ਅਮਿਅ ਸਰੋਵਰੋ ਪੀਉ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਰਾਮ ॥
अमिअ सरोवरो पीउ हरि हरि नामा राम ॥
हे जीव ! हरि अमृत का सरोवर है, उस हरिनामामृत का पान करो।
ਸੰਤਹ ਸੰਗਿ ਮਿਲੈ ਜਪਿ ਪੂਰਨ ਕਾਮਾ ਰਾਮ ॥
संतह संगि मिलै जपि पूरन कामा राम ॥
संतजनों की सभा में ही परमेश्वर मिलता है और उसकी आराधना करने से सभी कार्य सम्पूर्ण हो जाते हैं।
ਸਭ ਕਾਮ ਪੂਰਨ ਦੁਖ ਬਿਦੀਰਨ ਹਰਿ ਨਿਮਖ ਮਨਹੁ ਨ ਬੀਸਰੈ ॥
सभ काम पूरन दुख बिदीरन हरि निमख मनहु न बीसरै ॥
वह सभी कार्य सम्पूर्ण करने वाला तथा दुःखों का विदीर्ण करने वाला है, इसलिए अपने मन में हमें उसे एक पल भी विस्मृत नहीं करना चाहिए।
ਆਨੰਦ ਅਨਦਿਨੁ ਸਦਾ ਸਾਚਾ ਸਰਬ ਗੁਣ ਜਗਦੀਸਰੈ ॥
आनंद अनदिनु सदा साचा सरब गुण जगदीसरै ॥
सर्वगुणसम्पन्न जगदीश्वर रात-दिन आनंद में तथा सदा सत्यस्वरूप है,
ਅਗਣਤ ਊਚ ਅਪਾਰ ਠਾਕੁਰ ਅਗਮ ਜਾ ਕੋ ਧਾਮਾ ॥
अगणत ऊच अपार ठाकुर अगम जा को धामा ॥
वह ठाकुर अनंत, सर्वोच्च तथा अपार है, जिसका धाम अगम्य है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਮੇਰੀ ਇਛ ਪੂਰਨ ਮਿਲੇ ਸ੍ਰੀਰੰਗ ਰਾਮਾ ॥੩॥
बिनवंति नानक मेरी इछ पूरन मिले स्रीरंग रामा ॥३॥
नानक प्रार्थना करता है कि मेरी मनोकामना पूर्ण हो गई है, क्योंकि मुझे ईश्वर मिल गया है।। ३।।
ਕਈ ਕੋਟਿਕ ਜਗ ਫਲਾ ਸੁਣਿ ਗਾਵਨਹਾਰੇ ਰਾਮ ॥
कई कोटिक जग फला सुणि गावनहारे राम ॥
प्रभु का यश सुनने एवं गाने वालों को कई करोड़ यज्ञों का फल प्राप्त होता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਕੁਲ ਸਗਲੇ ਤਾਰੇ ਰਾਮ ॥
हरि हरि नामु जपत कुल सगले तारे राम ॥
परमात्मा के नाम का जाप करने वालों की सारी वंशावली ही संसार-सागर से पार हो जाती है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਸੋਹੰਤ ਪ੍ਰਾਣੀ ਤਾ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਕਿਤ ਗਨਾ ॥
हरि नामु जपत सोहंत प्राणी ता की महिमा कित गना ॥
हरि के नाम का जाप करने से प्राणी शोभावान बन जाता है, जिसकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता।
ਹਰਿ ਬਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਾਨ ਪਿਆਰੇ ਚਿਤਵੰਤਿ ਦਰਸਨੁ ਸਦ ਮਨਾ ॥
हरि बिसरु नाही प्रान पिआरे चितवंति दरसनु सद मना ॥
हे प्राण प्यारे परमेश्वर ! मैं तुझे नहीं भुला सकता क्योंकि मेरे मन को सदैव ही तेरे दर्शनों की अभिलाषा बनी रहती है।
ਸੁਭ ਦਿਵਸ ਆਏ ਗਹਿ ਕੰਠਿ ਲਾਏ ਪ੍ਰਭ ਊਚ ਅਗਮ ਅਪਾਰੇ ॥
सुभ दिवस आए गहि कंठि लाए प्रभ ऊच अगम अपारे ॥
वह बड़ा शुभ दिवस आया है, जब सर्वोच्च, अगम्य एवं अपार प्रभु ने अपने गले से हमें लगाया है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਫਲੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲੇ ਅਤਿ ਪਿਆਰੇ ॥੪॥੩॥੬॥
बिनवंति नानक सफलु सभु किछु प्रभ मिले अति पिआरे ॥४॥३॥६॥
नानक प्रार्थना करता है कि जब अत्यंत प्रिय प्रभु मिल जाता है, सब कुछ सफल हो जाता है। ४॥ ३॥ ६॥
ਬਿਹਾਗੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ ॥
बिहागड़ा महला ५ छंत ॥
बिहागड़ा महला ५ छंत ॥
ਅਨ ਕਾਏ ਰਾਤੜਿਆ ਵਾਟ ਦੁਹੇਲੀ ਰਾਮ ॥
अन काए रातड़िआ वाट दुहेली राम ॥
हे मानव जीव ! क्यों निरर्थक पदार्थों के मोह में फंसे हुए हो ? क्योकि यह जीवन मार्ग बड़ा मुश्किल है।
ਪਾਪ ਕਮਾਵਦਿਆ ਤੇਰਾ ਕੋਇ ਨ ਬੇਲੀ ਰਾਮ ॥
पाप कमावदिआ तेरा कोइ न बेली राम ॥
हे पाप कमाने वाले ! दुनिया में तेरा कोई भी साथी नहीं।
ਕੋਏ ਨ ਬੇਲੀ ਹੋਇ ਤੇਰਾ ਸਦਾ ਪਛੋਤਾਵਹੇ ॥
कोए न बेली होइ तेरा सदा पछोतावहे ॥
यदि कोई भी तेरा साथी नहीं होगा तो अपने किये कर्मो पर सदा पश्चाताप ही करता रहेगा।
ਗੁਨ ਗੁਪਾਲ ਨ ਜਪਹਿ ਰਸਨਾ ਫਿਰਿ ਕਦਹੁ ਸੇ ਦਿਹ ਆਵਹੇ ॥
गुन गुपाल न जपहि रसना फिरि कदहु से दिह आवहे ॥
तू अपनी रसना से दुनिया के मालिक गोपाल के गुणों का जाप नहीं करता यह जीवन का शुभावसर दोबारा फिर तुझे कब मिलेगा?
ਤਰਵਰ ਵਿਛੁੰਨੇ ਨਹ ਪਾਤ ਜੁੜਤੇ ਜਮ ਮਗਿ ਗਉਨੁ ਇਕੇਲੀ ॥
तरवर विछुंने नह पात जुड़ते जम मगि गउनु इकेली ॥
जिस प्रकार वृक्ष से टूटे हुए पत्ते पुनः वृक्ष से नहीं जुड़ सकते, वैसे ही जीवात्मा मृत्यु के मार्ग पर अकेले ही चल देती है।
ਬਿਨਵੰਤ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਮ ਹਰਿ ਕੇ ਸਦਾ ਫਿਰਤ ਦੁਹੇਲੀ ॥੧॥
बिनवंत नानक बिनु नाम हरि के सदा फिरत दुहेली ॥१॥
नानक प्रार्थना करता है कि हरि के नाम के बिना जीवात्मा सदैव ही दुःख संताप में भटकती रहती है।॥१॥
ਤੂੰ ਵਲਵੰਚ ਲੂਕਿ ਕਰਹਿ ਸਭ ਜਾਣੈ ਜਾਣੀ ਰਾਮ ॥
तूं वलवंच लूकि करहि सभ जाणै जाणी राम ॥
हे जीव ! तू छिप-छिपकर बड़े छल कपट करता रहता है किन्तु प्रभु सब कुछ जानता है।
ਲੇਖਾ ਧਰਮ ਭਇਆ ਤਿਲ ਪੀੜੇ ਘਾਣੀ ਰਾਮ ॥
लेखा धरम भइआ तिल पीड़े घाणी राम ॥
जब परलोक में धर्मराज तेरे कर्मों का लेखा-जोखा करेगा तो दुष्कर्मों के कारण तुम तिलों की भाँति घानी में पिसे जाओगे।
ਕਿਰਤ ਕਮਾਣੇ ਦੁਖ ਸਹੁ ਪਰਾਣੀ ਅਨਿਕ ਜੋਨਿ ਭ੍ਰਮਾਇਆ ॥
किरत कमाणे दुख सहु पराणी अनिक जोनि भ्रमाइआ ॥
हे नश्वर प्राणी ! अपने किए हुए कर्मों का दु:ख रूपी दण्ड तुझे भोगना ही पड़ेगा तथा तुम अनेक योनियों के चक्र में पड़कर भटकते रहोगे।
ਮਹਾ ਮੋਹਨੀ ਸੰਗਿ ਰਾਤਾ ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
महा मोहनी संगि राता रतन जनमु गवाइआ ॥
महा मोहिनी के आकर्षण में फंसकर प्राणी अपना हीरे जैसा अनमोल मनुष्य जीवन गंवा देता है।
ਇਕਸੁ ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਬਾਝਹੁ ਆਨ ਕਾਜ ਸਿਆਣੀ ॥
इकसु हरि के नाम बाझहु आन काज सिआणी ॥
एक परमेश्वर के नाम के अतिरिक्त जीवात्मा सभी कार्यों में कुशल एवं चतुर है।
ਬਿਨਵੰਤ ਨਾਨਕ ਲੇਖੁ ਲਿਖਿਆ ਭਰਮਿ ਮੋਹਿ ਲੁਭਾਣੀ ॥੨॥
बिनवंत नानक लेखु लिखिआ भरमि मोहि लुभाणी ॥२॥
नानक प्रार्थना करता है कि जिनके कर्म-लेख में ऐसा लिखा हुआ है, यह दुविधा तथा सांसारिक मोह में लीन रहते हैं।॥२॥
ਬੀਚੁ ਨ ਕੋਇ ਕਰੇ ਅਕ੍ਰਿਤਘਣੁ ਵਿਛੁੜਿ ਪਇਆ ॥
बीचु न कोइ करे अक्रितघणु विछुड़ि पइआ ॥
कृतघ्न मनुष्य परमेश्वर से जुदा ही रहता है और कोई भी उसका मध्यस्थ नहीं होता।
ਆਏ ਖਰੇ ਕਠਿਨ ਜਮਕੰਕਰਿ ਪਕੜਿ ਲਇਆ ॥
आए खरे कठिन जमकंकरि पकड़ि लइआ ॥
कठिन यमदूत आकर उसे पकड़ लेते है और
ਪਕੜੇ ਚਲਾਇਆ ਅਪਣਾ ਕਮਾਇਆ ਮਹਾ ਮੋਹਨੀ ਰਾਤਿਆ ॥
पकड़े चलाइआ अपणा कमाइआ महा मोहनी रातिआ ॥
उसके दुष्कर्मों के परिणामस्वरूप यमदूत उसे आगे लगा लेते है, क्योंकि वह महामोहिनी में लीन रहा था।
ਗੁਨ ਗੋਵਿੰਦ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨ ਜਪਿਆ ਤਪਤ ਥੰਮ੍ਹ੍ਹ ਗਲਿ ਲਾਤਿਆ ॥
गुन गोविंद गुरमुखि न जपिआ तपत थम्ह गलि लातिआ ॥
जो मनुष्य गुरमुख बनकर परमात्मा का गुणगान नहीं करता, वह तपते हुए स्तम्भ से लगा दिया जाता है।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧਿ ਅਹੰਕਾਰਿ ਮੂਠਾ ਖੋਇ ਗਿਆਨੁ ਪਛੁਤਾਪਿਆ ॥
काम क्रोधि अहंकारि मूठा खोइ गिआनु पछुतापिआ ॥
जीव काम, क्रोध एवं अहंकार में लीन होकर सब कुछ गंवा देता है और ज्ञान से विहीन होकर पश्चाताप करता रहता है।
ਬਿਨਵੰਤ ਨਾਨਕ ਸੰਜੋਗਿ ਭੂਲਾ ਹਰਿ ਜਾਪੁ ਰਸਨ ਨ ਜਾਪਿਆ ॥੩॥
बिनवंत नानक संजोगि भूला हरि जापु रसन न जापिआ ॥३॥
नानक प्रार्थना करता है कि कर्मों के फलस्वरूप ही मनुष्य संयोग कारन प्रभु को विस्मृत करके कुमार्गगामी बना है, इसलिए यह अपनी रसना से श्रीहरि के नाम का जाप नहीं जपता ॥३॥
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਕੋ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭ ਰਾਖਨਹਾਰਾ ਰਾਮ ॥
तुझ बिनु को नाही प्रभ राखनहारा राम ॥
है प्रभु ! तेरे सिवाय हमारा कोई भी रखवाला नहीं हैं।
ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਣ ਹਰਿ ਬਿਰਦੁ ਤੁਮਾਰਾ ਰਾਮ ॥
पतित उधारण हरि बिरदु तुमारा राम ॥
है श्रीहरि ! पतित लोगो का उद्धार करना तेरा विरद है।
ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਨ ਸਰਨਿ ਸੁਆਮੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਦਇਆਲਾ ॥
पतित उधारन सरनि सुआमी क्रिपा निधि दइआला ॥
हे पतितों का उद्धार करने वाले स्वामी ! हे कृपानिधि ! हे दया के घर ! मैं तेरी शरण में (आया) हूँ।
ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਉਧਰੁ ਕਰਤੇ ਸਗਲ ਘਟ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥
अंध कूप ते उधरु करते सगल घट प्रतिपाला ॥
हे जगत के रचयिता ! मेरा नश्वर जगत रूपी अन्धकूप से उद्धार करो तू सब जीवों का भरण-पोषण करने वाला है।
ਸਰਨਿ ਤੇਰੀ ਕਟਿ ਮਹਾ ਬੇੜੀ ਇਕੁ ਨਾਮੁ ਦੇਹਿ ਅਧਾਰਾ ॥
सरनि तेरी कटि महा बेड़ी इकु नामु देहि अधारा ॥
मैं तेरी शरण में आया हूँ कृपा करके मेरी सांसारिक महा बेड़ियाँ काट दीजिये और नाम का आधार प्रदान कीजिये।