ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਸੇ ਨਿਰਮਲੇ ਚਲਹਿ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਇ ॥੭॥
सबदि रते से निरमले चलहि सतिगुर भाइ ॥७॥
वही व्यक्ति निर्मल हैं जो गुरु के शब्द में मग्न रहते हैं। वह सतिगुरु के निर्देशानुसार अनुसरण करते हैं।॥७॥
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਦਾਤਾ ਏਕੁ ਤੂੰ ਤੂੰ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇ ॥
हरि प्रभ दाता एकु तूं तूं आपे बखसि मिलाइ ॥
हे मेरे प्रभु-परमेश्वर ! एक तू ही दाता है, तू स्वयं ही प्राणियों को क्षमादान करके अपने साथ मिला लेता है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਸਰਣਾਗਤੀ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਛਡਾਇ ॥੮॥੧॥੯॥
जनु नानकु सरणागती जिउ भावै तिवै छडाइ ॥८॥१॥९॥
हे ईश्वर ! नानक ने तेरी शरण ली है। जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे ही उसको तू मुक्ति प्रदान कर ॥८॥१॥९॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੪ ਕਰਹਲੇ
रागु गउड़ी पूरबी महला ४ करहले
रागु गउड़ी पूरबी महला ४ करहले
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਕਰਹਲੇ ਮਨ ਪਰਦੇਸੀਆ ਕਿਉ ਮਿਲੀਐ ਹਰਿ ਮਾਇ ॥
करहले मन परदेसीआ किउ मिलीऐ हरि माइ ॥
हे मेरे ऊँट समान परदेसी मन ! तू किस तरह अपनी माता समान प्रभु से मिल सकता है ?
ਗੁਰੁ ਭਾਗਿ ਪੂਰੈ ਪਾਇਆ ਗਲਿ ਮਿਲਿਆ ਪਿਆਰਾ ਆਇ ॥੧॥
गुरु भागि पूरै पाइआ गलि मिलिआ पिआरा आइ ॥१॥
जब पूर्ण सौभाग्य से गुरु मिल जाए तो ही प्रियतम (प्रभु) आलिंगन करके मिल सकता है॥ १॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਧਿਆਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मन करहला सतिगुरु पुरखु धिआइ ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे स्वेच्छाचारी मन ! महापुरुष सतिगुरु का ध्यान करता रह॥ १॥ रहाउ॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਵੀਚਾਰੀਆ ਹਰਿ ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਿਆਇ ॥
मन करहला वीचारीआ हरि राम नाम धिआइ ॥
हे मेरे विचारवान भटकते मन ! तू हरि राम के नाम का ध्यान कर।
ਜਿਥੈ ਲੇਖਾ ਮੰਗੀਐ ਹਰਿ ਆਪੇ ਲਏ ਛਡਾਇ ॥੨॥
जिथै लेखा मंगीऐ हरि आपे लए छडाइ ॥२॥
जिस स्थान पर कर्मो का लेखा-जोखा माँगा जाएगा, ईश्वर स्वयं तेरी मुक्ति करा देगा ॥ २॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਅਤਿ ਨਿਰਮਲਾ ਮਲੁ ਲਾਗੀ ਹਉਮੈ ਆਇ ॥
मन करहला अति निरमला मलु लागी हउमै आइ ॥
हे मेरे स्वेच्छाचारी मन ! कभी तुम अत्यंत निर्मल होते थे लेकिन अब तुझे अहंकार की मैल आकर लग गई है।
ਪਰਤਖਿ ਪਿਰੁ ਘਰਿ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰਾ ਵਿਛੁੜਿ ਚੋਟਾ ਖਾਇ ॥੩॥
परतखि पिरु घरि नालि पिआरा विछुड़ि चोटा खाइ ॥३॥
प्रियतम प्रभु तेरे हृदय गृह में तेरे सामने ही प्रत्यक्ष है। उससे जुदा होकर तुम चोटें खा रहे हो॥ ३॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮਾ ਹਰਿ ਰਿਦੈ ਭਾਲਿ ਭਾਲਾਇ ॥
मन करहला मेरे प्रीतमा हरि रिदै भालि भालाइ ॥
हे मेरे प्यारे मन ! कोशिश कर और अपने हृदय में ईश्वर की भलीभाँति खोज कर।
ਉਪਾਇ ਕਿਤੈ ਨ ਲਭਈ ਗੁਰੁ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਦੇਖਾਇ ॥੪॥
उपाइ कितै न लभई गुरु हिरदै हरि देखाइ ॥४॥
किसी भी उपाय से वह मिल नहीं सकता, गुरु जी तेरे हृदय में ही तुझे ईश्वर के दर्शन करवा देंगे॥ ४॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮਾ ਦਿਨੁ ਰੈਣਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
मन करहला मेरे प्रीतमा दिनु रैणि हरि लिव लाइ ॥
हे मेरे मन ! दिन-रात प्रभु के चरणों में वृति लगा।
ਘਰੁ ਜਾਇ ਪਾਵਹਿ ਰੰਗ ਮਹਲੀ ਗੁਰੁ ਮੇਲੇ ਹਰਿ ਮੇਲਾਇ ॥੫॥
घरु जाइ पावहि रंग महली गुरु मेले हरि मेलाइ ॥५॥
इस प्रकार प्रियतम के महल में जाकर अपना स्थान प्राप्त कर लोगे। लेकिन गुरु ही तुझे प्रियतम प्रभु से मिला सकता है ॥५॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਤੂੰ ਮੀਤੁ ਮੇਰਾ ਪਾਖੰਡੁ ਲੋਭੁ ਤਜਾਇ ॥
मन करहला तूं मीतु मेरा पाखंडु लोभु तजाइ ॥
हे मेरे मन ! तुम मेरे मित्र हो, इसलिए तू पाखण्ड एवं लोभ को त्याग दे।
ਪਾਖੰਡਿ ਲੋਭੀ ਮਾਰੀਐ ਜਮ ਡੰਡੁ ਦੇਇ ਸਜਾਇ ॥੬॥
पाखंडि लोभी मारीऐ जम डंडु देइ सजाइ ॥६॥
क्योंकि पाखण्डी एवं लोभी की खूब पिटाई होती है, अपनी छड़ी से मृत्यु उनको दण्ड देती है॥ ६॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ਤੂੰ ਮੈਲੁ ਪਾਖੰਡੁ ਭਰਮੁ ਗਵਾਇ ॥
मन करहला मेरे प्रान तूं मैलु पाखंडु भरमु गवाइ ॥
हे मेरे स्वेच्छाचारी मन ! तुम मेरे प्राण हो, तू पाखण्ड एवं दुविधा की मैल त्याग दे।
ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੁ ਗੁਰਿ ਪੂਰਿਆ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤੀ ਮਲੁ ਲਹਿ ਜਾਇ ॥੭॥
हरि अम्रित सरु गुरि पूरिआ मिलि संगती मलु लहि जाइ ॥७॥
हरि नाम रूपी अमृत का सरोवर पूर्ण गुरु ने भरा हुआ है। अत: सत्संग में मिलने से विकारों की मैल दूर हो जाती है॥ ७॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਮੇਰੇ ਪਿਆਰਿਆ ਇਕ ਗੁਰ ਕੀ ਸਿਖ ਸੁਣਾਇ ॥
मन करहला मेरे पिआरिआ इक गुर की सिख सुणाइ ॥
हे मेरे परदेसी मन ! एक गुरु की सीख सुन।
ਇਹੁ ਮੋਹੁ ਮਾਇਆ ਪਸਰਿਆ ਅੰਤਿ ਸਾਥਿ ਨ ਕੋਈ ਜਾਇ ॥੮॥
इहु मोहु माइआ पसरिआ अंति साथि न कोई जाइ ॥८॥
माया का यह मोह अत्याधिक फैला हुआ है। अन्त में प्राणी के साथ कुछ भी नहीं जाता॥ ८ ॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਮੇਰੇ ਸਾਜਨਾ ਹਰਿ ਖਰਚੁ ਲੀਆ ਪਤਿ ਪਾਇ ॥
मन करहला मेरे साजना हरि खरचु लीआ पति पाइ ॥
हे स्वेच्छाचारी मन ! हे मेरे साजन ! ईश्वर के नाम को अपनी यात्रा खर्च के तौर पर प्राप्त करके शोभा पा।
ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਪੈਨਾਇਆ ਹਰਿ ਆਪਿ ਲਇਆ ਗਲਿ ਲਾਇ ॥੯॥
हरि दरगह पैनाइआ हरि आपि लइआ गलि लाइ ॥९॥
ईश्वर के दरबार में तुझे मान-सम्मान की पोशाक पहनाई जाएगी और ईश्वर स्वयं तुझे अपने आलिंगन लगाएगा ॥९॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਗੁਰਿ ਮੰਨਿਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥
मन करहला गुरि मंनिआ गुरमुखि कार कमाइ ॥
हे मेरे स्वेच्छाचारी मन ! जो गुरु का आदेश मानता है, वह गुरु जी के उपदेश से प्रभु की सेवा करता है।
ਗੁਰ ਆਗੈ ਕਰਿ ਜੋਦੜੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਮੇਲਾਇ ॥੧੦॥੧॥
गुर आगै करि जोदड़ी जन नानक हरि मेलाइ ॥१०॥१॥
हे नानक ! गुरु के समक्ष प्रार्थना कर, वह तुझे ईश्वर के साथ मिला देंगे॥ १०॥ १॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गउड़ी महला ४ ॥
गउड़ी महला ४ ॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਵੀਚਾਰੀਆ ਵੀਚਾਰਿ ਦੇਖੁ ਸਮਾਲਿ ॥
मन करहला वीचारीआ वीचारि देखु समालि ॥
हे मेरे विचारशील मन ! विचार करके ध्यानपूर्वक देख।
ਬਨ ਫਿਰਿ ਥਕੇ ਬਨ ਵਾਸੀਆ ਪਿਰੁ ਗੁਰਮਤਿ ਰਿਦੈ ਨਿਹਾਲਿ ॥੧॥
बन फिरि थके बन वासीआ पिरु गुरमति रिदै निहालि ॥१॥
वनों में रहने वाले वनवासी वनों में भटकते थक गए हैं। गुरु की शिक्षा द्वारा प्रभु-पति को अपने हृदय में ही देख॥ १॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਗੁਰ ਗੋਵਿੰਦੁ ਸਮਾਲਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मन करहला गुर गोविंदु समालि ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे स्वेच्छाचारी मन ! गुरु गोबिन्द को स्मरण कर ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਵੀਚਾਰੀਆ ਮਨਮੁਖ ਫਾਥਿਆ ਮਹਾ ਜਾਲਿ ॥
मन करहला वीचारीआ मनमुख फाथिआ महा जालि ॥
हे मेरे विचारवान मन ! स्वेच्छाचारी (मोह-माया के) भारी जाल में फँसे हुए हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪ੍ਰਾਣੀ ਮੁਕਤੁ ਹੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ॥੨॥
गुरमुखि प्राणी मुकतु है हरि हरि नामु समालि ॥२॥
गुरमुख प्राणी मोह-माया के बन्धनों से मुक्त है चूंकि वह हरि-परमेश्वर का नाम-ही याद करता रहता है।॥ २॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਲਗਿ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ਹਰਿ ਹਰਿ ਚਲੈ ਤੇਰੈ ਨਾਲਿ ॥੩॥
सतसंगति लगि हरि धिआईऐ हरि हरि चलै तेरै नालि ॥३॥
संतों की संगति में रहकर भगवान के नाम का ध्यान करता रह, क्योंकि भगवान का नाम ही तेरे साथ (परलोक में) जाएगा ॥ ३॥
ਮਨ ਕਰਹਲਾ ਵਡਭਾਗੀਆ ਹਰਿ ਏਕ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥
मन करहला वडभागीआ हरि एक नदरि निहालि ॥
हे भटकते मन ! जिस व्यक्ति पर भगवान अपनी एक कृपा-दृष्टि कर देता है, वह भाग्यशाली हो जाता है।