ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭੁ ਭਗਤੀ ਲਾਵਹੁ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਏ ਜੀਉ ॥੪॥੨੮॥੩੫॥
करि किरपा प्रभु भगती लावहु सचु नानक अम्रितु पीए जीउ ॥४॥२८॥३५॥
हे प्रभु ! कृपा करके मुझे अपनी भक्ति में लगा लो जिससे हे नानक ! वह प्रभु के सत्य नाम रूपी अमृत का पान करता रहे॥ ४ ॥ २८ ॥ ३५ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਗੋਵਿੰਦ ਗੁਸਾਈ ॥
भए क्रिपाल गोविंद गुसाई ॥
सृष्टि का स्वामी गोविन्द गुसाई समस्त जीवों पर ऐसे दयालु हो गया है जैसे.
ਮੇਘੁ ਵਰਸੈ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ॥
मेघु वरसै सभनी थाई ॥
बादल समस्त स्थानों पर वर्षा करता है,”
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਸਦਾ ਕਿਰਪਾਲਾ ਠਾਢਿ ਪਾਈ ਕਰਤਾਰੇ ਜੀਉ ॥੧॥
दीन दइआल सदा किरपाला ठाढि पाई करतारे जीउ ॥१॥
सृष्टिकर्ता सदैव ही दीनदयालु एवं कृपालु है और उसने अपने भक्तों के हृदय शीतल कर दिए हैं। १ ॥
ਅਪੁਨੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੇ ॥
अपुने जीअ जंत प्रतिपारे ॥
प्रभु अपने जीव-जन्तुओं की पालना ऐसे करता है।
ਜਿਉ ਬਾਰਿਕ ਮਾਤਾ ਸੰਮਾਰੇ ॥
जिउ बारिक माता समारे ॥
जैसे माता अपने शिशु की देखभाल करती है
ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਸੁਆਮੀ ਦੇਤ ਸਗਲ ਆਹਾਰੇ ਜੀਉ ॥੨॥
दुख भंजन सुख सागर सुआमी देत सगल आहारे जीउ ॥२॥
भगवान दुखनाशक एवं सुखों का सागर है। वह समस्त जीवों को खाने के लिए भोजन देता है॥ २॥
ਜਲਿ ਥਲਿ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਮਿਹਰਵਾਨਾ ॥
जलि थलि पूरि रहिआ मिहरवाना ॥
दयालु परमात्मा जल एवं धरती में सर्वत्र समाया हुआ है।
ਸਦ ਬਲਿਹਾਰਿ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਨਾ ॥
सद बलिहारि जाईऐ कुरबाना ॥
मैं सदैव उस पर बलिहारी व कुर्बान जाता हूँ।
ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਤਿਸੁ ਸਦਾ ਧਿਆਈ ਜਿ ਖਿਨ ਮਹਿ ਸਗਲ ਉਧਾਰੇ ਜੀਉ ॥੩॥
रैणि दिनसु तिसु सदा धिआई जि खिन महि सगल उधारे जीउ ॥३॥
दिन-रात हमें सदैव ही उस भगवान का ध्यान करना चाहिए जो एक क्षण में ही सभी का उद्धार कर देता है॥ ३॥
ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਸਗਲੇ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪੇ ॥
राखि लीए सगले प्रभि आपे ॥
भगवान ने स्वयं ही अपने भक्तों की रक्षा की है
ਉਤਰਿ ਗਏ ਸਭ ਸੋਗ ਸੰਤਾਪੇ ॥
उतरि गए सभ सोग संतापे ॥
और उनके सभी दुःख एवं संताप दूर हो गए हैं।
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰੀਆਵਲੁ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਰੇ ਜੀਉ ॥੪॥੨੯॥੩੬॥
नामु जपत मनु तनु हरीआवलु प्रभ नानक नदरि निहारे जीउ ॥४॥२९॥३६॥
हे नानक ! भगवान जब कृपा-दृष्टि से देखता है तो उसका नाम-सिमरन करने से मनुष्य का मन एवं तन हरा-भरा हो जाता है॥ ४॥ २६॥ ३६॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਜਿਥੈ ਨਾਮੁ ਜਪੀਐ ਪ੍ਰਭ ਪਿਆਰੇ ॥
जिथै नामु जपीऐ प्रभ पिआरे ॥
हे प्रियतम प्रभु ! जिस स्थान पर तेरे नाम का जाप किया जाता है,
ਸੇ ਅਸਥਲ ਸੋਇਨ ਚਉਬਾਰੇ ॥
से असथल सोइन चउबारे ॥
वह स्थान स्वर्ण के चौबारे के तुल्य है।
ਜਿਥੈ ਨਾਮੁ ਨ ਜਪੀਐ ਮੇਰੇ ਗੋਇਦਾ ਸੇਈ ਨਗਰ ਉਜਾੜੀ ਜੀਉ ॥੧॥
जिथै नामु न जपीऐ मेरे गोइदा सेई नगर उजाड़ी जीउ ॥१॥
हे मेरे गोबिन्द ! जिस स्थान पर तेरे नाम का जाप नहीं किया जाता, वह नगर वीरान भूमि के तुल्य है॥१॥
ਹਰਿ ਰੁਖੀ ਰੋਟੀ ਖਾਇ ਸਮਾਲੇ ॥
हरि रुखी रोटी खाइ समाले ॥
जो व्यक्ति रूखी-सूखी रोटी खा कर भगवान का सिमरन करता रहता है,
ਹਰਿ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੇ ॥
हरि अंतरि बाहरि नदरि निहाले ॥
उसे भगवान घर एवं बाहर सर्वत्र कृपा-दृष्टि से देखता रहता है।
ਖਾਇ ਖਾਇ ਕਰੇ ਬਦਫੈਲੀ ਜਾਣੁ ਵਿਸੂ ਕੀ ਵਾੜੀ ਜੀਉ ॥੨॥
खाइ खाइ करे बदफैली जाणु विसू की वाड़ी जीउ ॥२॥
जो व्यक्ति भगवान के दिए पदार्थ खा-खाकर दुष्कर्म करता रहता है, उसे विष की वाटिका समझो ॥ २ ॥
ਸੰਤਾ ਸੇਤੀ ਰੰਗੁ ਨ ਲਾਏ ॥
संता सेती रंगु न लाए ॥
जो व्यक्ति संतों से प्रेम नहीं करता
ਸਾਕਤ ਸੰਗਿ ਵਿਕਰਮ ਕਮਾਏ ॥
साकत संगि विकरम कमाए ॥
और शाक्तों के साथ मिलकर दुष्कर्म करता है,
ਦੁਲਭ ਦੇਹ ਖੋਈ ਅਗਿਆਨੀ ਜੜ ਅਪੁਣੀ ਆਪਿ ਉਪਾੜੀ ਜੀਉ ॥੩॥
दुलभ देह खोई अगिआनी जड़ अपुणी आपि उपाड़ी जीउ ॥३॥
ऐसा ज्ञानहीन व्यक्ति अपने दुर्लभ जन्म को व्यर्थ गंवा रहा है तथा वह अपनी जड़ को स्वयं ही उखाड़ रहा है॥ ३॥
ਤੇਰੀ ਸਰਣਿ ਮੇਰੇ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
तेरी सरणि मेरे दीन दइआला ॥
हे दीनदयाल ! मैं तेरी शरण में आया हूँ।
ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਮੇਰੇ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਾ ॥
सुख सागर मेरे गुर गोपाला ॥
हे मेरे गुरु गोपाल ! तू सुखों का सागर है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਨਕੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਰਾਖਹੁ ਸਰਮ ਅਸਾੜੀ ਜੀਉ ॥੪॥੩੦॥੩੭॥
करि किरपा नानकु गुण गावै राखहु सरम असाड़ी जीउ ॥४॥३०॥३७॥
मुझ पर कृपा करो। नानक तेरी ही महिमा गायन करता है। मेरी लाज-प्रतिष्ठा रखो ॥४॥३०॥३७॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਚਰਣ ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਰਿਦੈ ਸਮਾਣੇ ॥
चरण ठाकुर के रिदै समाणे ॥
जब भगवान के सुन्दर चरण मेरे हृदय में स्थित हो गए तो
ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਸਭ ਦੂਰਿ ਪਇਆਣੇ ॥
कलि कलेस सभ दूरि पइआणे ॥
मेरे तमाम दुःख एवं संताप नाश हो गए।
ਸਾਂਤਿ ਸੂਖ ਸਹਜ ਧੁਨਿ ਉਪਜੀ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਨਿਵਾਸਾ ਜੀਉ ॥੧॥
सांति सूख सहज धुनि उपजी साधू संगि निवासा जीउ ॥१॥
संतों की संगति में निवास होने से मेरे अन्तर्मन में अनहद शब्द की मधुर ध्वनि उत्पन्न हो गई और मन में शांति एवं सहज सुख उपलब्ध हो गया है॥ १॥
ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਤੂਟੈ ਮੂਲੇ ॥
लागी प्रीति न तूटै मूले ॥
भगवान से ऐसी प्रीति लगी है, जो कदापि नहीं टूटती।
ਹਰਿ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥
हरि अंतरि बाहरि रहिआ भरपूरे ॥
भगवान मेरे अन्दर व बाहर सर्वत्र व्यापक हो रहा है।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਕਾਟੀ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸਾ ਜੀਉ ॥੨॥
सिमरि सिमरि सिमरि गुण गावा काटी जम की फासा जीउ ॥२॥
भगवान का सदैव नाम-सिमरन करने तथा उसकी महिमा-स्तुति द्वारा मेरी मृत्यु की फाँसी कट गई है।॥२॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਵਰਖੈ ਅਨਹਦ ਬਾਣੀ ॥
अम्रितु वरखै अनहद बाणी ॥
मेरे मन में अनहद शब्द के प्रगट होने से हरि रस रूपी अम्रित वर्षा होने लग गई है ।
ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਸਾਂਤਿ ਸਮਾਣੀ ॥
मन तन अंतरि सांति समाणी ॥
मेरे मन एवं तन मैं शांति प्रवेश कर गई है ।
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਇ ਰਹੇ ਜਨ ਤੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਕੀਆ ਦਿਲਾਸਾ ਜੀਉ ॥੩॥
त्रिपति अघाइ रहे जन तेरे सतिगुरि कीआ दिलासा जीउ ॥३॥
हे भगवान ! सतगुरु ने तेरे भक्तों को आश्वासन दिया है और हरि रस रूपी अमृत का पान करवाकर उन्हें तृप्त एवं संतुष्ट कर दिया है॥३॥
ਜਿਸ ਕਾ ਸਾ ਤਿਸ ਤੇ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥
जिस का सा तिस ते फलु पाइआ ॥
जिस भगवान का मैं सेवक था, उससे मैंने अपनी की हुई सेवा का फल पाया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥
करि किरपा प्रभ संगि मिलाइआ ॥
सतिगुरु ने कृपा करके मुझे भगवान से मिला दिया है।
ਆਵਣ ਜਾਣ ਰਹੇ ਵਡਭਾਗੀ ਨਾਨਕ ਪੂਰਨ ਆਸਾ ਜੀਉ ॥੪॥੩੧॥੩੮॥
आवण जाण रहे वडभागी नानक पूरन आसा जीउ ॥४॥३१॥३८॥
हे नानक ! सौभाग्य से मेरा जन्म-मरण का चक्र मिट गया है और भगवान से मिलन की कामना पूरी हो गई है॥ ४ ॥ ३१ ॥ ३८ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਮੀਹੁ ਪਇਆ ਪਰਮੇਸਰਿ ਪਾਇਆ ॥
मीहु पइआ परमेसरि पाइआ ॥
वर्षा हुई है, इसे परमेश्वर ने ही बरसाया है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਸੁਖੀ ਵਸਾਇਆ ॥
जीअ जंत सभि सुखी वसाइआ ॥
इससे प्रभु ने समस्त जीव-जन्तुओं को सुखी बसा दिया है।
ਗਇਆ ਕਲੇਸੁ ਭਇਆ ਸੁਖੁ ਸਾਚਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲੀ ਜੀਉ ॥੧॥
गइआ कलेसु भइआ सुखु साचा हरि हरि नामु समाली जीउ ॥१
हरि-परमेश्वर के नाम का सिमरन करने से उनकी पीड़ा दूर हो गई है और उनको सच्चा सुख मिल गया है ॥१॥
ਜਿਸ ਕੇ ਸੇ ਤਿਨ ਹੀ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੇ ॥
जिस के से तिन ही प्रतिपारे ॥
ये जीव-जन्तु जिस परमात्मा के उत्पन्न किए हुए हैं, उसने ही उनकी रक्षा की है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਰਖਵਾਰੇ ॥
पारब्रहम प्रभ भए रखवारे ॥
पारब्रह्म-परमेश्वर उनका रक्षक बन गया है।
ਸੁਣੀ ਬੇਨੰਤੀ ਠਾਕੁਰਿ ਮੇਰੈ ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਘਾਲੀ ਜੀਉ ॥੨॥
सुणी बेनंती ठाकुरि मेरै पूरन होई घाली जीउ ॥२॥
मेरे ठाकुर जी ने मेरी प्रार्थना सुन ली है और मेरी भक्ति सफल हो गई है॥२॥