ਆਸ ਮਨੋਰਥੁ ਪੂਰਨੁ ਹੋਵੈ ਭੇਟਤ ਗੁਰ ਦਰਸਾਇਆ ਜੀਉ ॥੨॥
आस मनोरथु पूरनु होवै भेटत गुर दरसाइआ जीउ ॥२॥
गुरु के दर्शन करने से समस्त मनोरथ व दिल की इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं।॥ २॥
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਕਿਛੁ ਮਿਤਿ ਨਹੀ ਜਾਨੀ ॥
अगम अगोचर किछु मिति नही जानी ॥
अगम्य व अगोचर प्रभु का अंत जाना नहीं जा सकता।
ਸਾਧਿਕ ਸਿਧ ਧਿਆਵਹਿ ਗਿਆਨੀ ॥
साधिक सिध धिआवहि गिआनी ॥
ज्ञांनी, सिद्ध, साधक उस भगवान का ही ध्यान करते हैं।
ਖੁਦੀ ਮਿਟੀ ਚੂਕਾ ਭੋਲਾਵਾ ਗੁਰਿ ਮਨ ਹੀ ਮਹਿ ਪ੍ਰਗਟਾਇਆ ਜੀਉ ॥੩॥
खुदी मिटी चूका भोलावा गुरि मन ही महि प्रगटाइआ जीउ ॥३॥
जिस व्यक्ति का अहंकार मिट जाता है और भ्रम दूर हो जाता है, गुरु उसके हृदय में ही भगवान को प्रगट कर देते हैं।॥ ३॥
ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਕਲਿਆਣ ਨਿਧਾਨਾ ॥
अनद मंगल कलिआण निधाना ॥
भगवान के नाम का जाप करने से आनंद एवं खुशियाँ प्राप्त हो जाती हैं और यह मुक्तिदायक एवं गुणों का भण्डार है।
ਸੂਖ ਸਹਜ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਖਾਨਾ ॥
सूख सहज हरि नामु वखाना ॥
जो व्यक्ति भगवान के नाम का सिमरन करता है, उसे सुख एवं आनंद उपलब्ध हो जाते हैं।
ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਸੁਆਮੀ ਅਪਨਾ ਨਾਉ ਨਾਨਕ ਘਰ ਮਹਿ ਆਇਆ ਜੀਉ ॥੪॥੨੫॥੩੨॥
होइ क्रिपालु सुआमी अपना नाउ नानक घर महि आइआ जीउ ॥४॥२५॥३२॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति पर मेरा स्वामी कृपालु हो जाता है, उसके हृदय-घर में ही भगवान का नाम आ बसता है॥ ४ ॥ २५ ॥ ३२ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਜੀਵਾ ਸੋਇ ਤੁਮਾਰੀ ॥
सुणि सुणि जीवा सोइ तुमारी ॥
हे प्रभु ! अपने कानों से तेरी शोभा सुन-सुनकर ही जीता हूँ।
ਤੂੰ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਠਾਕੁਰੁ ਅਤਿ ਭਾਰੀ ॥
तूं प्रीतमु ठाकुरु अति भारी ॥
हे मेरे महान ठाकुर ! तुम मेरे प्रियतम हो।
ਤੁਮਰੇ ਕਰਤਬ ਤੁਮ ਹੀ ਜਾਣਹੁ ਤੁਮਰੀ ਓਟ ਗੋੁਪਾਲਾ ਜੀਉ ॥੧॥
तुमरे करतब तुम ही जाणहु तुमरी ओट गोपाला जीउ ॥१॥
हे गोपाल ! अपने कर्म तू ही जानता है। मुझे तेरा ही आश्रय है॥ १॥
ਗੁਣ ਗਾਵਤ ਮਨੁ ਹਰਿਆ ਹੋਵੈ ॥
गुण गावत मनु हरिआ होवै ॥
तेरी महिमा-स्तुति गाने से मन प्रफुल्लित हो जाता है।
ਕਥਾ ਸੁਣਤ ਮਲੁ ਸਗਲੀ ਖੋਵੈ ॥
कथा सुणत मलु सगली खोवै ॥
तेरी कथा सुनने से मन के विकारों की तमाम मलिनता दूर हो जाती है।
ਭੇਟਤ ਸੰਗਿ ਸਾਧ ਸੰਤਨ ਕੈ ਸਦਾ ਜਪਉ ਦਇਆਲਾ ਜੀਉ ॥੨॥
भेटत संगि साध संतन कै सदा जपउ दइआला जीउ ॥२॥
साधुओं एवं संतों की संगति में मिलकर मैं सदैव दया के घर परमात्मा का चिन्तन करता हूँ॥ २॥
ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਮਾਰਉ ॥
प्रभु अपुना सासि सासि समारउ ॥
अपने प्रभु को मैं श्वास-श्वास से स्मरण करता हूँ।
ਇਹ ਮਤਿ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮਨਿ ਧਾਰਉ ॥
इह मति गुर प्रसादि मनि धारउ ॥
यह मति गुरु की कृपा से अपने मन में धारण करो।
ਤੁਮਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਹੋਇ ਪ੍ਰਗਾਸਾ ਸਰਬ ਮਇਆ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ਜੀਉ ॥੩॥
तुमरी क्रिपा ते होइ प्रगासा सरब मइआ प्रतिपाला जीउ ॥३॥
हे भगवान ! तेरी कृपा से ही मेरे मन में तेरी ज्योति का प्रकाश हुआ है। तू समस्त जीव-जन्तुओं तथा सबका रक्षक है॥ ३॥
ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥
सति सति सति प्रभु सोई ॥
प्रभु आदि भी सत्य है जुगों जुगों में सत्य रहा है, वर्तमान में भी सत्य है
ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਦ ਆਪੇ ਹੋਈ ॥
सदा सदा सद आपे होई ॥
और वह प्रभु सदैव ही सत्य रहेगा ।
ਚਲਿਤ ਤੁਮਾਰੇ ਪ੍ਰਗਟ ਪਿਆਰੇ ਦੇਖਿ ਨਾਨਕ ਭਏ ਨਿਹਾਲਾ ਜੀਉ ॥੪॥੨੬॥੩੩॥
चलित तुमारे प्रगट पिआरे देखि नानक भए निहाला जीउ ॥४॥२६॥३३॥
हे प्रिय प्रभु ! तेरी अदभुत लीलाएँ जगत् में प्रत्यक्ष हैं। हे नानक ! मैं प्रभु की उन अदभुत लीलाओं को देखकर कृतार्थ हो गया हूँ ॥४॥२६॥३३॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਹੁਕਮੀ ਵਰਸਣ ਲਾਗੇ ਮੇਹਾ ॥
हुकमी वरसण लागे मेहा ॥
भगवान के हुक्म से मेघ बरसने लगे हैं।
ਸਾਜਨ ਸੰਤ ਮਿਲਿ ਨਾਮੁ ਜਪੇਹਾ ॥
साजन संत मिलि नामु जपेहा ॥
सज्जन संत मिलकर भगवान के नाम का जाप करते हैं।
ਸੀਤਲ ਸਾਂਤਿ ਸਹਜ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਠਾਢਿ ਪਾਈ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪੇ ਜੀਉ ॥੧॥
सीतल सांति सहज सुखु पाइआ ठाढि पाई प्रभि आपे जीउ ॥१॥
संतों के ह्रदय शीतल एवं शांत हो गए हैं और उन्हें सहज सुख उपलब्ध हो गया है। भगवान ने स्वयं ही संतों के हृदय में शांति प्रदान की है॥ १॥
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਬਹੁਤੋ ਬਹੁਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥
सभु किछु बहुतो बहुतु उपाइआ ॥
भगवान ने सब कुछ अत्यधिक मात्रा में उत्पन्न किया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਸਗਲ ਰਜਾਇਆ ॥
करि किरपा प्रभि सगल रजाइआ ॥
अपनी कृपा से परमात्मा ने सभी को सन्तुष्ट कर दिया है।
ਦਾਤਿ ਕਰਹੁ ਮੇਰੇ ਦਾਤਾਰਾ ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਧ੍ਰਾਪੇ ਜੀਉ ॥੨॥
दाति करहु मेरे दातारा जीअ जंत सभि ध्रापे जीउ ॥२॥
हे मेरे दाता ! अपनी देन प्रदान करो ताकि सभी जीव-जन्तु तृप्त हो जाएँ॥ २॥
ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਚੀ ਨਾਈ ॥
सचा साहिबु सची नाई ॥
मेरा मालिक प्रभु सदैव सत्य है और उसकी महिमा भी सत्य है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਤਿਸੁ ਸਦਾ ਧਿਆਈ ॥
गुर परसादि तिसु सदा धिआई ॥
गुरु की कृपा से मैं सदैव ही उसका ध्यान करता रहता हूँ।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਭੈ ਕਾਟੇ ਮੋਹਾ ਬਿਨਸੇ ਸੋਗ ਸੰਤਾਪੇ ਜੀਉ ॥੩॥
जनम मरण भै काटे मोहा बिनसे सोग संतापे जीउ ॥३॥
उस प्रभु ने मेरा जन्म-मरण का भय एवं माया का मोह नाश कर दिया है॥३ ॥
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਨਾਨਕੁ ਸਾਲਾਹੇ ॥
सासि सासि नानकु सालाहे ॥
नानक तो श्वास-श्वास से भगवान की महिमा-स्तुति ही करता है।
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਕਾਟੇ ਸਭਿ ਫਾਹੇ ॥
सिमरत नामु काटे सभि फाहे ॥
भगवान का सिमरन करने से उसकी तमाम जंजीरें कट गई हैं।
ਪੂਰਨ ਆਸ ਕਰੀ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਜਾਪੇ ਜੀਉ ॥੪॥੨੭॥੩੪॥
पूरन आस करी खिन भीतरि हरि हरि हरि गुण जापे जीउ ॥४॥२७॥३४॥
भगवान ने एक क्षण में उसकी आशा पूरी कर दी है, अब तो वह भगवान के नाम का ही जाप करता रहता है और उसकी ही महिमा गाता रहता है॥ ४ ॥ २७ ॥ ३४ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਆਉ ਸਾਜਨ ਸੰਤ ਮੀਤ ਪਿਆਰੇ ॥
आउ साजन संत मीत पिआरे ॥
हे मेरे संतजनों एवं प्रिय मित्रों ! आओ
ਮਿਲਿ ਗਾਵਹ ਗੁਣ ਅਗਮ ਅਪਾਰੇ ॥
मिलि गावह गुण अगम अपारे ॥
हम मिलकर अगम्य व अनन्त प्रभु का यशोगान करें।
ਗਾਵਤ ਸੁਣਤ ਸਭੇ ਹੀ ਮੁਕਤੇ ਸੋ ਧਿਆਈਐ ਜਿਨਿ ਹਮ ਕੀਏ ਜੀਉ ॥੧॥
गावत सुणत सभे ही मुकते सो धिआईऐ जिनि हम कीए जीउ ॥१॥
भगवान की महिमा गाने एवं सुनने वाले सभी व्यक्ति माया के बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं। आओ हम उस प्रभु की आराधना करें जिसने हमें उत्पन्न किया है। ॥१॥
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਜਾਵਹਿ ॥
जनम जनम के किलबिख जावहि ॥
भगवान का सिमरन करने से जन्म-जन्मांतरों के तमाम पाप नष्ट हो जाते हैं l
ਮਨਿ ਚਿੰਦੇ ਸੇਈ ਫਲ ਪਾਵਹਿ ॥
मनि चिंदे सेई फल पावहि ॥
और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
ਸਿਮਰਿ ਸਾਹਿਬੁ ਸੋ ਸਚੁ ਸੁਆਮੀ ਰਿਜਕੁ ਸਭਸੁ ਕਉ ਦੀਏ ਜੀਉ ॥੨॥
सिमरि साहिबु सो सचु सुआमी रिजकु सभसु कउ दीए जीउ ॥२॥
उस सत्य प्रभु-परमेश्वर की आराधना करो, जो सभी को भोजन पदार्थ देता है॥ २॥
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਸਰਬ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥
नामु जपत सरब सुखु पाईऐ ॥
भगवान के नाम का जाप करने से सर्व सुख मिल जाते हैं।
ਸਭੁ ਭਉ ਬਿਨਸੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ॥
सभु भउ बिनसै हरि हरि धिआईऐ ॥
हरि-प्रभु की आराधना करने से तमाम भय नाश हो जाते हैं।
ਜਿਨਿ ਸੇਵਿਆ ਸੋ ਪਾਰਗਿਰਾਮੀ ਕਾਰਜ ਸਗਲੇ ਥੀਏ ਜੀਉ ॥੩॥
जिनि सेविआ सो पारगिरामी कारज सगले थीए जीउ ॥३॥
जो परमात्मा की सेवा करता है, वह पूर्ण पुरुष है और उसके समस्त कार्य संवर जाते हैं।॥ ३॥
ਆਇ ਪਇਆ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥
आइ पइआ तेरी सरणाई ॥
हे प्रभु ! मैं तेरी शरण में आ गया हूँ,
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਲੈਹਿ ਮਿਲਾਈ ॥
जिउ भावै तिउ लैहि मिलाई ॥
जैसे तुझे अच्छा लगता है वैसे ही मुझे अपने साथ मिला लो।