Hindi Page 529

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ॥
देवगंधारी ॥
देवगंधारी ॥

ਮਾਈ ਸੁਨਤ ਸੋਚ ਭੈ ਡਰਤ ॥
माई सुनत सोच भै डरत ॥
हे मेरी माता ! जब मैं काल (मृत्यु) के बारे में सुनता एवं सोचता हूँ तो मेरा मन घबरा कर डर जाता है।

ਮੇਰ ਤੇਰ ਤਜਉ ਅਭਿਮਾਨਾ ਸਰਨਿ ਸੁਆਮੀ ਕੀ ਪਰਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मेर तेर तजउ अभिमाना सरनि सुआमी की परत ॥१॥ रहाउ ॥
अब मेरे-तेरे का अभिमान छोड़कर मैं स्वामी की शरण में आ गया हूँ॥ १॥ रहाउ॥

ਜੋ ਜੋ ਕਹੈ ਸੋਈ ਭਲ ਮਾਨਉ ਨਾਹਿ ਨ ਕਾ ਬੋਲ ਕਰਤ ॥
जो जो कहै सोई भल मानउ नाहि न का बोल करत ॥
जो कुछ भी स्वामी कहता है, उसे मैं भला मानता हूँ, जो कुछ भी वह बोलता है, मैं उसे मना नहीं कर सकता।

ਨਿਮਖ ਨ ਬਿਸਰਉ ਹੀਏ ਮੋਰੇ ਤੇ ਬਿਸਰਤ ਜਾਈ ਹਉ ਮਰਤ ॥੧॥
निमख न बिसरउ हीए मोरे ते बिसरत जाई हउ मरत ॥१॥
हे मालिक ! तू निमिष मात्र भी मेरे हृदय से विस्मृत न होना क्योंकि तुझे भुला कर मैं जीवित नहीं रह सकता ॥ १॥

ਸੁਖਦਾਈ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭੁ ਕਰਤਾ ਮੇਰੀ ਬਹੁਤੁ ਇਆਨਪ ਜਰਤ ॥
सुखदाई पूरन प्रभु करता मेरी बहुतु इआनप जरत ॥
सृष्टि का रचयिता पूर्ण प्रभु सुख प्रदान करने वाला है, वह मेरी बहुत सारी मूर्खता को सहन करता रहता है।

ਨਿਰਗੁਨਿ ਕਰੂਪਿ ਕੁਲਹੀਣ ਨਾਨਕ ਹਉ ਅਨਦ ਰੂਪ ਸੁਆਮੀ ਭਰਤ ॥੨॥੩॥
निरगुनि करूपि कुलहीण नानक हउ अनद रूप सुआमी भरत ॥२॥३॥
हे नानक ! मैं गुणहीन, कुरूप एवं कुलहीन हूँ परन्तु मेरा स्वामी-पति आनंद का प्रत्यक्ष रूप है॥ २॥ ३॥

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ॥
देवगंधारी ॥
देवगंधारी ॥

ਮਨ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਕਰਿ ਸਦਹੂੰ ॥
मन हरि कीरति करि सदहूं ॥
हे मन ! सदैव ही हरि का कीर्ति-गान किया कर।

ਗਾਵਤ ਸੁਨਤ ਜਪਤ ਉਧਾਰੈ ਬਰਨ ਅਬਰਨਾ ਸਭਹੂੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गावत सुनत जपत उधारै बरन अबरना सभहूं ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु का यश गाने, उसकी महिमा सुनने एवं नाम-जपने से सभी जीव चाहे वे उच्च कुल से हो अथवा निम्न कुल से प्रभु सबका उद्धार कर देता है॥ १॥ रहाउ ॥

ਜਹ ਤੇ ਉਪਜਿਓ ਤਹੀ ਸਮਾਇਓ ਇਹ ਬਿਧਿ ਜਾਨੀ ਤਬਹੂੰ ॥
जह ते उपजिओ तही समाइओ इह बिधि जानी तबहूं ॥
जब जीव यह विधि समझ लेता है तो वह उस में ही समा जाता है, जिससे वह उत्पन्न हुआ था।

ਜਹਾ ਜਹਾ ਇਹ ਦੇਹੀ ਧਾਰੀ ਰਹਨੁ ਨ ਪਾਇਓ ਕਬਹੂੰ ॥੧॥
जहा जहा इह देही धारी रहनु न पाइओ कबहूं ॥१॥
जहाँ कहीं भी यह देहि धारण की गई थी, किसी समय भी यह आत्मा वहाँ टिकने नहीं दी गई ॥१॥

ਸੁਖੁ ਆਇਓ ਭੈ ਭਰਮ ਬਿਨਾਸੇ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਹੂਏ ਪ੍ਰਭ ਜਬਹੂ ॥
सुखु आइओ भै भरम बिनासे क्रिपाल हूए प्रभ जबहू ॥
जब प्रभु कृपालु हो गया तो मन में सुख का निवास हो गया और भय एवं भ्रम नष्ट हो गए।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੇਰੇ ਪੂਰੇ ਮਨੋਰਥ ਸਾਧਸੰਗਿ ਤਜਿ ਲਬਹੂੰ ॥੨॥੪॥
कहु नानक मेरे पूरे मनोरथ साधसंगि तजि लबहूं ॥२॥४॥
हे नानक ! साधसंगत में लोभ को छोड़ने से मेरे सभी मनोरथ पूरे हो गए है ॥२॥४॥

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ॥
देवगंधारी ॥
देवगंधारी ॥

ਮਨ ਜਿਉ ਅਪੁਨੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵਉ ॥
मन जिउ अपुने प्रभ भावउ ॥
हे मेरे मन ! जैसे भी हो सके, अपने प्रभु को अच्छा लगने लगूं,

ਨੀਚਹੁ ਨੀਚੁ ਨੀਚੁ ਅਤਿ ਨਾਨੑਾ ਹੋਇ ਗਰੀਬੁ ਬੁਲਾਵਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नीचहु नीचु नीचु अति नान्हा होइ गरीबु बुलावउ ॥१॥ रहाउ ॥
इसलिए मैं नीचों से भी नीच, विनम्र एवं अत्यन्त गरीब बन कर प्रभु को पुकारता हूँ॥ १॥ रहाउ ॥

ਅਨਿਕ ਅਡੰਬਰ ਮਾਇਆ ਕੇ ਬਿਰਥੇ ਤਾ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਘਟਾਵਉ ॥
अनिक अड्मबर माइआ के बिरथे ता सिउ प्रीति घटावउ ॥
माया के अनेक आडम्बर व्यर्थ हैं और इनसे मैं अपनी प्रीति कम करता हूँ।

ਜਿਉ ਅਪੁਨੋ ਸੁਆਮੀ ਸੁਖੁ ਮਾਨੈ ਤਾ ਮਹਿ ਸੋਭਾ ਪਾਵਉ ॥੧॥
जिउ अपुनो सुआमी सुखु मानै ता महि सोभा पावउ ॥१॥
जैसा मेरा स्वामी सुख की अनुभूति करता है, मैं उसी में शोभा प्राप्त करता हूँ॥ १॥

ਦਾਸਨ ਦਾਸ ਰੇਣੁ ਦਾਸਨ ਕੀ ਜਨ ਕੀ ਟਹਲ ਕਮਾਵਉ ॥
दासन दास रेणु दासन की जन की टहल कमावउ ॥
मैं तो प्रभु के दासानुदास की चरण-धूलि हूँ और दासों की श्रद्धा से सेवा करता हूँ।

ਸਰਬ ਸੂਖ ਬਡਿਆਈ ਨਾਨਕ ਜੀਵਉ ਮੁਖਹੁ ਬੁਲਾਵਉ ॥੨॥੫॥
सरब सूख बडिआई नानक जीवउ मुखहु बुलावउ ॥२॥५
हे नानक ! मैं अपने मुँह से प्रभु का नाम बोलते हुए ही जीवित रहता हूँ, इसलिए अब मुझे सर्व सुख एवं बड़ाई मिल गए हैं।॥ २ ॥ ५॥

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ॥
देवगंधारी ॥
देवगंधारी ॥

ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਤਉ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਭ੍ਰਮੁ ਡਾਰਿਓ ॥
प्रभ जी तउ प्रसादि भ्रमु डारिओ ॥
हे प्रभु जी ! तेरी कृपा से मैंने अपने भ्रम को मिटा दिया है।

ਤੁਮਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਸਭੁ ਕੋ ਅਪਨਾ ਮਨ ਮਹਿ ਇਹੈ ਬੀਚਾਰਿਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तुमरी क्रिपा ते सभु को अपना मन महि इहै बीचारिओ ॥१॥ रहाउ ॥
मैंने अपने मन में यही विचार किया है कि तुम्हारी कृपा से सभी मेरे अपने हैं कोई पराया नहीं ॥१॥ रहाउ॥

ਕੋਟਿ ਪਰਾਧ ਮਿਟੇ ਤੇਰੀ ਸੇਵਾ ਦਰਸਨਿ ਦੂਖੁ ਉਤਾਰਿਓ ॥
कोटि पराध मिटे तेरी सेवा दरसनि दूखु उतारिओ ॥
हे परमेश्वर ! तेरी सेवा-भक्ति से करोड़ों ही अपराध मिट जाते हैं और तेरे दर्शन दुःख दूर कर देते हैं।

ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਮਹਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਓ ਚਿੰਤਾ ਰੋਗੁ ਬਿਦਾਰਿਓ ॥੧॥
नामु जपत महा सुखु पाइओ चिंता रोगु बिदारिओ ॥१॥
तेरे नाम का जाप करने से मैंने महा सुख प्राप्त कर लिया है और मेरी चिंता एवं रोग मिट गए हैं॥ १॥

ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਝੂਠੁ ਨਿੰਦਾ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਬਿਸਾਰਿਓ ॥
कामु क्रोधु लोभु झूठु निंदा साधू संगि बिसारिओ ॥
साधसंगत में रहकर मैं काम, क्रोध, लोभ, झूठ एवं निन्दा इत्यादि को भूल गया हूँ।

ਮਾਇਆ ਬੰਧ ਕਾਟੇ ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਉਧਾਰਿਓ ॥੨॥੬॥
माइआ बंध काटे किरपा निधि नानक आपि उधारिओ ॥२॥६॥
हे नानक ! कृपानिधि परमेश्वर ने आप मेरे माया के बन्धन काट कर मुझे मुक्त कर दिया है ॥२॥६॥

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ॥
देवगंधारी ॥
देवगंधारी ॥

ਮਨ ਸਗਲ ਸਿਆਨਪ ਰਹੀ ॥
मन सगल सिआनप रही ॥
मेरे मन की तमाम चतुराईयाँ समाप्त हो गई हैं।

ਕਰਨ ਕਰਾਵਨਹਾਰ ਸੁਆਮੀ ਨਾਨਕ ਓਟ ਗਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करन करावनहार सुआमी नानक ओट गही ॥१॥ रहाउ ॥
हे नानक ! मेरा स्वामी प्रभु ही सब कुछ करने एवं जीवों से करवाने में समर्थ है, इसलिए मैंने उसकी ओट ली है ॥१॥ रहाउ॥

ਆਪੁ ਮੇਟਿ ਪਏ ਸਰਣਾਈ ਇਹ ਮਤਿ ਸਾਧੂ ਕਹੀ ॥
आपु मेटि पए सरणाई इह मति साधू कही ॥
अहंत्व को मिटाकर मैं प्रभु की शरण में आ गया हूँ, यह सुमति मुझे साधु ने कही है।

ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਆਗਿਆ ਮਾਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਭਰਮੁ ਅਧੇਰਾ ਲਹੀ ॥੧॥
प्रभ की आगिआ मानि सुखु पाइआ भरमु अधेरा लही ॥१॥
प्रभु की आज्ञा का पालन करके मैंने सुख प्राप्त कर लिया है और मेरा भ्रम का अंधेरा दूर हो गया है॥ १॥

ਜਾਨ ਪ੍ਰਬੀਨ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਸਰਣਿ ਤੁਮਾਰੀ ਅਹੀ ॥
जान प्रबीन सुआमी प्रभ मेरे सरणि तुमारी अही ॥
हे मेरे स्वामी प्रभु ! तुझे सर्वगुण सम्पन्न एवं प्रवीण समझ कर मैंने तेरी शरण की अभिलाषा की है।

ਖਿਨ ਮਹਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਨਹਾਰੇ ਕੁਦਰਤਿ ਕੀਮ ਨ ਪਹੀ ॥੨॥੭॥
खिन महि थापि उथापनहारे कुदरति कीम न पही ॥२॥७॥
हे क्षण भर में बनाने एवं विनाश करने वाले परमात्मा ! तेरी कुदरत का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ॥ २॥ ७॥

ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥

ਹਰਿ ਪ੍ਰਾਨ ਪ੍ਰਭੂ ਸੁਖਦਾਤੇ ॥
हरि प्रान प्रभू सुखदाते ॥
परमात्मा ही प्राण एवं सुखदाता है,

ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਕਾਹੂ ਜਾਤੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर प्रसादि काहू जाते ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की कृपा से कोई विरला पुरुष ही इस सत्य को समझता है॥ १॥ रहाउ॥

ਸੰਤ ਤੁਮਾਰੇ ਤੁਮਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਤਿਨ ਕਉ ਕਾਲ ਨ ਖਾਤੇ ॥
संत तुमारे तुमरे प्रीतम तिन कउ काल न खाते ॥
हे प्रियतम प्रभु ! तेरे संत तुझे अति प्रिय हैं और उन्हें काल नहीं निगलता।

ਰੰਗਿ ਤੁਮਾਰੈ ਲਾਲ ਭਏ ਹੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਰਸਿ ਮਾਤੇ ॥੧॥
रंगि तुमारै लाल भए है राम नाम रसि माते ॥१॥
वे तेरे प्रेम-रंग में लाल हो गए हैं तथा राम-नाम के रस में ही मस्त रहते हैं।॥१॥

error: Content is protected !!