ਮੋਹਿ ਰੈਣਿ ਨ ਵਿਹਾਵੈ ਨੀਦ ਨ ਆਵੈ ਬਿਨੁ ਦੇਖੇ ਗੁਰ ਦਰਬਾਰੇ ਜੀਉ ॥੩॥
मोहि रैणि न विहावै नीद न आवै बिनु देखे गुर दरबारे जीउ ॥३॥
आपका दरबार देखे बिना न ही मुझे नींद आती है, न ही मेरी रात्रि बीतती है।
ਹਉ ਘੋਲੀ ਜੀਉ ਘੋਲਿ ਘੁਮਾਈ ਤਿਸੁ ਸਚੇ ਗੁਰ ਦਰਬਾਰੇ ਜੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ घोली जीउ घोलि घुमाई तिसु सचे गुर दरबारे जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
मैं पूज्य गुरु के सच्चे दरबार पर तन-मन से कुर्बान जाता हूँ ॥१॥ रहाउ॥
ਭਾਗੁ ਹੋਆ ਗੁਰਿ ਸੰਤੁ ਮਿਲਾਇਆ ॥
भागु होआ गुरि संतु मिलाइआ ॥
मेरे भाग्य उदय हो गए हैं और संत-गुरु से मिल पाया हूँ।
ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਘਰ ਮਹਿ ਪਾਇਆ ॥
प्रभु अबिनासी घर महि पाइआ ॥
मैंने अनश्वर प्रभु को अपने हृदय-घर में ही प्राप्त कर लिया है।
ਸੇਵ ਕਰੀ ਪਲੁ ਚਸਾ ਨ ਵਿਛੁੜਾ ਜਨ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੁਮਾਰੇ ਜੀਉ ॥੪॥
सेव करी पलु चसा न विछुड़ा जन नानक दास तुमारे जीउ ॥४॥
हे नानक ! मैं प्रभु के सेवकों की सेवा करता रहता हूँ और मैं उनसे एक पल अथवा क्षण मात्र भी जुदा नहीं होता।
ਹਉ ਘੋਲੀ ਜੀਉ ਘੋਲਿ ਘੁਮਾਈ ਜਨ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੁਮਾਰੇ ਜੀਉ ॥ ਰਹਾਉ ॥੧॥੮॥
हउ घोली जीउ घोलि घुमाई जन नानक दास तुमारे जीउ ॥ रहाउ ॥१॥८॥
हे नानक ! मैं प्रभु के सेवकों पर तन एवं मन से कुर्बान जाता हूँ॥ रहाउ॥१॥८॥
ਰਾਗੁ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रागु माझ महला ५ ॥
रागु माझ महला ५ ॥
ਸਾ ਰੁਤਿ ਸੁਹਾਵੀ ਜਿਤੁ ਤੁਧੁ ਸਮਾਲੀ ॥
सा रुति सुहावी जितु तुधु समाली ॥
हे प्रभु ! वहीं ऋतु अति सुन्दर है जब मैं तेरा सिमरन करता हूँ।
ਸੋ ਕੰਮੁ ਸੁਹੇਲਾ ਜੋ ਤੇਰੀ ਘਾਲੀ ॥
सो कमु सुहेला जो तेरी घाली ॥
वही कार्य मुझे सुखदायक लगता है; जो कार्य मैं तेरे नाम-सिमरन के लिए करता हूँ।
ਸੋ ਰਿਦਾ ਸੁਹੇਲਾ ਜਿਤੁ ਰਿਦੈ ਤੂੰ ਵੁਠਾ ਸਭਨਾ ਕੇ ਦਾਤਾਰਾ ਜੀਉ ॥੧॥
सो रिदा सुहेला जितु रिदै तूं वुठा सभना के दातारा जीउ ॥१॥
हे समस्त जीवों के दाता ! वही हृदय सुखी है, जिस हृदय में तुम्हारा निवास होता है।॥१॥
ਤੂੰ ਸਾਝਾ ਸਾਹਿਬੁ ਬਾਪੁ ਹਮਾਰਾ ॥
तूं साझा साहिबु बापु हमारा ॥
हे मालिक ! तुम हम सब के संयुक्त पिता हो;
ਨਉ ਨਿਧਿ ਤੇਰੈ ਅਖੁਟ ਭੰਡਾਰਾ ॥
नउ निधि तेरै अखुट भंडारा ॥
तेरे पास नवनिधियाँ हैं, तेरा भण्डार अक्षय है।
ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਸੁ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਵੈ ਸੋਈ ਭਗਤੁ ਤੁਮਾਰਾ ਜੀਉ ॥੨॥
जिसु तूं देहि सु त्रिपति अघावै सोई भगतु तुमारा जीउ ॥२॥
तू जिसे यह भण्डार देता है, वह मन और तन से तृप्त हो जाता है और वही तेरा भक्त बन जाता है।॥२॥
ਸਭੁ ਕੋ ਆਸੈ ਤੇਰੀ ਬੈਠਾ ॥
सभु को आसै तेरी बैठा ॥
हे मेरे मालिक ! सभी प्राणी तेरी आशा में ही बैठे हैं।
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਤੂੰਹੈ ਵੁਠਾ ॥
घट घट अंतरि तूंहै वुठा ॥
तू घट-घट में वास कर रहा है।
ਸਭੇ ਸਾਝੀਵਾਲ ਸਦਾਇਨਿ ਤੂੰ ਕਿਸੈ ਨ ਦਿਸਹਿ ਬਾਹਰਾ ਜੀਉ ॥੩॥
सभे साझीवाल सदाइनि तूं किसै न दिसहि बाहरा जीउ ॥३॥
समस्त प्राणी तेरे भागीदार कहलाते हैं और किसी भी प्राणी को ऐसा नहीं लगता कि तुम उससे बाहर किसी अन्य स्थान पर निवास करते हो॥३॥
ਤੂੰ ਆਪੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੁਕਤਿ ਕਰਾਇਹਿ ॥
तूं आपे गुरमुखि मुकति कराइहि ॥
गुरमुखों को तुम स्वयं ही बंधनों से मुक्त कराते हो
ਤੂੰ ਆਪੇ ਮਨਮੁਖਿ ਜਨਮਿ ਭਵਾਇਹਿ ॥
तूं आपे मनमुखि जनमि भवाइहि ॥
और मनमुख प्राणियों को तुम स्वयं जीवन-मृत्यु के बंधन में धकेल देते हो।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੇਰੈ ਬਲਿਹਾਰੈ ਸਭੁ ਤੇਰਾ ਖੇਲੁ ਦਸਾਹਰਾ ਜੀਉ ॥੪॥੨॥
नानक दास तेरै बलिहारै सभु तेरा खेलु दसाहरा जीउ ॥४॥२॥९॥
दास नानक तुझ पर कुर्बान जाता है; हे प्रभु! यह सबकुछ तेरा ही खेल तमाशा है॥ ४॥ २॥ ९॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਅਨਹਦੁ ਵਾਜੈ ਸਹਜਿ ਸੁਹੇਲਾ ॥
अनहदु वाजै सहजि सुहेला ॥
मेरे मन में सुखदायक अनहद शब्द मधुर ध्वनि में बजता रहता है।
ਸਬਦਿ ਅਨੰਦ ਕਰੇ ਸਦ ਕੇਲਾ ॥
सबदि अनंद करे सद केला ॥
उस अनहद शब्द को सुनकर मेरा मन सदैव आनंदित एवं प्रसन्न रहता है।
ਸਹਜ ਗੁਫਾ ਮਹਿ ਤਾੜੀ ਲਾਈ ਆਸਣੁ ਊਚ ਸਵਾਰਿਆ ਜੀਉ ॥੧॥
सहज गुफा महि ताड़ी लाई आसणु ऊच सवारिआ जीउ ॥१॥
मन ने सहज गुफा में समाधि लगाई है और उच्चमण्डलों में अपना आसन बना लिया है॥१॥
ਫਿਰਿ ਘਿਰਿ ਅਪੁਨੇ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥
फिरि घिरि अपुने ग्रिह महि आइआ ॥
मन बाहर भटकने के पश्चात अपने आत्म स्वरूप रूपी घर में आया है।
ਜੋ ਲੋੜੀਦਾ ਸੋਈ ਪਾਇਆ ॥
जो लोड़ीदा सोई पाइआ ॥
जिस प्रभु को पाने की कामना थी, उसे मैंने पा लिया है।
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਇ ਰਹਿਆ ਹੈ ਸੰਤਹੁ ਗੁਰਿ ਅਨਭਉ ਪੁਰਖੁ ਦਿਖਾਰਿਆ ਜੀਉ ॥੨॥
त्रिपति अघाइ रहिआ है संतहु गुरि अनभउ पुरखु दिखारिआ जीउ ॥२॥
हे सन्तजनो ! अब मेरा मन तृप्त तथा शांत हो गया है क्योंकि गुरदेव ने मुझे निडर स्वामी के दर्शन करवा दिए हैं॥२॥
ਆਪੇ ਰਾਜਨੁ ਆਪੇ ਲੋਗਾ ॥
आपे राजनु आपे लोगा ॥
प्रभु स्वयं ही राजन है और स्वयं ही प्रजा है।
ਆਪਿ ਨਿਰਬਾਣੀ ਆਪੇ ਭੋਗਾ ॥
आपि निरबाणी आपे भोगा ॥
वह स्वयं ही विरक्त है और स्वयं ही पदार्थों को भोगता है।
ਆਪੇ ਤਖਤਿ ਬਹੈ ਸਚੁ ਨਿਆਈ ਸਭ ਚੂਕੀ ਕੂਕ ਪੁਕਾਰਿਆ ਜੀਉ ॥੩॥
आपे तखति बहै सचु निआई सभ चूकी कूक पुकारिआ जीउ ॥३॥
सत्य प्रभु सिंघासन पर विराजमान होकर स्वयं ही सत्य का न्याय करता है, मेरे अन्तर्मन की चीख-पुकार दूर हो गई है॥३॥
ਜੇਹਾ ਡਿਠਾ ਮੈ ਤੇਹੋ ਕਹਿਆ ॥
जेहा डिठा मै तेहो कहिआ ॥
जैसा प्रभु मैंने देखा है, वैसा ही मैंने कह दिया है।
ਤਿਸੁ ਰਸੁ ਆਇਆ ਜਿਨਿ ਭੇਦੁ ਲਹਿਆ ॥
तिसु रसु आइआ जिनि भेदु लहिआ ॥
जिसको यह भेद समझ आ गया उसे असीम रस की प्राप्ति हो जाती है ।
ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਇਕੁ ਪਸਾਰਿਆ ਜੀਉ ॥੪॥੩॥੧੦॥
जोती जोति मिली सुखु पाइआ जन नानक इकु पसारिआ जीउ ॥४॥३॥१०॥
जब मेरी ज्योति परम-ज्योति प्रभु में विलीन हो गई तो मुझे सुख उपलब्ध हो गया। हे नानक ! एक प्रभु का ही सारे जगत् में प्रसार हो रहा है॥ ४ ॥ ३ ॥ १० ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਜਿਤੁ ਘਰਿ ਪਿਰਿ ਸੋਹਾਗੁ ਬਣਾਇਆ ॥
जितु घरि पिरि सोहागु बणाइआ ॥
हे सखी ! जिस जीव-स्त्री के हृदय-घर में पति-प्रभु ने सुहाग बना लिया है अर्थात् अपना निवास कर लिया है,
ਤਿਤੁ ਘਰਿ ਸਖੀਏ ਮੰਗਲੁ ਗਾਇਆ ॥
तितु घरि सखीए मंगलु गाइआ ॥
उसके हृदय-घर में मंगल गायन किया जाता है।
ਅਨਦ ਬਿਨੋਦ ਤਿਤੈ ਘਰਿ ਸੋਹਹਿ ਜੋ ਧਨ ਕੰਤਿ ਸਿਗਾਰੀ ਜੀਉ ॥੧॥
अनद बिनोद तितै घरि सोहहि जो धन कंति सिगारी जीउ ॥१॥
जिस जीव-स्त्री को पति-प्रभु ने शुभ गुणों से अलंकृत कर दिया है, उसके हृदय-घर में आनंद एवं उल्लास बना रहता है।॥१॥
ਸਾ ਗੁਣਵੰਤੀ ਸਾ ਵਡਭਾਗਣਿ ॥
सा गुणवंती सा वडभागणि ॥
जो जीव-स्त्री अपने पति-प्रभु को प्यारी लगती है, वही जीव-स्त्री गुणवान, भाग्यशालिनी,
ਪੁਤ੍ਰਵੰਤੀ ਸੀਲਵੰਤਿ ਸੋਹਾਗਣਿ ॥
पुत्रवंती सीलवंति सोहागणि ॥
पुत्रवती, शीलवान एवं सुहागिन है
ਰੂਪਵੰਤਿ ਸਾ ਸੁਘੜਿ ਬਿਚਖਣਿ ਜੋ ਧਨ ਕੰਤ ਪਿਆਰੀ ਜੀਉ ॥੨॥
रूपवंति सा सुघड़ि बिचखणि जो धन कंत पिआरी जीउ ॥२॥
और वह जीव-स्त्री रूपवान, चतुर एवं पटरानी है॥ २॥
ਅਚਾਰਵੰਤਿ ਸਾਈ ਪਰਧਾਨੇ ॥
अचारवंति साई परधाने ॥
जो जीव-स्त्री पति-प्रभु के प्रेम में मग्न होकर सुन्दर बन जाती हैं, वही शुभ आचरण वाली एवं सर्वश्रेष्ठ है।
ਸਭ ਸਿੰਗਾਰ ਬਣੇ ਤਿਸੁ ਗਿਆਨੇ ॥
सभ सिंगार बणे तिसु गिआने ॥
उस ज्ञानवान को सभी श्रृंगार सुन्दर लगते हैं।
ਸਾ ਕੁਲਵੰਤੀ ਸਾ ਸਭਰਾਈ ਜੋ ਪਿਰਿ ਕੈ ਰੰਗਿ ਸਵਾਰੀ ਜੀਉ ॥੩॥
सा कुलवंती सा सभराई जो पिरि कै रंगि सवारी जीउ ॥३॥
जो पति-प्रभु के प्रेम में संवारी गई है, वही कुलीना एवं पटरानी हैं ॥३॥
ਮਹਿਮਾ ਤਿਸ ਕੀ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਏ ॥
महिमा तिस की कहणु न जाए ॥
उसकी महिमा कथन नहीं की जा सकती,
ਜੋ ਪਿਰਿ ਮੇਲਿ ਲਈ ਅੰਗਿ ਲਾਏ ॥
जो पिरि मेलि लई अंगि लाए ॥
जिसे पति-प्रभु ने अपने गले से लगाकर अपने साथ मिला लिया है।