहता है; फिर तू पाप एवं पुण्य की पहचान नहीं करता।
ਸੁਤ ਸੰਪਤਿ ਦੇਖਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਗਰਬਿਆ ਰਾਮੁ ਰਿਦੈ ਤੇ ਖੋਇਆ ॥
सुत स्मपति देखि इहु मनु गरबिआ रामु रिदै ते खोइआ ॥
अपने पुत्रों एवं सम्पति को देखकर तेरा यह मन अहंकारी हो गया है और अपने हृदय से तूने राम को विस्मृत कर दिया है।
ਅਵਰ ਮਰਤ ਮਾਇਆ ਮਨੁ ਤੋਲੇ ਤਉ ਭਗ ਮੁਖਿ ਜਨਮੁ ਵਿਗੋਇਆ ॥੩॥
अवर मरत माइआ मनु तोले तउ भग मुखि जनमु विगोइआ ॥३॥
सगे-सम्बन्धियों की मृत्यु पर तू अपने मन में सोचता है कि तुझे उसका कितना धन प्राप्त होगा हे मानव ! सौभाग्य से मिले अपने अमूल्य जीवन को तूने व्यर्थ गंवा दिया हैं॥ ३॥
ਪੁੰਡਰ ਕੇਸ ਕੁਸਮ ਤੇ ਧਉਲੇ ਸਪਤ ਪਾਤਾਲ ਕੀ ਬਾਣੀ ॥
पुंडर केस कुसम ते धउले सपत पाताल की बाणी ॥
बुढ़ापे में तेरे बाल चमेली के फूलों से भी अधिकतर सफेद हैं और तेरी वाणी इतनी धीमी पड़ गई है, जैसे वह सातवें लोक से आती हो।
ਲੋਚਨ ਸ੍ਰਮਹਿ ਬੁਧਿ ਬਲ ਨਾਠੀ ਤਾ ਕਾਮੁ ਪਵਸਿ ਮਾਧਾਣੀ ॥
लोचन स्रमहि बुधि बल नाठी ता कामु पवसि माधाणी ॥
तेरे नेत्रों से जल बह रहा है; तेरी बुद्धि एवं बल शरीर में से लुप्त हो गए हैं; ऐसी अवस्था में काम तेरे मन में से यूं मंथन करता है, जैसे दूध का मंथन किया जाता है।
ਤਾ ਤੇ ਬਿਖੈ ਭਈ ਮਤਿ ਪਾਵਸਿ ਕਾਇਆ ਕਮਲੁ ਕੁਮਲਾਣਾ ॥
ता ते बिखै भई मति पावसि काइआ कमलु कुमलाणा ॥
इसलिए तेरी बुद्धि में विषय-विकारों की झड़ी लगी हुई है; तेरा शरीर मुरझाए हुए फूल जैसा हो गया है।
ਅਵਗਤਿ ਬਾਣਿ ਛੋਡਿ ਮ੍ਰਿਤ ਮੰਡਲਿ ਤਉ ਪਾਛੈ ਪਛੁਤਾਣਾ ॥੪॥
अवगति बाणि छोडि म्रित मंडलि तउ पाछै पछुताणा ॥४॥
तुम अलक्ष्य प्रभु की वाणी को छोड़कर नश्वर जगत् के कार्यों में लीन हो रहे हो, तदुपरांत तुम पश्चाताप करोगे ॥४॥
ਨਿਕੁਟੀ ਦੇਹ ਦੇਖਿ ਧੁਨਿ ਉਪਜੈ ਮਾਨ ਕਰਤ ਨਹੀ ਬੂਝੈ ॥
निकुटी देह देखि धुनि उपजै मान करत नही बूझै ॥
नन्हे-मुन्ने छोटे बच्चों को देखकर तेरे मन में बड़ा प्रेम उत्पन्न होता है और तू उन पर गर्व करता है परन्तु तू ईश्वर बारे कोई सूझ प्राप्त नहीं करता।
ਲਾਲਚੁ ਕਰੈ ਜੀਵਨ ਪਦ ਕਾਰਨ ਲੋਚਨ ਕਛੂ ਨ ਸੂਝੈ ॥
लालचु करै जीवन पद कारन लोचन कछू न सूझै ॥
चाहे तेरे नेत्रों से कुछ भी नहीं दिखाई देता फिर भी तू लम्बी आयु की लालच करता है।
ਥਾਕਾ ਤੇਜੁ ਉਡਿਆ ਮਨੁ ਪੰਖੀ ਘਰਿ ਆਂਗਨਿ ਨ ਸੁਖਾਈ ॥
थाका तेजु उडिआ मनु पंखी घरि आंगनि न सुखाई ॥
अंत को शरीर का बल काम करने से थक जाता है और मन रूपी पक्षी शरीर रूपी पिंजरे में से उड़ जाता है। घर के आंगन में पड़ा मृतक शरीर किसी को अच्छा नहीं लगता।
ਬੇਣੀ ਕਹੈ ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਭਗਤਹੁ ਮਰਨ ਮੁਕਤਿ ਕਿਨਿ ਪਾਈ ॥੫॥
बेणी कहै सुनहु रे भगतहु मरन मुकति किनि पाई ॥५॥
भगत वेणी जी कहते हैं, हे भक्तों ! सुनो, मृत्यु के पश्चात किसी ने भी मुक्ति प्राप्त नहीं की ॥५॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ॥
सिरीरागु ॥
सिरीरागु॥
ਤੋਹੀ ਮੋਹੀ ਮੋਹੀ ਤੋਹੀ ਅੰਤਰੁ ਕੈਸਾ ॥
तोही मोही मोही तोही अंतरु कैसा ॥
हे प्रभु ! तू ही मैं हूँ और मैं ही तुम हूँ।;तेरे और मेरे बीच कोई अन्तर नहीं है।
ਕਨਕ ਕਟਿਕ ਜਲ ਤਰੰਗ ਜੈਸਾ ॥੧॥
कनक कटिक जल तरंग जैसा ॥१॥
यह अन्तर ऐसा है जैसे स्वर्ण एवं स्वर्ण से बने आभूषण का है; जैसे जल एवं इसकी लहरों में है; वैसे ही प्राणी और ईश्वर है॥ १ ॥
ਜਉ ਪੈ ਹਮ ਨ ਪਾਪ ਕਰੰਤਾ ਅਹੇ ਅਨੰਤਾ ॥
जउ पै हम न पाप करंता अहे अनंता ॥
हे अनंत परमेश्वर ! यदि मैं पाप न करता;
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਨਾਮੁ ਕੈਸੇ ਹੁੰਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पतित पावन नामु कैसे हुंता ॥१॥ रहाउ ॥
तो तेरा पतितपावन नाम कैसे होता ? ॥१॥ रहाउ॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਜੁ ਨਾਇਕ ਆਛਹੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
तुम्ह जु नाइक आछहु अंतरजामी ॥
हे अन्तर्यामी प्रभु ! तुझे जगत् का स्वामी कहा जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਤੇ ਜਨੁ ਜਾਨੀਜੈ ਜਨ ਤੇ ਸੁਆਮੀ ॥੨॥
प्रभ ते जनु जानीजै जन ते सुआमी ॥२॥
प्रभु से उसके दास की एवं दास से उसके स्वामी की पहचान हो जाती है। ॥ २॥
ਸਰੀਰੁ ਆਰਾਧੈ ਮੋ ਕਉ ਬੀਚਾਰੁ ਦੇਹੂ ॥
सरीरु आराधै मो कउ बीचारु देहू ॥
हे प्रभु ! मुझे यह ज्ञान दीजिए कि जब तक मेरा यह शरीर है, तब तक मैं तेरा नाम-सिमरन करता रहूँ।
ਰਵਿਦਾਸ ਸਮ ਦਲ ਸਮਝਾਵੈ ਕੋਊ ॥੩॥
रविदास सम दल समझावै कोऊ ॥३॥
भक्त रविदास जी का कथन है कि हे प्रभु ! मेरी यही कामना है कि कोई महापुरुष आकर मुझे यह ज्ञान दे जाए कि तू समस्त स्थानों में विद्यमान हे॥३॥